क्यों मनाया जाता है गणतंत्र दिवस | Republic Day
क्यों मनाया जाता है गणतंत्र दिवस | Republic Day
क्यों मनाया जाता है गणतंत्र दिवस | Republic Day
गणतंत्र (पुल्लिंग)
ऐसा राष्ट्र जिसकी सत्ता जनसाधारण में समाहित हो।
गणतंत्र का हिन्दी मे अर्थ (Meaning of gantantra in Hindi)
वह शासन प्रणाली जिसमें प्रमुख सत्ता लोक या जनता अथवा उसके चुने हुए प्रतिनिधियों या अधिकारियों के हाथ में होती है और जिसकी नीति आदि निर्धारित करने का सब लोगों को समान रूप से अधिकार होता है
गणतंत्र का अंग्रेजी मे अर्थ (Meaning of gantantra in English)
Republic
गणतंत्र के समानार्थी शब्द (synonyms of gantantra)
प्रजातंत्र
प्रजासत्ता
लोकतंत्र
लोकसत्ता
गणराज्य
जनतंत्र
गणतंत्र, अंग्रेजी में रिपब्लिक (republic) शब्द का हिंदी अनुवाद है, जो लातिनी भाषा के res publica का परिवर्तित रूप है और जिसका अर्थ होता है सार्वजनिक वस्तु, विषय, क्रिया-कलाप आदि। यह रोम के प्राचीन इतिहास में राज्य के संदर्भ में व्यव्हृत होता था। आधुनिक समय में यह उस शासन-व्यवस्था का बोध कराता है, जहां सरकार, जनता के द्वारा चुनी जाती है, जहां कानून का शासन होता है, जहां एक शासन-प्रधान होता है और वह वंशानुगत शासक नहीं होता, अपितु जनता द्वारा निर्वाचित/चयनित होता है, जहां विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका में अधिकारों एवं कार्यों का स्पष्ट बंटवारा हो.. आदि।
Republic Day Celebration : भारत का गणतंत्र दिवस हर साल 26 जनवरी को मनाया जाता है इस दिन देशभर में सरकारी अवकाश घोषित होता है। कई लोगों के मन में इससे जुड़े कई सवाल आते होंगे जैसे गणतंत्र दिवस क्या है ये क्यों मनाया जाता है, गणतंत्र दिवस को कैसे मनाया जाता है आदि। यहां हम आपको भारत के गणतंत्र दिवस से जुड़े इन्हीं अहम प्रश्नों के जवाब दे रहे हैं।
क्यों मनाया जाता है गणतंत्र दिवस
देश में संविधान की स्थापना दिवस के रूप में 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाया जाता है। भारत में 26 जनवरी 1950 को ही देश का संविधान लागू हुआ था। इस दिन भारत में भारत सरकार अधिनियम (1935) को निरस्त कर नए सविंधान लागू करते हुए नए संविधान को पारित कर दिया था। उसी के बाद से हर साल 26 जनवरी के दिन को राष्ट्रीय पर्व के तौर पर मनाया जाता है।
पहली बार 26 जनवरी को ही भारत को पूर्ण गणराज्य घोषित किया गया था
आपको बता दें कि सबसे पहले 26 जनवरी 1929 को लाहौर कांग्रेस अधिवेशन में भारत को पूर्ण गणराज्य का दर्जा दिलाने का प्रस्ताव पेश किया गया था जिसे अंग्रेजों ने नामंजूर कर दिया था। इसके बाद 26 जनवरी 1930 को कांग्रेस ने भारत को पूर्ण गणराज्य की घोषणा कर दी थी। संविधान निर्माण की शुरुआत 9 दिसंबर 1946 को हुई थी जिसे बनने में कुल 2 साल 11 महीने और 18 दिन लग गए। 26 नवंबर 1949 को संविधान को सभापति को सौंप दिया गया जिसके बाद 26 जनवरी 1950 को इसे आधिकारिक तौर पर लागू कर दिया गया। हमारा देश संविधान के मुताबिक ही चलता है।
जब गणतांत्रिक राष्ट्र का हुआ ऐलान
गणतंत्र राष्ट्र के बारे में 31 दिसंबर 1929 को रात में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लाहौर सत्र में विचार किया गया था. जिसके लिए एक बैठक आयोजित की गई थी. यह बैठक पंडित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में आयोजित की गई थी.इसी बैठक में हिस्सा लेने वाले लोगों ने पहले 26 जनवरी को “स्वतंत्रता दिवस” के रूप में मनाने की शपथ ली थी, जिससे कि ब्रिटिश राज से पूर्ण स्वतंत्रता के सपने को साकार किया जा सके. इसके बाद लाहौर सत्र में नागरिक अवज्ञा आंदोलन की रूपरेखा तैयार हुई और यह फैसला लिया गया कि 26 जनवरी 1930 को ‘पूर्ण स्वराज दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा. वहीं इसी दिन देश का झंडा फहराया गया और 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस मनाने की शपथ ली गई थी. इसके लिए सभी क्रांतिकारियों और पार्टियों ने एकजुटता दिखाई थी.
गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस में क्या अंतर है?
गणतंत्र दिवस इसलिए मनाया जाता है क्योंकि इस दिन भारत गणतंत्र देश देश बना था। गणतंत्र दिवस के दिन भारत का संविधान लागू हुआ था। जबकि स्वतंत्रता दिवस के दिन भारत को अंग्रेजी की लंबी गुलामी से आजादी मिली थी। इसलिए हर साल 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस और 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाया जाता है।
गणतंत्र दिवस मनाने की परंपरा किसने शुरू की थी?
देश के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने 26 जनवरी 1950 को 21 तोपों की सलामी के साथ ध्वजारोहण कर भारत को पूर्ण गणतंत्र घोषित किया था. इसके बाद से हर साल इस दिन को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है और इस दिन देशभर में राष्ट्रीय अवकाश रहता है.
भारत ने अपना संविधान कब ग्रहण किया?
भारत राज्यों का एक संघ है. ये संसदीय प्रणाली की सरकार वाला गणराज्य है. ये गणराज्य भारत के संविधान के अनुसार शासित है जिसे संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 को ग्रहण किया था और ये 26 जनवरी 1950 से प्रभाव में आया.
भारतीय संविधान में पंचवर्षीय योजना की अवधारणा किस संविधान से ली गई है?
भारतीय संविधान में पंचवर्षीय योजना की अवधारणा सोवियत संघ (यूएसएसआर) से ली गई थी.
गणतंत्र दिवस पर झंडा कौन फहराता है?
देश के प्रथम नागरिक यानी राष्ट्रपति गणतंत्र दिवस समारोह में हिस्सा लेते हैं और राष्ट्रीय ध्वज भी वही फहराते हैं.
राज्यों की राजधानी में गणतंत्र दिवस समारोह में राष्ट्रीय ध्वज कौन फहराता है?
संबंधित राज्यों के राज्यपाल राज्य की राजधानियों में गणतंत्र दिवस समारोह के मौक़े पर राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं. भारत में दो राष्ट्रीय ध्वज समारोह होते हैं. एक गणतंत्र दिवस पर और एक स्वतंत्रता दिवस पर. स्वतंत्रता दिवस समारोह के मौक़े पर प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राजधानी में राष्ट्रीय झंडा फहराते हैं और राज्य की राजधानियों में मुख्यमंत्री.
नई दिल्ली में होने वाली गणतंत्र दिवस की भव्य परेड की सलामी कौन लेता है?
भारत के राष्ट्रपति भव्य परेड की सलामी लेते हैं. वो भारतीय सशस्त्र बलों के कमांडर-इन-चीफ़ भी होते हैं. इस परेड में भारतीय सेना अपने नए लिए टैंकों, मिसाइलों, रडार आदि का प्रदर्शन भी करती है.
‘बीटिंग रिट्रीट’ नाम का समारोह कहां होता है?
बीटिंग रिट्रीट का आयोजन रायसीना हिल्स पर राष्ट्रपति भवन के सामने किया जाता है, जिसके चीफ़ गेस्ट राष्ट्रपति होते हैं. बीटिंग द रिट्रीट समारोह को गणतंत्र दिवस का समापन समारोह कहा जाता है. बीटिंग रिट्रीट का आयोजन गणतंत्र दिवस समारोह के तीसरे दिन यानी 29 जनवरी की शाम को किया जाता है. बीटिंग रिट्रीट में थल सेना, वायु सेना और नौसेना के बैंड पारंपरिक धुन बजाते हुए मार्च करते हैं.
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज किसने डिज़ाइन किया था?
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को पिंगली वेंकैया ने डिज़ाइन किया था. पिंगली ने शुरुआत में जो झंडा डिज़ाइन किया था वो सिर्फ़ दो रंगों का था, लाल और हरा. उन्होंने ये झंडा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के बेज़वाडा अधिवेशन में गाँधी जी के समक्ष पेश किया था. बाद में गांधी जी के सुझाव पर झंड में सफ़ेद पट्टी जोड़ी गई. आगे चलकर चरखे की जगह राष्ट्रीय प्रतीक स्वरूप अशोक चक्र को जगह मिली. भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को इसके वर्तमान स्वरूप में 22 जुलाई 1947 को आयोजित भारतीय संविधान सभा की बैठक के दौरान अपनाया गया था. भारत में “तिरंगे” का अर्थ भारतीय राष्ट्रीय ध्वज है.
राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार कब दिए जाते हैं?
राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार भारत में हर साल 26 जनवरी की पूर्व संध्या पर बहादुर बच्चों को दिए जाते हैं. इन पुरस्कारों की शुरुआत 1957 से हुई थी. पुरस्कार के रूप में एक पदक, प्रमाण पत्र और नकद राशि दी जाती है. सभी बच्चों को स्कूल की पढ़ाई पूरी करने तक वित्तीय सहायता भी दी जाती है.
गणतंत्र दिवस परेड कहाँ से शुरू होती है?
गणतंत्र दिवस परेड राष्ट्रपति भवन से शुरू होती है और इंडिया गेट पर ख़त्म होती है.
प्रथम गणतंत्र दिवस पर भारत के राष्ट्रपति कौन थे?
प्रथम गणतंत्र दिवस पर डॉ. राजेंद्र प्रसाद भारत के राष्ट्रपति थे. संविधान लागू होने के बाद डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने वर्तमान संसद भवन के दरबार हॉल में राष्ट्रपति की शपथ ली थी और इसके बाद पांच मील लंबे परेड समारोह के बाद इरविन स्टेडियम में उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज फहराया था.
भारतीय संविधान कितने दिनों में तैयार किया गया था?
संविधान सभा ने लगभग तीन साल (2 साल, 11 महीने और 17 दिन सटीक) में भारत का संविधान तैयार किया था. इस अवधि के दौरान, 165 दिनों में 11 सत्र आयोजित किए गए थे.
26 जनवरी: गणतंत्र दिवस की पहली परेड कहां हुई थी
आज अगर टीवी के किसी केबीसी नुमा कार्यक्रम में यह पूछा जाए कि देश की राजधानी में पहली गणतंत्र दिवस परेड कहां हुई थी, तो सबसे पहले घंटी दबाने वालों का उत्तर राजपथ ही होगा और दर्शकों का भी यही मानना होगा कि कितना आसान सवाल है!
पर हक़ीक़त इससे बिल्कुल जुदा है.
दिल्ली में 26 जनवरी, 1950 को पहली गणतंत्र दिवस परेड, राजपथ पर न होकर इर्विन स्टेडियम (आज का नेशनल स्टेडियम) में हुई थी.
तब के इर्विन स्टेडियम के चारों तरफ चहारदीवारी न होने के कारण उसके पीछे पुराना किला साफ नज़र आता था.साल 1950-1954 के बीच दिल्ली में गणतंत्र दिवस का समारोह, कभी इर्विन स्टेडियम, किंग्सवे कैंप, लाल किला तो कभी रामलीला मैदान में आयोजित हुआ.
राजपथ पर साल 1955 में पहली बार गणतंत्र दिवस परेड शुरू हुई.
यह सिलसिला आज तक बना हुआ है. अब आठ किलोमीटर की दूरी तय करने वाली यह परेड रायसीना हिल से शुरू होकर राजपथ, इंडिया गेट से गुजरती हुई लालकिला पर ख़त्म होती है.
आज़ादी के आंदोलन से लेकर देश में संविधान लागू होने तक, 26 जनवरी की तारीख़ का अपना महत्व रहा है.
इसी दिन, जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित हुआ था, जिसमें कहा गया था कि अगर ब्रिटिश सरकार ने 26 जनवरी, 1930 तक भारत को उपनिवेश का दर्जा (डोमीनियन स्टेटस) नहीं दिया, तो भारत को पूर्ण स्वतंत्र घोषित कर दिया जाएगा.
ब्रिटिश सरकार के इस ओर ध्यान न देने की सूरत में कांग्रेस ने 31 दिसंबर, 1929 की आधी रात को भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के निश्चय की घोषणा करते हुए सक्रिय आंदोलन शुरू किया.
कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पहली बार तिरंगा फहराया गया. इतना ही नहीं, हर साल 26 जनवरी के दिन पूर्ण स्वराज दिवस मनाने का भी निर्णय लिया गया.
इस तरह, आजादी मिलने से पहले ही 26 जनवरी, अनौपचारिक रूप से देश का स्वतंत्रता दिवस बन गया था.
यही कारण था कि कांग्रेस उस दिन से 1947 में आज़ादी मिलने तक, 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाती रही.
साल 1950 में देश के पहले भारतीय गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने 26 जनवरी बृहस्पतिवार के दिन सुबह दस बजकर अठारह मिनट पर भारत को एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया.
फिर इसके छह मिनट के बाद डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को भारतीय गणतंत्र के पहले राष्ट्रपति के रूप में शपथ दिलाई गई.
तब के गवर्मेंट हाउस और आज के राष्ट्रपति भवन के दरबार हाल में शपथ लेने के बाद राजेंद्र बाबू को साढ़े दस बजे तोपों की सलामी दी गई.
तोपों की सलामी की यह परंपरा 70 के दशक से कायम रही है. और आज भी यह परंपरा बदस्तूर कायम है.
राष्ट्रपति का कारवां दोपहर बाद ढाई बजे गवर्मेंट हाउस से इर्विन स्टेडियम की तरफ रवाना हुआ.
यह कारवां कनॉट प्लेस और उसके करीबी इलाकों का चक्कर लगाते हुए करीब पौने चार बजे सलामी मंच पर पहुंचा. तब राजेंद्र बाबू पैंतीस साल पुरानी पर विशेष रूप से सजी बग्घी में सवार हुए, जिसे छह ऑस्ट्रेलियाई घोड़ों ने खींचा.
इर्विन स्टेडियम में हुई मुख्य गणतंत्र परेड को देखने के लिए 15 हज़ार लोग पहुंचे थे.
आधुनिक गणतंत्र के पहले राष्ट्रपति ने इर्विन स्टेडियम में तिरंगा फहराकर परेड की सलामी ली.
उस समय हुई परेड में सशस्त्र सेना के तीनों बलों ने भाग लिया था. इस परेड में नौसेना, इन्फेंट्री, कैवेलेरी रेजीमेंट, सर्विसेज रेजीमेंट के अलावा सेना के सात बैंड भी शामिल हुए थे.
आज भी यह ऐतिहासिक परंपरा बनी हुई है.
पहले गणतंत्र दिवस के मुख्य अतिथि इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो थे.
इतना ही नहीं, इस दिन पहली बार राष्ट्रीय अवकाश घोषित हुआ. देशवासियों की अधिक भागीदारी के लिए आगे चलकर साल 1951 से गणतंत्र दिवस समारोह किंग्स-वे (आज का राजपथ) पर होने लगा.
“सैनिक समाचार” पत्रिका के पुराने अंकों के अनुसार, 1951 के गणतंत्र दिवस समारोह में चार वीरों को पहली बार उनके अदम्य साहस के लिए सर्वोच्च अलंकरण परमवीर चक्र दिए गए थे.
उस साल से समारोह सुबह होना शुरू हुआ और उस साल परेड गोल डाकखाना पर ख़त्म हुई.
साल 1952 से बीटिंग रिट्रीट का कार्यक्रम शुरू हुआ. इसका एक समारोह रीगल सिनेमा के सामने मैदान में और दूसरा लालकिले में हुआ था. सेना बैंड ने पहली बार महात्मा गांधी के मनपसंद गीत ‘अबाइड विद मी’ की धुन बजाई और तभी से हर साल यही धुन बजती है.
साल 1953 में पहली बार गणतंत्र दिवस परेड में लोक नृत्य और आतिशबाजी को शामिल किया गया. तब इस अवसर पर रामलीला मैदान में आतिशबाजी भी हुई थी.
उसी साल त्रिपुरा, असम और नेफा (अब अरुणाचल प्रदेश) के आदिवासी समाज के नागरिकों ने गणतंत्र दिवस समारोह में भाग लिया.
साल 1955 में दिल्ली के लाल किले के दीवान-ए-आम में गणतंत्र दिवस पर मुशायरे की परंपरा शुरू हुई. तब मुशायरा रात दस बजे शुरू होता था.
उसके बाद के साल में हुए 14 भाषाओं के कवि सम्मेलन का पहली बार रेडियो से प्रसारण हुआ.
साल 1956 में पहली बार पांच सजे-धजे हाथी गणतंत्र दिवस परेड में सम्मिलित हुए.
विमानों के शोर से हाथियों के बिदकने की आशंका को ध्यान में रखते हुए सेना की टुकड़ियों के गुजरने और लोक नर्तकों की टोली आने के बीच के समय में हाथियों को लाया गया. तब हाथियों पर शहनाई वादक बैठे थे.
साल 1958 से राजधानी की सरकारी इमारतों पर बिजली से रोशनी करने की शुरूआत हुई.
साल 1959 में पहली बार गणतंत्र दिवस समारोह में दर्शकों पर वायुसेना के हेलीकॉप्टरों से फूल बरसाए गए.
साल 1960 में परेड में पहली बार बहादुर बच्चों को हाथी के हौदे पर बैठाकर लाया गया जबकि बहादुर बच्चों को सम्मानित करने की शुरुआत हो चुकी थी.
उस साल, राजधानी में लगभग 20 लाख लोगों ने गणतंत्र दिवस समारोह देखा, जिसमें से पांच लाख लोग राजपथ पर ही जमा हुए थे.
गणतंत्र दिवस परेड और बीटींग रिट्रीट समारोह देखने के लिए टिकटों की बिक्री साल 1962 में शुरू हुई.
उस साल तक गणतंत्र दिवस परेड की लंबाई छह मील हो गई थी यानी जब परेड की पहली टुकड़ी लाल किला पहुंच गई तब आखिरी टुकड़ी इंडिया गेट पर ही थी. उसी साल भारत पर चीनी हमले से अगले साल परेड का आकार छोटा कर दिया गया.
साल 1973 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में पहली बार इंडिया गेट पर स्थित अमर जवान ज्योति पर सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई. तब से यह परंपरा आज तक जारी है.
गणतंत्र दिवस के दिन होता है देश के शौर्य का प्रदर्शन
गणतंत्र दिवस के मौके पर हर साल राजपथ पर सेना के अदम्य शौर्य का प्रदर्शन किया जाता है। भारत की तीनों सेनाएं इस मौके पर दुनिया को भारत की ताकत का एहसास कराती हैं। इस मौके पर अलग-अलग राज्यों की सांस्कृतिक झांकी निकलती है जिसके जरिए यह बताने की कोशिश की जाती है कि विविधता में एकता ही भारत की पहचान है।