UK Board 10th Class Social Science – (भूगोल) – Chapter 2 वन एवं वन्य जीवन संसाधन
UK Board 10th Class Social Science – (भूगोल) – Chapter 2 वन एवं वन्य जीवन संसाधन
UK Board Solutions for Class 10th Social Science – सामाजिक विज्ञान – (भूगोल) – Chapter 2 वन एवं वन्य जीवन संसाधन
पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
1. बहुवैकल्पिक प्रश्न-
(i) इनमें से कौन-सी टिप्पणी प्राकृतिक वनस्पतिजात और प्राणिजात के ह्रास का सही कारण नहीं है?
(क) कृषि प्रसार
(ख) वृहत स्तरीय विकास परियोजनाएँ
(ग) पशुचारण और ईंधन लकड़ी एकत्रित करना
(घ) तीव्र औद्योगीकरण और शहरीकरण।
उत्तर- (ग) पशुचारण और ईंधन लकड़ी एकत्रित करना ।
(ii) इनमें से कौन-सा संरक्षण तरीका समुदायों की सीधी भागीदारी नहीं करता?
(क) संयुक्त वन प्रबन्धन
(ख) बीज बचाओ आन्दोलन
(ग) चिपको आन्दोलन
(घ) वन्य जीव पशुविहार ( Sanctuary) का परिसीमन ।
उत्तर – (घ) वन्य जीव पशुविहार (Sanctuary) का परिसीमन ।
2. निम्नलिखित प्राणियों / पौधों का उनके अस्तित्व के वर्ग से मेल करें-
जानवर / पौधे | अस्तित्व वर्ग |
1. काला हिरण
2. एशियाई हाथी
3. अंडमान जंगली सुअर
4. हिमालयन भूरा भालू
5. गुलाबी सिरवाली बत्तख
|
(A) लुप्त
(B) दुर्लभ
(C) संकटग्रस्त
(D) सुभेद्य
(E) स्थानिक
|
उत्तर – 1 = (C), 2 = (D), 3 = (E), 4 = (B), 5 = (A).
3. निम्नलिखित का मेल करें-
1. आरक्षित वन | सरकार, व्यक्तियों के निजी और समुदायों के अधीन अन्य वन और बंजर भूमि। |
2. रक्षित वन | वन और वन्य जीव संसाधन संरक्षण की दृष्टि से सर्वाधिक मूल्यवान वन। |
3. अवर्गीकृतवन | वन भूमि जो और अधिक क्षरण से बचाई जाती है। |
उत्तर-
1. आरक्षित वन | वन और वन्य जीव संसाधन संरक्षण की दृष्टि से सर्वाधिक मूल्यवान वन। |
2. रक्षित वन | वन भूमि जो और अधिक क्षरण से बचाई जाती है। |
3. अवर्गीकृत वन | सरकार, व्यक्तियों के निजी और समुदायों के अधीन अन्य वन और बंजर भूमि। |
4. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए-
(i) जैव विविधता क्या है? यह मानव जीवन के लिए क्यों महत्त्वपूर्ण है ?
उत्तर- जैव विविधता का अर्थ
जैव विविधता जीवमण्डलों में पाए जाने वाले जीवों की विभिन्न जातियों में पायी जाने वाली विविधता है। दूसरे शब्दों में कहें तो जैव विविधता वनस्पति एवं प्राणियों में पाए जाने वाली जातीय विभेद को प्रकट करती है। भू-पृष्ठ पर वर्तमान जैव विविधता अरबों वर्षों से हो रहे जीवन के सतत विकास की प्रक्रिया का परिणाम है। पर्यावरण ह्रास के कारण जैव-विविधता का क्षय हुआ है । जीवों की अनेक प्रजातियाँ लुप्त हो गई हैं तथा कई संकटग्रस्त हैं। |
मानव जीवन के लिए महत्त्व
मानव अपने उत्पत्तिकाल से ही विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति जीव जगत से ही करता चला आ रहा है। मानव को भोजन, आवास एवं परिवेश सम्बन्धी विभिन्न आवश्यकताओं और अपने अस्तित्व के लिए जैव विविधता पर ही निर्भर रहना पड़ता है। जैव विविधता के उपभोग की दृष्टि से ही मानव ने अधिक उपयोगी प्राणियों और पौधों का पालतूकरण किया। कृषि एवं पशुपालन इसी आवश्यकता का परिणाम है।
(ii) विस्तारपूर्वक बताएँ कि मानव क्रियाएँ किस प्रकार प्राकृतिक वनस्पतिजात और प्राणिजात के ह्रास के कारक हैं?
उत्तर- मानव ने अपनी विभिन्न प्रकार की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रकृति के अनेक पदार्थों को संसाधनों में परिवर्तित कर लिया है । इसी कारण मानव ने वन एवं वन्य जीवों को भारी नुकसान पहुँचाया है। भारत में वनों एवं वन्य जीवों की सबसे अधिक हानि उपनिवेश काल में रेललाइन, कृषि व्यवसाय, वाणिज्य वानिकी और खनन क्रियाओं में वृद्धि से हुई है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद जैसे-जैसे जनसंख्या में वृद्धि हुई, जैव विविधता का विनाश और भी अधिक तीव्र गति से हुआ। कृषि के अतिरिक्त मानव ने बड़े बाँध और आवास भी बनाए हैं भूमि के इस उपयोग से भी जैव विविधता का ह्रास हुआ है। अतः मानव अन्य सभी कारकों की अपेक्षा जैव विविधता के ह्रास एवं विनाश के लिए अपेक्षाकृत अधिक उत्तरदायी है।
5. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 120 शब्दों में दीजिए-
(i) भारत में विभिन्न समुदायों ने किस प्रकार वनों और वन्य जीव संरक्षण और रक्षण में योगदान किया है?
उत्तर— भारत में वन संरक्षण और रक्षण की प्राचीन परम्परा रही है। वन हमारे देश में कुछ समुदायों के आवास भी हैं, इसलिए ये समुदाय इनके संरक्षण के लिए आज भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। भारत के कुछ क्षेत्रों में तो स्थानीय समुदाय सरकारी अधिकारियों के साथ अपने वन आवास स्थलों के संरक्षण में महत्त्वपूर्ण सहयोग प्रदान करते हैं। सरिस्का बाघ रिजर्व में राजस्थान के गाँवों के लोग वन्य जीव रक्षण अधिनियम के तहत वहाँ से खनन कार्य बन्द करवाने के लिए संघर्षरत हैं। राजस्थान के ही अलवर जिले में 5 गाँवों के लागों ने तो 1,200 हेक्टेयर वन भूमि भैरोंदेव डाकव ‘सेंक्चुरी’ घोषित कर दी जिसके अपने ही नियम कानून हैं, जो शिकार को वर्जित करते हैं तथा बाहरी लोगों की घुसपैठ से यहाँ के वन्यजीवों को बचाते हैं।
उत्तराखण्ड का प्रसिद्ध चिपको आन्दोलन कई क्षेत्रों में वन कटाई रोकने में ही सफल नहीं रहा अपितु इसने स्थानीय पौधों की जातियों की वृद्धि में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। उत्तराखण्ड टिहरी जनपद के किसानों का बीज बचाओ आन्दोलन और नवदानय ने दिखा दिया है कि रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग के बिना भी विविध फसल उत्पादन द्वारा आर्थिक रूप से व्यवहार्य कृषि उत्पादन सम्भव है।
भारत में संयुक्त वन प्रबन्धन कार्यक्रम ने भी वनों के प्रबन्धन और पुनर्निर्माण में स्थानीय समुदाय की भूमिका को उजागर किया है। औपचारिक रूप से इन कार्यक्रमों का आरम्भ 1988 में उड़ीसा (ओडिशा) से हुआ था । यहाँ ग्रामस्तर पर इस कार्यक्रम को सफल बनाने के उद्देश्य से संस्थाएँ बनाई गईं जिसमें ग्रामीण और वन विभाग के अधिकारी संयुक्त रूप से कार्य करते हैं।
(ii) वन और वन्य जीव संरक्षण में सहयोगी रीति-रिवाजों पर एक निबन्ध लिखिए।
उत्तर – भारत में प्रकृति एवं उसके तत्त्वों के प्रति आस्था – पूजा सदियों पुरानी परम्परा रही है। शायद इन्हीं विश्वासों के कारण विभिन्न वनों को मूल एवं कौमार्य रूप में आज भी बचाकर रखा है, जिन्हें पवित्र पेड़ों के झुरमुट या देवी-देवताओं के वन कहते हैं।
भारतीय समाज में विभिन्न संस्कृतियाँ हैं और प्रत्येक संस्कृति में प्रकृति और इसकी कृतियों को संरक्षित करने के अपने-अपने पारम्परिक तरीके हैं। आमतौर पर झरनों, पहाड़ी चोटियों, पेड़ों और पशुओं को पवित्र समझकर उनके सम्मान और संरक्षण के लिए एक रिवाज बना दिया गया है। कुछ समाज कुछ विशेष पेड़, जैसे पीपल, बरगद, महुआ, बेल आदि की पूजा करते हैं तुलसा और पीपल के वृक्ष देव-निवास समझे जाते हैं। विभिन्न धार्मिक आयोजनों में इनका विभिन्न रूपों में उपयोग किया जाता है। छोटा नागपुर क्षेत्र में मुंडा और संथाल जनजातियाँ महुआ और कदम्ब के पेड़ों की पूजा करते हैं। उड़ीसा और बिहार की जनजातियाँ शादी के समय इमली और आम के पेड़ की पूजा करती हैं। इसी प्रकार गाय, बन्दर, लंगूर, आदि की लोग उपासना करते हैं। राजस्थान में विश्नोई गाँवों के आस-पास काले हिरण, चिंकारा, नीलगाय और मोरों के झुण्ड हैं जो वहाँ का अभिन्न अंग हैं यहाँ इनको कोई नुकसान नहीं पहुँचता तथा इनका संरक्षण किया जाता है। अतः हिन्दू एवं विभिन्न जातीय समुदायों द्वारा ऐसी अनेक धार्मिक परम्पराएँ हैं जिनके द्वारा वन और वन्य जीव संरक्षण में रीति-रिवाज सहयोग प्रदान करते हैं।
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – प्रशासनिक आधार पर वन कितने प्रकार के होते हैं ? वर्णन कीजिए।
उत्तर- प्रशासनिक आधार पर वनों के प्रकार
भारत की धरातलीय संरचना, जलवायविक विभिन्नताओं और मृदा में असमानता के कारण प्राकृतिक वनस्पति में भी भिन्नता पायी जाती है। प्राकृतिक वनस्पति के अन्तर्गत उष्णकटिबन्धीय वर्षा वन, उष्णकटिबन्धीय पर्णपाती वन, उष्णकटिबन्धीय कँटीले वन और झाड़ियाँ, शीतोष्ण कटिबन्धीय वन, अल्पाइन और टुण्ड्रा वनस्पति पायी जाती है। विभिन्न भौगोलिक कारक प्राकृतिक वनस्पति की जातियों, उनकी प्रकृति और उनके वितरण को निर्धारित करते हैं। प्रशासनिक उद्देश्यों के आधार पर भी वनों का विभाजन किया जाता है। इन्हें तीन वर्गों में बाँटा जाता है—
(1) आरक्षित वन
(2) संरक्षित वन
(3) अवर्गीकृत वन।
1. आरक्षित वन–वे वन हैं जो इमारती लकड़ी अथवा वन उत्पादों को प्राप्त करने के लिए स्थायी रूप से सुरक्षित कर लिए गए हैं और इनमें पशुओं को चराने तथा खेती करने की अनुमति नहीं दी जाती है ।
2. संरक्षित वन-वे वन हैं, जिनमें पशुओं को चराने व खेती करने की अनुमति कुछ विशिष्ट प्रतिबन्धों के साथ प्रदान की जाती है।
3. अवर्गीकृत वन–वे वन हैं जो अधिकांशतः दुर्गम हैं। अत्यधिक ऊँचाई एवं सघनता के कारण इन वनों में प्रवेश करना बड़ा ही कठिन होता है। इसी कारण इन वनों को अवर्गीकृत श्रेणी में रखा गया है।
‘वनों को सघनता के आधार पर भी विभाजित किया जाता है जो सघन वन, खुले वन तथा मैंग्रोव वन के नाम से विभाजित किया जाता है।
प्रश्न 2 – भारत में वानस्पतिक विविधता क्यों पायी जाती है?
उत्तर – प्राकृतिक वनस्पति राष्ट्र की अमूल्य निधि है। देश की आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक समृद्धि के लिए प्राकृतिक वनस्पति का सर्वोपरि स्थान हैं। भारत की प्राकृतिक वनस्पति पर धरातलीय संरचना, जलवायु आदि का प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। भारत में अपनी विशालता के कारण देश के उच्चावच, जलवायु, वार्षिक वर्षा की मात्रा और मृदा संरचना में पर्याप्त भिन्नता और विविधता पायी जाती है। वनस्पति की विविधता भी उपर्युक्त तथ्यों में ही छिपी है। इन तथ्यों का प्रत्यक्ष प्रभाव वनस्पति-जगत पर पड़ता है। भारत मानसूनी जलवायु वाला देश है, जहाँ वर्षा ग्रीष्म ऋतु होती है। अतः यहाँ सदाबहार वनों के स्थान पर मानसूनी अथवा पर्णपाती वन उगते हैं। अधिकांश भागों में 100 से 200 सेमी के मध्य वर्षा होती है जिस कारण ग्रीष्मकाल की शुष्कता सहन करने के लिए वसन्त ऋतु में वृक्ष अपनी पत्तियाँ गिरा देते हैं। इन वनों में घास केवल वर्षा ऋतु में उगती है जो बाद में सूख जाती है। हिमालय पर्वतीय प्रदेश में ऊँचाई एवं वर्षा की मात्रा के आधार पर सदाबहार वनस्पति से लेकर टुण्ड्रा वनस्पति तक उगती है । 200 सेमी से अधिक वर्षा वाले हिमालय पर्वतीय क्षेत्रों तथा पश्चिमी घाट पर सदाबहार वन उगते हैं । थार के मरुस्थल में 25 सेमी से भी कम वार्षिक वर्षा के कारण कँटीली झाड़ियों एवं कैक्टस के रूप में प्राकृतिक वनस्पति उगती है।
इस प्रकार भारत में छोटी-छोटी झाड़ियों से लेकर सघन वन और ध्रुवीय ( टुण्ड्रा ) वनस्पति से लेकर उष्ण कटिबन्धीय वनस्पति तक उगती है।
प्रश्न 3 – वन्य जीवों के संरक्षण के लिए भारत में क्या प्रयास किए गए हैं?
उत्तर – विश्व परिदृश्य में भारत में वन्य जीवों का विनाश सतत रूप से किया जा रहा है। इसके लिए प्राकृतिक एवं मानवीय दोनों प्रकार के कारक उत्तरदायी हैं। अनेक प्रजातियाँ पूर्णरूप से विलुप्त हो चुकी हैं। इस विलुप्तता पर मानवीय कारकों का सर्वाधिक प्रभाव रहा है। तीव्र औद्योगीकरण, वनों का भारी विनाश, प्राकृतिक संसाधनों का अविवेकपूर्ण दोहन, प्राकृतिक स्थल विनाश ने वन्य जीवों के प्राकृतिक आवासों को सिकोड़ दिया है, जिसके परिणामस्वरूप अनेक प्रजातियाँ संकटग्रस्त हैं।
भारत में वन्य जीवों को संरक्षण प्रदान करने के लिए विशेष प्रयास किए जा रहे हैं। संकटापन्न प्रजातियों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। इस विषय में नवीनतम स्थिति तथा प्रवृत्तियों की जानकारी के लिए पशु-पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों की गणना की जाती है। भारतीय वन्य प्राणी बोर्ड द्वारा 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर परियोजना आरम्भ की गई है। ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ विश्व की बेहतरीन वन्य जीव परियोजनाओं में से एक है। बाघ संरक्षण मात्र एक संकटग्रस्त जाति को बचाने का प्रयास नहीं है, अपितु इसका उद्देश्य बहुत बड़े आकार के जैवजाति को भी बचाना है। उत्तराखण्ड में कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान, पश्चिम बंगाल में सुन्दरबन राष्ट्रीय उद्यान, मध्य प्रदेश में बाँधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान, राजस्थान में सरिस्का वन्य जीव पशुविहार (Sanctuary), असम में मानस बाघ रिजर्व (Reserve ) और केरल में पेरियार रिजर्व (Reserve ) भारत में बाघ संरक्षण परियोजनाओं के उदाहरण हैं। वन्य जीव संरक्षण की दिशा में अन्य प्रयासों के अन्तर्गत राष्ट्रीय उद्यान और अभयारण्यों की स्थापना की गई है। इसके साथ-साथ कस्तूरी मृग, हांगुल (मृग की एक प्रजाति), थामिन (मृग), गिरिसिंह, हाथी, रायनो (गैंडा) आदि के संरक्षण की परियोजनाएँ भी आरम्भ की गई हैं। इस प्रकार वन्य जीवों के संरक्षण में इन परियोजनाओं तथा आन्दोलनों के प्रयासों से उत्साहजनक परिणाम सामने आए हैं तथा कई ऐसी प्रजातियों को संरक्षित किया गया है, जो विनाश के कगार पर थीं। वन्य जीवों के संरक्षण के लिए मानव का जागरूक होना आवश्यक है।
प्रश्न 4 – वन संरक्षण का अर्थ बताइए तथा इसके संरक्षण की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर- वन संरक्षण
वन संरक्षण का अर्थ है— वनों का विवेकपूर्ण उपयोग और वन क्षेत्र वृद्धि करना। प्राचीन काल में भारत में वनों का विस्तार पर्याप्त क्षेत्रफल में था, परन्तु जनसंख्या के बढ़ते दबाव के फलस्वरूप आवास, कृषि, सड़कें, रेलमार्ग और उद्योगों की स्थापना के लिए वनों का निर्ममता से विनाश किया गया। वन क्षेत्रों का अभाव हो जाने से पर्यावरण असन्तुलन के अनेक दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं। वर्तमान में सरकार ने भी इस ओर ध्यान दिया है तथा राष्ट्रीय वन नीति, 1952 एवं संशोधित राष्ट्रीय वन ति, 1988 घोषित की है, जिसके अनुसार कुल भूमि के एक-तिहाई भाग पर वन होने चाहिए। वन महोत्सव और सामाजिक वानिकी कार्यक्रम इसी दिशा में हमारे बढ़ते कदम हैं।
वन संरक्षण की आवश्यकता
वस्तुतः वन सम्पदा हमारी अमूल्य धरोहर है, हमें इसे नष्ट नहीं करना चाहिए। हमारा कर्त्तव्य होना चाहिए कि हम इसमें वृद्धि कर आगे आने वाली पीढ़ियों को दें। वन संरक्षण की आवश्यकता के निम्नलिखित कारण महत्त्वपूर्ण हैं—
- लगभग 50 टन भार का एक सामान्य वृक्ष स्वाभाविक रूप से अपने अन्त तक पर्यावरण में ऑक्सीजन देकर, मृदा क्षरण को रोककर, प्रदूषण कम करके प्रोटीन तथा अन्य उत्पादों के माध्यम से लगभग 15 लाख 70 हजार रुपये का लाभ मानव समाज को देता है।
- वनों का अन्धाधुन्ध कटाव सभ्य समाज का अविवेकपूर्ण कृत्य है। ऐसा करके हम विनाश की ओर अग्रसर हो रहे हैं।
- वनों का शोषण बाढ़ के साथ ही सूखे और भू-क्षरण के लिए भी उत्तरदायी है। देश के लगभग 25 लाख हेक्टेयर भू-भाग का बाढ़ग्रस्त होना तथा 140 लाख हेक्टेयर भू-भाग में मृदा क्षरण की समस्या का मूल कारण वनों की अन्धाधुन्ध कटाई ही है।
- पृथ्वी के बढ़ते ताप से मौसम पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। इसी कारण देश के हिम क्षेत्रों का निरन्तर पीछे हटना और विलुप्त होना भावी संकट का संकेत है जिसके पीछे मूल कारण वनों का विनाश ही है।
- अनियन्त्रित आखेट, पन बिजली परियोजनाओं, खानों (खनिज कर्म) और खेतिहर भूमि के विस्तार के कारण जंगलों का भारी विनाश हुआ है, जिस कारण वन्य जीवों की बहुत-सी प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं।
• लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 – पारिस्थितिक तन्त्र किसे कहते हैं? वन एवं वन्य जीवों के लिए इसका क्या महत्त्व है?
उत्तर – पेड़-पौधे (वनस्पति), जीव-जन्तु, सूक्ष्म जीवाणु तथा भौतिक पर्यावरण मिलकर पारितन्त्र की रचना करते हैं। इसे ‘पारिस्थितिक तन्त्र’ (Ecosystem) भी कहते हैं। “पारिस्थितिकी जीव विज्ञान का वह भाग है जिसके द्वारा हमें जीव तथा पर्यावरण की पारस्परिक प्रतिक्रियाओं का बोध होता है।” इस प्रकार विभिन्न जीवों के पारस्परिक सम्बन्धों द्वारा पुनः उनका भौतिक पर्यावरण से सम्बन्धों का अध्ययन ‘पारिस्थितिक विज्ञान’ (Ecology) कहलाता है। जीव और उसका पर्यावरण प्रकृति के जटिल तथा गतिशील घटक हैं। पर्यावरण अनेक कारकों द्वारा निर्धारित होता है। ये कारक जीवों को प्रभावित करते रहते हैं। जीव भी अपनी वृद्धि, व्यवहार तथा जीवन-वृत्त के पारस्परिक प्रभाव से पर्यावरण को प्रभावित करते हैं। किसी क्षेत्र में रहने वाले जीव-जन्तु एवं पादप एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं, परन्तु उनमें परस्पर तथा भौतिक पर्यावरण के साथ पदार्थों एवं ऊर्जा का विनिमय होता रहता है। निरन्तर पारस्परिक क्रियाओं के कारण पारितन्त्र भी उतना ही गतिशील हो जाता है जितना कि भौतिक पर्यावरण । विभिन्न प्रकार के जीव भौतिक पर्यावरण में होने वाले किसी भी परिवर्तन के अनुसार स्वयं को ढाल लेते हैं अर्थात् वे भौतिक पर्यावरण का अपनी आवश्यकतानुसार अनुकूलन कर लेते हैं।
प्रश्न 2 – अन्तर कीजिए — वनस्पति एवं जीव ।
उत्तर – वनस्पति एवं प्राणिजात दोनों ही प्रकृति के चेतन पदार्थ हैं। इन पदार्थों में समान चेतना होते हुए भी यह दोनों एक-दूसरे से भिन्न हैं। सामान्य रूप से इन दोनों के अन्तर को निम्नलिखित रूप में स्पष्ट किया जा सकता है—
वनस्पति एवं जीव में अन्तर
क्र०सं० | वनस्पति | जीव |
1. | किसी प्रदेश में स्वतः उत्पन्न होने वाले हरित स्वरूप को वनस्पति कहते हैं। | सूक्ष्म जीवाणु से लेकर विशालकाय ह्वेल व हाथी आदि जीवों की श्रेणी में आते हैं। |
2. | प्राकृतिक वनस्पति को वन, झाड़ियों तथा घास श्रेणियों में बाँटा जाता है। | जीवों को जलचर, थलचर व नभचर श्रेणियों में बाँटा जाता है। |
3. | पौधों को दो वर्गों – फूल वाले व बिना फूल वाले वर्गों में रखा जाता है। | जीवों को उनके भोजन के आधार पर शाकाहारी व मांसाहारी वर्गों में रखा जाता है। |
4. | पौधों की लगभग 5,000 जातियाँ ऐसी हैं जो भारत में पायी जाती हैं। | जीवों की भारत में 75,000 जातियाँ मिलती हैं। |
5. | वनस्पति स्थैतिक पदार्थ है। | जीव गतिशील माने जाते हैं। |
प्रश्न 3 – अन्तर कीजिए – विलुप्त और संकटग्रस्त प्रजातियाँ
उत्तर- विलुप्त और संकटग्रस्त प्रजातियों में अन्तर
क्र०सं० | विलुप्त प्रजातियाँ | संकटग्रस्त प्रजातियाँ |
1. | वे प्रजातियाँ, जो पूर्णतः समाप्त हो गई हैं अथवा दिखाई नहीं देतीं, विलुप्त प्रजातियाँ कहलाती हैं। | वे प्रजातियाँ, जो अभी समाप्त नहीं हुई हैं परन्तु समाप्त होने की स्थिति में पहुँच गई हैं, संकटग्रस्त प्रजातियाँ कहलाती हैं। |
2. | इन प्रजातियों को अब पुनः उत्पन्न करना प्रायः सम्भव नहीं है। | इनको संरक्षण द्वारा बचाया जा सकता है तथा विशेष प्रयासों से इनमें वृद्धि सम्भव है। |
3. | इन्हें गत 6 से 10 दशकों में कहीं भी नहीं देखा गया है तथा 20 पादप प्रजातियाँ विलुप्त मान ली गई हैं। | इन्हें देखा जाता है तथा लगभग 1,300 प्रजातियाँ संकटग्रस्त हैं। |
प्रश्न 4 – ” जीव-जन्तुओं और प्राकृतिक वनस्पतियों में गहन सम्बन्ध है।” इस कथन पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर – किसी प्रदेश के जीव-जन्तुओं और प्राकृतिक वनस्पतियों में गहन सम्बन्ध होता है। प्राकृतिक वनस्पति से जीव-जन्तुओं को न केवल भोजन ही प्राप्त होता है, अपितु सुरक्षित प्राकृतिक आवास भी सुलभ होता है। वास्तव में ये जीव-जन्तु जहाँ पर भी अपना रैन बसेरा बना लेते हैं, के पारितन्त्र में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । यद्यपि जीव-जन्तु स्थान से दूसरे स्थान पर स्वतन्त्र विचरण करते हैं, परन्तु जीव-जन्तुओं प्रत्येक जाति जलवायु दशाओं में सीमित परिवर्तनों को ही सहन कर सकती है । उनकी शारीरिक संरचना, रंग-रूप, भोजन की आदतें आदि सभी प्राकृतिक पर्यावरण के अनुरूप होते हैं। पर्यावरणीय दशाओं में परिवर्तन जाने से जीव-जन्तु स्वयं को उनके अनुसार कुछ सीमा तक ढाल लेते हैं अथवा वहाँ से प्रवास कर जाते हैं। पक्षियों का मौसमी प्रवास महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। कुछ वन क्षेत्रों में तो जीव-जन्तुओं की नवीन प्रजातियाँ विकसित हो जाती हैं। उदाहरण के लिए —रेण्डियर टुण्ड्रा एवं टैगा वनस्पति का वन्य प्राणी है जो विषुवतीय सदाबहार वनस्पति के क्षेत्रों में अपना प्राकृतिक आवास निर्मित नहीं कर सकता। इसी प्रकार विषुवतीय वन प्रदेशों का स्थूलकाय प्राणी — हाथी, टुण्ड्रा एवं टैगा प्रदेशों में अपना आवास नहीं बना सकता है। ।
अतः जीव-जन्तु और प्राकृतिक वनस्पति परस्पर घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित होते हैं।
प्रश्न 5 – जीव आरक्षित क्षेत्र (बायोस्फीयर रिजर्व) किसे कहते हैं?
उत्तर- ऐसे क्षेत्र, जहाँ वन्य जीव-जन्तुओं को संरक्षण प्रदान किया जाता है। इनके क्षेत्रों के निर्धारण द्वारा जीव-जन्तुओं तथा वनस्पति की उनकी प्रजातियों को विशेष संरक्षण प्रदान करने का प्रयास किया जाता है जो दुर्लभ या संकटग्रस्त हैं। हमारे देश में जीव-जन्तुओं और जैव विविधता के संरक्षण हेतु इस प्रकार के विशेष प्रयास किए जा रहे हैं। उत्तराखण्ड में नन्दादेवी आरक्षित क्षेत्र इसी प्रकार के क्षेत्र का प्रमुख उदाहरण है।
प्रश्न 6- मनुष्य के जीवित रहने के लिए पारितन्त्र का संरक्षण क्यों आवश्यक है?
उत्तर— सभी पेड़-पौधों (वनस्पति) तथा जीव-जन्तुओं की भाँति मानव भी पारितन्त्र का एक अभिन्न अंग है। मानव की विभिन्न आवश्यकताएँ पारितन्त्र से ही पूर्ण होती हैं। बिना पारितन्त्र के मानव के अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। अतः मनुष्य के जीवित रहने के लिए पारितन्त्र का संरक्षण करना अति आवश्यक है । पारितन्त्र मनुष्य के लिए महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है जिसे निम्नलिखित तथ्यों द्वारा समझा जा सकता है-
- मानव अपनी प्राथमिक आवश्यकताओं- भोजन, वस्त्र तथा आवास के लिए पारितन्त्र पर ही निर्भर करता है।
- पारितन्त्र के प्रमुख घटक पेड़-पौधे और जीव-जन्तु हैं जो मनुष्य से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं।
- मानव की अन्य गौण आवश्यकताएँ भी पारितन्त्र द्वारा ही पूर्ण की जाती हैं।
- अनेक ऊर्जा संसाधनों की प्राप्ति पारितन्त्र से ही होती है जो मनुष्य तथा उसके विभिन्न क्रियाकलापों के लिए अति आवश्यक है।
• अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 – यव (Yew) क्या है? इसकी उपयोगिता बताइए ।
उत्तर – यव एक औषधीय पौधा है। यह चीड़ की प्रकार का सदाबहार वृक्ष होता है। यव हिमालय पर हिमाचल प्रदेश एवं अरुणाचल प्रदेश के कई क्षेत्रों में पाया जाता है। इस पेड़ की छाल, पत्तियों, टहनियों और जड़ों से टकसोल (Taxol) नामक रसायन निकाला जाता है जिसका उपयोग कैंसर रोगों के उपचार में किया जाता है। इसके अत्यधिक दोहन से अब यह पेड़ दुर्लभ हो गया है। वहाँ एक की उनके हो
प्रश्न 2 – एशियाई चीते की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर – दुनिया का सबसे तेज स्तनपायी प्राणी चीता बिल्ली परिवार का विशिष्ट सदस्य है जो 112 किमी प्रतिघण्टा की गति से दौड़ता है। 20वीं शताब्दी से पहले चीते अफ्रीका और एशिया में दूर-दूर तक फैले हुए थे। परन्तु अब ये लगभग लुप्त हो चुके हैं।
प्रश्न 3 – भारत में जैव विविधता का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर – भारत जैव विविधता में विश्व का समृद्ध देश है। यहाँ लगभग 81,000 वन्य जीव उपजातियाँ और लगभग 47,000 वनस्पति उपजातियाँ पायी जाती हैं। वनस्पति उपजातियों में से 15,000 उपजातियाँ ऐसी हैं जो भारतीय मूल की हैं।
प्रश्न 4 – भारत में जैव विलुप्तता के विषय में संक्षेप में लिखिए।
उत्तर – भारत में जैव विविधता विलुप्तता की ओर अग्रसर है। देश में बड़े प्राणियों में से स्तनधारियों की 79, पक्षियों की 44, सरीसृपों की 15 तथा जलस्थल चरों की 3 जातियों के विलुप्त होने का खतरा है।
एक अनुमान के अनुसार देश के आधे से अधिक प्राकृतिक वन समाप्त चुके हैं तथा 40 प्रतिशत मैंग्रोव क्षेत्र लुप्त होने से हजारों वनस्पति एवं वन्य जीव जातियाँ लुप्त होने के कगार पर हैं।
प्रश्न 5 – संकटग्रस्त प्रजातियों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर – जैव विविधता (पादप एवं प्राणी) की ऐसी प्रजातियाँ जिनके समाप्त होने की सम्भावनाएँ अधिक प्रबल हो गई हैं तथा जो लगातार कम रही हैं, संकटग्रस्त प्रजाति कहलाती हैं।
प्रश्न 6 – विलुप्त प्रजातियाँ क्या हैं?
उत्तर – जैव विविधता की वे प्रजातियाँ जो दिखाई नहीं देती हैं तथा जिनको समाप्त हुआ मान लिया गया है, विलुप्त प्रजातियाँ कहलाती हैं।
प्रश्न 7 – जीव आरक्षण क्षेत्र क्या है?
उत्तर – जीव आरक्षण क्षेत्र एक विशाल जंगल क्षेत्र है। इस क्षेत्र में अपने देश की जैव विविधता को सुरक्षित व संरक्षित रखने का प्रयास किया जाता है। ऐसे क्षेत्रों में विभिन्न जीव-जन्तुओं एवं वनस्पति को उनके प्राकृतिक रूप में रखने का प्रयास किया जाता है।
प्रश्न 8 – भारत में जंगली जीवों के लिए पाँच प्रमुख आरक्षित क्षेत्र कौन-से हैं?
उत्तर – भारत में जंगली जीवों के लिए पाँच प्रमुख आरक्षित क्षेत्र- नीलगिरि, नन्दादेवी, नोकरेक, अण्डमान निकोबार तथा कंचनजंघा हैं।
प्रश्न 9 – नीलगिरि आरक्षित क्षेत्र का विस्तार किन राज्यों में है ?
उत्तर— नीलगिरि आरक्षित क्षेत्र कर्नाटक, तमिलनाडु तथा केरल राज्यों में है।
प्रश्न 10 – जैव विविधता से क्या आशय है?
उत्तर – पेड़-पौधों एवं प्राणि-जगत में जो विभिन्न प्रकार की प्रजातियाँ मिलती हैं, जैव विविधता कहलाती हैं। यह प्रकृति की धरोहर है इसका संरक्षण और सुरक्षा प्रत्येक नागरिक का दायित्व है।
प्रश्न 11 – सुरक्षित वन क्या हैं?
अथवा आरक्षित वन क्या हैं? इस वर्ग के अन्तर्गत कुल वन क्षेत्र का कितने प्रतिशत भाग शामिल है?
उत्तर – सुरक्षित वन वे वन हैं जो इमारती लकड़ी अथवा वन उत्पादों को प्राप्त करने के लिए स्थायी रूप से सुरक्षित कर लिए गए हैं और इनमें पशुओं को चराने एवं खेती करने की अनुमति नहीं दी जाती है।
प्रश्न 12 – वृक्षारोपण पारिस्थितिक सन्तुलन बनाए रखने में किस प्रकार सहायक है ?
उत्तर- वृक्षारोपण पारिस्थितिक सन्तुलन बनाए रखने में निम्नलिखित रूप में सहायक है-
(1) मृदा अपरदन की रोकथाम, तथा
(2) जैविक सन्तुलन एवं वन्य प्राणियों के संरक्षण में सहायक ।
प्रश्न 13 – ” भारत में वन्य जीवन का संरक्षण आवश्यक है।” दो कारण दीजिए।
उत्तर — भारत में वन्य जीवन संरक्षण के दो कारण निम्नलिखित
(1) देश में कई वन्य जीव विलुप्त होने के कगार पर हैं। यदि समय रहते उनका संरक्षण नहीं किया गया तो डायनासोर की भाँति हम केवल उनका नाम ही सुन सकेंगे।
(2) वन्य जीव पारिस्थितिक तन्त्र को सन्तुलित बनाए रखने में सहायक होते हैं।
प्रश्न 14 – भारत में प्राकृतिक वनस्पति की भिन्नता के क्या कारण हैं?
उत्तर- भारत में उच्चावच, जलवायु तथा मिट्टियों में पर्याप्त विभिन्नता पाए जाने के कारण प्राकृतिक वनस्पति में भी भिन्नता पायी जाती है। अत: देश में कँटीली झाड़ियों से लेकर सदाबहार वृक्ष तथा विषुवतीय वनस्पति से लेकर टुण्ड्रा वनस्पति तक मिलती है।
प्रश्न 15 – भारत के राष्ट्रीय पशु और राष्ट्रीय पक्षी का नाम बताइए ।
उत्तर- 1. राष्ट्रीय पशु – बाघ (टाइगर) ।
2. राष्ट्रीय पक्षी – मोर ।
प्रश्न 16 – उत्तराखण्ड राज्य के पशु एवं पक्षी का क्या नाम है?
उत्तर— (1) राज्य पशु — कस्तूरी मृग ।
(2) राज्य पक्षी – मोनाल (फीजेण्ट ) ।
• बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1 – चिपको आन्दोलन का सम्बन्ध निम्नलिखित में से किस राज्य से है-
(अ) हरियाणा
(ब) उत्तराखण्ड
(स) उत्तर प्रदेश
(द) इन सभी राज्यों से
उत्तर- (ब) उत्तराखण्ड ।
प्रश्न 2 – सरिस्का बाघ रिजर्व किस राज्य में स्थित है-
(अ) राजस्थान
(ब) गुजरात
(स) अरुणाचल प्रदेश
(द) हिमाचल प्रदेश
उत्तर- (अ) राजस्थान ।
प्रश्न 3 – वन्य जीव अधिनियम निम्नलिखित में से किस वर्ष लागू किया गया-
(अ) 1972
(ब) 1970
(स) 1980
(द) 1981.
उत्तर- (अ) 1972.
प्रश्न 4 – भारत में संकटग्रस्त पादप जाति में सम्मिलित है-
(अ) आम
(ब) सागौन
(स) शीशम
(द) चन्दन।
उत्तर- (द) चन्दन।
प्रश्न 5 – जैव विविधता के कृत्रिम आवासीय संरक्षण का उदाहरण है—
(अ) अभ्यारण्य
(ब) राष्ट्रीय उद्यान
(स) जीवमण्डलकोश
(द) चिड़ियाघर
उत्तर- (अ) अभ्यारण्य ।