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UK Board 10 Class Hindi Chapter 4 – एही ठैयाँ झुलनी, हेरानी हो रामा ! (कृतिका)

UK Board 10 Class Hindi Chapter 4 – एही ठैयाँ झुलनी, हेरानी हो रामा ! (कृतिका)

UK Board Solutions for Class 10th Hindi Chapter 4 – एही ठैयाँ झुलनी, हेरानी हो रामा ! (कृतिका)

एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा ! (शिवप्रसाद मिश्र ‘रुद्र’)
1. पाठ्यपुस्तक में दिए गए प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1-हमारी आजादी की लड़ाई में समाज के उपेक्षित माने जानेवाले वर्ग का योगदान भी कम नहीं रहा है। इस कहानी में ऐसे लोगों के योगदान को लेखक ने किस प्रकार उभारा है?
उत्तर- प्रस्तुत कहानी ‘एही देयों घुलनी हैरानी हो रामा!’ में दुलारी और टुन्नू समाज के उपेक्षित माने जानेवाले वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। दुलारी गौनहारिन है और टुन्नू भी कजली गानेवाला किशोर है। समाज में दोनों की ही हेय दृष्टि से देखा जाता है। टुन्नू ने आजादी की लड़ाई में अपनी शहादत दी। शहादत वाले दिन वह खादी का कुर्ता और गांधीटोपी पहने हुए था तथा विदेशी कपड़ों के बहिष्कार के जुलुस में शामिल था। वह पुलिस के अत्याचार का शिकार होकर शहीद हो गया। दूसरी और दुलारी भी उससे आत्मिक प्रेम करती थी। उसकी शहादत की खबर पाकर वह भी टुन्नू द्वारा भेंट की गई खट्टर की साड़ी पहनकर दुन्नु की श्रद्धांजलि देने उसके शहादत स्थल पर नाचने-गाने पहुँच गई थी। वह उसकी स्मृति में प्रतीकात्मक रूप में गीत गाकर तथा आँखों में आँसू भरकर खूब नाची। इस प्रकार कहानीकार ने दुलारी और के चरित्र को आधार बनाकर समाज के उपेक्षित माने टुन्नु जानेवाले वर्ग का आजादी की लड़ाई में योगदान दर्शाया है।
प्रश्न 2-कठोर हृदय समझी जानेवाली दुलारी, टुन्नू की मृत्यु पर क्यों विचलित हो उठी?
उत्तर- दुलारी एक पतिता स्त्री थी। पतित जीवन के पच्चीस वर्ष बिता लेने के बाद दुलारी को यह समझ में आया कि उसके शरीर के प्रति टुनु के मन में कोई लगाव नहीं है। वह उसकी आत्मा से प्रेम करता है। दुलारी की यह भी अनुभव होने लगा था कि आज तक उसने टुन्नू के प्रति जितनी उपेक्षा दिखाई है वह सब कृत्रिम था। सच तो यह या कि दुलारी के हृदय के एक एकान्त कोने में टुन्नू का स्थान सुरक्षित मृत्यु का समाचार सुना तो वह इसी प्रेम के वशीभूत होकर विचलित हो था। दुलारी भी टुन्नू को हृदय से प्रेम करती थी। जब उसने टुन्नू की उठी थी।
प्रश्न 3– कजली दंगल जैसी गतिविधियों का आयोजन क्यों हुआ करता होगा? कुछ और परंपरागत लोक-आयोजनों का उल्लेख करें।
उत्तर- कजली दंगल जैसी गतिविधियों का आयोजन मनोरंजन के लिए हुआ करता होगा। कभी-कभी ऐसे आयोजनों के माध्यम से समाज में कोई सन्देश देने का भी प्रयास किया जाता होगा। ऐसे ही कुछ परम्परागत लोक आयोजन विभिन्न प्रदेशों में नृत्य के रूप में प्रस्तुत किए जाते हैं, जिनमें प्रमुख हैं—
भरतनाट्यम्
यह गतिमय नृत्य है। इसका स्रोत भरतमुनि के ‘नाट्यशास्त्र’ में है। यह नृत्य अति परम्पराबद्ध तथा शैलीनिष्ठ है। भरत द्वारा निर्धारित तकनीक के ढाँचे में विकसित इस नृत्य शैली में नए फैशन के उद्भवों की गुंजाइश नहीं है। इतिहास के दुर्बोध युग में उद्भूत (नाट्यशास्त्र 4000 ई० पू० पुराना बताया जाता है) । भरतनाट्यम् सुविख्यात नर्तकों की शालीनता और प्रवीण वास्तुकारों की निपुण उँगलियों के प्रश्रय में पीढ़ी-दर-पीढ़ी अमरता प्राप्त करता रहा है। वास्तुकारों ने भरत की तकनीक को मन्दिरों की वास्तुकला में रेखांकित किया।
कत्थकं
इसका आधार कथा है। उत्तर भारत के मन्दिरों में महाकाव्यों की कहानियाँ कहनेवाले होते थे। बाद में कथा कहने साथ स्वाँग और हाव-भाव प्रदर्शन भी जुड़ गए। कत्थक के विकास में दूसरा चरण 15वीं और 16वीं शताब्दी में आया, जब राधा-कृष्ण उपाख्यानों को लोकप्रियता मिली।
कूडियाट्टम
यह लम्बी चलनेवाली नृत्य नाटिका है, जिसमें कुछ दिनों से लेकर कई सप्ताह का समय भी लग जाता है। यह मनोरंजक के साथ उपदेशात्मक भी होता है। इसमें विदूषक सर्वेसर्वा होता है। वह नैतिक उपदेश देता है और कभी-कभी उसके व्यंग्यों की नाट्यकथा के विषय के साथ कोई संगति नहीं होती।
कृष्णनाट्टम
इसके विधान के अनुसार इसमें लगातार आठ रातों में कृष्ण भगवान् के सम्पूर्ण चरित्र का चित्रण होता है। इसकी शैली कथकली की शैली से मिलती-जुलती है।
कुचिपुड़ी
यह आन्ध्र प्रदेश की नृत्य नाटिका है। यह तमिलनाडु के भागवत मेला नाटक शैली की प्रतिकृति है। इसके नियम ‘नाट्यशास्त्र’ के अनुरूप हैं और इसमें अनुचालन पर जोर दिया जाता है— अन्य दृष्टियों से यह भरतनाट्यम् के समान है। इस शैली का विकास तीर्थ नारायण और सिद्धेन्द्र योगी ने किया। आन्ध्र प्रदेश में कुचेलपुरम इस शैली का जन्म-स्थान था और इसीलिए इसका नाम कुचिपुड़ी पड़ा। यह पुरुषों का नृत्य है। हाल के वर्षों में स्त्रियों ने भी इस नृत्य में प्रवेश किया है, किन्तु वे प्राय: एकल नृत्य ही करती हैं।
मणिपुरी
15वीं से 18वीं शताब्दी में मणिपुर में वैष्णव धर्म का प्रचलन हुआ और इसके परिणामस्वरूप इस शैली के विकास में एक नए युग का श्रीगणेश हुआ। यह नृत्य मणिपुर के लोगों के जीवन का अभिन्न अंग रहा है। नृत्य शैली प्रायः आनुष्ठानिक है। इसमें अभी भी वह नृत्य नाटिका तकनीक सुरक्षित है, जिसे मुख्यतः अनुश्रुतियों और पौराणिक कथाओं से प्रेरणा मिली है। इसमें वस्त्र रंग-बिरंगे होते हैं और संगीत में एक अनूठा पुरातन आकर्षण है। लाई हराओबा और रासलीला का मंचन होता है।
यक्षगान
यह कर्नाटक का नृत्य है और इसका स्रोत ग्रामीण परम्परा है। इसमें नृत्य और नाट्य का मिश्रण है। इसकी आत्मा ‘गान’ अर्थात् संगीत है। यह 400 वर्षों से प्रचलित है। भाषा कन्नड़ है और विषय हिन्दू महाकाव्यों पर आधारित है। “इसमें वेशभूषा लगभग वैसी ही होती है, जैसी कथकली में; और लगता है कि कथकली से ही इसे प्रेरणा भी मिली है। ‘ नाट्यशास्त्र’ के वर्णनानुसार इसमें सूत्रधार और विदूषक होते हैं।
प्रश्न 4 – दुलारी विशिष्ट कहे जानेवाले सामाजिक-सांस्कृतिक दायरे से बाहर है, फिर भी अतिविशिष्ट है। इस कथन को ध्यान में रखते हुए दुलारी की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर – प्रस्तुत कहानी में दुलारी का चरित्र अतिविशिष्ट है। उसके चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) स्वतन्त्र और उच्छृंखल – दुलारी स्वतन्त्र और उच्छृंखल है। वह किसी के साथ विवाह बन्धन में नहीं बँधी है। वह गौनहारिन है। उसका पेशा निम्नश्रेणी का है। वह अपने पेशे के कारण ही स्वतन्त्रतापूर्वक कजली गाने जाती रहती है। वह उच्छृंखल भी है। कहानी की ये पंक्तियाँ उसके उच्छृंखल चरित्र को प्रकट करती हैं-
फेंकू सरदार की चौड़ी और पुष्ट पीठ पर शपाशप झाडू झाड़ती तथा उसके पीछे-पीछे धमाधम सीढ़ी उतरती दुलारी चिल्लाई, ” निकल-निकल, अब मेरी देहरी डाँका तो दाँत से तेरी नाक काट लूँगी।”
(2) बहुभाषिणी – दुलारी बहुभाषिणी है। कजली दंगल में वह गौनहारियों की गोल में सबसे आगे खड़ी थीं और अपने सामने खड़े प्रतियोगी टुन्नू की कजरी का उत्तर- प्रत्युत्तर देती जा रही थी। उसने टुन्नू की कजरी के पद का जो उत्तर दिया, वह उसके बहुभाषिणी चरित्र को प्रकट करता है—
“पुनः दुक्कड़ पर चोट पड़ी। शहनाई का मधुर स्वर गूंजा। दुबले-पतले, परन्तु गौरे-गोरे चेहरे को भर – आँख देखा और उसके दुलारी की बारी आई। उसने अपनी दृष्टि मद – विह्वल बनाते हुए टुन्नू के कण्ठ से छल-छल करता स्वर से सोता फूट निकला-
‘कोढ़ियल मुँहवैं लेब वकोट
तो बाप तऽ घाट अगोरलन
कौड़ी – कौड़ी जोर बटोरलन
तैं सरबउला बोल जिन्नगी में
कब देखले लोट ? कोढ़ियल…. । ‘
अब बजरडीहावालों के चेहरे हरे हो चले, वे वाहवाही देते हुए सुनने लगे । दुलारी गा रही थी— “तुझे लोग आदमी व्यर्थ समझते हैं। तू तो वास्तव में बगुला है। बगुले के पर जैसा ही तेरे शरीर का रंग है। वैसे तू बगुला-भगत भी है । उसी की तरह तुझे भी हंस की चाल चलने का हौसला हुआ है, परंतु कभी-न-कभी तेरे गले में मछली का काँटा ज़रूर अटकेगा और उसी दिन तेरी कलई खुल जाएगी।”
(3) भावुक – दुलारी भावुकहृदय स्त्री है। वह गौनहारिन अवश्य लेकिन उसके हृदय में भी भावना का समुद्र हिलोरें लेता है। टुन्नू जब उसके लिए एक पैकिट में बाँधकर धोती लाता है तो वह उसे दुत्कार देती है, अपमानित करती है। टुन्नू के चले जाने के बाद दुलारी खड़ी खड़ी उसे देखती रही। उसके नेत्रों में कौतुक और कठोरता का स्थान करुणा की कोमलता ने ग्रहण कर लिया था । दुलारी ने भूमि पर पड़ी धोती उठाई, उस पर काजल से सने आँसुओं के धब्बे पड़े गए थे। उसने एक बार गली में जाते हुए टुन्नू की ओर देखा और फिर उस स्वच्छ धोती पर पड़े धब्बों को वह बार-बार चूमने लगी। इस घटना से यह सिद्ध होता है कि दुलारी के हृदय में भी भावना का उच्चतम स्थान था।
(4) देशप्रेमी – दुलारी के चरित्र की एक विशेषता उसका देशप्रेमी होना भी है। दुलारी पतिता थी। उसे जब फेंकू सरदार ने साड़ियों का बण्डल भेंट किया तो उसने वह बण्डल बिना खोले ही विदेशी कपड़ों की होली जलानेवाले देशभक्तों की झोली में डाल दिया, जबकि टुन्नू द्वारा दी गई खद्दर की साड़ी उसने बहुत सहेजकर रखी। स्पष्ट है कि पतिता दुलारी के हृदय में भी देशप्रेम जैसी भावना बलवती थी।
प्रश्न 5- दुलारी का टुन्नू से पहली बार परिचय कहाँ और किस रूप में हुआ?
उत्तर – कहानीकार ने दुलारी का टुन्नू से प्रथम परिचय निम्नलिखित घटना के रूप में प्रस्तुत किया है-
दुलारी के जीवन में दुन्नू का प्रवेश हुए अभी कुल छह मास हुए थे। पिछली भादों में तीज के अवसर पर दुलारी खोजवाँ बाजार में गाने गई थी। दुक्कड़ पर गानेवालियों में दुलारी की महती ख्याति थी। उसे पद्य में ही सवाल-जवाब करने की अद्भुत क्षमता प्राप्त थी। कजली गानेवाले बड़े विख्यात शायरों की उससे कोर दबती थी। इसलिए उसके मुँह पर गाने में सभी घबराते थे। उसी दुलारी को कजली-दंगल में अपनी ओर खड़ाकर खोजवाँवालों ने अपनी जीत सुनिश्चित समझ ली थी, परन्तु जब साधारण गाना हो चुकने पर सवाल-जवाब के लिए दुक्कड़ पर चोट पड़ी और विपक्ष से सोलह-र ह – सत्रह वर्ष का एक लड़का गौनहारियों की गोल में सबसे आगे खड़ी दुलारी की ओर हाथ उठाकर ललकार उठा – ” रनियाँ लऽ परमेसरी लोट!” (प्रामिसरी नोट); तब उन्हें अपनी विजय पर पूरा विश्वास न रह गया।
बालक टुन्नू बड़े जोश से गा रहा था-
” रनियाँ लऽ परमेसरी लोट!
दरगोड़े से घेवर बुंदिया
दे माथे मोती कऽ बिंदिया
अउर किनारी में सारी के
टाँक सोनहली गोट । रनियाँ !…”
शहनाईवालों ने टुन्नू के गीत को बन्द बाजे में दोहराया। लोग यह देखकर चकित थे कि बात-बात में तीरकमान हो जानेवाली दुलारी आज अपने स्वभाव के प्रतिकूल खड़ी खड़ी मुसकरा रही है। कण्ठ- स्वर की मधुरता में टुन्नू दुलारी से होड़ कर रहा था और दुलारी मुग्ध खड़ी सुन रही थी।
यही दुलारी और टुन्नू का प्रथम परिचय था।
प्रश्न 6- दुलारी का टुन्नू को यह कहना कहाँ तक उचित था — “तैं सरबउला बोल जिन्नगी में कब देखले लोट ? …….!” दुलारी के इस आक्षेप में आज के युवा वर्ग के लिए क्या सन्देश छिपा है ? उदाहरणसहित स्पष्ट करें।
उत्तर – दुलारी का टुन्नू को यह कहना कि “तुम सच बोलो जिन्दगी में तुमने नोट कब देखे?” उचित ही था; क्योंकि टुन्नू एक आवारा लड़का था। उसके पिता बड़ी कठिनाई से अपने परिवार का पालन-पोषण कर पाते थे। टुन्नू था कि शेरो-शायरी के चस्के में बिगड़ गया था। वह दुलारी के सामने कजली गाने में एक चुनौती बनकर खड़ा था। वह दुलारी से प्रॉमेसरी नोट की बात करता है, जबकि दुन्नू जैसी स्थितिवाले किशोर के लिए ये बातें बेमानी हैं। उसे इन बातों को छोड़कर अपने पिता के कार्य में हाथ बँटाना चाहिए था ।
आज के युवा वर्ग के लिए दुलारी के इस आक्षेप में यह सन्देश छिपा है कि उन्हें अपने लक्ष्य से न भटककर पहले अपना जीवन सुदृढ़ बनाना चाहिए, तब किसी व्यसन को गले लगाना उचित होगा। यदि व्यसनों से दूर ही रहा जाए तो जीवन सुचारु रूप से चल सकेगा।
प्रश्न 7 – भारत के स्वाधीनता आन्दोलन में दुलारी ने अपना योगदान किस प्रकार दिया? 
उत्तर- दुलारी ने फेंकू सरदार द्वारा भेंट की गई धोतियाँ विदेशी कपड़े की होली जलानेवाले देशप्रेमियों को भेंटकर स्वाधीनता आन्दोलन में अपना योगदान दिया।
प्रश्न 8-दुलारी और टुन्नू के प्रेम के पीछे उनका कलाकार मन और उनकी कला थी। यह प्रेम दुलारी को देशप्रेम तक कैसे पहुँचाता है?
उत्तर- दुलारी टुन्नू से प्रेम करती थी। जब दुलारी को यह पता चला कि देशप्रेमियों के जुलूस में शामिल होने के कारण टुन्नू को पुलिस ने मारा और इससे उसकी मृत्यु हो गई तो दुलारी द्रवित हो उठी। उसने टुन्नू द्वारा दी गई खादी की साड़ी पहनी और शासन द्वारा अमन स्थापित करने के लिए आयोजित जलसे में नृत्य करने पहुँच गई। दुलारी ने उसी स्थान पर टुन्नू को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए नृत्य किया, जहाँ टुन्नू की हत्या कर दी गई थी। उसकी श्रद्धांजलि के प्रतीकात्मक बोल थे – “एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा ।” इस प्रकार दुलारी का कलाकार मन टुन्नू के प्रेम से देशप्रेम तक पहुँच गया।
प्रश्न 9 – जलाए जानेवाले विदेशी वस्त्रों के ढेर में अधिकांश वस्त्र फटे-पुराने थे, परन्तु दुलारी द्वारा विदेशी मिलों में बनी कोरी साड़ियों का फेंका जाना किस मानसिकता को दर्शाता है ?
उत्तर- दुलारी द्वारा विदेशी मिलों में बनी कोरी साड़ियों का फेंका जाना उसकी इस मानसिकता को दर्शाता है कि यदि देश से प्रेम है तो उसके लिए मन में पूर्ण निष्ठा भी होनी चाहिए, लालच का कोई भी स्थान नहीं होना चाहिए। देश के प्रति हर प्रकार के त्याग की भावना सर्वोपरि होनी चाहिए।
प्रश्न 10 – ” मन पर किसी का बस नहीं; वह रूप या उमर का कायल नहीं होता । ” टुन्नू के इस कथन में उसका दुलारी के प्रति किशोरजनित प्रेम व्यक्त हुआ है, परन्तु उसके विवेक ने उसके प्रेम को किस दिशा की ओर मोड़ा?
उत्तर- टुन्नू के विवेक ने उसके किशोर- प्रेम को देशप्रेम की ओर मोड़ दिया। वह दुलारी के घर से अपमानित होकर विदेशी वस्त्रों की होली जलानेवाले देशप्रेमियों के जुलूस में सम्मिलित हो गया। उसके इस अपराध के लिए पुलिस ने उसे प्रताड़ित किया, जिससे उसकी मौत हो गई। वह देश के लिए शहीद हो गया।
प्रश्न 11 – ‘ एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा ! ‘ का प्रतीकार्थ समझाइए |
उत्तर – ‘एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा । !’ का शाब्दिक अर्थ है— हे राम इसी स्थान पर मेरी नाक की लोंग खो गई है। इसका प्रतीक अर्थ है मेरा प्रेमी टुन्नू इसी स्थान पर खो गया है अर्थात् वह यहीं शहीद हो गया है। नाक की लोंग सम्मान, उच्चस्थान, प्रतिष्ठा और प्रेम की प्रतीक है।
2. अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1 – ‘ एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’ की विषयवस्तु संक्षेप में लिखिए। 
उत्तर- ‘एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा !’ नामक कहानी में यथार्थ और आदर्श, दन्तकथा और इतिहास, मानव मन की कमजोरियाँ और उदात्तताओं की अभिव्यक्ति है और यह सब अभिव्यक्त हुआ हैं अपने विशिष्ट भाषागत प्रयोग एवं शैली शिल्प की नवीनताओं में। यह कहानी गीत-संगीत के माध्यम से एक अलग तरह की प्रेम कहानी को हमारे सामने लाती है।
रही है—गौनहारिन परम्परा। इस कहानी की नायिका दुलारीबाई उसी बनारस में चार-पाँच के समूह में गानेवालियों की एक परम्परा परम्परा की एक कड़ी है। उसका परिचय एक संगीत कार्यक्रम में 15 वर्षीय टुन्नू से होता है जो इस कहानी का नायक है। टुन्नू संगीत में उसका प्रतिद्वन्द्वी था। अपने सारे अन्तर्विरोध के साथ पलता दुलारी और टुन्नू का व्यक्तिगत प्रेम का अन्ततः देशप्रेम में परिणत हो जाना ही इस कहानी को एक नयां स्वर देता है। कहानीकार ने यहाँ तथाकथित समाज की मुख्यधारा से बहिष्कृत और उपेक्षित समझे जानेवाले वर्ग के अन्तर्मन में व्याप्त जन्मभूमि के प्रति असीम प्रेम, विदेशी शासन के प्रति क्षोभ और पराधीनता के जुए को उतार फेंकने की अतीव लालसा तथा आजादी की लड़ाई में उनके योगदान को रेखांकित किया है। कहानी एक साथ ही कई उद्देश्यों को लेकर चलती है जिसमें सच न छापनेवाले सम्पादक का दोहरा चरित्र भी हमारे सामने आता है।
प्रश्न 2 – विचारकर बताइए कि ‘एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’ नामक कहानी आपके पाठ्यक्रम में क्यों रखी गई है?
उत्तर – सन् 1952 ई० में प्रकाशित शिवप्रसाद मिश्र ‘रुद्र’ की अनूठी मानी जानेवाली कृति ‘बहती गंगा’ में काशी के दो सौ वर्षो (1750-1950) के अविच्छिन्न जीवन प्रवाह की अनेक झाँकियाँ हैं, जिनमें से एक झाँकी हैं ‘एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा ! ‘ ( हे राम इसी स्थान पर मेरी नाक की लोंग खो गई है!)। काशी की बेफिक्री, अक्खड़ बोली- बानी का अपना एक विशिष्ट रंग है और इसी रंग से छात्रों को परिचित कराने के लिए यह कहानी हमारे पाठ्यक्रम में सम्मिलित की गई है।
प्रश्न 3 – बजरडीहावालों ने टुन्नू को क्यों आमन्त्रित किया था? 
उत्तर – प्रस्तुत कहानी के नायक टुन्नू को आवाराओं की संगति में शायरी का चस्का लग गया था। टुन्नू ने भैरोहेला को अपना उस्ताद बनाया और शीघ्र ही सुन्दर कजली – रचना करने लगा। वह पद्यात्मक प्रश्नोत्तरी में भी बड़ा कुशल था और अपनी इसी विशेषता के बल पर वह बजरडीहावालों की ओर से आमन्त्रित किया गया था। उसकी ‘शायरी’ पर बजरडीहावालों ने ‘वाह वाह’ का शोर मचाकर सिर पर आकाश उठा लिया था। यह देखकर खोजवाँवालों का रंग उतर गया।

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