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RBSE Class 9 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 11 पर्यावरणम्

RBSE Class 9 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 11 पर्यावरणम्

पर्यावरणम् Summary and Translation in Hindi

पाठ-परिचय – प्रस्तुत पाठ्यांश पर्यावरण को ध्यान में रखकर लिखा गया एक लघु निबन्ध है। वर्तमान युग में प्रदूषित | वातावरण मानव-जीवन के लिए भयङ्कर अभिशाप बन गया है। नदियों का जल कलुषित हो रहा है, वन वृक्षों से रहित हो रहे हैं, मिट्टी का कटाव बढ़ने से बाढ़ की समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। कल-कारखानों और वाहनों के धुएँ से वायु विषैली हो रही है। वन्य-प्राणियों की जातियाँ भी नष्ट हो रही हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार वृक्षों एवं वनस्पतियों के अभाव में मनुष्यों के लिए जीवित रहना असम्भव प्रतीत होता है।

पत्र, पुष्प, फल, काष्ठ, छाया एवं औषधि प्रदान करने वाले पादपों एवं वृक्षों की उपयोगिता वर्तमान समय में पूर्वापेक्षया अधिक है। ऐसी परिस्थिति में हमारा कर्तव्य है कि हम पर्यावरण के संरक्षणार्थ उपाय करें। वृक्षों के रोपण, नदी-जल की स्वच्छता, ऊर्जा के संरक्षण, वापी, कूप, तड़ाग, उद्यान आदि के निर्माण और उनको स्वच्छ रखने में प्रयत्नशील हों ताकि जीवन सुखमय एव उपद्रव रहित हो सके।

पाठ का सप्रसंग हिन्दी-अनुवाद एवं संस्कृत-व्याख्या –

1. प्रकृतिः समेषां प्राणिनां संरक्षणाय यतते। इयं सर्वान् पुष्णाति विविधैः प्रकारैः, तर्पयति च सुखसाधनैः। पृथिवी, जलं, तेजो, वायुः, आकाशश्चास्याः प्रमुखानि तत्त्वानि। तान्येव मिलित्वा पृथक्तया वाऽस्माकं पर्यावरणं रचयन्ति। आवियते परितः समन्तात् लोकोऽनेनेति पर्यावरणम्। यथाऽजातश्शिशुः मातृगर्भ सुरक्षितस्तिष्ठति तथैव मानवः पर्यावरणकुक्षौ। परिष्कृतं प्रदूषणरहितं च पर्यावरणमस्मभ्यं सांसारिक जीवनसुखं, सद्विचारं, सत्यसङ्कल्पं माङ्गलिकसामग्रीञ्च प्रददाति। प्रकृतिकोपैः आतङ्कितो जनः किं कर्तुं प्रभवति? जलप्लावनैः, अग्निभयैः, भूकम्पैः, वात्याचक्रैः, उल्कापातादिभिश्च सन्तप्तस्य मानवस्य क्व मङ्गलम्?

कठिन-शब्दार्थ :

  • समेषां = सभी के।
  • यतते = प्रयत्न करती है।
  • पुष्णाति = पुष्ट करती है।
  • तर्पयति = सन्तुष्ट करती है।
  • मिलित्वा = मिलकर।
  • पृथक्तया = अलग से।
  • रचयन्ति = बनाते हैं।
  • आवियते = आच्छादित है।
  • परितः = चारों ओर।
  • लोकः = संसार।
  • अजातः शिशुः = अजन्मा शिशु।
  • कुक्षौ = गर्भ में।
  • प्रददाति = प्रदान करता है।
  • जलप्लावनैः = बाढ से।
  • वात्याचक्रैः = आँधी, बवंडर से।
  • क्व = कहाँ।

प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी संस्कृत की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी’ (प्रथमो भागः) के ‘पर्यावरणम्’ नामक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस अंश में पर्यावरण का परिचय देते हुए उसके महत्त्व को दर्शाया गया है तथा पर्यावरण की शुद्धता बनाये रखने की प्रेरणा दी गई है।

हिन्दी-अनुवाद : प्रकृति सभी प्राणियों के संरक्षण के लिए प्रयत्न करती है। यह सभी को विभिन्न प्रकार से पुष्ट करती है और सुख-साधनों से तृप्त (संतुष्ट) करती है। पृथिवी, जल, तेज, वायु और आकाश इसके प्रमुख तत्त्व हैं। ये पाँचों ही मिलकर या पृथक् रूप से हमारे पर्यावरण का निर्माण करते हैं। जिसके द्वारा यह संसार सभी ओर से आच्छादित है, वही पर्यावरण है।

जिस प्रकार से अजन्मा शिशु माता के गर्भ में सुरक्षित रहता है, उसी तरह से मनुष्य पर्यावरण के गर्भ में सुरक्षित रहता है। सब प्रकार से शद्ध और प्रदूषण से रहित पर्यावरण हमारे लिए सांसारिक जीवन सद्विचार, सत्यसंकल्प और मंगलदायक सामग्री प्रदान करता है। प्रकृति के कोप से आतङ्कित (पीड़ित) व्यक्ति क्या कर सकता है? बाढ़, अग्निकाण्ड, भूकम्प, आँधियाँ (बवण्डर) और उल्कापात आदि से पीड़ित मनुष्य का मंगल (सुख समृद्धि) कहाँ है? अर्थात् कहीं नहीं।

सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या –

प्रसंग: – प्रस्तुतगद्यांशः अस्माकं पाठ्य-पुस्तकस्य ‘शेमुषी’ (प्रथमो भागः) इत्यस्य ‘पर्यावरणम्’ इति शीर्षकपाठाद् उद्धृतः। अस्मिन् अंशे पर्यावरणस्य परिचयं दत्त्वा तस्य महत्त्वं वर्णितम्।

संस्कृत-व्याख्या – प्रकृतिः समस्तजीवानां सुरक्षायै प्रयत्नं करोति। इयं प्रकृतिः सर्वेषां पोषणं विविधतया करोति, सकलसुखसुविधाभिश्च तृप्तं करोति। भूमिः, आपः, तेजः, पवनः, नभश्च अस्याः प्रकृतेः प्रमुखरूपाणि तत्त्वानि सन्ति। तानि एव तत्त्वानि संमिलित्य अथवा प्रत्येकं तत्त्वं पृथकरूपेण अस्माकं पर्यावरणस्य रचनां कुर्वन्ति। “आवियते परितः समन्तात् लोकोऽनेनेति” अर्थात् येन सकलसंसारः परिव्याप्तं क्रियते तदेव पर्यावरणं कथ्यते।

येन प्रकारेण अनुत्पन्नः जातकः स्वस्य जनन्याः कुक्षौ सुरक्षितरूपेण निवसति, तेनैव प्रकारेण मनुष्यः पर्यावरणस्य गर्भे तिष्ठति। सुपरिष्कृतं, स्वच्छं शुद्धञ्च प्रदूषणहीनं च पर्यावरणम् अस्माकं कृते संसारस्य जीवनसुखम्, श्रेष्ठ विचारं, सत्यस्य संकल्पं, मांगलिककार्ये उपयोगीवस्तुनः यच्छति। किन्तु यदा प्रकृतिः क्रोधयुक्ता भवति तदा कोऽपि जनः किमपि कर्तुं समर्थो न भवति। प्रकृतिजन्यविविधकोपैः जलौधैः, अग्निकाण्डैः, भूकम्पैः, वातचक्रैः, उल्कापातादिभिश्च पीडितस्य मनुष्यस्य कुत्रापि मंगलं नास्ति। अर्थात् प्रकृतिकोपैः कोऽपि रक्षा कर्तुं न समर्थः।’

व्याकरणात्मक टिप्पणी

  1. तान्येव-तानि + एव (यण् सन्धि)।
  2. मिलित्वा-मिल् + क्त्वा।
  3. पर्यावरणम्-परि + आवरणम् (यण् सन्धि)।
  4. लोकोऽनेनेति-लोकः + अनेन + इति (विसर्ग-उत्व एवं गुण सन्धि)।
  5. तथैव-तथा + एव (वृद्धि सन्धि)।
  6. कर्तुम्-कृ + तुमुन्।

2. अतएव अस्माभिः प्रकृतिः रक्षणीया। तेन च पर्यावरणं रक्षितं भविष्यति। प्राचीनकाले लोकमङ्गलाशंसिन ऋषयो वने निवसन्ति स्म। यतो हि वने एव सुरक्षितं पर्यावरणमुपलभ्यते स्म। विविधा विहगाः कलकूजितैस्तत्र श्रोत्ररसायनं ददति। सरितो गिरिनिर्झराश्च अमृतस्वादु निर्मलं जलं प्रयच्छन्ति। वृक्षाः लताश्च फलानि पुष्पाणि इन्धनकाष्ठानि च बाहुल्येन समुपहरन्ति। शीतलमन्दसुगन्ध-वनपवना औषधकल्पं प्राणवायु वितरन्ति।

कठिन-शब्दार्थ :

  • रक्षणीया = रक्षा करनी चाहिए।
  • लोकमङ्गलाशंसिनः = जनता के कल्याण को चाहने वाले।
  • निवसन्ति स्म = रहते थे।
  • विहगाः = पक्षी।
  • श्रोत्ररसायनम् = कान को अच्छा लगने वाला।
  • सरितः = नदियाँ।
  • गिरिः = पर्वत।
  • निर्झराः =’ झरने।
  • अमृतस्वादु = अमृत के समान स्वादिष्ट, मधुर।
  • पवना = हवा।
  • प्राणवायु = ऑक्सीजन।
  • वितरन्ति = देते हैं।

प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी संस्कृत की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी’ (प्रथमो भागः) के ‘पर्यावरणम्’ नामक पाठ से उद्धृत है। इस अंश में पर्यावरण के महत्त्व को दर्शाते हुए उसकी सुरक्षा किये जाने की प्रेरणा दी गई है।

हिन्दी-अनुवाद : इसलिए हमारे द्वारा प्रकृति की रक्षा की जानी चाहिए। और उसी से पर्यावरण की रक्षा होगी। प्राचीन काल में लोक कल्याण को चाहने वाले ऋषि वनों में निवास करते थे। क्योंकि वन में ही सुरक्षित पर्यावरण प्राप्त होता था। विभिन्न प्रकार के पक्षी अपने मधुर कल-कूजन से कर्णामृत प्रदान करते हैं।

नदियाँ और पहाड़ी झरने अमृत के समान स्वादिष्ट निर्मल जल प्रदान करते हैं। वृक्ष व लताएँ फल, फूल तथा बहुत मात्रा में ईंधन की लकड़ियाँ हमें उपहारस्वरूप देते हैं। शीतल, मन्द और सुगन्धित वन की वायु हमें औषधि के समान प्राणवायु (ऑक्सीजन) देती है।

सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या –

प्रसङ्गः – प्रस्तुतगद्यांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘शेमुषी’ (प्रथमो भागः) इत्यस्य ‘पर्यावरणम्’ इति शीर्षकपाठाद् उद्धृतः। अस्मिन् अंशे पर्यावरणस्य महत्त्वं प्रदर्शयन् तस्य रक्षाविषये प्रेरणा प्रदत्ता।

संस्कृत-व्याख्या – अस्मात् कारणात् प्रकृतेः वयं रक्षां कुर्याम। प्रकृतिरक्षणेन पर्यावरणस्यापि रक्षा भविष्यति। पुरा विश्वकल्याणकामाः मुनयः आनने एव अनिवसन्। यतो हि आनने एव सर्वथा सुरक्षितं पर्यावरणं प्राप्यते स्म। तत्र वने नानाविधाः पक्षिणः मधुरकलकूजनैः कर्णामृतं प्रयच्छन्ति।

नद्यः, पर्वता;, प्रपाताश्च सुधामयं स्वादिष्टं स्वच्छं नीरं ददति। पादपाः, लताश्च फलानि कुसुमानि इन्धनकाष्ठानि च अधिकतयां प्रयच्छन्ति। मन्दं मन्दं शीतलं सुरभिं वनवायुः भेषजतुल्यं प्राणवायोः वितरणं करोति।

व्याकरणात्मक टिप्पणी

  1. प्रकृतिरस्माभिः – प्रकृतिः + अस्माभिः (विसर्ग-रुत्व सन्धि)।
  2. रक्षणीया – रक्ष् + अनीयर् + टाप्।
  3. ददति – दा धातु, लट् लकार, प्रथम पुरुष, बहुवचन।
  4. समुपहरन्ति – सम् + उप + हृ धातु, लट् लकार, प्रथम पुरुष, बहुवचन।
  5. वितरन्ति – वि + तृ धातु, लट् लकार, प्रथम पुरुष, बहुवचन।

3. परन्तु स्वार्थान्धो मानवस्तदेव पर्यावरणमद्य नाशयति। स्वल्पलाभाय जनाः बहुमूल्यानि वस्तूनि नाशयन्ति। यन्त्रागाराणां विषाक्तं जलं नद्यां निपात्यते येन मत्स्यादीनां जलचराणां च क्षणेनैव नाशो जायते। नदीजलमपि तत्सर्वथाऽपेयं जायते। वनवृक्षा निर्विवेकं छिद्यन्ते व्यापारवर्धनाय, येन अवृष्टिः प्रवर्धते, वनपशवश्च शरणरहिता ग्रामेषु उपद्रवं विदधति। शुद्धवायुरपि वृक्षकर्तनात् सङ्कटापन्नो जातः। एवं हि स्वार्थान्धमान वैविकृतिमुपगता प्रकृतिरेव तेषां विनाशकी सजाता। पर्यावरणे विकृतिमुपगते जायन्ते विविधा रोगा भीषणसमस्याश्च। तत्सर्वमिदानी चिन्तनीयं प्रतिभाति।

कठिन-शब्दार्थ :

  • स्वार्थान्धो = स्वार्थ में अन्धा हुआ।
  • नाशयति = नष्ट कर रहा है।
  • यन्त्रागाराणाम् = कारखानों का।
  • विषाक्तम् = जहरीला।
  • निपात्यते = गिराया जा रहा है।
  • मत्स्यादीनां = मछली आदि का।
  • अपेयम् = न पीने योग्य।
  • छिद्यन्ते = काटे जा रहे हैं।
  • वर्धनाय = बढ़ाने के लिए।
  • प्रवर्धते = बढ़ रही है।
  • विदधति = करते हैं।
  • वृक्षकर्तनात् = पेड़ों के काटने से।
  • उपगता = प्राप्त हुई।

प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी संस्कत की पाठय-पस्तक ‘शेमषी’ (प्रथमो भागः) के ‘पर्यावरणम’ नामक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस अंश में पर्यावरण-प्रदूषण के कारणों का तथा उससे होने वाली हानियों का वर्णन किया गया

हिन्दी-अनुवाद : किन्तु स्वार्थ में अन्धा हुआ मनुष्य उसी पर्यावरण को आज नष्ट कर रहा है। थोड़े से लाभ के लिए लोग बहुमूल्य वस्तुओं को नष्ट कर रहे हैं। कारखानों का जहरीला पानी नदियों में गिराया जाता है, जिससे मछलियाँ आदि जल- जीवों का क्षणभर में ही नाश हो जाता है। और वह नदी का जल भी सर्वथा न पीने योग्य हो जाता है।

अपना व्यापार बढाने के लिए बिना सोचे-समझे वन के वृक्षों को काटा जा रहा है, जिससे अनावृष्टि (अकाल, सूखा) बढ़ती जा रही है, और बेसहारा जंगली पशु गाँवों में आकर उपद्रव करते हैं। वृक्षों को काटने से शुद्ध वायु का भी संकट (अभाव) उत्पन्न हो गया है। इस प्रकार स्वार्थ में अन्धे हुए मनुष्यों के द्वारा विकृति (प्रदूषण) को प्राप्त प्रकृति ही उनके विनाश का कारण बन गई है। पर्यावरण के विकृत (प्रदूषित) होने पर विभिन्न रोग तथा भीषण समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। इसलिए यह सब कुछ अब विचार करने योग्य प्रतीत होता है।

सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या –

प्रसङ्गः – प्रस्तुतगद्यांशः अस्माकं पाठ्य-पुस्तकस्य ‘शेमुषी’ (प्रथमो भागः) इत्यस्य ‘पर्यावरणम्’ इति शीर्षकपाठाद् उद्धृतः। अस्मिन् अंशे पर्यावरण-प्रदूषणस्य कारणानि वर्णयित्वा तेनोत्पन्नविनाशमयवातावरणस्य विवेचनं वर्तते।

संस्कृत व्याख्या – किन्तु स्वार्थे अन्धः मनुष्यः तदेवोपकारिणस्य पर्यावरणस्य विनाशं करोति। स्वस्य अल्पलाभाय जनाः अतिमूल्यानि वस्तूनि नष्टं करोति। यन्त्रालयानां विषयुक्तं जलं सरितायां निपातनं क्रियते, येन मकरादीनां जलजीवानां च निमेषमात्रेणैव विनाशः भवति। तस्याः सरितायाः जलमपि पूर्णतया पातुम् अयोग्यं भवति।

वनस्य पादपाः विवेकरहिताः भूत्वा छिद्यन्ते स्वस्य व्यापारस्य वर्धनार्थम्। वृक्षकर्तनात् वर्षायाः अभावः जायते, वन्यजीवाः पशवः अशरणाः ग्रामेषु आगत्य उपद्रवं कुर्वन्ति। वृक्षाणाम् उच्छेदात् शुद्धवायोरपि संकटः सञ्जातः। एवं प्रकारेण निजलाभाय नेत्रहीनो मनुष्यः प्रकृतिं विकारयुक्तां करोति, सा च विकृता प्रकृतिः मानवानां विनाशकारिणी भवति। पर्यावरणप्रदूषणात् नानाविधाः रोगाः भयंकरसमस्याश्च उत्पन्नाः भवन्ति। अत एव सर्वथा एतद् विचारणीयं प्रतीयते।

व्याकरणात्मक टिप्पणी –

  1. स्वार्थान्धः – स्वार्थ + अन्धः (दीर्घ सन्धि)।
  2. क्षणेनैव – क्षणेन + एव (वृद्धि सन्धि)।
  3. अपेयम् – न पेयम् इति (नञ् तत्पुरुष समास)
  4. प्रवर्धते – प्र + वध् धातु, लट् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन।
  5. वायुरपि – वायुः + अपि (विसर्ग-रुत्व सन्धि)।

4. धर्मो रक्षति रक्षितः इत्यार्षवचनम्। पर्यावरणरक्षणमपि धर्मस्यैवाङ्गमिति ऋषयः प्रतिपादितवन्तः। तत एवं वापीकूपतडागादिनिर्माणं देवायतन-विश्रामगृहादिस्थापनञ्च धर्मसिद्धेः स्रोतोरूपेणाङ्गीकृतम्। कुक्कुर-सूकर-सर्पनकुलादिस्थलचरा, मत्स्यकच्छपमकरप्रभृतयो जलचराश्चापि रक्षणीयाः, यतस्ते स्थलमलापनोदिनो जलमलापहारिणश्च। प्रकृतिरक्षयैव सम्भवति लोकरक्षेति नास्ति संशयः।

कठिन शब्दार्थ :

  • रक्षितः = रक्षा किया हुआ।
  • वापी = बावड़ी।
  • कूप = कुआँ।
  • देवायतनम् = मन्दिर।
  • कुक्कुर = कुत्ता।
  • सूकर = सूअर।
  • नकुल = नेवला।
  • मत्स्य = मछली।
  • कच्छप = कछुआ।
  • स्थलमलापनोदिनः = भूमि की गन्दगी को दूर करने वाले।
  • प्रकृतिरक्षयैव = प्रकृति की रक्षा करने से ही।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी संस्कृत की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी’ (प्रथमो भागः) के ‘पर्यावरणम्’ नामक पाठ से उद्धृत है। इस अंश में पर्यावरण की रक्षा करना हमारा परम धर्म बतलाते हुए उसकी रक्षा के महत्त्व का वर्णन करते हुए कहा गया है कि

हिन्दी अनुवाद – “रक्षित धर्म ही मनुष्य की रक्षा करता है।” यह आद्य (प्राचीन) ऋषियों का वचन है। पर्यावरण की रक्षा करना भी धर्म का ही अंग है-ऐसा ऋषियों के द्वारा प्रतिपादित किया गया है। इसीलिए वापी (बावड़ी), कुओं तथा तालाब आदि के निर्माण, मन्दिर एवं धर्मशालाओं आदि की स्थापना को धर्म की सिद्धि के स्रोत (आधार) के रूप में स्वीकार किया गया है। हमारे द्वारा कुत्ते, सूअर, साँप, नेवले आदि थलचरों तथा मछली, कछुए, घड़ियाल आदि जलचरों की रक्षा होनी चाहिए, क्योंकि वे भूमि की गन्दगी को दूर करने वाले तथा पानी की गन्दगी को दूर करने वाले हैं। प्रकृति की रक्षा करने से ही संसार की रक्षा हो सकती है, इसमें कोई सन्देह नहीं है।

सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या –

प्रसंगः – प्रस्तुतगद्यांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘शेमुषी’ (प्रथमो भागः) इत्यस्य ‘पर्यावरणम्’ इति शीर्षकपाठाद् उद्धृतः। अस्मिन् अंशे पर्यावरणरक्षणं धर्मस्यैवाझं मत्वा तस्य रक्षाविषये प्रेरणा प्रदत्ता।

संस्कृत-व्याख्या – धर्मस्य रक्षायामेव धर्मः अस्माकं रक्षा करोति, इति प्राचीन- मुनीनाम् कथनं वर्तते। पर्यावरणस्य रक्षाकरणमपि धर्मस्यैव अङ्गं वर्तते, इति मुनयः कथितवन्तः। अनेनैव सरोवर-कूप-जलाशयादिनां निर्माणम्, मन्दिराणां, धर्मशालानां, आश्रयस्थलादिनाञ्च निर्माणं धर्मस्यैव सफलतायाः स्रोतरूपेण स्वीकृतम्। श्वान-सूकर-नाग-नकुलादि स्थलचराः जीवाः, मत्स्य-मकर-कच्छपादयः जलचराश्चापि रक्षायोग्याः सन्ति, यतोहि ते भूमिमलापसारिणः जलमलापहारिणश्च सन्ति। वस्तुतः प्रकृतेः सुरक्षया एव संसारस्य सुरक्षा संभवेति नात्र सन्देहः।

व्याकरणात्मक टिप्पणी

  1. रक्षितः – रक्ष् + क्त।
  2. इत्यार्षवचनम् – इति + आर्षवचनम् (यण सन्धि)। ऋषियों द्वारा कहा गया वचन ‘आर्षवचन’ कहलाता है।
  3. रक्षणीयाः – रक्ष् + अनीयर्, बहुवचन।
  4. यतस्ते – यतः + ते (विसर्ग-सत्व सन्धि)।
  5. रक्षयैव – रक्षया + एव (वृद्धि सन्धि)।

RBSE Class 9 Sanskrit पर्यावरणम् Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत
(क) मानवः कुत्र सुरक्षितः तिष्ठति?
(ख) सुरक्षितं पर्यावरणं कुत्र उपलभ्यते स्म?
(ग) आर्षवचनं किमस्ति?।
(घ) पर्यावरणमपि कस्य अङ्गमिति ऋषयः प्रतिपादितवन्तः?
(ङ) लोकरक्षा कया सम्भवति?
(च) अजातशिशुः कुत्र सुरक्षितः तिष्ठति?
(छ) प्रकृतिः केषां संरक्षणाय यतते?।
उत्तराणि :
(क) पर्यावरणकुक्षौ।
(ख) वने।
(ग) धर्मो रक्षति रक्षितः।
(घ) धर्मस्य
(ङ) प्रकृतिरक्षया।
(च) मातृगभैं।
(छ) समेषां प्राणिनाम्।

प्रश्न 2.
अधोलिखितानां प्रश्नानामुत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत –
(अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए-)
(क) प्रकृतेः प्रमुखतत्त्वानि कानि सन्ति?
(प्रकृति के प्रमुख तत्त्व कौनसे हैं?)
उत्तरम् :
पृथिवी, जलं, तेजो, वायुः, आकाशश्च।
(पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश।)

(ख) स्वार्थान्धः मानवः किं करोति?
(स्वार्थ में अन्धा मनुष्य क्या करता है?)
उत्तरम् :
स्वार्थान्धः मानवः पर्यावरणं नाशयति।
(स्वार्थ में अन्धा मनुष्य पर्यावरण को नष्ट करता है।)

(ग) पर्यावरणे विकृते जाते किं भवति?
(पर्यावरण के विकृत होने पर क्या होता है?)
उत्तरम् :
पर्यावरणे विकृते जाते विविधाः रोगाः जायन्ते।
(पर्यावरण के विकृत होने पर विभिन्न रोग उत्पन्न होते हैं।)

(घ) अस्माभिः पर्यावरणस्य रक्षा कथं करणीया?
(हमें पर्यावरण की रक्षा किस प्रकार करनी चाहिए?)
उत्तरम् :
अस्माभिः वृक्षारोपणैः स्थल-जलचराणां जीवानां रक्षणैः च पर्यावरणस्य रक्षा करणीया।
(हमारे द्वारा वृक्ष लगाकर, थलचर और जलचर जीवों की रक्षा के द्वारा पर्यावरण की रक्षा की जानी चाहिए।)

(ङ) लोकरक्षा कथं संभवति?
(संसार की रक्षा किस प्रकार सम्भव है?)
उत्तरम् :
लोकरक्षा प्रकृतिरक्षया संभवति।
(संसार की रक्षा प्रकृति की रक्षा से ही संभव है।)

(च) परिष्कृतं पर्यावरणं अस्मभ्यं किं किं ददाति?
(शुद्ध पर्यावरण हमें क्या-क्या देता है?)
उत्तरम् :
परिष्कृतं पर्यावरणं अस्मभ्यं जीवनसुखानि, सद्विचाराणि माङ्गलिकद्रव्याणि च ददाति।
(शुद्ध पर्यावरण हमारे लिए जीवन के सुखों को, सद्विचारों को और कल्याणकारी द्रव्यों को देता है।)

प्रश्न 3.
स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(क) वनवृक्षाः निर्विवेकं छिद्यन्ते।
उत्तरम् :
के निर्विवेकं छिद्यन्ते?

(ख) वृक्षकर्तनात् शुद्धवायुः न प्राप्यते।
उत्तरम् :
कस्मात् शुद्धवायुः न प्राप्यते?

(ग) प्रकृतिः जीवनसुखं प्रददाति।
उत्तरम् :
प्रकृतिः किं प्रददाति?

(घ) अजातशिशुः मातृगर्भे सुरक्षितः तिष्ठति।
उत्तरम् :
अजातशिशुः कुत्र सुरक्षितः तिष्ठति?

(ङ) पर्यावरणरक्षणं धर्मस्य अङ्गम् अस्ति।
उत्तरम् :
पर्यावरणरक्षणं कस्य अङ्गम् अस्ति?

प्रश्न 4.
उदाहरणमनुसृत्य पदरचनां कुरुत –
(क) यथा-जले चरन्ति इति जलचराः
स्थले चरन्ति इति – __________
निशायां चरन्ति इति – _________
व्योम्नि चरन्ति इति – _________
गिरौ चरन्ति इति – _________
भूमौ चरन्ति इति – _________

(ख) यथा-न पेयम् इति – अपयेम्
न वृष्टि इति – _________
न सुखम् इति – ________
न भावः इति – _________
न पूर्णः इति – _________
उत्तरम् :
(क) स्थले चरन्ति इति – स्थलचराः
निशायां चरन्ति इति – निशाचराः
व्योम्नि चरन्ति इति – व्योमचराः
गिरौ चरन्ति इति – गिरिचराः
भूमौ चरन्ति इति – भूमिचराः
उत्तरम् :
(ख) न वृष्टि इति – अवृष्टिः
न सुखम् इति – असुखम्
न भावः इति – अभावः
न पूर्णः इति – अपूर्णः

प्रश्न 5.
उदाहरणमनुसृत्य पदनिर्माणं कुरुत –
यथा – वि + कृ + क्तिन् = विकृतिः
(क) प्र + गम् + क्तिन् = …………
(ख) दृश् + क्तिन् = …………
(ग) गम् + क्तिन् = …………
(घ) मन् + क्तिन = …………
(ङ) शम् + क्तिन् = …………
(च) भी + क्तिन् = …………
(छ) जन् + क्तिन् = …………
(ज) भज् + क्तिन् = …………
(झ) नी + क्तिन् = …………
उत्तरम् :
(क) प्र + गम् + क्तिन = प्रगतिः
(ख) दृश् + क्तिन् = दृष्टिः
(ग) गम् + क्तिन् = गतिः
(घ) मन् + क्तिन् = मतिः
(ङ) शम् + क्तिन् = शान्तिः
(च) भी + क्तिन् = भीतिः
(छ) जन् + क्तिन् = जातिः
(ज) भज्. + क्तिन् = भक्तिः
(झ) नी + क्तिन् = नीतिः

प्रश्न 6.
निर्देशानुसारं परिवर्तयत यथा-स्वार्थान्धो मानवः अद्य पर्यावरणं नाशयति।
(ब) स्वार्थान्धाः मानवाः अद्य पर्यावरणं नाशयन्ति।
(क) सन्तप्तस्य मानवस्य मङ्गलं कुतः? (बहुवचने)
उत्तरम् :
सन्तप्तानां मानवानां मङ्गलं कुतः?
(ख) मानवाः पर्यावरणकुक्षौ सुरक्षिताः भवन्ति। (एकवचने)
उत्तरम् :
मानवः पर्यावरणकुक्षौ सुरक्षितः भवति।

(ग) वनवृक्षाः निर्विवेकं छिद्यन्ते। (एकवचने)
उत्तरम् :
वनवृक्षः निर्विवेकं छिद्यते।

(घ) गिरिनिर्झरा: निर्मलं जलं प्रयच्छन्ति। (द्विवचने)
उत्तरम् :
गिरिनिर्झरौ निर्मलं जलं प्रयच्छतः।

(ङ) सरित् निर्मलं जलं प्रयच्छति।(बहुवचने)
उत्तरम् :
सरितः निर्मलं जलं प्रयच्छन्ति।

(अ) पर्यावरणरक्षणाय भवन्तः किं करिष्यन्ति इति विषये पञ्च वाक्यानि लिखत।
यथा-अहं विषाक्तं अवकरं नदीष न पातयिष्यामि।
(क) …………………………………
(ग) …………………………………
(घ) …………………………………
(ङ) …………………………………
उत्तरम् :
(क) अहं यत्र-तत्र वृक्षारोपणं करिष्यामि।
(ख) अहं कदापि वृक्षान् न छेत्स्यामि।
(ग) नद्याः जले कूपे वा अवशिष्टं न क्षेप्स्यामि।
(घ) मलमूत्राय प्रसाधनकक्षे एव गमिष्यामि।
(ङ) कदापि प्रदूषणोत्पादकं वाहनं न चालयिष्यामि।

प्रश्न 7.
उदाहरणमनुसृत्य उपसर्गान् पृथक्कृत्वा लिखत
यथा – संरक्षणाय – सम्

  1. प्रभवति – _________
  2. उपलभ्यते – _________
  3. निवसन्ति – _________
  4. समुपहरन्ति – _________
  5. वितरन्ति – _________
  6. प्रयच्छन्ति – _________
  7. उपगता – _________
  8. प्रतिभाति – _________

उत्तरम् :

  1. प्रभवति – प्र
  2. उपलभ्यते – उप
  3. निवसन्ति – नि
  4. समुपहरन्ति – सम् + उप
  5. वितरन्ति – वि
  6. प्रयच्छन्ति – प्र
  7. उपगता – उप
  8. प्रतिभाति – प्रति

(अ) उदाहरणमनुसृत्य अधोलिखितानां समस्तपदानां विग्रहं लिखत –

यथा – तेजोवायुः तेजः वायुः च।
गिरिनिर्झराः गिरयः निर्झराः च।

  1. पत्रपुष्पे
  2. लतावृक्षौ
  3. पशुपक्षी
  4. कीटपतङ्गौ

उत्तरम् :

  1. पत्रपुष्पे – पत्रम् पुष्पञ्च (पुष्पम् च)
  2. लतावृक्षौ – लता वृक्षश्च (वृक्षः च)
  3. पशुपक्षी – पशुः पक्षी च
  4. कीटपतङ्गौ – कीट: पतङ्गः च

RBSE Class 9 Sanskrit पर्यावरणम् Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
“प्रकृतिः समेषां प्राणिनां संरक्षणाय ………”
रिक्तस्थाने पूरणीयं क्रियापदमस्ति
(अ) यतते
(ब) यतेते
(स) यतन्ते
(द) यते
उत्तर :
(अ) यतते

प्रश्न 2.
“इयं सर्वान् विविधप्रकारैः पुष्णाति।”
रेखाङ्कितसर्वनामपदस्य स्थाने संज्ञापदं किम्?
(अ) माता
(ब) रमा
(स) प्रकृतिः
(द) सखी
उत्तर :
(स) प्रकृतिः

प्रश्न 3.
“तान्येव मिलित्वा पृथक्तया ………।”
रेखाङ्कितपदे प्रयुक्तसन्धेः नाम किम्?
(अ) गुण
(ब) यण्
(स) अयादि
(द) दीर्घ
उत्तर :
(ब) यण्

प्रश्न 4.
“अतएव प्रकृतिरस्माभिः रक्षणीया।”
रेखाङ्कितपदे प्रयुक्तप्रत्ययः कः?
(अ) ल्यप्
(ब) यत्
(स) तव्यत्
(द) अनीयर्
उत्तर :
(द) अनीयर्

प्रश्न 5.
“तेन च पर्यावरणं रक्षित
रिक्तस्थाने पूरणीयं समुचितक्रियापदं किम्?
(अ) भविष्यति
(ब) भविष्यन्ति
(स) भविष्यसि
(द) भविष्यामः
उत्तर :
(अ) भविष्यति

लघूत्तरात्मक प्रश्न –

(क) संस्कृत में प्रश्नोत्तर –

प्रश्न 1.
प्रकृतिः केषां संरक्षणाय यतते?
(प्रकृति किनकी सुरक्षा के लिए प्रयत्न करती है?)
उत्तर :
प्रकृतिः समेषां प्राणिनां संरक्षणाय यतते।
(प्रकृति सभी प्राणियों की सुरक्षा के लिए प्रयत्न करती है।)

प्रश्न 2.
पर्यावरणस्य का व्युत्पत्तिः?
(पर्यावरण की क्या व्युत्पत्ति है?)
उत्तर :
आवियते परितः समन्तात् लोकोऽनेनेति पर्यावरणम्।
(जिससे चारों ओर से यह संसार घिरा हुआ है वह पर्यावरण है।)

प्रश्न 3.
मानवः कुत्र सुरक्षितः तिष्ठति?
(मानव कहाँ सुरक्षित रहता है?)
उत्तर :
मानवः पर्यावरणकुक्षौ सुरक्षितः तिष्ठति।
(मानव पर्यावरण की गोद में सुरक्षित रहता है।)

प्रश्न 4.
अस्माभिः का रक्षणीया?
(हमें किसकी रक्षा करनी चाहिए?)
उत्तर :
अस्माभिः प्रकृतिः रक्षणीया।
(हमें प्रकृति की रक्षा करनी चाहिए।)

प्रश्न 5.
प्राचीनकाले ऋषयः कुत्र निवसन्ति स्म?
(प्राचीनकाल में ऋषि कहाँ रहते थे?)
उत्तर :
प्राचीनकाले ऋषयः वने निवसन्ति स्म।
(प्राचीनकाल में ऋषि वन में रहते थे।)

प्रश्न 6.
विविधा विहगाः कैः किञ्च ददति?
(विभिन्न पक्षी किनसे क्या देते हैं?)
उत्तर :
विविधा विहगाः कलकूजितैः श्रोत्ररसायनं ददति।
(विभिन्न पक्षी कलरव-कूजन से कानों को रसायन देते हैं।)

प्रश्न 7.
सरितो गिरिनिर्झराश्च किम् प्रयच्छन्ति?
(नदियाँ और पर्वतीय झरने क्या देते हैं?)
उत्तर :
सरितो गिरिनिर्झराश्च अमृतस्वादु निर्मलं जलं प्रयच्छन्ति।
(नदियाँ और पर्वतीय झरने अमत के समान स्वादिष्ट स्वच्छ जल देते हैं।)

प्रश्न 8.
स्वल्पलाभाय जनाः किं कुर्वन्ति?
(थोड़े से लाभ के लिए मनुष्य क्या करते हैं?)।
उत्तर :
स्वल्पलाभाय जनाः बहुमूल्यानि वस्तूनि नाशयन्ति।
(थोड़े से लाभ के लिए मनुष्य बहुमूल्य चीजों को नष्ट कर देते हैं।)

प्रश्न 9.
यन्त्रागाराणां विषाक्तं जलं कुत्र निपात्यते?
(कारखानों का जहरीला पानी कहाँ डाल दिया जाता है?)
उत्तर :
यन्त्रागाराणां विषाक्तं जलं नद्यां निपात्यते।
(कारखानों का जहरीला पानी नदी में डाल दिया जाता है।)

प्रश्न 10.
किमर्थं वनवृक्षा निर्विवेकं छिद्यन्ते?
(किसलिए जंगल के वृक्ष बिना विचारे काट दिये जाते हैं?)
उत्तर :
व्यापारवर्धनाय वनवृक्षा निर्विवेकं छिद्यन्ते।
(व्यापार बढ़ाने के लिए जंगल के वृक्ष बिना विचारे काट दिये जाते हैं।)

प्रश्न 11.
कस्मात् शुद्धवायुरपि संकटापन्नो जातः?
(किस कारण स्वच्छ वायु भी आपत्तिग्रस्त हो जाती है?)
उत्तर :
वृक्षकर्तनात् शुद्धवायुरपि संकटापन्नो जातः।।
(वृक्षों को काटने से स्वच्छ वायु भी आपत्तिग्रस्त हो जाती है।)

प्रश्न 12.
“धर्मो रक्षति रक्षितः” इति कस्य वचनम्?
(‘रक्षा किया हुआ धर्म रक्षा करता है’-यह किसका वचन है?)
उत्तर :
इति आर्षवचनम्। (यह प्राचीन ऋषियों का वचन है।)

प्रश्न 13.
पर्यावरणरक्षणमपि कस्याङ्गमिति ऋषयः प्रतिपादितवन्तः?
(पर्यावरण की रक्षा करना भी किसका अङ्ग ऋषियों द्वारा कहा गया है?)
उत्तर :
पर्यावरणरक्षणमपि धर्मस्यैवाङ्गमिति ऋषयः प्रतिपादितवन्तः।
(पर्यावरण की रक्षा करना भी धर्म का ही अङ्ग है-ऐसा ऋषियों ने कहा है।)

प्रश्न 14.
प्रकृतिः कथं सर्वान् पुष्णाति तर्पयति च?
(प्रकृति किस प्रकार सभी का पोषण करती है और तृप्त करती है?)
उत्तर :
प्रकृतिः सर्वान् विविधप्रकारैः पुष्णाति सुखसाधनैश्च तर्पयति।
(प्रकृति सभी का अनेक प्रकार से पोषण करती है और सुख-साधनों से तृप्त करती है।)

प्रश्न 15.
कानि मिलित्वा अस्माकं पर्यावरणं रचयन्ति?
(क्या मिलकर हमारे पर्यावरण को बनाते हैं?)
उत्तर :
पृथिवी, जलं, तेजो, वायुः आकाशश्च तत्त्वानि मिलित्वा अस्माकं पर्यावरणं रचयन्ति।
(पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश तत्त्व मिलकर हमारे पर्यावरण को बनाते हैं।)

प्रश्न 16.
कीदृशं पर्यावरणमस्मभ्यं सांसारिकं जीवनसुखं ददाति?
(किस प्रकार का पर्यावरण हमें सांसारिक जीवन का सुख देता है?)
उत्तर :
परिष्कृतं प्रदूषणरहितं च पर्यावरणमस्मभ्यं सांसारिकं जीवनसुखं ददाति।
(शुद्ध और प्रदूषणरहित पर्यावरण हमें सांसारिक जीवन का सुख देता है।)

प्रश्न 17.
कुत्र सुरक्षितं पर्यावरणमुपलभ्यते स्म?
(कहाँ पर सुरक्षित पर्यावरण प्राप्त होता था?)
उत्तर :
वने एव सुरक्षितं पर्यावरणमुपलभ्यते स्म।
(वन में ही सुरक्षित पर्यावरण प्राप्त होता था।)

प्रश्न 18.
के औषधकल्पं प्राणवायु वितरन्ति?
(कौन औषधि के समान प्राणवायु वितरित करते हैं?)
उत्तर :
शीतलमन्दसुगन्धवनपवना औषधकल्पं प्राणवायु वितरन्ति।
(शीतल, मन्द और सुगन्धित वन की वायु औषधि के समान प्राण वायु वितरित करती है।)

प्रश्न 19.
अद्य पर्यावरणं कः नाशयति?
(आज पर्यावरण को कौन नष्ट कर रहा है?)
उत्तर :
अद्य स्वार्थान्धो मानवः पर्यावरणं नाशयति।
(आज स्वार्थ में अन्धा हुआ मानव पर्यावरण को नष्ट कर रहा है।)

प्रश्न 20.
प्रकृतिरक्षयैव किम् सम्भवति?
(प्रकृति की रक्षा करने से ही क्या संभव होती है?)
उत्तर :
प्रकृतिरक्षयैव लोकरक्षणं सम्भवति।
(प्रकृति की रक्षा करने से ही संसार की रक्षा सम्भव होती है।)

(ख) प्रश्न-निर्माणम्

प्रश्न 1.
रेखाङ्कितपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत –

  1. प्रकृतिः समेषां प्राणिनां संरक्षणाय यतते।
  2. इयं प्रकृतिः सर्वान् विविधप्रकारैः सुखसाधनैः पुष्णाति।
  3. पञ्चतत्त्वानि मिलित्वा अस्माकं पर्यावरणं रचयन्ति।
  4. मानव: पर्यावरणकुक्षौ सुरक्षितस्तिष्ठति।
  5. परिष्कृतं प्रदूषणरहितं च पर्यावरणमस्मभ्यं सांसारिक जीवनसुखं प्रददाति।
  6. अस्माभिः प्रकृतिः रक्षणीया।
  7. प्राचीनकाले ऋषयो वने निवसन्ति स्म।
  8. वने एव सुरक्षितं पर्यावरणमुपलभ्यते स्म।
  9. सरितो गिरिनिर्झराश्च अमृतस्वाद निर्मलं जलं प्रयच्छन्ति।
  10. अद्य स्वार्थान्धो मानवः पर्यावरणं नाशयति।
  11. स्वल्पलाभाय जनाः बहुमूल्यानि वस्तूनि नाशयन्ति।
  12. यन्त्रागाराणां विषाक्तं जलं नद्यां निपात्यते।
  13. व्यापारवर्धनाय वनवृक्षाः निर्विवेकं छिद्यन्ते।
  14. शुद्धवायुरपि वृक्षकर्तनात् सङ्कटापन्नो जातः।
  15. पर्यावरणे विकृतिमुपगते विविधाः रोगाः जायन्ते।
  16. पर्यावरणरक्षणमपि धर्मस्य एवाङ्गम्।
  17. धर्मो रक्षितः रक्षति।
  18. प्रकृतिरक्षयैव लोकरक्षा सम्भवति।

उत्तर :
प्रश्न-निर्माणम्

  1. प्रकृतिः केषां संरक्षणाय यतते?
  2. इयं प्रकृतिः सर्वान् कथं पुष्णाति?
  3. कानि मिलित्वा अस्माकं पर्यावरणं रचयन्ति?
  4. मानवः कुत्र सुरक्षितस्तिष्ठति?
  5. कीदृशं पर्यावरणमस्मभ्यं सांसारिक जीवनसुखं प्रददाति?
  6. अस्माभिः का रक्षणीया?
  7. प्राचीनकाले ऋषयो कुत्र निवसन्ति स्म?
  8. कुत्र सुरक्षितं पर्यावरणमुपलभ्यते स्म?
  9. सरितो गिरिनिर्झराश्च किम् प्रयच्छन्ति?
  10. अद्य कः पर्यावरणं नाशयति?
  11. स्वल्पलाभाय जनाः कानि नाशयन्ति?
  12. कीदृशं जलं नद्यां निपात्यते?
  13. किमर्थं वनवृक्षाः निर्विवेकं छिद्यन्ते?
  14. शुद्धवायुरपि कस्मात् सङ्कटापन्नो जातः?
  15. कथं विविधाः रोगाः जायन्ते?
  16. पर्यावरणरक्षणमपि कस्य एवाङ्गम्?
  17. कः रक्षितः रक्षति?
  18. प्रकृतिरक्षयैव का सम्भवति?

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