UK 10th Social Science

UK Board 10th Class Social Science – (आपदा प्रबन्धन) – Chapter 4 सुरक्षित निर्माण विधियाँ (पद्धति)

UK Board 10th Class Social Science – (आपदा प्रबन्धन) – Chapter 4 सुरक्षित निर्माण विधियाँ (पद्धति)

UK Board Solutions for Class 10th Social Science – सामाजिक विज्ञान – (आपदा प्रबन्धन) – Chapter 4 सुरक्षित निर्माण विधियाँ (पद्धति)

पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
• I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए-
प्रश्न 1 – सुरक्षित निर्माण कार्यों से आप क्या समझते हैं?
उत्तर— भौगोलिक दशाओं और क्षेत्र विशेष की सम्भावित आपदाओं के मूल्यांकन करने के बाद निर्धारित विधियों द्वारा किया गया निर्माण सुरक्षित निर्माण कार्य कहलाता है। सुरक्षित निर्माण करने के लिए विषय विशेषज्ञ को निर्देशन आवश्यक होता है। यह जरूरी नहीं है कि सुरक्षित निर्माण तभी सम्भव होता हो जब उसमें व्यय अधिक किया गया हो बल्कि कम व्यय द्वारा भी प्रशिक्षित राजमिस्त्रियों एवं योग्य़ वास्तुकारों के सहयोग से सुरक्षित निर्माण कार्य किया जा सकता है।
प्रश्न 2 – सुरक्षित मकान की तीन आवश्यक विशेषताओं के नाम लिखिए।
उत्तर— सुरक्षित मकान की तीन आवश्यक विशेषताओं के नाम निम्नलिखित हैं-
(1) सुरक्षित स्थल का चयन।
(2) उपयुक्त विधियों का निर्धारण
(3) मानक गृह-निर्माण सामग्री का प्रयोग।
प्रश्न 3 – तकनीकी नियमों के अनुसार सुरक्षित निर्माण के लिए क्या किया गया?
उत्तर— तकनीकी नियमों के अनुसार सुरक्षित निर्माण के लिए मकान का नक्शा विशषज्ञों एवं प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा स्वीकृत कराने एवं उसके अनुसार निर्माण कार्य कराना सुनिश्चित किया गया है।
प्रश्न 4 – सुरक्षित निर्माण हेतु जन चेतना क्यों आवश्यक है?
उत्तर— सावधानी, आपदा से होने वाली क्षति के न्यूनीकरण प्रबन्धन का मूलमन्त्र है। इसी मूलमन्त्र का उपयोग सुरक्षित निर्माण का मुख्य उद्देश्य होता है। जिस प्रकार रोगी के लिए उपयुक्त उपचार आवश्यक होता है उसी प्रकार आपदा न्यूनीकरण प्रबन्धन में आपदा से पूर्व सुरक्षित निर्माण का भी विशेष महत्त्व है। विकासशील देशों में जनसामान्य सुरक्षित भवन निर्माण के प्रति उतने सजग नहीं हैं जितने विकसित देशों में होते हैं। अतः जनसामान्य को विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में आपदा विशेष के सन्दर्भ में निर्धारित विधियों द्वारा सुरक्षित गृह निर्माण के लिए जागरूक होना चाहिए। इसके लिए शासन प्रशासन के अतिरिक्त स्वयंसेवी संगठनों को जनता को सुरक्षित निर्माण के महत्त्व से अवगत कराना आवश्यक है तभी जनता सरक्षित निर्माण कार्यों के महत्त्व को समझेगी।
प्रश्न 5 – सुरक्षित निर्माण के कार्यों के लिए किए गए उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर— उत्तराखण्ड राज्य में भूकम्प की सम्भावनाओं तथा भू-स्खलन की अधिकता को देखते हुए तथा अन्य राज्यों में आपदा विशेष को ध्यान में रखते हुए राज्य एवं केन्द्र सरकार द्वारा सुरक्षित निर्माण के लिए विभिन्न उपाय किए जाते हैं। इन उपायों में विशेष प्रकार के कानून व नियमों का निर्माण एवं पालन कराने के अतिरिक्त जनसामान्य को जागरूक करना और विशेष प्रकार का प्रशिक्षण देना सम्मिलित है। उत्तराखण्ड राज्य में ‘आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबन्धन केन्द्र’ देहरादून द्वारा राज्य के सभी जनपदों में प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं जिसमें राजमिस्त्रियों, इन्जीनियरों, आर्किटेक्ट, ड्राफ्टमैन आदि को सघन प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है तथा प्रशिक्षण कार्यक्रम के अन्तर्गत भूकम्प अवरोधी तकनीकी के आधार पर भवनों का निर्माण करने की विधियाँ बताई जाती हैं।
प्रश्न 6 – अनियोजित निर्माण का क्या अर्थ है ?
उत्तर- जब भौगोलिक परिस्थितियों को अनदेखा कर बिना तकनीकी प्रशिक्षण प्राप्त राजमिस्त्रियों द्वारा निर्माण कार्य किया जाता है तो वह अनियोजित निर्माण कहलाता है। इस प्रकार का निर्माण आपदाओं के समय अत्यधिक हानिकारक होता है। इस से जान-माल के खतरे में वृद्धि होती है। इससे भविष्य में सामाजिक-आर्थिक योजनाओं में भी अवरोध उत्पन्न होता है। अधिकांश पुरानी बस्तियाँ, सड़कें और ग्रामों में अनियोजित निर्माण के उदाहरण अधिक मिलते हैं।
प्रश्न 7 – अभियान्त्रिकी पर आधारित ढाँचों के निर्माण के लिए किन मानदण्डों का पालन किया जाता है?
उत्तर— अभियान्त्रिकी पर आधारित ढाँचों के निर्माण के लिए निम्नलिखित मानदण्डों का पालन आवश्यक समझा जाता है-
  1. अभियान्त्रिकी पर आधारित ढाँचों की आकृति मुख्यत: आयताकार होती है। इसके लिए भवन निर्माण से पूर्व ढाँचे का नक्शा बनाया जाता है जिसमें आधार (बुनियाद), दीवार, छत आदि की पूर्ण माप तौल अंकित होती है।
  2. अभियान्त्रिकी द्वारा निर्धारित मानकों में भूमि एवं मिट्टी की प्रकृति का परीक्षण करने के उपरान्त ही उपयुक्त स्थल का चयन आवश्यक होता है।
  3. इस प्रकार के भवन निर्माण में उपयुक्त भवन सामग्री का चयन तथा निर्धारित अनुपात में उपयोग आवश्यक है; जैसे आर०सी०सी० निर्माण में सीमेण्ट, बालू एवं मिट्टी का अनुपात 1:2:4 होना चाहिए। इसी प्रकार दीवार के लिए यथा सम्भव चपटे, सीधे एवं चौड़े पत्थरों या ईंटों का प्रयोग किया जाना चाहिए।
  4. भवनों के निर्माण में जोड़ हेतु विशेष सावधानियाँ रखी जानी चाहिए; जैसे पिलर बनाने में सरियों का जोड़ भिन्न-भिन्न स्थान पर व अधिक लम्बाई में होना चाहिए। इसी प्रकार छत के निर्माण से पूर्व दीवारों | पर बीम का प्रयोग अवश्य किया जाना चाहिए।
प्रश्न 8 – भूकम्प प्रतिरोधी इमारत के विन्यास का वर्णन कीजिए।
उत्तर- भूकम्प प्रतिरोधी इमारत के लिए भवनों की आकृति या विन्यास का विशेष महत्त्व होता है। इस प्रकार की इमारतों की आकृति साधारणतया आयताकार होना चाहिए। ऐसे भवनों की दीवारें सीमेण्ट कंक्रीट से निर्मित स्तम्भों से सुदृढ़ होने पर भूकम्प घटकों को सहन करने की क्षमता रखती हैं। इस प्रकार के भवन विन्यास में दीवारें अंग्रेजी के अक्षरों के आकार की हों तो बीच में दीवार देकर उन्हें आयताकार बना लेना चाहिए। भूकम्प प्रतिरोधी भवनों का निर्माण योग्य इन्जीनियर की देख-रेख में ही कराना चाहिए। भवन के स्तम्भ और शहतीर सीमेण्ट कंक्रीट के बनाने चाहिए ताकि वे भूकम्प के झटके आसानी से सह सकें। भवनों की ऊँचाई अधिक नहीं होनी चाहिए तथा भवन में दरवाजे, खिड़कियों और रोशनदानों को उचित स्थान पर बनाया जाना आवश्यक होता है।
प्रश्न 9 – किस प्रकार के मकान बाढ़ के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं?
उत्तर – निम्नलिखित प्रकार के मकान बाढ़ के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं-
  1. निम्न भू-भाग, नम भूमि और बाढ़ वाले मैदानों में निर्मित मकान बाढ़ के समय क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।
  2. नदी तट के निकट बने मकानों को बाढ़ के प्रति अधिक संवेदनशील माना जाता है।
  3. भवनों की नींव और दीवारें कच्ची मिट्टी से बनी होने पर मकान बाढ़ के समय क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।
  4. समुद्र तट के निकट बने मकान भी बाढ़ से सुरक्षित नहीं होते हैं।
  5. संकरे दर्रों और विशाल खड्डों में बने मकान बाढ़ की दृष्टि से संवेदनशील माने जाते हैं।
  6. ऐसे स्थल जहाँ जल निकास की उचित व्यवस्था न हो वहाँ बने मकान भी बाढ़ या वर्षा ऋतु में क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।
प्रश्न 10 – भूस्खलन क्षेत्रों में मकानों की संरचना किस प्रकार की होनी चाहिए?
उत्तर – भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों में मकानों की संरचना करते समय निम्नलिखित सावधानी महत्त्वपूर्ण होती है—
  1. क्षेत्र के भौगोलिक नक्शे में विभिन्न खतरों की पहचान करके मकान निर्माण हेतु ऐसे स्थान का चयन करें जहाँ भूस्खलन और हिमस्खलन की सम्भावना नगण्य हो ।
  2. मकान की छतों का निर्माण करते समय उनकी ढाल 50 डिग्री से अधिक न रखें।
  3. पहाड़ों की कच्ची और गहरी ढलानों पर बड़े-बड़े भवनों का निर्माण न करें यदि ऐसे स्थलों पर भवन बनाना आवश्यक हो तो भवन निर्माण के लिए अभियान्त्रिक मानकों का उपयोग करें।
  4. पहाड़ों पर उगी वनस्पति, वृक्षों घास आदि को बनाए रखें यदि ऐसे क्षेत्रों में वनस्पति का अभाव है तो उसे विकसित करने का प्रयास करें।
  5. भवन निर्माण से पूर्व पहाड़ों के निचले भाग में पक्की दीवारों का निर्माण करना चाहिए ताकि वे पक्की नींव की तरह पहाड़ी को खड़ा रखें।
  6. भवन निर्माण स्थल के आस-पास पानी नहीं रुकने दें अर्थात् पानी के बहाव के लिए उचित निकास व्यवस्था का प्रबन्धन करें ताकि जल रिस-रिसकर पहाड़ी को कमजोर न बनाए ।
  7. पहाड़ियों के ऊपर पशुचारण को रोकें अन्यथा पहाड़ियों का ऊपरी भाग वनस्पति विहीन हो जाने से भूमि कटाव प्रारम्भ हो जाता है जिससे वहाँ बना मकान क्षतिग्रस्त हो सकता है।
  8. भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों में एक उपयुक्त संरचना वाला मकान वह होता है जो सुरक्षित स्थान पर ढाल वाली छतों से युक्त मजबूत नींव पर मोटी बँधी दीवार द्वारा निर्मित किया गया हो। (चित्र 4.1 )
प्रश्न 11 – बाढ़ के दौरान सुरक्षित मकानों की आवश्यक विशेषताएँ क्या होती हैं?
उत्तर- मकानों की बाढ़ से सुरक्षा के उपाय
बाढ़ एवं जलप्लावन से मकानों को सुरक्षित रखने का सर्वोत्तम उपाय मकानों को सुरक्षित स्थानों पर बनाना है। इसके अतिरिक्त कुछ ऐसे तकनीकी उपाय भी हैं जो आकस्मिक बाढ़ के समय मकानों की होने वाली क्षति को न्यूनतम करने में कारगर होते हैं। अतः बाढ़ से सुरक्षा हेतु निम्नलिखित उपायों को विशेष महत्त्व देना चाहिए—
  1. मकान बनाने के लिए सुरक्षित स्थलों का चुनाव किया जाना चाहिए । विशेष रूप से नदी किनारों, नदी की ओर ढलानों तथा संकरी घाटियों में आवासीय मकान बनाना बाढ़ की दृष्टि से सुरक्षित नहीं है।
  2. समुद्र एवं नदी तट से पर्याप्त दूरी ( लगभग 250 मीटर दूरी) पर ही मकान बनाना बाढ़ की दृष्टि से सुरक्षित माना जाता है।
  3. बाढ़ सम्भावित क्षेत्रों में जल निकास की उचित व्यवस्था तथा निकास जलमार्गों का उपयुक्त रख-रखाव करना चाहिए।
  4. बाढ़ सम्भावित क्षेत्रों में बनाए जाने वाले मकान अधिक ऊँचाई परं बनाए जाने चाहिए। ऐसे क्षेत्रों में मकानों का लेवल बाढ़ के ज्ञात उच्च स्तर से ऊपर होना आवश्यक है।
  5. बाढ़ सम्भावित क्षेत्रों में ऐसे मकान बनाना भी सुरक्षित माना जाता है जो गोलाकार, मजबूत और भूमि कटाव के सबसे नीचे के स्तर तक बने खम्भों या कॉलमों के ऊपर बनाए गए हों ।
इस प्रकार उपर्युक्त उपायों को ध्यान में रखकर भवन निर्माण कार्य बाढ़ की दृष्टि से सुरक्षा प्रदान करने में कारगर सिद्ध हो सकते हैं।
प्रश्न 12 – चक्रवातों के दौरान उपयोगी ढाँचों की चर्चा कीजिए।
उत्तर- चक्रवात के दौरान उपयोगी ढाँचे
चक्रवाती तूफान मानव बस्तियों के लिए अत्यन्त हानिकारक होते हैं। वे अनेक मकानों की छतों तक को उड़ाकर ले जाते हैं और इस प्रकार लोगों को निवासरहित कर देते हैं। चक्रवात प्रभावित क्षेत्रों में निम्नलिखित विशेषताओं वाले मकानों को उपयोगी माना जाता है—
  1. चक्रवात प्रभावित क्षेत्रों में गोल या बहुमुखी आकृति के भवनों को सुरक्षित माना जाता है क्योंकि चक्रवातों का प्रभाव ऐसे भवनों पर अधिक नहीं पड़ता है।
  2. जहाँ पवन की दिशा का पहले से अनुमान हो वहाँ भवन इस ढंग से बनाए जाने चाहिए कि पवन के सामने भवन का कम-से-कम भाग आए। ऐसा करने से भवनों को हानि कम होती है।
  3. यदि मकान का नक्शा डिब्बानुमा होगा तो अच्छा रहेगा जबकि टेढ़े-मेढ़े नक्शे के अनुसार बनाया गया मकान हवा के झटकों को नहीं सह पाता और क्षतिग्रस्त हो जाता है।
  4. ऐसे क्षेत्रों में मकानों की छत पिरामिड प्रकार की होनी चाहिए।
प्रश्न 13 – भूकम्प क्षेत्रों में किस प्रकार के मकान बनाए जाने चाहिए?
उत्तर – भूकम्प आपदा के समय लोगों की जान भूकम्प से नहीं जाती; बल्कि ऐसे मकानों के गिरने के कारण लोगों की मृत्यु अधिक होती है जो गलत डिजाइनों एवं गलत विधियों से बनाए गए होते हैं। अतएव यह आवश्यक है कि भूकम्प के खतरे को आपदा बनने से रोकने के लिए हमें अपने मकानों या इमारतों को भूकम्परोधी बनाना चाहिए। भूकम्परोधी भवनों को बनाने के लिए इमारतों के डिजाइन का विशेष महत्त्व होता है। ऐसे मकानों के डिजाइनों की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं-
  1. मकानों का आकार आयताकार एवं चारों ओर लोहे, कंक्रीट के बैण्डों द्वारा बँधा या घिरा हुआ होना चाहिए। (चित्र 4.2)
  2. इमारतों की नींव का आकार एवं गहराई मिट्टी की प्रकृति को आधार मानकर बनाई जानी चाहिए।
  3. दीवारों के प्रवेश द्वार एवं खिड़कियों पर नियन्त्रण होना चाहिए। प्रवेश द्वार छोटे मकान की दीवारों के बीचों-बीच एवं इनकी संख्या कम रखना अधिक उपयुक्त रहता है।
  4. इमारत को पुष्ट ठोस बन्धनों (लिटल बैण्ड) से युक्त बनाना चाहिए। मकानों में विभिन्न प्रकार के बन्धन ( बैण्ड) का निर्धारण उनके आकार एवं डिजाइन पर निर्भर होता है, किन्तु निचले भाग का बन्धन, दरवाजे के ऊपर का लिंटल बन्धन, छतों के बन्धन आदि प्रत्येक मकान के लिए आवश्यक हैं।
  5. मकानों की दीवारों के कोनों एवं जंक्शनों में लोहे के खड़े/लेटे बैण्ड होने चाहिए। ये बैण्ड लिटल या छतों के तलस्तर के बैण्डों से गुजरने चाहिए।
  6. इमारतों की लम्बी दीवारों में कॉलम बनाना आवश्यक है।
  7. टी० एल० यू० एवं एक्स आकार वाली इमारतों को चतुर्भुज खण्डों या ब्लॉकों में बाँटकर बनाना चाहिए। (चित्र 4.3)
प्रश्न 14 – चक्रवात प्रतिरोधी इमारतों के लिए छतों की संरचना किस प्रकार की होनी चाहिए?
उत्तर – चक्रवात प्रभावित क्षेत्रों में केवल भवनों के नक्शे पर ही ध्यान नहीं देना चाहिए बल्कि मकानों की छत के निर्माण पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए। इस सन्दर्भ में भवनों की छतों की संरचना पर निम्नलिखित तथ्यों का ध्यान देना महत्त्वपूर्ण हो सकता है-
  1. चक्रवातग्रस्त क्षेत्रों में हवा की शक्ति को कम करने के लिए भवनों की छतें तिकोनी नहीं बल्कि पिरामिड प्रकार की छत या छरीदार (Pyramidial) छत बनाना उपयुक्त रहता है।
  2. ऐसे क्षेत्र जहाँ चक्रवाती हवाओं का वेग बड़ा तेज होता है वहाँ हल्के वजन वाले सीमेण्ट या लौहे की चादरों से छत न बनवाएँ। ऐसी हल्की छत हवा के साथ ही उड़ जाती हैं। यदि और कोई विकल्प न हो तो चादरों को शहतीरों या बत्तों के साथ अच्छी तरह और पक्के ढंग से बँधवा दें। ऐसे में चादरें टूट जाएँगी उड़ेंगी नहीं।
  3. चक्रवाती क्षेत्रों में मकानों की छतों को दीवारों से बाहर अधिक नहीं फैलाना चाहिए। यह फैलाव अधिक-से-अधिक 500 मिमी तक होना चाहिए और यह लौहे के बन्द के साथ छत से कसा होना चाहिए। (चित्र 4.4)
प्रश्न 15 – उत्तराखण्ड राज्य में भवन निर्माण हेतु क्या-क्या सावधानियाँ अपेक्षित हैं?
उत्तर – प्राकृतिक आपदाओं की दृष्टि से उत्तराखण्ड देश के अन्य राज्यों की तुलना में अत्यधिक संवेदनशील राज्य है। यहाँ पर भूकम्प, भूस्खलन, बादल फटना तथा त्वरित बाढ़ की सम्भावना अधिक रहती है। राज्य के 13 जनपदों में से 4 जनपद देश के अत्यधिक भूकम्प सम्भावित तथा 9 जनपद अधिक भूकम्प सम्भावित क्षेत्र में सम्मिलित हैं।
अतः उत्तराखण्ड राज्य में भूकम्परोधी, भूस्खलनरोधी तथा बाढ़ से सुरक्षित भवनों का निर्माण अपेक्षित है। इसलिए यहाँ भवन निर्माण में विशेष सावधानियाँ, तकनीकी और आपदारोधी विधियों का उपयोग आवश्यक है।
प्रश्न 16 – भवन निर्माण के सन्दर्भ में आपदा न्यूनीकरण व प्रबन्ध केन्द्र की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर— उत्तराखण्ड राज्य को आपदा की दृष्टि से संवेदनशील मानते हुए राज्य स्तर पर ‘आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबन्धन केन्द्र’ की स्थापना देहरादून में की गई है। यह केन्द्र राज्य सभी जनपदों में प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करता है जिसमें राजमिस्त्रियों, इन्जीनियरों, आर्किटेक्ट ड्राफ्टमैन आदि को सघन प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के अन्तर्गत भूकम्प अवरोधी तथा अन्य आपदाओं की दृष्टि से सुरक्षित भवन निर्माण की तकनीकी और विधियाँ सिखाई जाती है।
प्रश्न 17 – भूकम्परोधी भवनों हेतु तीन विशेषताओं का वर्णन कीजिए ।
उत्तर- भूकम्परोधी भवनों की विशेषताएँ
भूकम्परोधी भवनों की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं—
  1. भूकम्पग्रस्त क्षेत्रों में लकड़ी से बने मकान ईंटों या पत्थरों से बने मकानों की अपेक्षा अधिक सुरक्षित होते हैं। लकड़ी के मकानों की भूकम्प में गिरने की सम्भावना बहुत कम होती है दूसरे इनके गिरने पर जान-माल की क्षति भी न्यूनतम रहती है।
  2. कई प्रक्षेप वाली आकृतियों के बजाय साधारण आयताकार आकृति के भवन भूकम्परोधी होते हैं।
  3. ऐसे भवनों का निर्माण योग्य इन्जीनियरों की देख-रेख में किया जाता है तथा बड़े भवनों को कई ब्लॉकों में बाँटकर बनाना उपयुक्त रहता है।
प्रश्न 18 – भूकम्प के कारण पृथ्वी की सतह किस प्रकार व्यवहार करती है?
उत्तर- भूकम्प पृथ्वी की आन्तरिक प्रक्रिया के अन्तर्गत लम्बवत् एवं क्षैतिज हलचलों का परिणाम है। जिस समय पृथ्वी के अभ्यान्तर से ऊर्जा का विसर्जन होता है उस समय प्राथमिक, द्वितीय एवं दीर्घ भूकम्पीय लहरें उत्पन्न होती हैं। इन लहरों के कारण पृथ्वी की सतह पर लम्बवत् एवं क्षैतिज तनाव और सम्पीडन (भिचाव ) की घटनाएँ होती हैं। इन हलचलों के कारण सतह पर कम्पन, भ्रंश एवं वलन का निर्माण होता है जो भूकम्प के लिए उत्तरदायी है। (चित्र 4.5)
प्रश्न 19 – भवन निर्माण में जोड़ हेतु प्रयुक्त किए जाने वाली विधियों के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर – भवन निर्माण में जोड़ हेतु प्रयुक्त किए जाने वाली विधियों के दो उदाहरण निम्नलिखित हैं-
  1. भवन निर्माण में दीवार बनाने में जोड़ लगाने के लिए खस्के (दाँते ) छोड़े बगैर निर्माण करना चाहिए। (चित्र 4.6)
  2. भवनों की छतों के लिए बीम बनाने में जोड़ के स्थान पर सरियों को अन्दर की ओर मोड़ देना चाहिए। (चित्र 4.6)
प्रश्न 20 – निर्माण सामग्री के चयन हेतु दो उदाहरण बताइए ।
उत्तर- निर्माण कार्यों में उपयुक्त सामग्री का विशेष महत्त्व होता है। यद्यपि भवन निर्माण में स्थानीय सामग्री का प्रयोग अधिक किया जाता है, किन्तु अब बाह्य सामग्री भी पर्याप्त मात्रा में प्रयुक्त की जाती है। निर्माण सामग्री से सम्बन्धित दो उदाहरण निम्नलिखित हैं-
  1. भूकम्परोधी भवनों के निर्माण में सस्ती एवं उपयुक्त निर्माण सामग्री की दृष्टि से चिकनी मिट्टी या चूने का प्रयोग करना चाहिए जिसमें 10 प्रतिशत मिट्टी और पर्याप्त मात्रा रेशेदार पदार्थ का मिश्रण होना चाहिए।
  2. आर०सी०सी० निर्माण में सीमेण्ट बालू एवं मिट्टी का अनुपात 1: 2 : 4 होना चाहिए।
प्रश्न 21 – पूर्व निर्मित भवन के मजबूतीकरण की विधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर – पूर्व निर्मित भवन को मजबूत बनाने के लिए अग्रलिखित विधियों का प्रयोग उपयुक्त रहता है-
  1. दरवाजे और खिड़की के मुहाने के ऊपर क्षैतिज भूकम्पीय पट्टी का निर्माण करना जिसके लिए पट्टी की चौड़ाई के अनुसार प्लास्टर को हटाना ।
  2. जोड़ के मसाले को 15 मिमी की गहराई तक खुरचकर हटा दें।
  3. सतह को साफ कर पानी से गीला करें।
  4. साफ सीमेण्ट का घोल लगाएँ तथा सीमेण्ट और मसाले के पहले रद्दे को 12 मिमी तक लगाकर उसकी सतह को खुरदरी बनाएँ ।
  5. प्लास्टर के रद्दे पर शुरुआती कठोरता के दौरान आवश्यक चौड़ाई की लोहे की जाली 150 मिमी की कीलों का प्रयोग करते हुए लगाएँ।
  6. जाली लगाने के उपरान्त उसके ऊपर 16 मिमी की मोटाई का प्लास्टर का दूसरा रद्दा लगाएँ ।
  7. दीवारों के कोनों पर खड़ी दिशा में भूकम्पीय पट्टी (L एवं T जक्शन) का निर्माण करें।
  8. त्रियंकी दीवारों के चारों ओर तथा दरवाजों और खिड़कियों के चारों ओर भूकम्पीय पट्टी का निर्माण करें।
उपर्युक्त विधियों को चित्र 4.7 के द्वारा भली प्रकार समझा जा सकता है।
प्रश्न 22 – भवन में क्षति की सम्भावना वाले घटकों का क्या आशय है?
उत्तर— आपदा के दौरान कमजोर एवं उपयुक्त तकनीक के अभाव में बने मकानों में क्षति की सम्भावना अधिक रहती है। ऐसे कुछ घटक जिनके कारण भवनों के क्षतिग्रस्त रहने की सम्भावना रहती है निम्नलिखित हैं-
(1) अनुपयुक्त सामग्री, (2) अनुपयुक्त तकनीक, (3) अनुपयुक्त स्थल का चयन, (4) पत्थरों से निर्मित दीवार में बँधों का अभाव, (5) छत के निर्माण से पूर्व दीवारों पर बीम का प्रयोग न करना । .
प्रश्न 23 – भवन निर्माण हेतु स्थल चयन में तीन सावधानियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर- भवन निर्माण के लिए सुरक्षित स्थल
भवन-निर्माण हेतु स्थल का चयन करते समय निम्नलिखित सावधानियों को ध्यान रखना चाहिए-
  1. भवनों का निर्माण ऊँचे, मजबूत और सुरक्षित स्थलों पर किया जाना चाहिए।
  2. नरम या मुलायम भूमि में भवन निर्माण कार्य नहीं करना चाहिए बल्कि कठोर भूमि ही उत्तम रहती है।
  3. तेजढाल वाली भूमि पर भवनों का निर्माण कदापि नहीं करना चाहिए।
  4. पहाड़ों की कच्ची और गहरी ढलानों पर बड़े भवन नहीं बनाने चाहिए।
  5. बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों में निचली भूमि, दलदली भूमि एवं जलभराव वाले क्षेत्रों में मकानों का निर्माण नहीं करना चाहिए ।
  6. नदी के किनारे एवं समुद्र तटों के निकट भवनों का निर्माण नहीं करना चाहिए।
  7. यदि पहाड़ियों का ऊपरी भाग वनस्पति विहिन हो जहाँ भूमि कटाव की सम्भावना नजर आती हो वहाँ भी भवन निर्माण करना उपयुक्त नहीं होता है।

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