UK Board 9 Class Hindi Chapter 3 – रीढ़ की हड्डी (कृतिका)
UK Board 9 Class Hindi Chapter 3 – रीढ़ की हड्डी (कृतिका)
UK Board Solutions for Class 9th Hindi Chapter 3 – रीढ़ की हड्डी (कृतिका)
रीढ़ की हड्डी (जगदीशचन्द्र माथुर )
I. पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – रामस्वरूप और गोपालप्रसाद बात-बात पर ” एक हमारा जमाना था…” कहकर अपने समय की तुलना वर्तमान से करते हैं। इस प्रकार की तुलना करना कहाँ तक तर्कसंगत है ?
उत्तर – रामस्वरूप और गोपालप्रसाद पुरानी पीढ़ी के लोग हैं। उन्हें अपना बीता हुआ समय ही अच्छा लगता है। इसी कारण वे बात-बात पर अपने समय की तुलना वर्तमान से करते रहते हैं। उनका इस प्रकार की तुलना करना तर्कसंगत नहीं है; क्योंकि समय परिवर्तनशील है और उस परिवर्तन के साथ अपने आचार-व्यवहार में परिवर्तन अनिवार्य होता है। यदि यह परिवर्तन न होगा तो जीवन जड़ हो जाएगा; अतः इस परिवर्तन को सहज रूप से स्वीकार करना चाहिए।
प्रश्न 2 – रामस्वरूप का अपनी बेटी को उच्चशिक्षा दिलवाना और विवाह के लिए छिपाना, यह विरोधाभास उनकी किस विवशता को प्रकट करता है?
उत्तर – रामस्वरूप ने अपनी बेटी उमा को उच्चशिक्षा दिलाई, परन्तु विवाह के लिए उसे छिपाना उनकी मजबूरी है। लड़की के पिता को भावी वरपक्ष की इच्छानुसार चलना पड़ता है। गोपालप्रसाद अधिक शिक्षित कन्या नहीं चाहते थे, इसलिए रामस्वरूप को अपनी पुत्री की शिक्षा को छिपाना पड़ा। वे विवशतावश ही ऐसा करते हैं।
प्रश्न 3 – अपनी बेटी का रिश्ता तय करने के लिए रामस्वरूप उमा से जिस प्रकार के व्यवहार की अपेक्षा कर रहे हैं, वह उचित क्यों नहीं है?
उत्तर – अपनी बेटी का रिश्ता तय करने के लिए रामस्वरूप अपनी बेटी उमा से इस प्रकार के व्यवहार की अपेक्षा कर रहे थे कि वह सीधी-सादी, चुप रहनेवाली, कम पढ़ी-लिखी लगनेवाली लड़की की तरह व्यवहार करे । उनका ऐसा सोचना उचित नहीं है। लड़की कोई भेड़-बकरी या मेज- कुर्सी नहीं है। उसके भी दिल होता है। उसका उच्चशिक्षा पाना कोई अपराध नहीं है; अतः वह शिक्षित लड़की जैसा ही व्यवहार करेगी।
प्रश्न 4 – गोपालप्रसाद विवाह को ‘बिजनेस’ मानते हैं और रामस्वरूप अपनी बेटी की उच्चशिक्षा छिपाते हैं। क्या आप मानते हैं कि दोनों ही समान रूप से अपराधी हैं? अपने विचार लिखें।
उत्तर – हमारे विचार से गोपालप्रसाद और रामस्वरूप दोनों ही समान रूप से अपराधी हैं; क्योंकि गोपालप्रसाद विवाह की पवित्रता को नहीं समझते। वे इसे ‘बिजनेस’ की तरह लेते हैं और सौदा तय करने से पहले अनेक प्रकार की जाँच-पड़ताल करते हैं।
रामस्वरूप अपनी बेटी की उच्चशिक्षा को छिपाते हैं। उन्हें ऐसी जगह रिश्ते की बात चलानी ही नहीं चाहिए थी, जहाँ लड़की की शिक्षा की कद्र नहीं।
प्रश्न 5 – ” ……आपके लाड़ले बेटे की रीढ़ की हड्डी भी है या नहीं….” उमा इस कथन के माध्यम से शंकर की किन कमियों की ओर संकेत करना चाहती है?
उत्तर – शंकर एक चरित्रहीन और शारीरिक दृष्टि से कमजोर लड़का है, जो मेडिकल कॉलेज में पढ़ता है। पढ़ाई में उसका मन नहीं है, इसीलिए एक साल की पढ़ाई वह दो साल में करता है। उसे लड़कियों के होस्टल के इर्द-गिर्द घूमने पर बेइज्जत करके भगाया गया, जिससे उसकी चरित्रहीनता भी उजागर होती है। उसकी रीढ़ की हड्डी की कमजोरी को छिपाने के लिए उसके पिता उससे सीधा बैठने को कहते हैं। अन्त में उमा उसकी सारी पोल खोल देती है, जिससे पिता-पुत्र दोनों लज्जित हो जाते हैं। “….. आपके लाड़ले बेटे के रीढ़ की हड्डी भी है या नहीं…..” उमा के इस कथन के माध्यम से शंकर की चरित्रहीनता प्रकट होती है।
प्रश्न 6 – शंकर जैसे लड़के या उमा जैसी लड़की – समाज को कैसे व्यक्तित्व की जरूरत है? तर्कसहित उत्तर दीजिए ।
उत्तर – समाज को उमा जैसी लड़की की आवश्यकता है। उमा के व्यक्तित्व में साहस है। वह स्पष्टवादी है। वह समाज के तथाकथित ठेकेदारों की पोल खोलने में सक्षम है। वह शिक्षित और समझदार लड़की है।
शंकर शारीरिक रूप से अक्षम, चरित्रहीन और दब्बू युवक है। उसका व्यक्तित्व आकर्षक नहीं है। समाज को ऐसे युवकों की आवश्यकता नहीं है।
प्रश्न 7 – ‘रीढ़ की हड्डी’ शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – प्रस्तुत एकांकी में ‘रीढ़ की हड्डी’ शीर्षक को प्रतीकात्मक अर्थ में प्रयुक्त किया गया है। जिस प्रकार व्यक्ति के शरीर के गठन एवं सन्तुलन में रीढ़ की हड्डी का ही सर्वाधिक महत्त्व होता है, उसी प्रकार किसी व्यक्ति का अच्छा व्यक्तित्व एवं चरित्र भी समाज की रीढ़ की हड्डी के समान ही होता है। व्यक्तित्वहीन अथवा चरित्रहीन व्यक्ति का समाज में वही स्थान होता है, जो शारीरिक दृष्टि से बिना रीढ़वाले व्यक्ति का ।
इस एकांकी के अन्तर्गत शंकर को एक ऐसे ही पात्र के रूप में दर्शाया गया है, जिसकी रीढ़ की हड्डी तो विकारग्रस्त है ही, अपने व्यक्तित्व एवं चरित्र की दृष्टि से भी वह एक निम्नकोटि का युवक है। यह शीर्षक उसके दोषपूर्ण व्यक्तित्व एवं चरित्र को उजागर करता है और सम्पूर्ण कथावस्तु को उसी पर केन्द्रित करता है। उसकी न तो अपनी कोई विचारधारा है और न ही अपना कोई अस्तित्व। अपने जीवन सम्बन्धी प्रश्न पर स्वतन्त्र रूप से निर्णय लेने, अपनी राय को दृढ़तापूर्वक व्यक्त करने अथवा गलत बात का प्रतिरोध करने का लेशमात्र भी साहस उसमें नहीं है। वह प्रत्येक दृष्टि से अपने पिता पर ही आश्रित है। रीढ़ की हड्डी विकारग्रस्त होने के कारण वह भी कमर झुकाकर ही बैठ पाता है। इस प्रकार वह शारीरिक दृष्टि से भी विकारग्रस्त है।
इस प्रकार ‘रीढ़ की हड्डी’ एकांकी का केन्द्रबिन्दु शंकर ही है। उसकी मानसिक, शारीरिक एवं भावात्मक स्थिति को ही एकांकी के आधार पर स्पष्ट किया गया है। अन्त में उमा का यह कथन कि “घर जाकर जरा यह पता लगाइएगा कि आपके लाड़ले बेटे की रीढ़ की हड्डी भी है या नहीं” इस शीर्षक की सार्थकता को और भी स्पष्ट कर देता है।
अतः प्रस्तुत एकांकी के लिए ‘रीढ़ की हड्डी’ शीर्षक ही पूर्णत: सार्थक है।
प्रश्न 8 – कथावस्तु के आधार पर आप किसे एकांकी का मुख्य पात्र मानते हैं और क्यों?
उत्तर – कथावस्तु के आधार पर हम उमा को ‘रीढ़ की हड्डी’ एकांकी का मुख्य पात्र मानते हैं। इसका कारण यह है कि उमा के माध्यम से ही एकांकीकार अपनी बात प्रस्तुत कर रहा है। उमा द्वारा व्यक्त विचार वास्तव में लेखक के अपने ही विचार हैं। उमा अपने सशक्त व्यक्तित्व का परिचय देकर अन्य सभी पात्रों पर भारी पड़ती है। कथावस्तु का सारा आयोजन उसी के लिए होता है। उमा एकांकी की मुख्य पात्र है, अन्य पात्रों की भूमिका का ताना-बाना उसके ही चारों ओर बुना गया है।
प्रश्न 9 – एकांकी के आधार पर रामस्वरूप और गोपालप्रसाद की चारित्रिक विशेषताएँ बताइए ।
उत्तर – I. रामस्वरूप के चरित्र की विशेषताएँ
‘रीढ़ की हड्डी’ एकांकी के पात्रों में रामस्वरूप प्रमुख पुरुष पात्र है। वह उमा का पिता व प्रेमा का पति है। पुत्री के विवाह से पूर्व पिता की जो दयनीय स्थिति होती है, रामस्वरूप उसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। उसके चरित्र में निम्नलिखित विशेषताएँ विद्यमान हैं—
- उग्र स्वभाव — एकांकी के प्रारम्भ में हमें रामस्वरूप एक उम्र स्वभाववाले गृहस्वामी के रूप में दिखाई पड़ता है। नौकर के साथ घर की साज-सज्जा करते समय तख्त के इधर-उधर मोड़ने पर वह उसे फटकारता हुआ कहता है – “परमात्मा के यहाँ अक्ल बँट रही थी तो तू देर से पहुँचा था क्या?” इसी प्रकार उमा के प्रसंग में अपनी पत्नी प्रेमा को डाँटते हुए वह कहता है- ” और तुम उसकी माँ, किस मर्ज की दवा हो?”
- कन्या के पिता की विवशता -रामस्वरूप एक कन्या का पिता है, जो उसके विवाह की तैयारी बड़े यत्न से करता है। वह प्रारम्भ में ही प्रेमा को समझाते हुए कहता है- “देखो, उमा से कह देना कि जरा करीने से आए। ये लोग जरा ऐसे ही हैं ………। गुस्सा तो मुझे बहुत आता है इनके दकियानूसी खयालों पर।” वह स्वयं शंकर और उसके पिता को पसन्द नहीं करता; क्योंकि वे लोग स्वयं पढ़े-लिखे होकर भी लड़की कम पढ़ी-लिखी चाहते हैं। रामस्वरूप उमा को कम पढ़ी-लिखी बताकर ही यह रिश्ता तय करना चाहता है। अपनी विवशता बताता हुआ वह प्रेमा से कहता है-‘ -” क्या करूँ मजबूरी है। मतलब अपना है, वरना इन लड़कों और इनके बापों को ऐसी कोरी कोरी सुनाता कि ये भी…..।”
- हीनभावना से ग्रस्त — कन्या का पिता होने के कारण रामस्वरूप हीनभावना से ग्रस्त है। आज भी हमारे समाज में वर पक्ष को ऊँचा और कन्या पक्ष को निम्न समझा जाता है। इसी भावना से प्रेरित रामस्वरूप, गोपालप्रसाद के सामने अपने आपको दीन-हीन और छोटा मानता है। उनके आगमन को अपना सौभाग्य मानते हुए वह कहता है- “हम तो आपके— हँ-हैं-सेवक ही हैं – हँ-हैँ। ……. यह तो मेरी बड़ी तकदीर है कि आप मेरे यहाँ तशरीफ लाए। वरना मैं किस काबिल हूँ ।” उमा को बिना देखे ही जब वे विवाह की स्वीकृति देने लगते हैं तब रामस्वरूप कहता है- “हँ-हँ, यह तो आपका मेरे ऊपर भारी अहसान है। हँ हँ ! “
- कार्यकुशल – रामस्वरूप एक कार्यकुशल व्यक्ति है। अतिथि-सत्कार में वह अपनी पूर्ण कुशलता प्रदर्शित करता है। यहाँ तक कि उमा को दिखाने, बातचीत करने और उमा के पढ़ाई-लिखाई व चश्मे के प्रसंग में भी वह अपनी दक्षता दिखाता है। वह प्रारम्भ से अन्त तक गोपाल प्रसाद की हाँ में हाँ मिलाता है और कहीं भी उनका विरोध नहीं करता।
- निराश व्यक्ति – रामस्वरूप अपनी सारी कार्यकुशलता के बावजूद अन्त में निराश हो जाता है; क्योंकि पहले तो उमा कुछ बोली नहीं और जब बोली तो उसने गोपालप्रसाद व उनके पुत्र का भरसक विरोध किया, जिससे गोपालप्रसाद लज्जित होते हैं। रामस्वरूप उमा को बोलने से बार-बार रोकता है, परन्तु निराश हो अन्त में कुर्सी पर धम्म से बैठ जाता है।
इस प्रकार कन्या पिता के रूप में रामस्वरूप की अहम् भूमिका रही है, जिसका निर्वाह एकांकीकार ने पूर्ण तन्मयता के साथ किया है। वास्तव में रामस्वरूप का चरित्र स्वाभाविक, सजीव एवं सामाजिक स्थिति को उजागर करनेवाला है।
II. गोपालप्रसाद के चरित्र की विशेषताएँ
वर-पक्ष की चालाकी, धूर्तता और कृत्रिमता को वाणी देने के लिए एकांकीकार जगदीशचन्द्र माथुर ने अपने ‘रीढ़ की हड्डी’ एकांकी में गोपालप्रसाद नामक पात्र की सृष्टि की है। गोपालप्रसाद एक वकील है, जो अच्छा-खासा पढ़ा-लिखा व सभा-सोसाइटियों में जानेवाला व्यक्ति है। वह शंकर का पिता है। उसके चरित्र की अग्रलिखित विशेषताएँ हैं-
- अनुभवी व्यक्ति – गोपालप्रसाद एक वकील होने के नाते पर्याप्त अनुभवी है और लोक व्यवहार में कुशल भी । एकांकीकार प्रारम्भ में ही उसका परिचय देते हुए लिखता है – ” बाबू गोपालप्रसाद और उनके लड़के शंकर का आना । आँखों से लोक चतुराई टपकती है। आवाज से मालूम होता है कि काफी अनुभवी और फितरती महाशय हैं।” अपने अनुभव के कारण ही वह स्त्री – शिक्षा का विरोध करता है।
- वाक्पटु – गोपालप्रसाद बोलने में चतुर है। पुत्र शंकर की पढ़ाई की बात छिपाता हुआ वह रामस्वरूप को अपनी बातों में उलझा लेता है। शंकर के साल खराब होने की बात वह इस प्रकार बताता है – ” बात यह है साहब कि यह शंकर एक साल बीमार हो गया था। क्या बताएँ, इन लोगों को इसी उम्र में सारी बीमारियाँ सताती हैं। एक हमारा जमाना था ……… ।” अपने जमाने की बात करके वह शंकर की पढ़ाई की बात आई-गई कर देता है।
- रूढ़िवादी – गोपालप्रसाद रूढ़िवादी है, जो पुरानी मान्यताओं का समर्थन और नई मान्यताओं का विरोध करता है। चाय के प्रसंग में वह स्पष्ट करता है— “मुझे तो भई यह नया फैशन पसन्द नहीं ।” विवाह से पहले वह जन्मपत्री मिलाने का हिमायती है। वह एक ओर ‘खूबसूरती पर टैक्स’ की बात करता है तो दूसरी ओर लड़की का खूबसूरत होना भी निहायत जरूरी समझता है।
- स्त्री-शिक्षा का विरोधी – रूढ़िवादी होने के कारण गोपालप्रसाद स्त्री की उच्चशिक्षा का विरोधी है। वह अपने बेटे के लिए कम पढ़ी-लिखी लड़की चाहता है। वह कहता है- “मेम साहब तो रखनी नहीं, कौन भुगतेगा उसके नखरों को।” बस अधिक-से-अधिक लड़की मैट्रिक पास होनी चाहिए। उसका विचार है कि पढ़ाई-लिखाई तो आदमियों का क्षेत्र है – ” अगर औरतें भी वही करने लगीं, अंग्रेजी अखबार पढ़ने लगीं और ‘पालिटिक्स’ वगैरह पर बहस करने लगीं तब तो हो चुकी गृहस्थी । “
- चालाक — गोपालप्रसाद एक चालाक व्यक्ति है, जो अपने पुत्र की सभी कमियों को छिपाता है, परन्तु उमा के विषय में पूरी छानबीन करता है। वह उमा की चाल, चेहरे, संगीत, पेण्टिंग, सिलाई और इनाम जीतने आदि की पूरी-पूरी जानकारी हासिल करता है । अन्त में उमा की पढ़ाई की सत्यता जान लेने पर पिता द्वारा बोले गए झूठ की निन्दा करता हुआ क्रोधावेश में आकर वह चला जाता है।
इस प्रकार गोपालप्रसाद का चरित्र वर के पिता के अनुरूप ही प्रस्तुत किया गया है। एकांकीकार जगदीशचन्द्र माथुर ने उसके चरित्र-निर्माण में उपर्युक्त सभी गुणों का कुशलतापूर्वक निर्वाह किया है।
प्रश्न 10 – इस एकांकी का क्या उद्देश्य है? लिखिए।
उत्तर- ‘रीढ़ की हड्डी’ एकांकी का उद्देश्य
जगदीशचन्द्र माथुर द्वारा रचित ‘रीढ़ की हड्डी’ का मुख्य उद्देश्य कन्या के विवाह की समस्या है। बाबू रामस्वरूप अपनी सुशिक्षित बी०ए० पास कन्या उमा का विवाह वकील गोपालप्रसाद के सुपुत्र शंकर से करना चाहते हैं, जो बी०एससी० करने के बाद लखनऊ मेडिकल कॉलेज में पढ़ रहा है। उसकी रीढ़ की हड्डी में कुछ दोष है, इसलिए वह झुककर चलता है। गोपालप्रसाद कम पढ़ी-लिखी, परन्तु सुन्दर लड़की चाहते हैं। रामस्वरूप जैसे-तैसे उन्हें मनाकर अपने घर लड़की देखने के लिए बुलाते हैं। वह चाहते हैं कि उमा का विवाह शंकर से हो जाए, इसलिए शंकर की ‘कमियों को अनदेखा करके और उमा को कम पढ़ी-लिखी बताकर वे अपना काम सिद्ध कर लेना चाहते हैं। लड़की का पिता होने के कारण रामस्वरूप में हीनभावना विद्यमान है। वे स्वयं को गोपालप्रसाद का सेवक और न जाने क्या- क्या कह डालते हैं। उमा की पढ़ाई-लिखाई के साथ-साथ वे उसकी आँखों पर लगे चश्मे के लिए भी आँख दुखने का बहाना बनाकर झूठ बोलते हैं। उमा यह सब पसन्द नहीं करती, इसीलिए अन्त में उनका विरोध करती है।
प्रस्तुत एकांकी में कतिपय गौण उद्देश्य भी देखे जा सकते हैं; जैसे- लड़कियों को उच्चशिक्षा का विरोध, प्राचीन मान्यताओं का समर्थन तथा सुशिक्षित कन्याओं का आक्रोश । वर्तमान की उच्च शिक्षा का विरोध करने के साथ-साथ एकांकीकार ने प्राचीन मान्यताओं का समर्थन भी किया है। प्राचीन मान्यताओं के समर्थन में उन्होंने प्रेमा और गोपालप्रसाद के मुख से अपने जमाने की बातें कहलवाई हैं। प्रेमा कहती है- “अपना जमाना अच्छा था। ‘आई’ पढ़ ली, गिनती सीख ली और बहुत हुआ तो ‘स्त्री-सुबोधिनी’ पढ़ ली। सच पूछो तो ‘स्त्री-सुबोधिनी’ में ऐसी-ऐसी बातें लिखी हैं- ऐसी बातें कि क्या तुम्हारी बी०ए०, एम०ए० की पढ़ाई होगी।” इसी प्रकार गोपालप्रसाद अपने जमाने की कितनी ही बातें सुनाते और कहते हैं- “उस जमाने की जब याद आती है, अपने को जब्त करना मुश्किल हो जाता है!”
वर्तमान सुशिक्षित कन्याओं के आक्रोश को एकांकीकार ने उमा के माध्यम से प्रस्तुत किया है। विवाह से पूर्व लड़कियों की चाल, चेहरे, कार्यकुशलता और पढ़ाई-लिखाई की बारीकी से छानबीन करना तथा बाद में पसन्द-नापसन्द का उत्तर देना वास्तव में लज्जास्पद है। उमा का यह कथन बिल्कुल ठीक है – “क्या बेबस भेड़-बकरियाँ हैं, जिन्हें कसाई अच्छी तरह देख-भालकर………?”
इस प्रकार प्रस्तुत एकांकी ‘रीढ़ की हड्डी’ में एक के साथ अनेक उद्देश्य मिल जाते हैं। एकांकीकार जगदीशचन्द्र माथुर ने सभी उद्देश्यों के निर्वाह में पूर्ण दक्षता का परिचय दिया है।
II. अन्य महत्त्वपूर्ण परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर
⇒ निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1 – ‘रीढ़ की हड्डी’ एकांकी के प्रमुख नारी – पात्र का चरित्र चित्रण अपने शब्दों में कीजिए ।
अथवा ‘रीढ़ की हड्डी’ एकांकी के आधार पर उमा का चरित्र-चित्रण कीजिए ।
उत्तर- उमा का चरित्र चित्रण
जगदीशचन्द्र माथुर – रचित ‘रीढ़ की हड्डी’ एकांकी की प्रमुख स्त्री – पात्र है – उमा । उमा रामस्वरूप की बेटी है, जो बी०ए० पास, शिष्ट एवं शालीन है। उसके पिता गोपालप्रसाद के बेटे शंकर से उसका विवाह करना चाहते हैं, परन्तु वह इससे सन्तुष्ट नहीं है; क्योंकि एक तो शंकर की रीढ़ की हड्डी में दोष है, फिर वह पढ़ाई-लिखाई से दूर आवारा किस्म का लड़का है। उमा के चरित्र में निम्नलिखित विशेषताएँ : देखी जा सकती हैं—
- श्रृंगार में अरुचि – उमा श्रृंगार अथवा सजने-सँवरने में जरा भी रुचि नहीं रखती । उसकी माँ उसे बार-बार पाउडर आदि लगाकर तैयार होने के लिए कहती है, परन्तु वह यह सब पसन्द नहीं करती। उसकी माँ प्रेमा उसके पिता से कहती है- “मैंने तो पौडर – वौडर उसके सामने रक्खा था। पर उसे तो इन चीजों से न जाने किस जन्म की नफरत है।”
- आज्ञाकारी – उमा शंकर से विवाह न चाहते हुए भी माता-पिता की आज्ञा से पान की तश्तरी लेकर गोपालप्रसाद और शंकर के सामने प्रस्तुत होती है। उसके इस कार्य से उसका आज्ञाकारी होने का गुण प्रकट होता है।
- शिष्ट एवं शालीन – उमा गोपालप्रसाद के सामने पूर्णरूपेण शिष्टता एवं शालीनता प्रदर्शित करती है। गोपालप्रसाद के कहने पर वह अपने बाजे के पास तख्त पर बैठ जाती है। उसे देखकर गोपालप्रसाद सन्तुष्ट होकर कहते हैं’चाल में तो कुछ खराबी है नहीं। चेहरे पर भी छवि है । “
- कार्यकुशल एवं संगीतप्रिय – उमा को संगीत में विशेष रुचि है। गोपालप्रसाद के कहने पर वह सितार उठाकर मीरा का एक प्रसिद्ध भजन “मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई’ सुनाती है। स्वर से ज्ञात होता है कि उसे गाने का भी अच्छा ज्ञान है। गोपालप्रसाद भी उसकी प्रशंसा करते हैं। इसके बाद वे उनकी पेण्टिंग व सिलाई आदि की चर्चा करते हैं, जिससे उमा की कार्यकुशलता का परिचय मिलता है।
- आक्रोशयुक्त – उमा गोपालप्रसाद की बारीक छानबीन से कुण्ठित हो उठती है। पहले वह जितने शिष्ट और शालीन रूप में दिखाई पड़ती है, बाद में उतनी ही आक्रोश से परिपूर्ण हो जाती है। उसे महसूस होता है कि क्या लड़कियों के दिल नहीं होता, जो उन्हें बेबस भेड़-बकरियों की तरह दिखाया जाता है। वह गोपालप्रसाद से पूछती है कि क्या वे अपने पुत्र की कायरता और चरित्रहीनता से परिचित हैं, जब उसे पिछली फरवरी में लड़कियों के होस्टल के पास से भगाया गया था। इस प्रश्न पर गोपालप्रसाद चौंक उठते हैं और उमा से पूछते हैं- “क्या तुम कालेज में पढ़ी हो?” उमा निर्भीकतापूर्वक कहती है—“जी हाँ, कालेज में पढ़ी हूँ। मैंने बी०ए० पास किया है। कोई पाप नहीं किया, कोई चोरी नहीं की, और न आपके पुत्र की तरह ताक-झाँक कर कायरता दिखाई है । “
इस प्रकार स्पष्ट होता है कि उमा आधुनिक युग की सुशिक्षित कन्याओं का प्रतिनिधित्व करती है। माता-पिता उसकी उच्चशिक्षा को छिपाकर एक अयोग्य लड़के से उसका विवाह करना चाहते हैं, परन्तु वह इसे स्वीकार नहीं कर पाती। उसके व्यवहार में नारी जागरण का स्वर स्पष्ट परिलक्षित होता है। वास्तव में जगदीशचन्द्र माथुर ने उमा के चरित्र में निर्भीकता का दृढ़ता का समावेश करके यह सिद्ध कर दिया है कि आजकल की पढ़ी-लिखी लड़कियाँ अपने भविष्य के प्रति सजग हैं। –
⇒ लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1 – गोपालप्रसाद का व्यक्तित्व कैसा है?
उत्तर – गोपालप्रसाद एक चालाक एवं धूर्त व्यक्ति है, जो अपनी कमियों को ढकने के लिए परम्परागत पुरानी मान्यताओं की दुहाई देता है। लड़कियों की उच्चशिक्षा का विरोधी होते हुए भी उनकी सुन्दरता पर वह बार-बार बल देता है। जन्मपत्री आदि के मिलाने पर भी उसका विश्वास दिखाई पड़ता है। उमा की दक्षता तथा संगीत आदि की वह भली-भाँति जाँच करता है, जिससे उमा उद्विग्न हो उठती है । उमा के चश्मे के कारण वह चौंक उठता है, परन्तु अपने बेटे की कमजोरियों को जरा भी प्रकट नहीं होने देता। अन्त में उमा के आक्रोशपूर्ण व्यवहार को देखकर वह क्रोधावेश में आकर चला जाता है।
प्रश्न 2 – प्रेमा और रतन के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर – प्रेमा अपने पति की हाँ में हाँ मिलानेवाली और घर-गृहस्थी में व्यस्त रहनेवाली एक साधारण घरेलू महिला है। लड़कियों की अधिक पढ़ाई-लिखाई का वह भी विरोध करती है। उमा के कारण वह स्वयं परेशान है। घर की साज-सज्जा और उमा की तैयारी में वह पूरा सहयोग देती है, परन्तु अतिथियों के सामने नहीं आती।
रतन घर का नौकर है, जो घर की साज-सज्जा में सहयोग देने के साथ-साथ बाजार से सामान लाने में व्यस्त दिखाई पड़ता है।