MP 9th Sanskrit

MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 8 लौहतुला

MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 8 लौहतुला

MP Board Class 9th Sanskrit Chapter 1 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न

गद्यांशों के हिन्दी में अनुवाद 
पाठ परिचय अयं पाठः विष्णुशर्मविरचितम् “पञ्चतन्त्रम्” इति कथाग्रन्थस्य मित्रभेदनामकतन्त्रस्य सम्पादितः अंशः अस्ति। अस्यां कथायाम् एकः जीर्णधननामकः वणिक् विदेशात् व्यापारं कृत्वा प्रत्यावर्त्य संरक्षितन्यासरूपेण प्रदत्तां तुलां धनिकात् याचते। परञ्च सः धनिकः वदति यत् तस्य तुला तु मूषकैः भक्षिता, ततः सः वणिक धनिकस्य पुत्रं स्नानार्थं नदीं प्रति नयति, तं तत्र नीत्वा च सः एकस्यां गुहायां निलीयते । प्रत्यावर्तिते सति पुत्रम् अदृष्ट्वा धनिकः पृच्छति मम शिशुः कुत्रास्ति? सः वदति यत् तव पुत्रः श्येनेन अपहृतः । तदा उभौ विवदन्तौ न्यायालयं प्रति गतौ यत्र न्यायाधिकारिणः न्यायं कृतवन्तः ।
अनुवाद – यह पाठ विष्णुशर्मा द्वारा लिखित ‘पञ्चतन्त्र’ कहानी संग्रह के ‘मित्र-भेद’ नामक खण्ड का सम्पादित अंश है। इस कहानी में जीर्णधन नामक एक व्यापारी विदेश से व्यापार करके लौटकर धरोहर के रूप में सुरक्षित रखी हुई तराजू को धनवान से माँगता है। परन्तु वह धनवान कहता है कि उसकी तराजु को चूहे खा गए हैं। तब वह व्यापारी धनवान् के पुत्र को स्नान के लिए नदी पर ले जाता है । वह उसे वहाँ ले जाकर एक गुफा में छिपा देता है। उसके लौटने पर पुत्र को न देखकर धनवान् पूछता है- “मेरा पुत्र कहा है?” वह बताता है कि “तुम्हारे पुत्र को बाज पक्षी उठाकर ले गया है।” तब दोनों विवाद करते हुए न्यायालय गए, जहाँ न्यायाधीश ने न्याय किया।
गद्यांश 1. आसीत् कस्मिंश्चिद अधिष्ठाने जीर्णधनो नाम वणिक्पुत्रः । स च विभवक्षयात् देशान्तरं गन्तुमिच्छन् व्यचिन्तयत्
यत्र देशेऽथवा स्थाने भोगा भुक्ताः स्ववीर्यतः ।
तस्मिन् विभवहीनो यो वसेत् स पुरुषाधमः ॥
तस्य च गृहे लौहघटिता पूर्वपुरुषोपार्जिता तुला आसीत्। तां च कस्यचित् श्रेष्ठिनो गृहे निक्षेपभूतां कृत्वा देशान्तरं प्रस्थितः। ततः सुचिरं कालं देशान्तरं यथेच्छया भ्रान्त्वा पुन: स्वपुरम् आगत्य तं श्रेष्ठनम् अवद्त- “भोः श्रेष्ठिन् ! दीयतां मे सा निक्षेपतुला ।” सोऽवदत्- ‘‘भोः! नास्ति सा, त्वदीया तुला मूषकैः भक्षिता” इति ।
जीर्णधनः अवदत्- “भोः श्रेष्ठिन् ! नास्ति दोषस्ते, यदि मूषकैः भक्षिता | ईदृशः एव अयं संसारः । न किञ्चिदत्र शाश्वतमस्ति। परमहं नद्यां स्नानार्थं गमिष्यामि। तत् त्वम् आत्मीयं एनं शिशुं धनदेवनामांनं मया सह स्नानोपकरणहस्तं प्रेषय” इति।
स श्रेष्ठी स्वपुत्रम् अवदत् – “वत्स! पितृव्योऽयं तव, स्नानार्थं यास्यति, तद् अनेन साकं गच्छ” इति।
अनुवाद – किसी नगर में जीर्णधन नाम का एक बनिया रहता था। वह धन के अभाव के कारण अन्य देश में जाने का विचार करने लगा –
“जिस देश अथवा स्थान पर अपने पराक्रम से भोग भोगे जाते हैं, उसमें जो धनहीन होकर रहता है, वह अधम पुरुष है। “
उसके घर में लोहे की बनी हुई पूर्वजों के द्वारा कमाई हुई एक तराजू थी। उसे किसी साहूकार के यहाँ धरोहर के रूप में रखकर अन्य देश में चला गया. तब काफी दिनों तक अन्य देश में अपनी इच्छा पूर्वक भ्रमण करके फिर अपने नगर में आकर उस साहूकार से बोला- “हे सेठजी ! मेरी वह तराजू दे दो।” वह बोला- “अरे ! वह नहीं है, तुम्हारी दी हुई तराजू को चूहे खा गए।”
जीर्णधन ने कहा- “हे सेठजी! यदि चूहे खा गए, तो इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है। यह संसार ही ऐसा है। यहाँ कुछ भी शाश्वत नहीं है। परन्तु मैं स्नान के लिए नदी पर जाऊँगा। तो तुम अपने इस पुत्र धनदेव को मेरे साथ स्नान की सामग्री देकर मेरे साथ भेज दो?”
वह सेठ अपने पुत्र से बोला, “बेटा! ये तेरे चाचा के समान है। स्नान के लिए जा रहे हैं, तो इनके साथ चले जाओ।”
गद्यांश 2. अथांसौ श्रेष्ठिपुत्रः धनदेवः स्नानोपकरणमादाय प्रहृष्टमनाः तेन अभ्यागतेन सह प्रस्थितः । तथानुष्ठिते स वणिक् स्नात्वा तं शिशुं गिरिगुहायां प्रक्षिप्य, तद्द्वारं बृहत् शिलया आच्छाद्य सत्त्वरं गृहमागतः ।
सः श्रेष्ठी पृष्टवान्- भोः ! अभ्यागत! कथ्यतां कुत्र में शिशुः यः त्वया सह नदीं गतः ”? इति ।
स अवदत्- “तव पुत्रः नदीतटात् श्येनेन हृतः’ इति । श्रेष्ठी अवदत्- “मिथ्यावादिन् ! किं क्वचित् श्येनो बालं हर्तुं शक्नोति ? तत् समर्पय मे सुतम् अन्यथा राजकुले निवेदयिष्यामि।” इति।
अनुवाद- सेठ का बेटा धनदेव स्नान की सामग्री लेकर प्रसन्न मन से उन नये व्यक्ति के साथ चल दिया। उस बनिये ने स्नान करके उस लड़के को पहाड़ की गुफा में छिपाकर उसके प्रवेश द्वार को बड़ी चट्टान से ढँक दिया और तुरन्त घर आ गया।
उस सेठ ने पूछा- “अरे ओ भैया! बताओ कि मेरा बेटा कहाँ है, जो तुम्हारे साथ नदी पर स्नान के लिए गया था?”
उसने जवाब दिया- “तुम्हारे बेटे को नदी के किनारे से एक बाजपक्षी उठाकर ले गया।” सेठ बोल – “हे झूठ बोलने वाले! क्या कोई बाजपक्षी बच्चे को उठाकर ले जा सकता है?” तो मेरे बेटे को मुझे दे दो, अन्यथा राजदरबार में शिकायत करता हूँ।”
गद्यांश 3. सोऽकथयत्- “भोः सत्यवादिन्! यथा श्येनो बालं न नयति, तथा मूषका अपि लौहघटितां तुलां न भक्षयन्ति । तदर्पय मे तुलाम्, यदि दारकेण प्रयोजनम्।” इति ।
एवं विवदमानौ तौ द्वावपि राजकुलं गतौ । तत्र श्रेष्ठी तारस्वरेण अवदत् – “भोः ! वञ्चितोऽहम् ! वञ्चितोऽहम् ! अब्रह्मण्यम्! अनेन चौरेण मम शिशुः अपहृतः’ इति ।
अनुवाद – वह बोला, “हे सत्यवादी! जैसे बाजपक्षी बच्चे को नहीं ले जा सकता, वैसे ही चूहे भी लोहे की बनी हुई तराजू को नहीं खा सकते। तो मेरी तराजू मुझे दे दो, यदि तुम्हें अपना बेटा चाहिए तो?”
इस प्रकार विवाद करते हुए वे दोनों राजदरबार में पहुँचे। वहाँ सेठ चिल्लाकर बोला- “हाय राम! मैं तो लुट गया! मैं तो लुट गया!! घोर पाप ! इस चोर ने मेरे बेटे का अपहरण कर लिया।”
गद्यांश 4. अथ धर्माधिकारिणः तम् अवदन्- “भोः ! समर्प्यतां श्रेष्ठिसुतः ।
सोऽवदत्- “किं करोमि ? पश्यतो मे नदीतटात् श्येनेन शिशुः अपहृतः । इति ।
तच्छुत्वा ते अवदन्- भोः ! भवता सत्यं नाभिहितम्किं श्येनः शिशुं हर्तुं समर्थो भवति?
सोऽअवदत् – भोः भोः ! श्रूयतां मद्वचः
तुलां लौहसहस्त्रस्य यत्र खादन्ति मूषकाः।
राजतन्त्र हरेच्छ्येनो बालकं, नात्र संशयः ॥
ते अपृच्छन्- “कथमेतत् ।
ततः स श्रेष्ठी सभ्यानामग्रे आदितः सर्व वृत्तान्तं न्यवेदयत्। ततः, न्यायाधिकारिणः विहस्य, तौ द्वावपि सम्बोध्य तुला- शिशुप्रदानेन तोषितवन्तः ।
अनुवाद – धर्माधिकारी ने उसे कहा- “अरे ! सेठ के पुत्र को उपस्थित करो।” वह बोला- “मैं क्या करूँ? मेरे देखते-देखते एक बाजपक्षी नदी के किनारे से बच्चे को उठाकर ले गया।”
यह सुनकर उन्होंने कहा- “अरे! तुमने सत्य नहीं कहा है। क्या कोई बाजपक्षी बच्चे का अपहरण कर सकता है ?”
वह बोला- “अरे! ओ !! सुनिए मेरी बात- “यदि चूहे लोहे की तराजू को खा सकते हैं, तो हे राजन्! बाजपक्षी बालक को उठाकर ले जाएँ, इसमें कोई सन्देह की गुंजाईश नहीं है।”
वे बोला- “यह कैसे हो सकता है। “
तब सेठ ने धर्माधिकारियों के समक्ष प्रारंभ से सारा विवरण प्रस्तुत किया। तब धर्माधिकारी ने हँसकर, दोनों का सुलह (समझौता) करवा कर तराजू वाले को तराजू और बच्चे वाले को बच्चा दिलवाकर सन्तुष्ट कर घर रवाना किया।
अभ्यासस्य प्रश्नोत्तराणि
प्रश्न 1. एकपदेन उत्तरं लिखत- (एक पद में उत्तर लिखिए ) –
(क) वणिकपुत्रस्य किं नाम आसीत् ?
( व्यापारी के बेटे का क्या नाम था?)
(ख) तुला कै: भक्षिता आसीत् ?
(तराजू को कौन खा गया था ? )
(ग) तुला कीदृशी आसीत् ?
(तराजू कैसी थी ? )
(घ) पुत्रः केन हृतः इति जीर्णधनः वदति ?
(पुत्र का अपहरण किसने किया, यह जीर्णधन कहता है ? )
(ङ) विवदमानौ तौ द्वावपि कुत्र गतौ ?
( विवाद करते हुए वे दोनों कहाँ गए ? )
उत्तर- (क) धनदेव:, (ख) मूषकै:, (ग) लौहघटिता, (घ) श्येनेन, (ङ) राजकुलम् ।
प्रश्न 2. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत- (निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए ) –
( क ) देशान्तरं गन्तुमिच्छन वणिक्पुत्रः किं व्यचिन्तयत् ?
( अन्य देश जाने की इच्छा करते हुए व्यापारी क्या सोचने लगा ? )
उत्तर- देशान्तरं गन्तुमिच्छन- वणिक्पुत्रः व्यचिन्तयत् “यत्र देशेऽथवा स्थाने भोगा भुक्ताः स्ववीर्यतः ।
तस्मिन् विभवहीनो यो वसेत् स पुरुषाधमः ॥”
(जिस देश अथवा स्थान पर अपने पराक्रम से भोगों को भोगा, उस स्थान पर निर्धन के रूप में जो रहता है, वह अधम व्यक्ति है। )
( ख ) स्वतुलां याचमानं जीर्णधनः श्रेष्ठी किम अकथयत् ?
( अपनी तराजू की माँग करने वाले जीर्णधन को सेठ ने क्या कहा ? )
उत्तर- स्वतुलां योचमानं जीर्णधनं श्रेष्ठी अकथयत्- “भो ! नास्ति सा, त्वदीया तुला मूषकैः भक्षिता” इति। (अपनी तराजू की माँग करने वाले जीर्णधन को सेठ ने कहा- “अरे ! वह नहीं है, तुम्हारी तराजू को चूहे खा गए।”
(ग ) जीर्णधन: गिरिगुहाद्वारं कया आच्छद्य गृहमागत: ?
( जीर्णधन पर्वत की गुफा के द्वार को किससे ढक कर घर आ गया? )
उत्तर- जीर्णधन: गिरिगुहाद्वारं बृहत् शिलया आच्छाद्य गृहमागतः।
(जीर्णधन पर्वत की गुफा के द्वार को एक चट्टान से ढँककर घर आ गया)
(घ ) स्नानानन्तरं पुत्र विषये पृष्टः वणिक्पुत्र: श्रेष्ठिनं किम् अवदत् ?
( स्नान के बाद पुत्र के विषय में पूछे जाने पर व्यापारी ने सेठ से क्या कहा ? )
उत्तर- स्नानान्तरं पुत्र विषये पृष्टः वणिक्पुत्र: श्रेष्ठिनं अवदत् – “तव पुत्र: नदीतटात् श्येनेन हृतः । ”
( स्नान के बाद पुत्र के विषय में पूछे जाने पर व्यापारी ने सेठ से कहा- “तुम्हारे पुत्र को नदी के किनारे से एक बाजपक्षी उठाकर ले गया । “
(ङ) धर्माधिकारिणः जीर्णधन श्रेष्ठिनौ कथं तोषितवन्तः?
(धर्माधिकारी ने जीर्णधन और सेठ को कैसे सन्तुष्ट किया ?
उत्तर- धर्माधिकारिणः जीर्णधन श्रेष्ठिनौ सम्बोध्य तुलाशिशु प्रदानेन तोषिंतवन्तः ।
( धर्माधिकारीयों ने जीर्णधन और सेठ को समझाकर जिसकी तराजू थी, उसे तराजू देकर और जिसका पुत्र था, उसे पुत्र देकर सन्तुष्ट किया। )
प्रश्न 3. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत –
( मोटे शब्दों के आधार पर प्रश्न बनाइए)
(क) जीर्णधन: विभवक्षयात् देशान्तरं गन्तुमिच्छन् व्यचिन्तयत्।
(ख) श्रेष्ठिन: शिशुः स्नानोपकरणमादाय अभ्यागतेन सह प्रस्थितः ।
(ग) वणिक् गिरिगुहां बृहच्छिलया आच्छादितवान् ।
(घ) सभ्यैः तौ परस्परं संबोध्य तुला- शिशु-प्रदानेन सन्तोषितौ ।
उत्तर-
(क) कः विभवक्षयात् देशान्तरं गन्तुमिच्छन् व्यचिन्तयत् ?
( ख ) श्रेष्ठिन: शिशुः स्नानोपकरणमादाय केन सह प्रस्थितः ?
(ग) वणिक गिरिगुहां कया आच्छादितवान् ?
(घ) सभ्यैः तौ परस्परं केन सन्तोषितौ ?
प्रश्न 4. अधोलिखितानां श्लोकानाम् अपूर्णोऽन्वयः प्रदत्तः पाठमाधृत्य तं पूरयत
(निम्नलिखित श्लोकों के अपूर्ण अन्वय को पाठ के आधार पर पूरा कीजिए ) –
(क) यत्र देशे अथवा स्थाने स्ववीर्यतः भोगा: भुक्ता, तस्मिन् विभवहीन: ये: वेसेत् स पुरुषाधमः।
(ख) राजन्! यत्र लौहसहस्त्रस्य तुलां मूषकाः खादन्ति तत्र श्येन: बालकं हरेत् अत्र संशयः न।
उत्तर-
(क) यत्र देशे अथवा स्थाने स्ववीर्यतः भोगा भुक्ताः तस्मिन् विभवहीन: यः वसेत् सः पुरुषाधमः ।
(ख) राजन्! यत्र लौहसहस्रस्य तुलां मूषकाः खादन्ति तत्र श्येन: बालकः हरेत् अत्र संशयः न।
प्रश्न 5. तत्पदं रेखाङ्कितं कुरुत यत्र ( क ) ल्यप प्रत्ययः नास्ति – ( उस पद को रेखांकित कीजिए जहाँ ( क ) ल्यप् प्रत्यय नहीं है)
विहस्य, लौह सहस्रस्य, संबोध्य, आदाय।
( ख ) यत्र द्वितीया विभक्ति नास्ति (जहाँ द्वितीया विभक्ति नहीं है ) –
श्रेष्ठिनम्, स्नानोपकरणम्, सत्वरम्, कार्य कारणम् ।
(ग ) यत्र षष्ठी विभक्तिः नास्ति (जहाँ षष्ठी विभक्ति नहीं है ) –
पश्यतः स्ववीर्यतः, श्रेष्ठिनः सभ्यानाम्।
उत्तर- (क) लौहसहस्रस्य, (ख) सत्वरम्, (ग) स्ववीर्यतः।
प्रश्न 6. सन्धिना सन्धिविच्छेदेन वां रिक्त स्थानानि पूरयत( सन्धि के द्वारा या सन्धि-विच्छेद के द्वारा रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए ) –
(क) श्रेष्ठयाह = ……..+ आह
(ख) ……….= द्वौ + अपि
(ग) …………= पुरुष + उपार्जिता
(घ) ……….= यथा + इच्छया
(ङ) स्नानोपकरणम् = ………..+ उपकरणम्
(च) ……….. = स्नान + अर्थम्
उत्तर-
(क) श्रेष्ठ्याह = श्रेष्ठि + आह
(ख) द्वावावपि = द्वौ + अपि  ।
(ग) पुरुषोपार्जिता = पुरुष + उपार्जिता।
(घ) यथेच्छया = यथा + इच्छया ।
(ङ) स्नानोपकरणम् = स्नान + उपकरणम्।
(च) स्नानार्थम् = स्नान + अर्थम् ।
प्रश्न 7. समस्तपदं विग्रहं वा लिखत- (समस्तपद या विग्रह – कीजिए ) –
विग्रहः                             समस्तपदम्
(क) स्नानस्य उपकरणम् = ………..
(ख) ….. ……………….= गिरिगुहायाम्
(ग) धर्मस्य अधिकारी     = ………….
(घ) ……….. ……………  = विभवहीना:
उत्तर-
(क) स्नानस्य उपकरणम् = स्नानोपकरणम्।
(ख) गिरे : गुहायाम् = गिरिगुहायाम् ।
(ग) धर्मस्य अधिकारी = धर्माधिकारी ।
(घ) विभवेन हीना: = विभवहीनाः ।
योग्यताविस्तार:
यह पाठ विष्णुशर्मा द्वारा रचित ‘पञ्चतन्त्रम्’ नामक कथाग्रन्थ के ‘मित्रभेद’ नामक तन्त्र से सङ्कलित है। इसमें विदेश से लौटकर जीर्णधन नामक व्यापारी अपनी धरोहर (तराजू) को सेठ से माँगता है। ‘तराजू चूहे खा गये हैं ‘ ऐसा सुनकर जीर्णधन उसके पुत्र को स्नान के बहाने नदी तट पर ले जाकर गुफा में छिपा देता है। सेठ द्वारा अपने पुत्र के विषय में पूछने पर जीर्णधन कहता है कि ‘पुत्र को बाज उठा ले गया है।’ इस प्रकार विवाद करते हुए दोनों न्यायालय पहुँचते हैं जहाँ धर्माधिकारी उन्हें समुचित न्याय प्रदान करते हैं।
ग्रंथ परिचय
महाकवि विष्णुशर्मा (200 ई. से 600 ई. के मध्य) ने राजा अमरशक्ति के पुत्रों को राजनीति में पारंगत करने के उद्देश्य से ‘पञ्चतन्त्रम्’ नामक सुप्रसिद्ध कथाग्रन्थ की रचना की थी। यह ग्रन्थ पाँच भागों में विभाजित है। इन्हीं भागों को ‘तन्त्र’ कहा गया है। पञ्चतन्त्र के पाँच तन्त्र हैं- मित्रभेदः, मित्रसंप्राप्तिः, काकोलूकीयम्, लब्धप्रणाशः और अपरीक्षितकारकम् । इस ग्रन्थ में अत्यन्त सरल शब्दों में लघु कथाएँ दी गयी हैं। इनके माध्यम से ही लेखक ने नीति के गूढ़ तत्त्वों का प्रतिपादन किया है।

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