RBSE Solutions for Class 7 Social Science Chapter 21 लोक संस्कृति
RBSE Solutions for Class 7 Social Science Chapter 21 लोक संस्कृति
Rajasthan Board RBSE Class 7 Social Science Chapter 21 लोक संस्कृति
पातुगत प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
राजस्थान के अन्य महत्वपूर्ण लोक शक्तिपीठों से संबंधित कथानक, प्रसंगों का संकलन कीजिए। (पृष्ठ 173)
उत्तर
राजस्थान के अन्य महत्वपूर्ण लोक शक्ति पीठ
- जालौर की सुंधा माता- अरावली की पहाड़ियों में 1220 मी. की ऊँचाई के सुंधा पहाड़ पर यह प्रसिद्ध मंदिर स्थित है। यह बड़े प्रस्तर खण्ड पर माँ चामुंडा की प्रतिमा है। कहा जाता है कि सुधा पर्वत पर देवी सती का सिर गिरा जिससे वे अघटेश्वरी के नाम से विख्यात हैं।
- ज्वाला माता का मंदिर- यह जयपुर से 45 किमी. पश्चिम में दृढांड अंचल के प्राचीन कस्बे जोबनेर में स्थित है। देवी सती का जानु भाग (घुटना) जोबनेर पर्वत पर गिरा इसे वाला देवी के नाम से जाना जाता है।
- मणिदेविका शक्तिपीठ- ग्रह मंदिर पुष्कर में हैं। इसे गायत्री के नाम से भी जाना जाता हैं। यहाँ देवी सती को कलाइयाँ गिरी थीं।
- विराट की अम्विका शक्तिपीठ- जयपुर के विराटग्राम में जहाँ माता की दक्षिण पादांगुलियों गिरी थीं। यह मंदिर अम्बिका शक्तिपीठ के नाम से प्रसिद्ध है।
प्रश्न 2.
आपके अंचल में प्रचलित और कौन-कौन से लोकवाद्य हैं? इनके चित्रों सहित इन वाद्यों की जानकारी संकलित कीजिए। (पृष्ठ 176)
उत्तर
हमारे क्षेत्र में निम्नलिखित लोकवाद्य प्रचलित हैं
- नगाड़ा- यह वाद्य यन्त्र भैंस की खाल का बना होता है। इसे लकड़ी के डंडों से बजाया जाता है।
- मंजीरा- यह पीतल एवं काँसे का गोलाकार वाद्य होता है। इसका प्रयोग भजन-कीर्तन में होता है।
- पूंगी- प्रचलित परम्परा के अनुसार इस वाट्टाको बजाकर सर्प काटे हुए व्यक्ति का इलाज किया जाता है।
प्रश्न 3.
आपके क्षेत्र में किए जाने वाले लोकनृत्य और नृत्य के दौरान गाए जाने वाले गीतों की सचित्र जानकारी संकलित कीजिए।
(पृष्ठ 179)
उत्तर
हमारे क्षेत्र में चंग नृत्य किया जाता है कि यह नृत्य होली के अवसर पर होता है। अत: इस नृत्य को करते समय गाये जाने वाले गीतों की विषयवस्तु होली से संबंधित होती है।
नोट- इसी तरह विद्यार्थी अपने क्षेत्र के लोकनृत्य को जानकारी प्राप्त करें।
प्रश्न 4.
राजस्थान की लोक देवियों के संबंध में प्रचलित आख्यानों, जनमान्यताओं, जनश्रुतियों को सूचीबद्ध कीजिए। (पृष्ठ 180)
उत्तर
- महामाया माता- इनको मान्यता शिशुरक्षक लोकदेवी के रूप में भी हैं। इनके संबंध में स्त्रियों का यह मानना है कि इनकी उपासना से प्रसव की निर्विघ्न पूर्ति होती हैं और बच्चा स्वस्थ तथा प्रसन्न रहता है।
- बड़ली माता- इनके संबंध में यह मान्यता है कि जो व्यक्ति इनको तांती बांधता है, उसकी बीमारी नोक हो जाती है।
प्रश्न 5.
राजस्थान के लोक देवताओं के चित्रों का संकलन (पृष्ठ 180)
उत्तर
नोट- इसी तरह से विद्यार्थी और चित्रों का संकलन करें।
पाठ्य पुस्तक के प्रश्नोत्तर
अमेलित प्रश्न
प्रश्न 1.
भाग अ’ को भागब’ से सुमेलित कीजिए
उत्तर
(क) (e), (ख) (c), (ग) (i), (घ) (b), (ङ) (d)
प्रश्न 2.
‘तरतई’ शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर
यह शब्द ‘त्रितयी’ का बिगड़ा हुआ रूप हैं जिसका अर्थ ‘त्रित्व (तीन) से युक्त होता है।
प्रश्न 3.
कैला देवी के मेले में कौनसा विशेष नृत्य किया जाता है?
उत्तर
कैला देवी के मेले में लांगुरिया’ नामक विशेष नृत्य किया जाता है।
प्रश्न 4.
शहनाई वाद्य यंत्र किससे बनाया जाता है?
उत्तर
शहनाई वाद्य यंत्र शीशम या सागवान की लकड़ी से बनाया जाता है। इसके ऊपरी सिरे पर तूंती लगाई जाती हैं जो ताड़ के पत्ते से बनी होती है।
प्रश्न 5.
राजस्थान में प्रचलित लोक वाद्य यंत्रों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर
राजस्थान में प्रचलित लोक वाद्य यंत्रों का वर्गीकरण निम्न प्रकार हैं
(क) फेंक से बजने वाले वाद्य यंत्र
- तुरही
- अलगोजा
- पूंगी
- शहनाई
(ख) धातु से बने वाद्य यंत्र
- खताल
- ताशा
- मंजीरा
(ग) तार लगे हुए वाद्य यंत्र
- रावणहत्या
- जन्तर
- सारंगी
- तंदूरा
(घ) चमड़ा लगे हुए वाद्य यंत्र
- भपंग
- चंग
- मादल
- इकतारा
- नगाड़ा
प्रश्न 6.
राजस्थान में लोक संस्कृति के संरक्षक संस्थान कौन-कौन से हैं ?
उत्तर
राजस्थान में लोक संस्कृति के संरक्षक संस्थान राजस्थान संगीत संस्थान जयपुर, राजस्थान संगीत नाटक अकादमी जोधपुर, जयपुर कथक केन्द्र जयपुर, भारतीय लोक कला मण्डल उदयपुर, रवीन्द्र मंच जयपुर, पश्चिम सांस्कृतिक केन्द्र (शिल्प ग्राम) उदयपुर, जवाहर कला केन्द्र जयपुर और राजस्थान ललित कला अकादमी जयपुर आदि
प्रश्न 7.
राजस्थान के प्रमुख शक्तिपीठों का वर्णन कीजिए
उत्तर
राजस्थान की प्रमुख शक्तिपीठे निम्नलिखित हैं
1. कैला देवी- यह शक्तिपीठ करौली में स्थित है। कैला देवी महालक्ष्मी का अवतार मानी जाती हैं। ये करौली के यदुवंशी राजपरिवार को कुल देवी हैं। इनके चमत्कारों के बारे में वर्तमान समय में भी अनेक जनश्रुतियाँ प्रचलित हैं।
2. जमवाय माता- यह शक्तिपीठ जयपुर में स्थित है। इस शक्तिपीठ का पौराणिक नाम जामवंती है। इनके बारे में यह मान्यता है कि इनकी परिक्रमा बहुत फलदायक होती हैं।
3. करणी माता- इनका मन्दिर बीकानेर में स्थित हैं। इस मन्दिर में अनेकानेक चुहे बिना इर के इधर-उधर घूमते रहते है। स्थानीय लोगों द्वारा इ ‘काया’ कहा जाता है। यहाँ । हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। इनके चमत्कारों के बारे में आज भी कई जनश्रुतियों प्रचलित हैं।
4. जीण माता- यह प्रसिद्ध शक्तिपीठ नौकर जिले में स्थित है। जीण माता को माँ दुर्गा का अवतार माना जाता है। ये अष्टभुजा वाली महिषासुरमर्दिनी के रूप में भी जानी जाती हैं।
5. त्रिपुरा सुन्दरी- यह शक्तिपीठ बाँसवाड़ा में स्थित हैं। राजस्थान के बॉसवाड़ा-डूंगरपुर क्षेत्र में यह तीर्थ स्थल “तरतई माता” के नाम से जाना जाता है। वस्तुत: ‘तराई’ शब्द ‘त्रितयों का अपभ्रंश है जिसका तात्पर्य है-‘तीन (त्रित्व) से युक्त।
प्रश्न 8.
राजस्थान के प्रमुख वाद्य यंत्रों का वर्णन कीजिए।
उत्तर
राजस्थान के प्रमुख वाद्य यंत्र- राजस्थान के प्रमुख वाद्य यंत्र निम्नलिखित हैं
- रावणहत्या- यह वाद्य यंत्र वायलिन की तरह बजाया जाता है। इसको बजाते समय घरू भी बजते हैं।
- अलगोजा– यह फूक मारकर बजाया जाने वाला वा यंत्र हैं। यह बाँसुरी की तरह बजाया जाने वाला वास है।
- शहनाई- यह शदी-विवाह के अवसर पर बजाया जाने वान्ना वाद्य यंत्र है। फेंक मारने पर इसमें से मधुर स्वर निकलता है।
- पुंगी- यह कालबेलियों का प्रमुख वाद्य हैं। यह अलगोजे की ही तरह बजाया जाता है।
- नगाड़ा- यह लकड़ी के डंडों से बजाया जाता है। लोकनाट्यों में इसे शहनाई के साथ बजाया जाता है।
- डोल- राजस्थानी लोकवाद्यों में इसका प्रमुख स्थान है। वादक इसे गले में डालकर लकड़ी के डंडों से वजाता है।
- मादल- यह वाद्य मिट्टी का बना होता है। इसका आकार होल जैसा होता है।
- इकतारा- ग्रह वाद्य यंत्र एक हाथ से ही बजाया जाता है। यह मीरादाई का अत्यन्त प्रिय वाद्य यंत्र था।
- भपंग- अलवर क्षेत्र में खासकर मेव लोगों में यह वाद्य यंत्र काही लोकप्रिय हैं।
- सारंगी- यह सागवान, केर और रोहिड़ा की लकड़ी से बनाई जाती है। राजस्थान में सारंगी विभिन्न रूपों में दिखाई देती हैं। कमायचा, सुरिन्दा और चिकारा सारंगी की ही तरह के वाद्य हैं।
- तंदूरा- इसमें चार तार होते हैं इसीलिए इसे चौतारा भी कहते हैं। यह लकड़ी का बना होता है।
- जंतर- यह वीणा की तरह का वाद्य है। बजाने वाला इसे गले में इनका खड़े-खड़े ही बजाता हैं। उपरोक्त के अतिरिक्त चंग, खंजरी, मोरचंग, चिकारा, तुरही, ख़ड़ताल, मंजीरा, झांझ, यांकिग्रा आदि राजस्थान के प्रमुख वाद्य यंत्र हैं।
प्रश्न 9.
राजस्थान के प्रमुख लोक नृत्यों का चपन कीजिए।
उत्तर
राजस्थान के प्रमुख लोकनृत्य निम्नलिखित हैं
- अग्नि नृत्य- यह ऐसा नृत्य है जो रात्रि के समय धधकते अंगारों पर आयोजित किया जाता हैं। इस नृत्य में नर्तक अग्नि से इस प्रकार खेलते हैं जैसे अंगारों से नहीं बल्कि फूलों से खेल रहे हों।
- चमरसिया नृत्य- इस नृत्य में एक बड़े नगाड़े का प्रयोग होता है। नृत्य के साथ होली के गीत और रसिया गाया जाता
- घूमर नृत्य- यह सम्पूर्ण राजस्थान का लोकप्रिय नृत्य है। यह नृत्य मांगनिक अवसरों एवं पर्वोत्सवों पर आयोजित किया जाता है।
- तेरहताली नृत्य- यह ऐसा नृत्य है जो बैठकर किया जाता हैं। इसमें स्त्रियाँ भाग लेती हैं।
- भवाई नृत्य- इस नृत्य में विभिन्न शारीरिक करतब दिखाने पर अधिक बल दिया जाता है। सिर पर सात-आठ मटके रखकर नृत्य करना, जमीन पर पट्टे रूमाल को मुंह से मना, गिलासों पर नाचना आदि इस नृत्य को विशिष्टता प्रदान करता है।
- गवरी नृत्य- यह नृत्य माँ गोरग्या (गौरी या पार्वती) की आराधना के लिए किया जाता है। यह नृत्य केवल पुरुषों द्वारा किया जाता है। इस नृत्य में महिला पात्र भी पुरुष हैं। बनते हैं।
- कालबेलिया नृत्य- इस नृत्य को हाल में ही यूनेस्को द्वारा सूचीबद्ध किया गया है। राजस्थान में सपेरा जाति का यह एक प्रसिद्ध नृत्य है।
- गैर नृत्य- होली के दिनों में मेवाड़ और बाड़मेर में इस नृत्य की धूम रहती है। इस नृत्य की संरचना गोल घेरे में होती हैं।
- गीदड़ नृत्य- इस नृत्य में विभिन्न प्रकार के स्वांग निकाले जाते हैं जिसमें दुल्हा-दुल्हन, सैत-सेठनी, साधु और शिकारी आदि उल्लेखनीय हैं।
- चंग नृत्य- यह ऐसा नृत्य हैं जिसमें केवल पुरुष भाग लेते हैं। इसमें प्रत्येक पुरुष के हाथ में चंग होता है।
- डांडिया नृत्य- इस नृत्य में नर्तक आपस में झाड़िया टकराते हुए घेरे में नृत्य करते हैं। इसमें शहनाई व नगाड़ा भी बजाया जाता है।
- ढोल नृत्य- गह नृत्य प्राय; विवाह के अवसर पर किया जाता है। यह जालोर का प्रसिद्ध नृत्य है।
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
वस्तुनिष्ठ
प्रश्न 1.
कैला देवी के सामने स्थित हनुमान मन्दिर को स्थानीय लोग कहते हैं
(अ) देलवाड़ा
(ब) बाड़ौली
(स) लांगुरिया
(द) आभानेरी
उत्तर
(स) लांगुरिया
प्रश्न 2.
जमवाय माता का पौराणिक नाम हैं
(अ) यामिनी
(ब) दामिनी
(स) यशवंत
(द) जामवंत
उत्तर
(द) जामवंत
प्रश्न 3.
महिषासुरमर्दिनी के रूप में जानी जाती है
(अ) जीण माता
(च) माँ त्रिपुरा सुन्दरी
(स) कैला देवी
(द) जमवाय माता
उत्तर
(अ) जीण माता
प्रश्न 4.
मीराबाई बजाती थीं
(अ) भपंग
(ब) इकतारा
(स) सारंगी
(द) तंदुरा
उत्तर
(ब) इकतारा
प्रश्न 5.
सामान्यत: विवाह के अवसर पर किया जाने वाला नृत्य
(अ) अग्नि नृत्य
(ब) डांडिया नृत्य
(स) ढोल नृत्य
(द) चंग नृत्य
उत्तर
(स) ढोल नृत्य
निम्नलिखित वाक्यों में रिक्त स्थानों की पूर्ति उचित शब्दों द्वारा कीजिए
1. बीकानेर से लगभगा…………………. किमी दूर देशनोक में माँ करणीमाता का मन्दिर स्थित है।
2. त्रिपुरा सुन्दरी माता बाँसवाड़ा-डूंगरपुर क्षेत्र में …………. के नाम से जानी जाती हैं।
3. ……………….तानपुरे से मिलता-जुलता वाद्य हैं।
4. ………….नृत्य केवल पुरुषों द्वारा किया जाता है।
उत्तर
1. 30
2. तरतई माता
3. तंदूरा
4. गवरी
अति लघूत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
कैला देवी किसके अवतार के रूप में मानी जाती है?
उत्तर
कैला देवी महालक्ष्मी के अवतार के रूप में मानी जाती हैं।
प्रश्न 2.
जमवाय माता का मन्दिर किसने बनवाया?
उत्तर
जमवाय माता का मन्दिर कछवाहा शासक दूलहराय ने बनवाया।
प्रश्न 3.
पूगी किसका प्रमुख थाद्य यंत्र है?
उत्तर
पूंगी कालबेलियों का प्रमुख वाद्य हैं।
प्रश्न 4.
कौन-सा समाज माँ त्रिपुरा सुंदरी की कुलदेवी के रूप में उपासना करता है?
उत्तर
पांचाल समाज माँ त्रिपुरा की कुलदेवी के रूप में उपासना करता है।
प्रश्न 5.
गीदड़ राजस्थान के किस क्षेत्र का लोकप्रिय नृत्य
उत्तर
गदड़ शेखावाटी क्षेत्र का लोकप्रिय नृत्य हैं।
प्रश्न 6.
ढोल नृत्य किस क्षेत्र का प्रसिद्ध नृत्य है।
उत्तर
ठेल नृत्य जालोर का प्रसिद्ध नृत्य है।
लप्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
जमवाय माता के मन्दिर के निर्माण के सम्बन्ध में जनश्रुति का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
जमवाय माता के मन्दिर के निर्माण के सम्बन्ध में जनश्रुति यह है कि कछवाहा शासक दूलहराय अपने शत्रुओं से पराजित हो गया। पराजित होने पर उसने देवी की आराधना को। जमवाय माता ने प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिए । देवी माँ के आशीर्वाद से दुलहराय ने दुबारा शत्रुओं पर आक्रमण किया और उन पर विजय प्राप्त की। विजय प्राप्ति के बाद दुलहराय ने कुलदेवी जमवाय माता का मन्दिर बनवाया।
दीर्य उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न
माँ त्रिपुरा सुन्दरी के मन्दिर के सम्बन्ध में प्रचलित जनश्रुतियों का विस्तारपूर्वक ऊल्लेख कीजिए?
उत्तर
माँ त्रिपुरा सुन्दरी का मंदिर बाँसवाड़ा से लगभग 19 किमी. की दूरी पर स्थित है। यहाँ मंदिर में गर्भगृह में काले पत्थर की माँ त्रिपुरा की अष्टादश भुजाओं वाली भव्य प्रतिमा प्रतिष्ठित है। माँ त्रिपुरा सुन्दरी को तरतई माता के नाम से भी जाना जाता है। शाक्त ग्रन्थों में श्री महात्रिपुरसुन्दरी को जगत् का बीज और परम शिव का दर्पण कहा गया है। ‘कालिका पुराण’ में इन्हें त्रिपुर शिव की भार्या होने के कारण त्रिपुरा कहा गया है। एक बार भण्डासुर के अन्यायपूर्ण आर्यों से जब त्राहि-त्राहि मच गई तो देवताओं के अनुनय-विनय करने पर आरा शक्ति त्रिपुरा सुन्दरी के रूप में प्रकट हुई। समस्त राक्षसी शक्तियों के साथ युद्ध करने आए भण्ड दैत्य को उन्होंने भस्म कर दिया।पांचाल समाज माँ त्रिपुरा की कुलदेवी के रूप में उपासना करता है।