UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 11
UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 11 परमवीरः अब्दुलहमीदः (गद्य – भारती)
UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 11
पाठ-सारांश
यह भारतभूमि विद्वानों, देशभक्तों और वीरों की जननी है। आधुनिक समय में भी ऐसे अनेक वीर हुए हैं, जिन्होंने स्वतन्त्रता के लिए अपने प्राणों की बलि दे दी। चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह, रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ आदि ऐसे ही देशभक्त हैं। दूसरी ओर ऐसे भी अनेक देशभक्त वीर हैं, जिन्होंने देश की स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए शत्रुओं का मुकाबला करते हुए अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया। ऐसे ही देशभक्त परमवीरों में अब्दुल हमीद का नाम बड़ी श्रद्धा से याद किया जाता है, जिन्होंने सन् 1965 ई० में भारत-पाकिस्तान युद्ध में वीरतापूर्वक लड़ते हुए वीरगति पायी थी!
जन्म एवं शिक्षा-वीर हमीद का जन्म सन् 1933 ई० में उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के धुमआपुर ग्राम में एक साधारण मुस्लिम परिवार में हुआ था। बचपन से ही पहलवानी करने और लाठी चलाने में इनकी रुचि थी। ये पढ़ने की अपेक्षा क्रीड़ा-अभ्यास को अधिक पसन्द करते थे। बार-बार अभ्यास करके इन्होंने अचूक निशाना लगाना सीख लिया था। एक बार इन्होंने रात्रि में उल्लू की आवाज सुनकर और उस पर निशाना लगाकर उसे मार गिराया था। उसी समय इन्होंने सैनिक बनकर मातृभूमि की रक्षा करने का दृढ़-संकल्प कर लिया। 7 दिसम्बर, सन् 1954 ई० में इन्होंने सेना में प्रवेश लिया। ‘ग्रेवोडियर्स रेजीमेंटल प्रशिक्षण केन्द्र में प्रशिक्षण प्राप्त करके ये सैनिक हो गये और छ: वर्ष के भीतर ही लान्सनायक के पद पर नियुक्त होकर वर्षभर में हवलदार हो गये।
युद्ध में सैनिक रूप में नियुक्ति-चीन के आक्रमण के समय इनकी नियुक्ति नेफा क्षेत्र में हुई थी। यहीं इन्हें प्रथम बार युद्ध का सामना करना पड़ा। अपनी कर्तव्यनिष्ठा, शौर्य और साहस के कारण इन्होंने सैनिक अधिकारियों के हृदय पर अपनी धाक जमा ली। सन् 1965 ई० में पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण कर दिया। उस समय इन्हें लाहौर क्षेत्र में ‘कसूर’ स्थान पर तैनात किया गया था। उस युद्ध में पाकिस्तान के पास अमेरिका के दुभेद्य और दूरमारक आधुनिक पैटन टैंक थे। भारत अपने पुराने पैटन टैंकों को लेकर ही युद्ध कर रहा था, लेकिन उसके सैनिकों का मनोबल ऊँचा था।
अप्रतिम शौर्य-प्रदर्शन–अब्दुल हमीद अपने दिव्य उत्साह से युद्ध-क्षेत्र में गोले फेंक रहे थे। वे अपनी जीप में चढ़कर पाकिस्तानी टैंकों पर गोलों की बौछार करते हुए पाकिस्तानी सेना को रोक रहे थे। उनकी जीप को लक्ष्य बनाकर पाकिस्तानी टैंक उन पर गोला फेंकने ही वाला था कि अब्दुल हमीद ने विद्युत गति से उछलकर और हथगोला फेंककर उस टैंक को नष्ट कर दिया। यह देखकर दूसरे पाकिस्तानी टैंक ने आक्रमण कर दिया। उसे भी अब्दुल हमद ने हथगोले से ध्वस्त कर दिया, लेकिन दुःख है कि तीसरे पैटन टैंक से फेंके गये एक गोले से उनका प्राणान्त हो गया। उस समय उनके मुख परे मातृभूमि की रक्षा करने से उत्पन्न सन्तोष झलक रहा था।
सम्मानित-अब्दुल हमीद जिस मातृभूमि की गोद में बड़ा हुआ, उसके प्रति अपने कर्तव्य के पूरा कर धन्य हो गया। भारत सरकार ने उस परमवीर को परमवीर चक्र की उपाधि से सम्मानित किया ‘उत्तर प्रदेश सरकार ने भी उसके परिवार की बड़ी सहायता की और उसकी स्मृति को चिरस्थायी रखने के लिए उसके ग्राम का नाम ‘हमीपुर’ रख दिया।
निश्चय ही मातृभूमि के चरणों पर भक्तिपूर्वक सिर समर्पित करने वाले, यश शरीर वाले, स्वर देवता-स्वरूप वे श्रेष्ठ वीर मनुष्य धन्य हैं।
गद्यांशों का ससन्दर्भ अनुवाद
(1) एषा शस्यश्यामला भारतभूमिर्महतां मनीषिण, विलक्षणानां विपश्चित स्वप्राणेष्वप्यनासक्तानां देशभक्तानां परमधीराणां च युद्धवीराणां जननी। आस्तां तावदस्या प्राक्तनो लोकातिक्रान्तो गरिमा। आधुनिकेऽपि काले चन्द्रशेखरभक्तसिंहरामप्रसादादिभिः बहुभिर्युवाभिरस्याः स्वातन्त्र्यस्य हेतवे स्वजीवनमपि प्रदत्तम्, अपरैश्चानेकैस्तरुणैस्तथाधिगत स्वतन्त्रतां परिरक्षितुं शत्रूणामभिमुखं सुदृढं संस्थाय तेषां विनाशं कुर्वद्भिः स्वप्राणा एवं उत्सृष्टाः।यौवनं परिगणितं, ने कुटुम्बं चिन्तितं नाप्यायुष्यं समीहितम्। स्मारं स्मारं तेषामभिधानमद्यापि . हृदयमगाधया श्रद्धया प्लावितं सदनुभवति यद्गुणाः पूजास्थानं गुणिषु न च स्विङ्गं न च वयः। तादृशं वीराणामेवान्यतमः श्रीअब्दुलहमीदो नाम यः पञ्चषष्ट्युत्तरैकोनविंशतिशततमे (1965) ईसवीये संवत्सरे कसूरयुद्धे पाकिस्तानिभिः सैनिकैरभियुध्यन् असूनपिविहाय तेषां भारताभिमुख गतिं सम्यगुपारौत्सीत्।।
शब्दार्थ
शस्यश्यामला = फसलों से हरी-भरी।
विलक्षणानां = अनोखे, आश्चर्यजनक।
विपश्चिताम् = विद्वानों की।
अनासक्तानाम् = प्रेम न करने वाले।
आस्ताम् = रहे।
प्राक्तनः = पुराना।
लोकातिक्रान्तः = लोक का अतिक्रमण करने वाली,
अलौकिक। हेतवे = के लिए।
तथाधिगताम् = उस प्रकार प्राप्त हुई।
परिरक्षितुं = रक्षा करने के लिए।
संस्थाय = खड़े होकर।
उत्सृष्टाः = त्याग दिये।
समीहितम् = इच्छा की।
तेषामभिधानमद्यापि = उनका नाम आज भी।
प्लावितम् = सराबोर, डूबे हुए।
वयः = आयु।
सैनिकैरभियुध्यन् (सैनिकैः + अभि + युध्यन्) = सैनिकों के साथ विरोध में युद्ध करता हुआ।
असूनपि = प्राणों को भी।
उपारौत्सीत् = रोक दिया। |
सन्दर्भ
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत गद्य-भारती’ में संकलित ‘परमवीरः अब्दुलहमीदः’ शीर्षक से अवतरित है।
[संकेत-इस पाठ के शेष गद्यांशों के लिए भी यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।]
प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में देश की स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए आत्म-बलिदान करने वाले वीरों में अब्दुल हमीद का स्मरण किया गया है। । अनुवाद—यह धान्य से परिपूर्ण हरी-भरी भारतभूमि महान् बुद्धिमानों, विलक्षण विद्वानों, अपने प्राणों का मोह न करने वाले देशभक्तों, अत्यन्त धैर्यशालियों और युद्धवीरों की माता है। इसकी उस प्राचीन अलौकिक महिमा को रहने दें (अर्थात् उसकी तो बात ही क्या) आधुनिक समय में भी चन्द्रशेखर, भगतसिंह, रामप्रसाद आदि बहुत-से युवकों ने इसकी स्वतन्त्रता के लिए अपना जीवन भी दे दिया। दूसरे अनेक तरुणों ने उस प्रकार (कठिनाई) से प्राप्त हुई स्वतन्त्रता की रक्षा करने के लिए शत्रुओं के सामने मजबूती से खड़े रहकर उनका विनाश करते हुए अपने प्राण भी त्याग दिये। न युवावस्था की परवाह की, न कुटुम्ब की चिन्ता की, न अधिक आयु की इच्छा की। उनके नाम को याद कर-करके आज भी हृदय अगाध श्रद्धा से भरा हुआ अच्छा अनुभव करता है कि गुणियों में गुण ही पूजा के योग्य होते हैं, लिंग और उम्र नहीं।’ उस प्रकार के वीरों में एक श्री अब्दुल हमीद का नाम है, जिसने सन् 1965 ई० में कसूर युद्ध में पाकिस्तान के सैनिकों के साथ युद्ध करते हुए प्राणों को भी त्यागकर उनकी भारत की ओर बढ़ती गति को भली-भाँति रोक दिया।
(2) अस्य वीरपुङ्गवस्य जन्म त्रयस्त्रिशदुत्तरैकोनविंशतिशततमे (1933) ख्रीष्टाब्दे अस्माकं प्रदेशस्य गाजीपुरमण्डलस्य धुमआपुराह्वये ग्रामे अतिसाधारणे मुहम्मदीयकुटुम्बे जातम्। बाल्यादेवास्य मल्लविद्यायष्टिचालनादिषु शारीरिकबलोपचयाधायिनीषु क्रीडासु सहजेवाभिरुचिरासीत्। सैनिकगुणानात्मसात्कर्तुं दृढनिश्चयोऽसौ पौनःपुन्येन तथा अभ्यस्यति स्म यथा लक्ष्यवेधादिक्रीडास्वपि प्रावीण्यमुपागमत्। अक्षराभ्यासादधिकमस्मै क्रीडाभ्यासोऽरोचत। तदयं चतुर्थकक्षां यावदेवाधीतवान्। श्रूयते यदेकस्यां निशि कस्यचिदूलूकस्य विरोवमेवानुसृत्य लक्ष्ये प्रहरताऽनेनासौ न्यपाति। ततः क्षणादेव चासौ सैनिको भूत्वा मातृभूमे रक्षणाय समकल्पत। सौभाग्यात्तस्यायं मनोरथश्चतुःपञ्चाशदुत्तरैकोनविंशतिशततमे (1954) वर्षे दिसम्बरमासस्य सप्तमेऽहनि पर्यपूर्यत यदासौ सेनायां प्रवेशं प्राप्तवान्। चतुर्दशमासान् यावद् राजस्थानस्य नसीराबादसैनिकशिविरे ‘ग्रेवोडियर्स रेजीमेण्टल’ प्रशिक्षणकेन्द्रे सैनिकप्रशिक्षणं प्राप्य अब्दुलहमीदः पूर्णतया सैनिकोऽभवत् षड्वर्षाभ्यन्तरे च लान्सनायकपदे न्ययुज्यते वर्षमात्रेण च हवलदारपदमाप्तवान्।
शब्दार्थ
वीरपुङ्गवस्य = श्रेष्ठ वीर को।
धुमआपुराह्वये (धुमआपुर + आह्वये) = धुमआपुर नाम के।
मुहम्मदीय कुटुम्बे = मुस्लिम वंश में।
मल्लविद्यायष्टिचालनादिषु = कुश्ती लड़ने, लाठी चलाने आदि में।
बलोपचय = बलवर्द्धक।
आत्मसात्कर्तुम् = अपनाने के लिए।
पौनः पुन्येन = बार-बार।
लक्ष्यवेध = निशाना लगाना।
प्रावीण्यम् = कुशलता।
उपागमत् = प्राप्त की।
विरावम् = शोर।
न्यपाति = गिरा दिया।
पर्यपूर्यत = पूर्ण हो गया।
न्ययुज्यत = नियुक्त कर दिया गया।
आप्तवान् = प्राप्त कर लिया।
प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में अब्दुल हमीद के जन्म, शिक्षा, अभिरुचि एवं सेना में भर्ती होने का वर्णन है।
अनुवान
इस श्रेष्ठ वीर का जन्म सन् 1933 ई० में हमारे प्रदेश (उत्तर प्रदेश) के गाजीपुर जिले के धुमआपुर नरक ग्राम में अत्यन्त साधारण मुस्लिम परिवार में हुआ था। बचपन से ही इसकी पहलवानी, लाठी चलाने आदि शारीरिक शक्तिवर्द्धक क्रीड़ाओं में स्वाभाविक ही लगन थी। सैनिक के गुणों को अपनाने के लिए दृढ़-निश्चय वाले उसने बार-बार इतना अभ्यास किया कि निशान लगाने आदि खेलों में भी कुशलता प्राप्त कर ली। इसे अक्षरों के अभ्यास (विद्याभ्यास) की अपेक्षा क्रीड़ा का अभ्यास अच्छा लगता था, इसलिए इसने चौथी कक्षा तक ही पढ़ाई की। सुना जाता है कि एक रात में किसी उल्लू के शोर का ही अनुसरण करके लक्ष्य पर प्रहार करते हुए इसने उसे गिरा दिया। उस क्षण से ही उसने सैनिक बनकर मातृभूमि की रक्षा का संकल्प लिया। सौभाग्य से उसके मन की यह इच्छा सन् 1954 ई० में दिसम्बर महीने के सातवें दिन (सात तारीख को) पूर्ण हो गयी, जब उसने सेना में प्रवेश कर लिया। चौदह महीने तक राजस्थान के नसीराबाद सैनिक शिविर में ग्रेवोडियर्स रेजीमेण्ट’ नामक प्रशिक्षण केन्द्र में सैनिक प्रशिक्षण प्राप्त करके अब्दुल हमीद पूर्णरूप से सैनिक हो गया और छह वर्ष के अन्दर ही लान्सनायक के पद पर नियुक्त कर दिया गया और वर्षभर में हवलदार का पद प्राप्त कर लिया।
(3) भारतसीमान्ते चीनदेशस्याक्रमणकाले श्रीअब्दुलहमीदो नेफाक्षेत्रे नियुक्त आसीत्। तत्रैवासौ युद्धस्याद्यं साक्ष्यमकरोत्। कर्तव्यनिष्ठाद्वितीयेन स्वेनानन्यसाधारणेनौजसा सः सैनिकाधिकारिणामविलम्बं दृष्टिमाकृष्य तूर्णमेव हृदयेषु अपि पदमदधात्। मातृभूमेः कृते प्राणानपि मुञ्चतो मे चेतो न तनुकमपि व्यथिष्यते, प्रत्युत प्राप्यैव तादृशं सुयोगं परां मुदमेवापत्स्यति इति नैकधासौ स्वमित्राण्यचीकथयत्। मनोनीतस्तादृशोऽवसरोऽपि नातिविलम्बेनागतः। पञ्चषष्ट्युत्तरैकोनविंशतिशततमे (1965) वर्षे दैवदुर्विपाकात् पाकिस्तानेन भारतवर्षे आक्रमणं कृतम्। श्रीअब्दुलहमीदश्च लवपुरसमक्षेत्रे कसूरनाम्नि स्थले सैनिकनियोगमादिष्टों युद्धनिरतः संवृत्तः। पाकिस्तानं प्रति सदैव पक्षपातिना अमेरिकादेशेन पाकिस्तानायातिशक्तिशालिनो दूरमारका अभेद्यत्वेन प्रसिद्धाः पैटनटैङ्काः प्राचुर्येण प्रदत्ता आसन्। तच्छक्तिदृप्ताः पाकिस्तानिनः सैनिकास्तानग्रे कृत्वा भारतसैन्ये गोलकानि वर्षन्तो दुर्दान्ता दानवा नाकमिव भारतधरामधिचिकीर्षतस्तस्यान सीमसु प्रविष्टाः। तेषां प्रतिरोधाय भारतसैनिका अपि गोलकानि वर्षन्ति स्म, किन्तु तेषां पुरातनाष्टैङ्का ने तथा दुर्भेद्या दूरमारका शक्तिशालिनश्च आसन् तथापि मातृभुवं रक्षितुं मनोबलं तु आकाशं स्पृशति स्म।क्रियासिद्धिः सत्वे भवति महतां नोपकरणे’ इति भृशं विश्वसन्तस्तेषामात्मा कार्यं वा साधयेयं देहं वा पातयेयम्’ इति मुहुर्मुहुः शूराभ्यस्ते समये वर्तमानो ‘हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्’ इति भगवतो वाक्यं स्मारयन् तेषां मनसि पैटनटैङ्कादपि गरीयसीं दृढतामुपाबध्नात्।।
शब्दार्थ
आद्यम् = पहली बार।
साक्ष्यम् = सामना।
अकरोत् = किया।
ओजसा = बल से
अविलम्बम् = जल्दी।
तूर्णम् = शीघ्र।
पदमधात् = स्थान बना लिया।
तनुकमपि = थोड़ा भी
व्यथयिष्यते = व्यथित करेगा।
मुदम् = प्रसन्नता को।
नैकधा = अनेक बार।
अचीकथयत् = कहा
नाति-विलम्बेन = अधिक देर से नहीं, शीघ्र ही।
लवपुरसमरक्षेत्रो = लाहौर युद्ध क्षेत्र में
दूरमारकाः = दूर तक मार करने वाले।
प्राचुर्येण = अधिक मात्रा में।
तच्छक्तिदृप्ताः = उनकी शकि से अहंकारयुक्त।
नाकम् = स्वर्ग।
क्रियासिद्धिः सत्वे भवति महतां नोपकरणे = वीरों या महापुरुष की कार्य-सफलता बल में रहती है, साधन में नहीं।
हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्य महीम् = मारा गया तो स्वर्ग जाएगा, जीता रहा तो पृथ्वी का भोग करेगा।
कार्यं वा साधयेयम् देहं व पातयेयम् = कार्य सिद्ध करूंगा या शरीर नष्ट कर लूंगा।
स्मारयन् = याद दिलाते हुए। उपाबध्नात् : बाँध दी।
प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में चीन के आक्रमण के समय अब्दुल हमीद के उच्च मनोबल का वर्ण किया गया है।
अनुवाद
भारत के सीमान्त प्रदेश में चीन देश के आक्रमण के समय श्री अब्दुल हमीद नेप क्षेत्र में नियुका थे। वहीं उसने युद्ध का पहली बार सामना किया। कर्तव्यनिष्ठा के कारण अद्विती अपने अनन्य असाधारण बल से उसने सैनिक अधिकारियों की दृष्टि आकृष्ट कर शीघ्र ही हृदयों पर १
स्थान बना लिया। “मातृभूमि के लिए प्राणों को भी त्यागते हुए मेरा चित्त तनिक भी दु:खी नहीं होगा, प्रत्युत् उस प्रकार के सुअवसर को प्राप्त करके ही अत्यन्त प्रसन्नता को प्राप्त करेगा”, ऐसा वह अनेक . | बार अपने मित्रों को कहता था। मनचाहा वैसा अवसर भी शीघ्र ही आ गया। सन् 1965 ई० में दुर्भाग्य | से पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण कर दिया। श्री अब्दुल हमीद लवपुर (लाहौर) के युद्ध-क्षेत्र में | ‘कसूर’ नाम के स्थान पर सैनिक के कर्तव्य का आदेश पाकर युद्ध करने लगे थे। पाकिस्तान के प्रति
हमेशा ही पक्षपात करने वाले अमेरिका देश ने पाकिस्तान को अत्यन्त शक्तिशाली, दूर तक मार करने | वाले, अभेद्य होने में प्रसिद्ध पैटन टैंक अधिक मात्रा में दे रखे थे। उनकी शक्ति से गर्वीले पाकिस्तान के
सैनिक उनको आगे करके भारत की सेना पर गोले बरसाते हुए ऐसे लग रहे थे जैसे स्वर्ग पर दुर्दान्त दानव अधिकार करना चाहते हों और वे उसकी सीमाओं में घुस गये। उनको रोकने के लिए भारत के सैनिक भी गोले बरसा रहे थे, किन्तु उनके पुराने टैंक वैसे दुभेद्य, दूर तक मार करने वाले और शक्तिशाली नहीं थे, तो भी मातृभूमि की रक्षा करने के लिए उनका मनोबल आकाश को छू रहा था।
क्रिया की सिद्धि साध्य में होती है, साधन में नहीं” इसका अत्यधिक विश्वास करते हुए उनकी आत्मा | ने “कार्य को सिद्ध करू या शरीर को नष्ट कर दें इस प्रकार वीरों के द्वारा बार-बार अभ्यास किये गये। | समय में स्थित होते हुए “मारे जाकर स्वर्ग को प्राप्त करोगे अथवा जीतकर पृथ्वी को भोगोगे’-इस | प्रकार भगवान् के वाक्य का स्मरण करते हुए उनके मन में पैटन टैंक से भी बड़ी दृढ़ता बाँध दी।
(4) तथाभूतेन दिव्योत्साहेन दीपितः श्रीहमीदस्तु नृत्यन्मृत्युना तद् भयावहं युद्धं कन्दुकक्रीडनमिव, युद्धक्षेत्रं क्रीडाक्षेत्रमिव, गोलकजातं च कुन्दुकमिव मन्यमानो जीपवाहनमारूढ़ः पैटनटैङ्कानां छायायामग्रेसरन् पाकिस्तानिसैन्यमुपरोद्धं तेषां टैङ्केषु गोलकानि प्रक्षिपन् अभिमुखमागतः। टैङ्करक्षितैर्रिपुसैनिकैर्हमीदस्य जीपयानै शतत्रयहस्तदूरं दृष्टं तदधिलक्ष्य च महाभीषणो गोलकक्षेपः कर्तुमारब्धः। तत्क्षणमेव हमीदेन विद्युद्गत्या हस्तगोलकं प्रक्षिप्य सः टैङ्को विनाशितः। तद् दृष्ट्वा अपरेण पाकिस्तानटैङ्केन हमीदस्योपरि आक्रमणं कृतम्, किन्तु वीरोत्तमेनानेन सोऽपि हस्तगोलकेन तथैव ध्वंसं नीतः। अहो! वैचित्र्यम् , भारतवीरवरस्य तस्य शौर्यस्य येनोत्तमोपकरणा अपि शत्रवो निरुद्धाः। हस्तिशशकयोरिव झञ्झादीपयोरिव सङ्घर्षोऽसौ प्रतिभाति स्म। परन्तु हा! हन्त! हन्त! रणशिरसि वर्तमानस्यास्य भारतवीरधौरेयस्यानुपदमेव तृतीयस्मात् पाकिस्तानटैङ्कात् प्रक्षिप्तेनैकेन गोलकेन प्राणान्तो जातः। मृतस्याप्यस्य वदने | मातृभूमिरक्षार्थं प्राणोत्सर्गजनितः सन्तोषः सुतरामङ्कित आसीत्। क्षणभङ्गुरेऽस्मिन् संसारे
कलेवरं तु भङ्गुरम्। तस्य विनिमयेन विमलकीर्तेरर्जनं न खलु पुष्कलमूल्यम्। परमवीरेणानेन | निःसन्दिग्धं प्रमाणितं यत् स्वल्पोपकरणैरेव स्वौजसा महान्ति कार्याणि यैः सम्पाद्यन्ते त एव महान्तो न तु साधनसम्पन्नाः।।
शब्दार्थ
दिव्योत्साहेन = अलौकिक उत्साह से।
दीपितः = प्रकाशमान्।
नृत्यन्मृत्युना = मृत्यु |
का नृत्य। कन्दुकक्रीडनमिव = गेंद के खेल के समान।
छायायामग्रेसरन् = छाया में आगे बढ़ता हुआ।
उपरोदधुम् = रोकने के लिए।
प्रक्षिपन् = फेंकता हुआ।
शतत्रयहस्तदुरम् = तीन-सौ हाथ दूर।
तदभिलक्ष्य = उसे निशाना बनाकर।
विद्युद्गत्या = बिजली के समान तेज गति से।
हस्तगोलकं= हाथ का गोला (हैण्डग्रेनेड)।
ध्वंसं नीतः = नष्ट कर दिया।
निरुद्धाः = रोक दिये गये।
हस्तिशश- कयोरिव = हाथी और खरगोश के समान।
झञ्झादीपयोरिव = तूफान और दीपक के समान।
वीरधौरेयस्य= वीरों में अग्रणी।
अनुपदमेव = पीछे ही।
वदने= मुख पर।
भङ्गुरम्= नाशवान्।
कलेवरं = शरीर।
विनिमयेन = बदले से।
पुष्कृलमूल्यम् = अधिक मूल्य पर।
स्वौजसा = अपने बल से। |
प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में पाकिस्तानी सेना के साथ जूझते हुए रणबाँकुरे अब्दुल हमीद के अप्रतिम शौर्य-प्रदर्शन एवं मृत्यु का वर्णन किया गया है।
अनुवाद
उस प्रकार के अलौकिक उत्साह से प्रकाशमान् श्री हमीद मृत्यु से नाचते हुए, उस यावह युद्ध को गेंद के खेल के समान, युद्ध-क्षेत्र को खेल के मैदान के समान और गोलों के समूह को गेंद के समान मानते हुए जीप पर सवार होकर पैटन टैंकों की छाया में आगे चलते हुए, पाकिस्तान की सेना को रोकने के लिए उनके टैंकों पर गोले फेंकता हुआ सामने आ गया। टैंकों की रक्षा करने गले शत्रुओं के सैनिकों ने हमीद की जीप को तीन सौ हाथ दूर पर देखा और उसको निशाना बनाकर नत्यन्त भयानक गोले फेंकना आरम्भ कर दिया। उसी क्षण हमीद ने बिजली के समान तेजगति से थगोला फेंककर उस टैंक को ध्वस्त कर दिया। यह देखकर पाकिस्तान के दूसरे टैंक ने हमीद के
ऊपर आक्रमण कर दिया, किन्तु इस श्रेष्ठ वीर ने उसे भी हथगोले से उसी प्रकार नष्ट कर दिया। अहो! भारत के वीर और उसकी बहादुरी की विलक्षणता आश्चर्यकारी है, जिसने उत्तम उपकरणों वाले शत्रु को भी रोक दिया। वह संघर्ष हाथी और खरगोश के समान, तूफान और दीपक के समान प्रतीत हो रहा था, परन्तु बारम्बार खेद है! युद्ध-स्थल में स्थित भारत के वीरों में अग्रणी इस वीर का इसके पीछे ही पाकिस्तान के तीसरे टैंक से फेंके गये एक गोले से प्राणान्त हो गया। मरे हुए भी इसके मुख पर मातृभूमि की रक्षा के लिए प्राण-त्याग से उत्पन्न हुआ अत्यधिक सन्तोष अंकित था। इस नशवान् संसार में शरीर तो अधिक नाशवान है। उसके बदले में देने से (शरीर-त्याग से) पवित्र यश की प्राप्ति का अधिक मूल्य है। इस परमवीर ने नि:सन्देह प्रमाणित कर दिया कि थोड़े-से साधनों के द्वारा अपने बल से, जिनके द्वारा महान् कार्य पूर्ण किये जाते हैं, वे ही महान् हैं, साधनसम्पन्न लोग नहीं। |
(5) एवमसौ परश्शतैर्महारथैरभिमन्युरिव बलवद्भिर्युध्यन् सखायामिवालिङ्ग्य मृत्युमितिहासपुरुषो जातः। यस्य देशस्य रजसि क्रीडित्वा तेन बाल्यं नीतम् , यस्यान्नजलाभ्यां तस्य देहः पुष्टिमगात् , यस्य वायौ तेन सततं श्वसितम् , तं प्रति स्वकर्तव्यं परिपूर्य सः कृतार्थोऽभवत्। भारतशासनेनासौ शूरशिरोमणिर्मरणानन्तरं परमवीरचक्रेण सम्मानितः। उत्तप्रदेशशासनेन च तस्य कुटुम्बस्य भूयसी सहायता कृता तस्य स्मृतेश्च चिरस्थायितायै तस्य ग्रामस्य नामापि हमीदपुरमिति कृतम्।
रक्षणाय जनुभूमेः प्राणानपि त्यजन्ति ये।
यशोदेहेन जीवन्तो-मार्गमन्यान् दिशन्ति ते॥
मातृपादयोर्भक्त्या शिरः पुष्पसमर्पकाः।।
यशःकायाः स्वयंदेवा धन्या वीरवरा नराः॥
शब्दार्थ
परश्शतैः = सैकड़ों से अधिक।
बलवद्भिः = बलवानों से।
आलिङ्ग्य = आलिंगन करके।
रजसि = मिट्टी में।
नीतम् = बिताया।
श्वसितम् = साँस ली।
परिपूर्य = पूर्ण करके।
मरणोपरान्तम् = मरने के बाद।
भूयसी = बहुत।
चिरस्थायितायै = बहुत समय तक स्थायी रखने के लिए।
जनुभूमेः = जन्मभूमि की।
यशोदेहेन = यश रूपी शरीर से।
दिशन्ति = बतलाते हैं।
शिरःपुष्पसमर्पकाः = शीश रूपी पुष्प समर्पित करने वाले।
वीरवराः = वीरों में श्रेष्ठ।
प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में अब्दुल हमीद के वीरगति को प्राप्त करने पर उसके सम्मान का वर्णन किया गया है।
अनुवाद
इस प्रकार वह सैकड़ों से अधिक बलवान् महारथियों से युद्ध करते हुए अभिमन्यु के समान मृत्यु का मित्र के समान आलिंगन करके इतिहास-पुरुष हो गया। जिस देश की धूल में खेलकर उसने बचपन बिताया, जिसके अन्न और जल से उसका शरीर पुष्ट हुआ, जिसकी वायु में उसने निरन्तर श्वास लिया, उसके प्रति अपने कर्तव्य को पूर्ण करके वह धन्य हो गया। भारत सरकार ने इस शूर शिरोमणि को मरने के बाद परमवीर चक्र से सम्मानित किया। उत्तर प्रदेश सरकार ने उसके परिवार की बहुत सहायता की तथा उसकी स्मृति को लम्बे समय तक स्थायी रखने के लिए उसके गाँव का नाम भी ‘हमीदपुर’ कर दिया।
जो लोग जन्मभूमि की रक्षा के लिए प्राणों को भी त्याग देते हैं, वे यशः शरीर से जीवित रहते हुए दूसरों को मार्ग बताते हैं। मातृभूमि के चरणों में सिररूपी पुष्प को समर्पित करने वाले, यशः शरीर वाले, स्वयं देवतास्वरूप वे श्रेष्ठ वीर मनुष्य धन्य हैं।
लघु उत्तरीय प्ररन
प्ररन 1
इस पाठ से आपको क्या शिक्षा मिलती है?
या
अब्दुल हमीद का बलिदान हमें क्या प्रेरणा देता है?
उत्तर
इस पाठ से हमें यह शिक्षा मिलती है कि मनुष्य के गुण पूजनीय होते हैं। मनुष्य दृढ़, संकल्प और प्रयत्न से अपने मनोरथ को पूर्ण करने में समर्थ होता है। कार्य की सिद्धि साध्य में होती है, साधन में नहीं। पाकिस्तान के पास अभेद्य पैटन टैंक थे और भारत के पास पुराने टैंक, लेकिन भारत के सैनिकों का मनोबल ऊँचा था; अतः वे युद्ध में विजयी हुए। मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की चिन्ता भी नहीं करनी चाहिए।
प्ररन 2
परमवीर अब्दुल हमीद की जीवनी अंश के आधार पर अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
[संकेत-‘पाठ-सारांश’ मुख्य शीर्षक की सामग्री को अपने शब्दों में लिखिए। .
प्ररन 3
युद्ध में अब्दुल हमीद ने जो वीरता दिखाई उसका वर्णन कीजिए।
उत्तर
[संकेत—‘पाठ-सारांश’ मुख्य शीर्षक के अन्तर्गत आये शीर्षकों-‘युद्ध में सैनिक रूप । में नियुक्ति’ और ‘अप्रतिम शौर्य-प्रदर्शन की सामग्री को संक्षेप में लिखें।]