UK Board 10th Class Social Science – (राजनीति विज्ञान) – Chapter 1 सत्ता की साझेदारी
UK Board 10th Class Social Science – (राजनीति विज्ञान) – Chapter 1 सत्ता की साझेदारी
UK Board Solutions for Class 10th Social Science – सामाजिक विज्ञान – (राजनीति विज्ञान) – Chapter 1 सत्ता की साझेदारी
पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – आधुनिक लोकतान्त्रिक व्यवस्थाओं में सत्ता की साझेदारी के अलग-अलग तरीके क्या हैं? इनमें से प्रत्येक का एक उदाहरण भी दें।
उत्तर- आधुनिक लोकतान्त्रिक व्यवस्थाओं में सत्ता की साझेदारी
आधुनिक लोकतान्त्रिक व्यवस्थाओं में सत्ता की साझेदारी के प्रमुख रूप निम्नलिखित हैं-
- शासन के तीनों अंगों द्वारा सत्ता की साझेदारी – सामान्यतया शासन के तीन अंग होते हैं— (i) कार्यपालिका, (ii) विधायिका तथा (iii) न्यायपालिका। शासन के इन तीनों अंगों में सत्ता की साझेदारी होती है । इन तीनों अंगों के अपने-अपने अधिकार तथा उत्तरदायित्व हैं। कार्यों एवं सत्ता के विभाजन से लोकतन्त्र का सफल संचालन सम्भव हो जाता है।
- जातीय ( नस्लीय) अथवा भाषायी समूहों में सत्ता की साझेदारी – लोकतान्त्रिक व्यवस्था में सत्ता की साझेदारी में जातीय अथवा भाषायी समूहों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। भारत में जब प्रधानमन्त्री केन्द्र स्तर पर तथा मुख्यमन्त्री राज्य स्तर पर मन्त्रिमण्डल का निर्माण करता है तो वह राष्ट्र के सभी धर्मों, वर्गों, जातियों, भाषाओं तथा लिंगों को अपने मन्त्रिमण्डल में प्रतिनिधित्व प्रदान करता है।
- जन-सामान्य की सत्ता में साझेदारी – अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र में यद्यपि सामान्य जनता अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से शासन की गतिविधियों में भाग लेती है परन्तु स्विट्जरलैण्ड जैसे अनेक राष्ट्रों में जनमत संग्रह, लोकनिर्णय, आरम्भक तथा री कॉल जैसी प्रक्रियाओं को अपनाकर जनता ने प्रत्यक्ष रूप से भी शासन सत्ता में अपनी साझेदारी सुनिश्चित कर ली है। लोकतन्त्र में राजनीतिक शक्ति का स्रोत जनता होती है । नीतियों तथा निर्णयों के निर्माण एवं कार्यान्वयन में जनता की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
- विभिन्न राजनीतिक दलों, दबाव अथवा हित समूहों में सत्ता की साझेदारी – सरकार के निर्माण में राजनीतिक दलों तथा दबाव समूहों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। राजनीतिक दलों द्वारा राजनीतिक शक्ति तथा सत्ता को नियोजित किया जाता है जिससे लोककल्याणकारी कार्यों में वृद्धि हो सके। लोकतन्त्र में सत्ताधारी दल द्वारा शासन के विभिन्न स्तरों पर सत्ता का भोग किया जाता है। लोकतन्त्र में जहाँ सत्ताधारी दल की विशिष्ट स्थिति व भूमिका होती है, वहाँ विरोधी दल को भी सत्ता में भागीदारी के विभिन्न अवसर प्रदान किए जाते हैं। जब एक दल को स्पष्ट बहुत प्राप्त नहीं होता, तब विभिन्न बलों की मिली-जुली (गठबन्धन) सरकार का निर्माण किया जाता है। दबाव अथवा हित समूहों द्वारा आन्दोलनों, प्रदर्शनों, सत्याग्रहों तथा हड़तालों द्वारा अपने हितों की पूर्ति की जाती है। ये अपनी माँगों को मनवाने के लिए शासन पर निरन्तर दबाव बनाए रखते हैं।
प्रश्न 2 – भारतीय सन्दर्भ में सत्ता की हिस्सेदारी को एक उदाहरण देते हुए इसका एक युक्तिपरक तथा एक नैतिक कारण बताएँ ।
उत्तर— विद्वानों ने सत्ता की हिस्सेदारी के सन्दर्भ में प्रमुख रूप से दो कारकों—युक्तिपरक कारक तथा नैतिक कारक की विवेचना की है। युक्तिपरक आधारित कारक शक्ति विभाजन से प्राप्त होने वाले लाभदायक परिणामों पर बल देते हैं जबकि नैतिक कारक वास्तविक शक्ति विभाजन की योग्यता पर बल देते हैं। इन कारकों की निम्न प्रकार से विवेचना की जा सकती है-
(I) युक्तिपरक कारक –
- भारत में धर्म, जाति, वर्ग, भाषा, क्षेत्र तथा लिंग के आधार पर विविधताएँ देखने को मिलती हैं। भाषा, धर्म, सम्प्रदाय तथा जाति ‘आधार पर अनेक प्रकार के समूहों का निर्माण होता है । भारत में इन समूहों की सत्ता में हिस्सेदारी इसलिए लाभदायक है क्योंकि ये सामाजिक स्तर पर पारस्परिक संघर्ष तथा विभिन्न सामाजिक समूहों में सम्भावित संघर्षों की सम्भावना को कम करने में सहायक सिद्ध होते हैं।
- सामाजिक संकाय हिंसा तथा संघर्ष की भावना को प्रेरित करते हैं, परिणामस्वरूप राष्ट्र में राजनीतिक अस्थिरता में वृद्धि होती है। सत्ता में सहभागिता राष्ट्र में एकता का संचार करती है तथा राजनीतिक स्थिरता को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती है।
- लोकतन्त्र में अल्पसंख्यकों की भावनाओं तथा इच्छाओं का सम्मान करना परमावश्यक है। यदि बहुसंख्यक वर्ग अपने विचारों को अल्पसंख्यकों पर बलपूर्वक थोपने का प्रयास करेगा तो राजकीय एकता तथा अखण्डता पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। अतः अल्पसंख्यकों की सत्ता में भागीदारी राष्ट्रीय एकता तथा अखण्डता को बनाए रखने में सहायक हो सकती है।
- यदि बहुसंख्यक समुदाय स्वेच्छाचारितापूर्ण तरीके से निर्णय लेता है तो यह अल्पसंख्यकों के हितों के विरुद्ध होने के साथ बहुसंख्यक वर्ग के लिए भी विनाशकारी हो सकता है। यदि संविधान निर्माण के समय भारत में हिन्दी भाषा को सभी भारतवासियों पर उनकी इच्छा के विपरीत थोप दिया जाता तथा अंग्रेजी भाषा को सह- सरकारी भाषा के रूप में नहीं अपनाया जाता अथवा तीन भाषायी सूत्र को विद्यालयों में लागू नहीं किया जाता तो . सम्पूर्ण देश में परस्पर घृणा, असहयोग तथा हिंसात्मक आन्दोलन का प्रादुर्भाव हो सकता था जिससे क्षेत्रवाद जैसी संकीर्ण मनोवृत्तियों में और भी वृद्धि हो सकती थी। संविधान निर्माताओं के दूरदर्शितापूर्ण निर्णय ने राष्ट्रीय एकता तथा अखण्डता की रक्षा की। वर्तमान में प्रत्येक क्षेत्र तथा प्रान्त व्यक्ति स्वेच्छा से हिन्दी, अंग्रेजी तथा अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के साथ-साथ वैश्वीकरण के इस युग में इस बात की आवश्यकता है। यूरोपीय भाषाओं को भी सीखने का प्रयास कर रहे हैं। उदारीकरण तथा
(II) नैतिक कारक –
लोकतन्त्र आदर्श रूप में एक नैतिक अवधारणा है। यह सहमति का शासन है। यह इस तथ्य पर आधारित है कोई भी व्यक्ति अपने विचारों तथा निर्णयों को बलपूर्वक किसी के ऊपर थोप नहीं सकता। लोकतन्त्र बिना किसी भेदभाव के सभी वर्गों की सत्ता में सहभागिता को मान्यता प्रदान करता है। यह समानता, स्वतन्त्रता, भ्रातृत्व तथा न्याय जैसे सिद्धान्तों पर आधारित है। लोकतन्त्र की आत्मा सत्ता एवं शक्ति के विभाजन तथा भागीदार में निहित है। लोकतान्त्रिक शासन पद्धति में सत्तारूढ़ व्यक्तियों के निर्णयों तथा कार्यों से सामान्य जनता भी प्रभावित होती है। अतः लोकतन्त्र इस बात पर बल देता है कि सत्तारूढ़ व्यक्ति सामान्य जनता से यह राय अवश्य ले कि वे किस प्रकार से शासित होना चाहती है। लोकतान्त्रिक सरकार सामान्यतया संवैधानिक सरकार होती है। वह जनता के अधिकारों तथा स्वतन्त्रताओं का सम्मान करती है। सरकार यह जानने का प्रयास करती है कि जनता कैसे कानून व्यवस्था तथा नीतियों का निर्माण कराना चाहती है जिससे लोकतन्त्र उदारवादी, जनकल्याणकारी तथा जनमत के अनुरूप हो। शासन इस प्रकार के कानूनों का निर्माण नहीं कर सकता जो जनता की धार्मिक मान्यताओं, विश्वासों, संस्कारों, मूल्यों तथा अच्छी परम्पराओं के विपरीत हों। अतः समाज में अनैतिक गतिविधियों; जैसे—देह-व्यापार, तस्करी, जमाखोरी, आतंकवाद, अपराधीकरण को समाप्त करने सम्बन्धी कानूनों के निर्माण का स्वागत किया जाता है।
प्रश्न 3 – इस अध्याय को पढ़ने के बाद तीन छात्रों ने अलग-अलग निष्कर्ष निकाले। आप इनमें से किससे सहमत हैं और क्यों? अपना उत्तर लगभग 50 शब्दों में दें-
थम्मन- जिन समाजों में क्षेत्रीय, भाषायी तथा जातीय आधार पर विभाजन हो, सिर्फ वहीं सत्ता की साझेदारी जरूरी है।
मथाई- सत्ता की साझेदारी सिर्फ ऐसे बड़े देशों के लिए उपयुक्त है, जहाँ क्षेत्रीय विभाजन मौजूद होते हैं।
औसेफ- हर समाज में सत्ता की साझेदारी की जरूरत होती है, भले ही वह छोटा हो या उसमें सामाजिक विभाजन न हो।
उत्तर – उपर्युक्त तीनों विद्यार्थियों के विचारों का विश्लेषण करने के उपरान्त हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि औसेफ का विचार उचित है। हम औसेफ के विचार से सहमत हैं, क्योंकि-
- औसेफ का यह विचार तर्कसंगत है कि प्रत्येक समाज में सत्ता की साझेदारी होनी आवश्यक है। यह सर्वमान्य तथ्य है कि सभी प्रकार के समाजों में चाहे उसका स्वरूप कैसा भी हो, विविधताएँ देखने को मिलती हैं। अतः विविधतापूर्ण समाज में सत्ता की साझेदारी अत्यावश्यक है ।
- यदि देश का सामाजिक स्वरूप विभिन्नताओं वाला हो तथा आकार बड़ा हो तो वहाँ सत्ता की सहभागिता और भी आवश्यक है क्योंकि बड़े आकार में क्षेत्र तथा जनसंख्या अधिक होती है । वहाँ धार्मिक, भाषायी तथा सांस्कृतिकं विभिन्नताएँ अधिक होती हैं।
- यदि देश का आकार छोटा है तो भी उसमें शक्ति की भागीदारी की आवश्यकता धर्म, जाति, भाषा तथा सरकारी संरचना के अनुरूप होती है।
- हर बड़े देश के रूप में भारत तथा अमेरिका का उदाहरण दिया जा सकता है तथा छोटे देश के रूप में बेल्जियम तथा श्रीलंका का उदाहरण दे सकते हैं। इन सभी राज्यों में शक्ति का विभाजन संविधान द्वारा, राजनीतिक ढाँचे द्वारा तथा विभिन्न राजनीतिक दलों तथा समूहों द्वारा देखा तथा समझा जा सकता है।
- लोकतन्त्र में पुरुषों के साथ-साथ महिलाएँ भी राजनीतिक सत्ता में अपनी सहभागिता को सुनिश्चित करने की इच्छुक होती हैं। अतः उनको भी इसका अवसर प्रदान किया जाना चाहिए।
प्रश्न 4 – बेल्जियम में ब्रूसेल्स के निकट स्थित शहर मर्चंटेम के मेयर ने अपने यहाँ के स्कूलों में फ्रेंच बोलने पर लगी रोक को सही बताया है। उन्होंने कहा कि इससे उच्च भाषा न बोलने वाले लोगों को इस फ्लेमिश शहर के लोगों से जुड़ने में मदद मिलेगी। क्या आपको लगता है कि यह फैसला बेल्जियम की सत्ता की साझेदारी की व्यवस्था की मूल भावना से मेल खाता है? अपना उत्तर लगभग 50 शब्दों में लिखें।
उत्तर – उपर्युक्त उद्धरण का अध्ययन करने के उपरान्त हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि मर्चंटेम के मेयर द्वारा स्कूलों में फ्रेंच भाषा बोलने वाले विद्यार्थियों पर रोक लगाने की बात का समर्थन करना अनुचित प्रतीत होता है; क्योंकि-
- बेल्जियम एक बहुभाषा-भाषी देश है। इसमें प्रमुख रूप से तीन भाषायी समूह – डच, फ्रेंच तथा जर्मन निवास करते हैं। इनमें भाषा के आधार पर सबसे बड़ा समूह डच भाषा बोलने वालों का है। फ्रेंच भाषा को प्रतिबन्धित करके, डच भाषा को प्रोत्साहित करना अनुचित है क्योंकि प्रत्येक स्कूल में सभी भाषाओं के लोगों को समानता तथा सांस्कृतिक स्वतन्त्रता प्राप्त होनी चाहिए।
- डच भाषा न बोलने वाले लोगों को फ्लेमिश शहर के लोगों से जुड़ने के लिए फ्रेंच भाषा पर रोक लगाना अनुचित है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति को अपने अन्तःकरण की आवाज के अनुसार अपनी मातृभाषा को सीखने तथा उसके संरक्षण का अधिकार प्राप्त होना चाहिए। भाषा, संस्कृति का एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण तत्त्व है।
- लोकतन्त्र में स्वतन्त्रता तथा समानता पर विशेष बल दिया जाता है। मेयर द्वारा फ्रेंच भाषा पर प्रतिबन्ध लगाना नागरिकों की सांस्कृतिक स्वतन्त्रता एवं समानता का हनन करना है तथा उन्हें स्वेच्छा से मातृभाषा के पढ़ने के अधिकार से वंचित करना है।
- उसका यह विचार कि गैर डच लोगों पर उस शहर में शेष देश के साथ भावनात्मक तथा सांस्कृतिक एकता स्थापित हो जाएगी। यह विचार भी अनुचित है।
प्रश्न 5- नीचे दिए गए उद्धरण को गौर से पढ़ें तथा इसमें सत्ता की साझेदारी के जो युक्तिपरक कारण बताए गए हैं, उनमें से किसी एक का चुनाव करें।
“महात्मा गांधी के सपनों को साकार करने तथा अपने संविधान निर्माताओं की उम्मीदों को पूरा करने के लिए हमें पंचायतों को अधिकार प्रदान करने की जरूरत है। पंचायती राज ही वास्तविक लोकतन्त्र की स्थापना करता है। यह सत्ता उन लोगों के हाथों में सौंपता है जिनके हाथों में इसे होना चाहिए । भ्रष्टाचार कम करने और प्रशासनिक कुशलता को बढ़ाने का एक उपाय पंचायतों को अधिकार देना भी है। जब विकास की योजनाओं को बनाने और लागू करने में लोगों की भागीदारी होगी तो इन योजनाओं पर उनका नियन्त्रण बढ़ेगा। इससे भ्रष्ट बिचौलियों को खत्म किया जा सकेगा। इस प्रकार पंचायती राज लोकतन्त्र की नींव को मजबूत करेगा।”
उत्तर – यह उद्धरण जन सामान्य की भी राजनीतिक सत्ता में भागीदारी को सुनिश्चित करने पर बल देता है। इस व्यवस्था को लागू करने में पंचायती राज व्यवस्था की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। यह ‘प्राम स्वराज’ के स्वप्न को साकार करती है। सत्ता में सरकारों द्वारा विभिन्न स्तरों पर साझेदारी की जा सकती है।
(i) केन्द्रीय सरकार सम्पूर्ण देश की सरकार होती है जो सम्पूर्ण देश की शासन व्यवस्था का संचालन करती है।
(ii) प्रान्तीय सरकार प्रान्त स्तर पर कार्यरत होती है। भारत एक संघीय राज्य है। भारत में 28 राज्य अथवा प्रान्त हैं। इन सभी प्रान्तों में अलग-अलग सरकारें शासन संचालन करती हैं। इनका कार्य क्षेत्र प्रान्तों तक सीमित रहता है। संघीय व्यवस्था में इन दोनों स्तरों पर शक्तियों का विभाजन – केन्द्र सूची तथा राज्य सूची के माध्यम से होता है।
(iii) इन दो स्तरों के अतिरिक्त सत्ता को एक तीसरे बिन्दु पर भी विकेन्द्रीकृत किया जाता है जिसे स्थानीय स्तर की संज्ञा प्रदान की जाती है। निम्नलिखित यह विभाजन बाहरी क्षेत्रों में नगरपालिकाओं एवं नगर निगमों तथा ग्रामीण के पक्ष क्षेत्रों में पंचायतों, समितियों तथा जिला पंचायतों के माध्यम से होता है। इस प्रकार का सत्ता का विभाजन जो ऊपर से नीचे की ओर तथा निम्न स्तरों पर कार्य करने वाली सरकारों के मध्य होता है, उसे सत्ता के क्रमबद्ध विभाजन की संज्ञा प्रदान की जाती है।
महात्मा गांधी ने भारत में पंचायती राज व्यवस्था को अपनाने पर बल दिया था। उन्हीं के विचारों ‘अनुरूप संविधान में ग्रामीण (स्थानीय) स्तर पर ग्राम पंचायतों की स्थापना की गई है। पंचायती राज व्यवस्था को तीन स्तरों पर लागू किया गया है- – ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत तथा जिला पंचायत। लोकतन्त्र तभी मजबूत होगा जब ग्रामीण स्तर पर राजनीतिक सत्ता की भागीदारी को सुनिश्चित किया जाएगा। यदि भारत में ग्रामीणों के हाथ में सत्ता दी जाती है तो यह सही अर्थों में लोकतान्त्रिक परम्पराओं का विस्तार होगा क्योंकि ग्रामीण ही भारतीय लोकतन्त्र की रीढ़ हैं।
अतः आधुनिक परिवेश में यदि हम पंचायतों को अधिक सशक्त बनाएँगे तथा उनको वास्तविक सत्ता तथा शक्ति प्रदान करेंगे तो सम्पूर्ण देश से भ्रष्टाचार समाप्त हो जाएगा। जब ग्रामीण क्षेत्र के लोग विकास की योजनाओं का निर्माण स्वयं करेंगे तथा उन्हें लागू करेंगे तो प्रशासनिक विकेन्द्रीकरण को प्रोत्साहन मिलेगा तथा प्रशासनिक क्षमता में एवं कार्यकुशलता में अभूतपूर्व वृद्धि होगी । यह स्वाभाविक है कि गाँव के लोग उन योजनाओं पर अधिक नियन्त्रण रखेंगे तथा ऐसी योजनाएँ तथा कार्यक्रम बनाएँगे जो उनके जीवन में प्रत्यक्ष रूप से संचालित होंगे। इस प्रकार की व्यवस्था को व्यावहारिक रूप प्रदान करने पर शासन तथा स्थानीय लोगों के मध्य कार्यरत भ्रष्ट बिचौलियों को समाप्त किया जा सकता है। अन्त में हम यह कह सकते हैं कि पंचायती राज व्यवस्था लोकतन्त्र की नींव को सुदृढ़ करेगी।
प्रश्न 6 – सत्ता के बँटवारे के पक्ष तथा विपक्ष में कई तरह के तर्क दिए जाते हैं। इनमें से जो तर्क सत्ता के बँटवारे के पक्ष में हैं, उनकी पहचान करें तथा नीचे दिए गए कोड से अपने उत्तर का चुनाव करें।
सत्ता की साझेदारी
(क) विभिन्न समुदायों के बीच टकराव को कम करती है।
(ख) पक्षपात का अंदेशा कम करती है।
(ग) निर्णय लेने की प्रक्रिया को अटका देती है।
(घ) विविधताओं को अपने में समेट लेती है।
(ङ) अस्थिरता तथा आपसी फूट को बढ़ाती है ।
(च) सत्ता में लोगों की भागीदारी बढ़ाती है।
(छ) देश की एकता को कमजोर करती है।
(सा) | क | ख | घ | च |
(रे) | क | ग | ङ | च |
(गा) | क | ख | घ | छ |
(मा) | ख | ग | घ | छ |
उत्तर – उपर्युक्त बिन्दुओं का विश्लेषण करने के उपरान्त हम दो प्रकार की स्थिति प्राप्त करते हैं-
(I) पक्ष में : निम्नलिखित सभी बिन्दु सामान्यतया सत्ता की साझेदारी में हैं-
(क) विभिन्न समुदायों के बीच टकराव को कम करती है।
(ख) पक्षपात का अंदेशा कम करती है।
(घ) विविधताओं को अपने में समेट लेती है।
(च) सत्ता में लोगों की भागीदारी बढ़ाती है।
(II) विपक्ष में : निम्नलिखित सभी बिन्दु सामान्यतया सत्ता की साझेदारी के विपक्ष में हैं—
(ग) निर्णय लेने की प्रक्रिया को अटका देती है।
(ङ) अस्थिरता तथा आपसी फूट को बढ़ाती है।
(छ) देश की एकता को कमजोर करती है।
यदि हम पक्ष की स्थिति को ध्यान में रखते हुए कोष्ठकों पर विचार करें तो (सा) ठीक है।
अर्थात् – (सा) क ख घ च
ये कथन लोकतन्त्र में सत्ता की भागीदारी का समर्थन करते हैं।
प्रश्न 7- बेल्जियम और श्रीलंका की सत्ता में साझेदारी की व्यवस्था के बारे में निम्नलिखित बयानों पर विचार करें-
(क) बेल्जियम में डच भाषी बहुसंख्यकों ने फ्रेंच भाषी अल्पसंख्यकों पर अपना प्रभुत्व जमाने का प्रयास किया।
(ख) सरकार की नीतियों ने सिंहली भाषी बहुसंख्यकों का प्रभुत्व बनाए रखने का प्रयास किया।
(ग) अपनी संस्कृति और भाषा को बचाने तथा शिक्षा तथा रोजगार में समानता के अवसर के लिए श्रीलंका के तमिलों ने सत्ता को संघीय ढाँचे पर बाँटने की माँग की।
(घ) बेल्जियम में एकात्मक सरकार की जगह संघीय शासन व्यवस्था लाकर मुल्क को भाषा के आधार पर टूटने में बचा लिया गया।
ऊपर दिए गए बयानों में से कौन से सही हैं?
(सा) क, ख, ग और घ
(रे) क, ख और घ
(गा) ग और घ
(मा) ख, ग और घ
उत्तर- उपर्युक्त कथनों के अध्ययन के उपरान्त हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि कथन (रे) सही है क्योंकि यह कथन तीन अन्य सही कथनों क, ख तथा घ का संयुक्त रूप है। यह कथन व्यक्त करता है कि बेल्जियम तथा श्रीलंका में सत्ता में भागीदारी के विरुद्ध व्यवस्थाएँ हैं।
प्रश्न 8 – सूची 1 ( सत्ता के बँटवारे के स्वरूप ) तथा सूची 2 (शासन के स्वरूप ) में मेल कराएँ और नीचे दिए गए कोड का उपयोग करते हुए सही जवाब दें-
क्रम सं० | सूची-1 | सूची-2 |
1. | सरकार के विभिन्न अंगों के बीच सत्ता का बँटवारा | (क) सामुदायिक सरकार |
2. | विभिन्न स्तर की सरकारों के बीच अधिकारों का बँटवारा | (ख) अधिकारों का वितरण |
3. | विभिन्न सामाजिक समूहों के बीच सत्ता की साझेदारी | (ग) गठबन्धन सरकार |
4. | दो या अधिक दलों के बीच सत्ता की साझेदारी | (घ) संघीय सरकार |
1 | 2 | 3 | 4 | |
(सा) | घ | क | ख | ग |
(रे) | ख | ग | घ | क |
(गा) | ख | घ | क | ग |
(मा) | ग | घ | क | ख |
उत्तर – सूची -1 तथा सूची-2 का आपसी मिलान निम्नांकित सारणी के रूप में अभिव्यक्त किया गया है-
क्रम सं० | सूची-1 | सूची-2 |
1. | सरकार के विभिन्न अंगों के बीच सत्ता का बँटवारा | (ख) अधिकारों का वितरण |
2. | विभिन्न स्तर की सरकारों के बीच अधिकारों का बँटवारा | (घ) संघीय सरकार |
3. | विभिन्न सामाजिक समूहों के बीच सत्ता की साझेदारी | (क) सामुदायिक सरकार |
4. | दो या अधिक दलों के बीच सत्ता की साझेदारी | (ग) गठबन्धन सरकार |
उपर्युक्त सूची के आधार पर हम सही कोड का चयन आसानी से कर सकते हैं अर्थात् क्रमानुसार —ख, घ, क तथा ग का क्रम सही है।
अतः उपर्युक्त बॉक्स का सही उत्तर बिन्दु (गा) है अर्थात्
(गा) | ख | घ | क | ग |
प्रश्न 9 – सत्ता की साझेदारी के बारे में निम्नलिखित दो कथनों पर गौर करें और नीचे दिए गए कोड के आधार पर जवाब दें-
(अ) सत्ता की साझेदारी लोकतन्त्र के लिए लाभकर है।
(ब) इससे सामाजिक समूहों में टकराव का अंदेशा घटता है।
इन बयानों में कौन सही और कौन गलत है?
(क) असही है लेकिन ब गलत है।
(ख) अ और ब दोनों सही हैं।
(ग) अ’ और ब दोनों गलत हैं।
(घ) अं’ गलत है लेकिन ब सही है।
उत्तर- (ख) अ और ब दोनों सही हैं।
यह कथन इस तथ्य की ओर संकेत करता है कि (अ) तथा (ब) दोनों ही वाक्य सही हैं जो लोकतन्त्र में सत्ता में साझेदारी का समर्थन करते हैं।
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
• विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 – 73वें तथा 74वें संविधान संशोधन की स्थानीय स्तर पर लोकतन्त्र को मजबूत करने में क्या भूमिका रही है? विवेचना कीजिए ।
उत्तर – संसद ने 1993 में संविधान का 73वाँ तथा 74वाँ संशोधन किया। इन संशोधनों द्वारा स्थानीय स्वायत्त शासन संस्थाओं में ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों के व्यक्तियों की प्रभावशाली भागीदारी को सुनिश्चित करने का सार्थक प्रयास किया गया है। इन संशोधनों का राजनीतिक व्यवस्था पर व्यापक प्रभाव पड़ा है। इसे निम्नलिखित शब्दों में व्यक्त किया जा सकता है—
- इन संशोधनों ने ग्रामीण क्षेत्र में पंचायती राज व्यवस्था तथा शहरी क्षेत्र में नगरपालिकाओं तथा नगर निगमों को व्यापक अधिकार एवं शक्तियाँ प्रदान की हैं।
- पंचायती राज व्यवस्था को अब संवैधानिक स्तर प्रदान किया गया है। अब ये संस्थाएँ राज्य सरकारों की दया पर निर्भर नहीं हैं।
- इन संस्थाओं के नियत समय पर चुनाव कराने की व्यवस्था सुनिश्चित की गई है। इन संस्थाओं को अब धन केन्द्र सरकार से सीधे प्राप्त होता है।
- इन संस्थाओं को कार्यों सम्बन्धी तथा वित्त सम्बन्धी स्वायत्तता भी प्रदान की गई है।
- इन अधिनियमों के पारित होने के पश्चात् स्थानीय स्वायत्त सरकारों को संसद तथा विधानमण्डलों द्वारा मान्यता प्राप्त हो गई है।
- 73वें तथा 74वें संविधान संशोधन ने हमारे देश के लोकतन्त्र को नीचे मूल स्तर (Grass root level) तक पहुँचाया है। स्थानीय स्वायत्त सरकारों में महिलाओं के लिए एक-तिहाई स्थान आरक्षित किए गए हैं। अनुसूचित जातियों तथा अन्य पिछड़े वर्गों के लिए भी स्थान आरक्षित किए गए हैं।
- प्रत्येक पाँच वर्ष के उपरान्त अनिवार्य रूप से इन सरकारों के निर्वाचन कराए जाते हैं। यदि किसी कारणवश कोई स्थान रिक्त हो जाता है तो छह महीने की अवधि में उस स्थान के लिए चुनाव कराया जाता है। चुनाव राज्य निर्वाचन आयोग की देख-रेख में कराए जाते हैं।
- इस अधिनियम में वित्त आयोग की स्थापना को भी मान्यता प्रदान की गई है।
प्रश्न 2 – बहुसंख्यकवाद का अर्थ बताइए । श्रीलंका में गृहयुद्ध व अशान्ति का विकास क्यों हुआ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- बहुसंख्यकवाद – यह मान्यता है कि अगर कोई समुदाय बहुसंख्यक है तो वह मनचाहे ढंग से देश का शासन कर सकता है और इसके लिए वह अल्पसंख्यक समुदाय की आवश्यकताओं या इच्छाओं की अवहेलना कर सकता है।
श्रीलंका में गृहयुद्ध व अशान्ति – सन् 1948 में श्रीलंका स्वतन्त्र राष्ट्र बना। सिंहली समुदाय के नेताओं ने अपनी बहुसंख्या के बल पर शासन. पर प्रभुत्व जमाना चाहा। इस कारण लोकतान्त्रिक रूप से निर्वाचित सरकार ने सिंहली समुदाय की प्रभुता स्थापित करने के लिए अपनी बहुसंख्यक परस्ती के अन्तर्गत अनेक कदम उठाए।
सन् 1956 में एक कानून बनाया गया जिसके अन्तर्गत तमिल की उपेक्षा करके सिंहली को एकमात्र राजभाषा घोषित कर दिया गया। विश्वविद्यालयों और सरकारी सेवाओं में सिंहलियों को प्राथमिकता देने की नीति भी चली। नये संविधान में यह प्रावधान भी किया गया कि सरकार बौद्धमत को संरक्षण और बढ़ावा देगी।
एक-एक करके आए इन सरकारी निर्णयों ने श्रीलंकाई तमिलों की नाराजगी और शासन को लेकर उनमें बेगानापन बढ़ाया। उन्हें लगा कि बौद्ध धर्मावलम्बी सिंहलियों के नेतृत्व वाली सारी राजनीतिक पार्टियाँ उनकी भाषा और संस्कृति को लेकर असंवेदनशील हैं। उन्हें लगा कि संविधान और सरकार की नीतियाँ उन्हें समान राजनीतिक अधिकारों से वंचित कर रही हैं, नौकरियों और लाभ के अन्य कामों में उनके साथ भेदभाव हो रहा है और उनके हितों की अनदेखी की जा रही है। परिणाम यह हुआ कि तमिल और सिंहली समुदायों के सम्बन्ध बिगड़ते चले गए।
श्रीलंकाई तमिलों ने अपनी राजनीतिक पार्टियाँ बनाई। उन्होंने तमिल को राजभाषा बनाने, क्षेत्रीय स्वायत्तता हासिल करने तथा शिक्षा और रोजगार में समान अवसरों की माँग को लेकर संघर्ष किया। लेकिन तमिलों की आबादी वाले क्षेत्र की स्वायत्तता’ उनकी माँगों को निरन्तर नकारा गया। 1980 के दशक तक उत्तर-पूर्वी श्रीलंका में स्वतन्त्र तमिल ईलम (सरकार) बनाने की माँग को लेकर अनेक राजनीतिक संगठन बने।
श्रीलंका में दो समुदायों के बीच पारस्परिक अविश्वास ने बड़े टकराव का रूप धारण कर लिया, यह टकराव गृहयुद्ध में बदल गया । लिट्टे नेता प्रभाकरण के मारे जाने के बाद श्रीलंका की तमिल समस्या शिथिल पड़ी है। गृहयुद्ध समाप्त हो गया है।
• लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 – लोकतन्त्र की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर – लोकतन्त्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
- प्रतिनिधित्व का आधार लौकिक-लोकतन्त्र में जनता का प्रतिनिधित्व होता है। इसमें प्रतिनिधित्व का आधार दैवी न होकर लौकिक होता है।
- सार्वजनिक हितों का संरक्षक — शासन की अन्य प्रणालियों की अपेक्षा लोकतन्त्र जनता के सार्वजनिक हितों का संरक्षण करता है। इस शासन व्यवस्था में जनता स्वयं अपने हितों को अपनी सरकार के संरक्षण में दे देती है और सरकार उनकी रक्षा करती है।
- उत्तरदायित्व की भावना – लोकतन्त्र में सरकार जनता के प्रति उत्तरदायी होती है। सरकार को जनता के हितों की सुरक्षा और उसकी उन्नति सम्बन्धी अपने कर्त्तव्य का पालन आवश्यक रूप से करना होता है। यदि वह ऐसा नहीं करती है तो उसे जनता द्वारा अपदस्थ किया जा सकता है।
- लिखित संविधान – लोकतन्त्र की एक विशेषता यह है कि राज्य का संविधान लिखित होना चाहिए। यद्यपि इंग्लैण्ड में संविधान के अलिखित होने पर भी लोकतन्त्रात्मक शासन प्रणाली सफलतापूर्वक कार्य कर रही है, परन्तु यह एक अपवाद है।
- वयस्क अथवा सार्वभौमिक मताधिकार – लोकतन्त्र की यह भी एक विशेषता है कि इसमें वयस्क मताधिकार के सिद्धान्त का पालन किया जाता है। वयस्क मताधिकार का अभिप्राय यह है कि राज्य में सभी व्यक्तियों को एक निश्चित आयु प्राप्त होने पर स्वतः ही मत देने का अधिकार प्राप्त हो जाता है।
प्रश्न 2- लोकतन्त्र में औपचारिक तथा अनौपचारिक रूप से मतभेदों की अभिव्यक्ति की विधि अथवा तरीकों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
- लोकतन्त्र में औपचारिक रूप से असन्तोष की अभिव्यक्ति को संवैधानिक संस्थाओं-संसद अथवा राज्य विधानमण्डलों में अपनी असम्मति अथवा राजनीतिक मतभेदों के रूप में व्यक्त किया जा सकता है।
- अनौपचारिक रूप से लोकतन्त्र में मतभेदों की अभिव्यक्ति अनेक जनसंचार के साधनों; जैसे— रेडियो, दूरदर्शन, समाचार-पत्र, पत्रिकाओं, सिनेमा आदि द्वारा की जाती है। इसके लिए धरना, प्रदर्शनों, सभाओं तथा हड़तालों का भी सहारा लिया जाता है।
प्रश्न 3 – ” लोकतन्त्र बहुसंख्यक शासन एवं अल्पसंख्यक अधिकारों पर आधारित होता है।” क्या आप इस कथन से सहमत हैं?
उत्तर- यह कथन पूर्णत: सही है क्योंकि लोकतन्त्र बहुमत अथवा बहुसंख्यकों का शासन है। निर्वाचन के उपरान्त जिस राजनीतिक दल को विधायिका में बहुमत प्राप्त होता है, उसी दल को सरकार के निर्माण करने के लिए आमन्त्रित किया जाता है । मन्त्रिमण्डल तथा विधायिकाओं के अन्दर भी निर्णय बहुमत के आधार पर लिए जाते हैं। परन्तु इसका यह मतलब नहीं है कि अल्पसंख्यकों के अधिकारों तथा उनके हितों की उपेक्षा की जाए। लोकतन्त्र में अल्पसंख्यकों को भी अपने विचार अभिव्यक्त करने का पूरा अधिकार है तथा बहुसंख्यकों का यह दायित्व है कि वे अल्पसंख्यकों की आवाज को सुनें, उनके विचारों को उचित सम्मान दें तथा पूर्ण विचार-विमर्श के उपरान्त ही अल्पसंख्यकों के विषय में कोई निर्णय लें। अनेक बार ऐसा भी देखा गया है कि बहुसंख्यक अपने विचारों में संशोधन करके अल्पसंख्यकों की बात को सही मानकर निर्णय लेता है। वास्तव में लोकतन्त्र बहुसंख्यक शासन तथा अल्पसंख्यक अधिकारों में सामंजस्य स्थापित करता है।
प्रश्न 4 – लोकतान्त्रिक व्यवस्था में विभिन्न राजनीतिक दलों, दबाव समूहों एवं आन्दोलनों के मध्य शक्ति की भागीदारी की व्यवस्था की संक्षिप्त विवेचना कीजिए ।
उत्तर –
- लोकतान्त्रिक व्यवस्था में सरकार के तीनों अंगों के साथ-साथ विभिन्न राजनीतिक दलों, दबाव समूहों तथा आन्दोलनों के मध्य भी नियन्त्रण अथवा डाले गए प्रभावों के रूप में शक्ति में भागीदारी का अनुभव किया जा सकता है।
- लोकतन्त्र में राजनीतिक सत्ता को प्राप्त करने में विभिन्न राजनीतिक दलों में प्रतिस्पर्द्धा दिखाई देती है। राजनीतिक दल गठबन्धन करके भी चुनावों में भाग लेते हैं।
- विभिन्न हित समूह भी सरकारी समितियों में भाग लेकर अथवा निर्णय निर्माण प्रक्रिया पर प्रभाव डालकर सत्ता में भागीदारी करते हैं।
- आन्दोलनों का एकमात्र उद्देश्य अपनी विचारधारा, नीतियों, कार्यक्रमों आदि के माध्यम से सरकार के विभिन्न अंगों अथवा गैर-सरकारी दबाव समूहों को प्रभावित करना होता है। इस प्रकार वे भी अप्रत्यक्ष रूप से सत्ता में भागीदार बन जाते हैं।
प्रश्न 5 – महत्त्वपूर्ण लोकतान्त्रिक सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
उत्तर- महत्त्वपूर्ण लोकतान्त्रिक सिद्धान्त निम्नलिखित हैं-
- कानून सर्वोपरि होता है। यह कानून के शासन में विश्वास करता है।
- कानून निर्माताओं तथा निर्णयकर्त्ताओं की जनता के प्रति जवाबदेही होती है। यह उत्तरदायी शासन का समर्थन करता है।
- सभी व्यक्तियों को न्यायपालिका तथा राष्ट्र के संविधान के प्रति आस्था तथा विश्वास को बनाए रखना चाहिए ।
- स्वतन्त्रता, समानता, बन्धुत्व तथा सामाजिक न्याय की धारणाएँ लोकतान्त्रिक व्यवस्था की आत्मा है।
- लोकतन्त्र धर्मनिरपेक्षता, जनकल्याणकारी नीतियों तथा कार्यक्रमों पर विशेष बल देता है।
• अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1- लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली से क्या अभिप्राय है?
उत्तर — लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली में जनता ही सारी राजनीतिक शक्ति का स्रोत होती है। इसमें लोग स्वशासन की संस्थाओं के माध्यम से अपना शासन चलाते हैं।
प्रश्न 2 – विश्व का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश कौन-सा है ?
उत्तर – विश्व का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश भारत है।
प्रश्न 3 – वैध सरकार का अर्थ बताइए।
उत्तर— जनता द्वारा चुनी गई बहुमत वाली सरकार वैध सरकार कहलाती है।
प्रश्न 4- बहुसंख्यकवाद से क्या अभिप्राय है?
उत्तर- बहुसंख्यकवाद – यह मान्यता है कि अगर कोई समुदाय बहुसंख्यक हैं तो वह मनचाहे ढंग से देश का शासन कर सकता है और इसके लिए वह अल्पसंख्यक समुदाय की आवश्यकताओं या इच्छाओं की अवहेलना कर सकता है।
प्रश्न 5 – सरकार के कौन-से तीन अंग होते हैं?
उत्तर— सरकार के—कार्यपालिका, विधायिका तथा न्यायपालिका तीन अंग होते हैं।
प्रश्न 6 – संघात्मक सरकार में शक्तियों का विभाजन कितने स्तरों पर होता है?
उत्तर— संघात्मक सरकार में शक्तियों का विभाजन— केन्द्र तथा राज्य स्तर पर होता है।
प्रश्न 7 – गृहयुद्ध से आप क्या समझते हैं?
उत्तर – जब एक ही देश में भाषा, सम्प्रदाय, जाति (नस्ल) अथवा क्षेत्र के आधार पर निर्मित समूह आपस में हिंसात्मक संघर्ष (युद्ध) करते हैं तो उस युद्ध को गृहयुद्ध की संज्ञा प्रदान की जाती है।
प्रश्न 8 – पंचायती राज व्यवस्था कितने स्तरों पर लागू की गई है?
उत्तर – पंचायती राज व्यवस्था को तीन स्तरों— ग्राम, क्षेत्र तथा जिला स्तर पर लागू किया गया है।
प्रश्न 9 – शक्तियों के विभाजन की कौन-सी तीन सूची होती हैं?
उत्तर – शक्तियों के विभाजन की तीन सूचियाँ – संघ सूची, राज्य सूची तथा समवर्ती सूची होती हैं।
प्रश्न 10 – एथनिक ( नस्लीय ) शब्द से आप क्या समझते हैं?
उत्तर – एथनिक अथवा जातीय ( नस्लीय) एक ऐसा सामाजिक विभाजन है जिसमें प्रत्येक समूह अपनी-अपनी संस्कृति को पृथक् मानता है।
• बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1 – श्रीलंका को ब्रिटेन से स्वतन्त्रता कब प्राप्त हुई-
(अ) सन् 1947 में
(ब) सन् 1949 में
(स) सन् 1948 में
(द) सन् 1950 में।
उत्तर— (स) सन् 1948 में।
प्रश्न 2 – बेल्जियम में सबसे अधिक कौन-सी भाषा बोलने वाले लोग निवास करते हैं-
(अ) फ्रेंच
(ब) डच
(स) जर्मन
(द) अंग्रेजी।
उत्तर- (ब) डच।
प्रश्न 3- श्रीलंका में सिंहली को एकमात्र राजभाषा कब घोषित किया गया-
(अ) सन् 1950 में
(ब) सन् 1960 में
(स) सन् 1956 में
(द) सन् 1955 में।
उत्तर – ( स ) सन् 1956 में।
प्रश्न 4 – भारत में राज्यों की संख्या कितनी है-
(अ) 24
(ब) 28
(स) 22
(द) 25.
उत्तर — (ब) 281.
प्रश्न 5 – भाषायी समस्या को समाप्त करने के लिए बेल्जियम के संविधान में कितने संशोधन किए गए हैं-
(अ) 4
(ब) 5
(स) 8
(द) 7.
उत्तर – (अ) 4.