Sanskrit 9

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 9

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 9 आजादः चन्द्रशेखरः  (गद्य – भारती)

पाठ-सारांश

परिचय और जन्म–राष्ट्र के लिए अपना जीवन बलि-वेदी पर चढ़ाने वाले देशभक्तों में अग्रगण्य चन्द्रशेखर आजाद का नाम भारत की स्वतन्त्रता के इतिहास में सदैव स्मरणीय रहेगा। इन्हें भुला देना अत्यधिक कृतघ्नता होगी। चन्द्रशेखर तो जीवन-पर्यन्त आजाद ही रहे, निरन्तर प्रयासरस पुलिसकर्मी कभी उनके हाथों में हथकड़ी न डाल सके। | चन्द्रशेखर आजाद का जन्म मध्य प्रदेश के ‘भाँवरा’ नामक  ग्राम में 23 जुलाई, सन् 1906 ईसवीं में हुआ था। इनकी माता का नाम जगरानी और पिता का नाम सीताराम था। इनके पिता उन्नाव जनपद के बदरका ग्राम से जाकर अलीराजपुर राज्य में 8 रुपये मासिक की नौकरी करते थे और वहीं रहने लगे थे।

घर से निष्कासन और अध्ययन-एक दिन चन्द्रशेखर ने राजा के उद्यान का एक फल तोड़ लिया था। क्रोधित हुए पिता ने ग्यारह वर्ष के उस बालक को घर से निकाल दिया; क्योंकि पिता के कहने पर भी चन्द्रशेखर ने माली से क्षमा न माँगी। घर से निकलकर दो वर्ष तक नगर-नगर घूमकर उन्होंने कठिन परिश्रम करके किसी प्रकार अपनी जीविका चलायी। दैवयोग से वाराणसी आये और वहाँ एक संस्कृत पाठशाला में संस्कृत का अध्ययन करने लगे।

युवती की रक्षा-एक दिन किसी दुष्ट युवक को एक भद्र युवती को परेशान करते हुए चन्द्रशेखर ने देख लिया। चन्द्रशेखर उसे पृथ्वी पर गिराकर और उसकी छाती पर चढ़कर उसे तब तक पीटते रहे, जब तक कि उस बेशर्म युवक ने उस युवती से क्षमा नहीं माँगी। इस घटना से प्रभावित होकर आचार्य नरेन्द्रदेव ने उनके अध्ययन की व्यवस्था काशी विद्यापीठ में करा दी।

असहयोग आन्दोलन में भाग–विद्यापीठ के अनेक छात्रों को असहयोग आन्दोलन में सम्मिलित होते देखकर आजाद भी तिरंगा झण्डा लेकर भारतमाता की जय’ और ‘गाँधी जी की जय बोलते हुए आन्दोलन में सम्मिलित हो गये। सैनिकों द्वारा उन्हें न्यायाधीश के समक्ष उपस्थित करने पर उन्होंने अपना नाम आजाद, पिता का नाम ‘स्वाधीन’ और घर जेल’ बताया। इस पर क्रुद्ध होकर न्यायाधीश ने उनको 15 कोडे मारे  जाने की सजा दी। कोडों से पीटे जाने पर भी ‘भारतमाता की जय करते हुए उन्होंने ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया। जेल से छूटने पर नागरिकों ने उनका स्नेहसिक्त अभिनन्दन किया। जब गाँधी जी ने हिंसा के कारण अपना आन्दोलन वापस ले लिया, तब आजाद बहुत दु:खी हुए। “

क्रान्तिकारी दल के सदस्य–दैवयोग से आजाद प्रणवेश चटर्जी, मन्मथनाथ गुप्त आदि . क्रान्तिकारियों के सम्पर्क में आये। उनकी सत्यनिष्ठा को देखकर मन्मथनाथ गुप्त ने उन्हें क्रान्तिकारी दल का सदस्य बना लिया। थोड़े ही समय में वे क्रान्तिकारियों की केन्द्रीय परिषद् के सदस्य हो गये। उन्होंने गोली चलाने और निशाना लगाने में कौशल प्राप्त कर लिया। उन्होंने सन् 1925 ई० में काकोरी काण्ड में सक्रिय भाग लिया। इस अवसर पर आजाद को छोड़कर उनके अन्य सहयोगी पकड़े गये और हथकड़ी लगाकर शूली पर चढ़ा दिये गये। उस समय चन्द्रशेखर को बहुत दु:ख हुआ किन्तु वे क्रान्ति : से विरत नहीं हुए और उन्होंने क्रान्तिकारी दल का नेतृत्व सँभाला।।

आजाद ने अनेक अंग्रेज अधिकारियों और सैनिकों को मारा। लाला लाजपत राय के हत्यारे ‘साण्डर्स को भी आजाद ने मौत के घाट उतार दिया।

विधानसभा-भवन में बम-विस्फोट–सन् 1929 ई० में 8 अप्रैल को आजाद की सलाह से सरदार भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने विधानसभा भवन में बम विस्फोट कर दिया। चन्द्रशेख़र विधानसभा भवन के बाहर ही उपस्थित थे। उसमें भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने आत्मसमर्पण कर  दिया और उन्हें शूली पर चढ़ा दिया गया। आजाद के अनेक साथी भगवतीचरण, सालिगराम आदि भी मारे गये। आजाद बहुत दु:खी हुए। यशपाल और वीरभद्र के विश्वासघात से आजाद को गहरा दु:ख पहुंचा था।

अमर बलिदान–सन् 1931 ई० में फरवरी की 27 तारीख को आजाद प्रयाग के अल्फ्रेड पार्क में यशपाल और सुखदेव के साथ बैठे हुए बातचीत कर रहे थे। उसी समय वीरभद्र दिखाई पड़ा और यशपाल उठकर चल दिया। आजाद सुखदेव के साथ बातचीत कर ही रहे थे कि सैनिकों ने वहाँ आकर आजाद को घेर लिया।

आजाद ने अपने सहयोगी सुखदेव को किसी तरह पार्क से बाहर निकाला और पिस्तौल भरकर । खड़े हो गये। विपक्षियों ने आजाद पर गोलियाँ बरसायीं। आजाद ने भी निरन्तर गोलियाँ बरसाकर

अनेक को मूर्च्छित और घायल कर दिया। अन्त में जब उनकी पिस्तौल में एक गोली रह गयी, तब उन्होंने स्वयं को ही मार लिया। इस प्रकार चन्द्रशेखर अमर शहीद हो गये।

ऐसे क्रान्तिकारी देशभक्त सदा उत्पन्न नहीं होते। उनका जन्म कभी-कभी ही होता है। ऐसे अमर युवक युगान्तर उपस्थित करने के लिए जन्म लेते हैं। भारतभूमि धन्य है, जहाँ ऐसे शूरवीर उत्पन्न होते हैं, जो अपने जन्म से भारतभूमि को पवित्र करते हैं और खून से सींचते हैं।

गद्यांशों का ससन्दर्भ अनुवाद

(1) राष्ट्रहितेऽनुरक्तानामात्मबलिं कर्तुं सहर्षमुद्यतानाम् अग्रगण्यः चन्द्रशेखरः भारतस्य स्वातन्त्र्येतिहासेऽसौ सततमुल्लेखनीयः स्मरणीयश्च। स्वतन्त्रतायाः मधुरं फलं भुञ्जानाः वयमधुना प्रकामं मोदामहे। तद् वृक्षारोपकास्तु त एवात्मबलिदायकास्तादृशाः वीराः एवासन्। प्रातः स्मरणीयास्ते वीराः कदापि भारतीयैरस्माभिः नैव विस्मर्तुं शक्यन्ते। तेषां विस्मृतिस्तु महती कृतघ्नता स्यात्। तेष्वेव वीरेषु मूर्धन्यः परमस्वतन्त्रश्चन्द्रशेखरः आजीवनं स्वतन्त्र एवासीत्। सततं प्रयतमानैरपि आरक्षकैः तत्करे लौहशृङ्खला न पिनद्धा। मातृभूमिपरिचारकः राणाप्रताप इव असावपि आत्मबलिदायको वीरः रक्तस्नातोऽपि स्वतन्त्र एव परिभ्रमन् प्राणानत्यजत्। जीवितः स तैः कथमपिन गृहीतः। देशभक्तानामादर्शभूतस्य चन्द्रशेखरस्य जन्म षडधिकैकोनविंशतिशततमे . (1906) ख्रीष्टाब्दे जुलाईमासस्य त्रयोविंशतितयां तारिकायां मध्यप्रदेशस्य भाँवरा ग्रामेऽभवत्। तस्य जनकः श्री सीतारामः स्वीययो धर्मपत्न्या जगरानी नामधेयया सह उन्नावजनपदस्य बदरकाग्रामात् गत्वा तत्रैव व्यवसत्। सः तत्र ‘अलीराजपुरराज्ये’ वृत्त्यर्थं कार्यमकार्षीत्। अष्टमुद्रात्मकं मासिकं वेतनञ्चालभत्।

शब्दार्थ
आत्मबलिं कर्तुम् = अपना बलिदान करने के लिए।
उद्यतानाम् = उद्यत रहने वालों में।
सततमुल्लेखनीयः स्मरणीयश्च = सदैव उल्लेख करने और स्मरण रखने योग्य।
भुञ्जानाः = भोगते हुए।
प्रकामम् मोदामहे = अत्यधिक प्रसन्न होते हैं।
तवृक्षारोपकास्तु = उस वृक्ष को लगाने वाले तो।
नैव = नहीं ही। विस्मर्तुं शक्यन्ते = भुलाये जा सकते हैं।
कृतघ्नता = उपकार न मानना।
मूर्धन्यः = सर्वश्रेष्ठ।
पिनद्धा = पहनायी।
असावपि (असौ + अपि) = यह भी।
परिभ्रमन् = घूमते हुए।
स्वीययाय धर्मपत्न्या = अपनी धर्मपत्नी के साथ।
वृत्त्यर्थम् = जीविका के लिए।
अकार्षीत् = करता था।

सन्दर्भ
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत गद्य-भारती’ में संकलित ‘आजादः चन्द्रशेखरः’ शीर्षक पाठ से अवतरित है।

संकेत
इस पाठ के शेष गद्यांशों के लिए भी यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में राष्ट्रहित के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग करने वाले चन्द्रशेखर आजाद के जन्म तथा पारिवारिक स्थिति के विषय में बताया गया है।

अनुवाद
राष्ट्रहित में लगे हुए स्वयं को बलिदान करने के लिए सहर्ष तैयार लोगों में सबसे पहले गिने जाने वाले चन्द्रशेखर भारत की स्वतन्त्रता के इतिहास में मिरन्तर उल्लेख करने योग्य और स्मरणीय हैं। स्वतन्त्रता के जिस मधुर फल को खाते हुए हम आज अत्यन्त प्रसन्न हो रहे हैं, उस वृक्ष को लगाने वाले वे ही अपना बलिदान करने वाले उस प्रकार के वीर ही थे। प्रातः समय स्मरण करने योग्य ये वीर हम भारतीयों के द्वारा कभी भी भुलाये नहीं जा सकते। उनको भूल जाना तो बड़ी कृतघ्नता होगी। उन्हीं वीरों में सर्वश्रेष्ठ अत्यधिक स्वतन्त्र चन्द्रशेखर  जीवनभर स्वतन्त्र ही रहे। निरन्तर प्रयत्न करते हुए भी सिपाहियों ने उनके हाथों में लोहे की जंजीर (हथकड़ी) नहीं पहनायी। मातृभूमि की सेवा करने वाले राणाप्रताप की तरह अपनी बलि देने वाले इसी वीर ने रक्त में स्नान करते हुए भी स्वतन्त्र घूमते हुए ही प्राणों को त्याग दिया।

उनके द्वारा वह जीवित कभी नहीं पकड़े गये। देशभक्तों में आदर्शस्वरूप चन्द्रशेखर का जन्म सन् 1906 ईसवी में जुलाई महीने की 23 तारीख को मध्य प्रदेश के ‘‘भाँवरा’ नामक ग्राम में हुआ था। उनके पिता श्री सीताराम अपनी जगरानी नाम की धर्मपत्नी के साथ उन्नाव जिले के बदरका ग्राम से जाकर वहीं रहते थे। वे वहाँ अल्लीराजपुर के राज्य में जीविका के लिए कार्य करते थे और आठ रुपये मासिक वेतन पाते थे।

(2) एकदा चन्द्रशेखरः तस्यैवोद्यानस्य फलमेकं पितरमपृष्ट्वैव अत्रोटयत्। क्रोधाविष्टस्तज्जनकः सीतारामः प्रियं सुतमेकादशवर्षदेशीयं चन्द्रशेखरं गृहान्निस्सारयामास। क्रोधाविष्टः जनकः अवोचत् , गत्वा मालाकारं क्षमा याचस्व, परं स एवं कर्तुं नोद्यतः। गृहान्निर्गत्य वर्षद्वयमितस्ततः सः प्रतिनगरं भ्रामं-भ्रामं घोरं श्रमं कृत्वा जीविकां निरवहत्। दैववशात् सः बालकः वाराणसीमुपगम्य कस्याञ्चित् संस्कृतपाठशालायां संस्कृताध्ययनमकरोत्।।

शब्दार्थ-
एकदा = एक बार
तस्यैवोद्यानस्य = उसी बगीचे का।
पितरम् अपृष्ट्वैव = पिता से पूछे बिना ही।
निस्सारयामास = निकाल दिया।
क्रोधाविष्टः = क्रोध में भरे हुए।
मालाकारं = माली से।
नोद्यतः (न + उद्यतः) = तैयार नहीं हुआ।
इतस्ततः = इधर-उधर।
निरवहत् = निर्वाह किया।
दैववशात् = भाग्य से।
उपगम्य = जाकर।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में पिता द्वारा चन्द्रशेखर को घर से निकालने और उनके वाराणसी जाकर अध्ययन करने का वर्णन है। |

अनुवाद
एक बार चन्द्रशेखर ने उसी (अल्लीराजपुर) के उद्यान का एक फल पिता से बिना पूछे ही तॉड़ लिया। क्रोध से युक्त उनके पिता सीताराम ने प्रिय पुत्र ग्यारह वर्षीय चन्द्रशेखर को घर से निकाल दिया। क्रुद्ध पिताजी बोले–‘जाकर माली से क्षमा माँगो’, परन्तु वह ऐसा करने को तैयार नहीं हुआ। घर से निकलकर दो वर्ष तक उसने इधर-उधर प्रत्येक नगर में घूम-घूमकर कठोर परिश्रम करके जीविका चलायी। दैवयोग से वह बालक वाराणसी पहुँचा और किसी संस्कृत की पाठशाला में संस्कृत का अध्ययन करने लगा।

(3) एकदा कोऽपि दुष्टो युवा कामप्येकां भद्रयुवतीं पीडयन् चन्द्रशेखरेण बलात् गृहीतः। तं धराशायिनं कृत्वा तस्योरसि उपविष्टश्च, चन्द्रशेखरः तं तावन्नमुमोच यावत् स चञ्चलो दुष्टः धृष्टः निर्लज्जो युवा तां युवतिं भगिनिकेति नाकथयत् क्षमायाचनाञ्च नाकरोत्। अनया घटनया चन्द्रशेखरस्य महती ख्यातिः जाता। आचार्यनरेन्द्रदेवस्तेन प्रभावितः काशीविद्यापीठे तस्याध्ययनव्यवस्थां कृतवान्। यदा  विद्यापीठस्यानेके छात्राः असहयोगान्दोलने सम्मिलिताः जाताः तदाजादोऽपि तत्र सम्मिलितः त्रिवर्णध्वजमादाय ‘जयतु महात्मा गाँधी’, ‘जयतु भारतमाता’ इति घोषयन् न्यायाधीशस्य सम्मुखमानीतः।

तदा स स्वकीयं नाम ‘आजाद’ इति पितुर्नाम ‘स्वाधीन’ इति गृहञ्च कारागारमवोचत् , तदा क्रुद्धो न्यायाधीशः तस्मै पञ्चदशकशाघातदण्डमददात्। तदपि सः ‘जयजय’ कारं कृत्वा मनसि ब्रिटिशसाम्राज्यमुन्मूलयितुं सङ्कल्पमकरोत्। कशाघातेन पीड्यमानोऽपि सः निश्चल एवासीत्। ततः बहिरागत्य सः जनैरभिनन्दितः। द्वाविंशत्यधिकैकोनविंशतिशततमे (1922) वर्षे यदा महात्मना गान्धिमहोदयेनान्दोलनम् निवारितं तदाजादो दुःखितो जातः यतोऽहिसंकान्दोलने तस्य निष्ठा नासीत्।।

शब्दार्थ-
भद्रयुवतीम् = शिष्ट युवती को।
बलात् = बलपूर्वक।
धराशायिनं कृत्वा = पृथ्वी ।
पर गिराकर।
उरसि = छाती पर।
भगिनिकेति = बहन ऐसा।
ख्यातिः जाता = प्रसिद्धि हुई।
त्रिवर्णाध्वजम् आदाय = तिरंगे झण्डे को लेकर।
आनीतः = लाये गये।
घोषयन्= घोषणा करते हुए।
अवोचत् = कहा।
कशाघातदण्डम् = कोड़े मारने का दण्ड।
उन्मूलयितुम् = जड़ से उखाड़ के लिए।
कशाघातेन = कोड़ों की चोट से।
निवारितम् = रोक दिया।
निष्ठा = श्रद्धा, विश्वास।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में चन्द्रशेखर के द्वारा दुष्ट के हाथों से एक युवती को बचाने एवं महात्मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन में सम्मिलित होने का वर्णन है।

अनुवाद
एक दिन किसी एक शिष्ट युवती को सताते हुए किसी दुष्ट युवक को चन्द्रशेखर ने बलपूर्वक पकड़ लिया और उसे भूमि पर गिराकर उसकी छाती पर बैठ गया। चन्द्रशेखर ने उसे तब तक नहीं छोड़ा, जब तक उस चंचल, दुष्ट, धृष्ट, बेशर्म युवक ने उस युवती को ‘बहन’ नहीं कहा और क्षमा नहीं माँगी। इस घटना से चन्द्रशेखर की बड़ी प्रसिद्धि हो गयी। आचार्य नरेन्द्रदेव ने उससे प्रभावित होकर काशी विद्यापीठ में उसके अध्ययन की व्यवस्था करा दी। जब काशी विद्यापीठ के अनेक छात्र असहयोग आन्दोलन में सम्मिलित हुए, तब आजाद भी उसमें सम्मिलित हुए और तिरंगा झण्डा लेकर ‘महात्मा गाँधी की जय’, ‘भारतमाता की जय’ बोलते हुए न्यायाधीश (जज)  के सामने लाये गये। तब उन्होंने अपना नाम ‘आजाद’, पिता का नाम ‘स्वाधीन’ और घर ‘कारागार’ बताया। तब क्रुद्ध जज ने उनको 15 कोड़े मारने का दण्ड दिया। तब भी उन्होंने जय्-जयकार करके मन में ब्रिटिश शासन को जड़ से उखाड़ने का संकल्प किया। कोड़ों से पीटे जाते हुए भी वे निश्चल ही रहे। इसके बाद बाहर आने पर उनका लोगों ने अभिनन्दन किया। सन् 1922 ई० में जब महात्मा गाँधी ने आन्दोलन रोक दिया, तब आजाद दुःखी हुए; क्योंकि अहिंसक आन्दोलन में उनको विश्वास नहीं था।

(4) दैवात् आजादस्य परिचयः क्रान्तिकारिणा प्रणवेशचटर्जीमहोदयेन सह सञ्जातः। अनेन प्रसिद्धक्रान्तिकारिणी मन्मथनाथगुप्तेन साकं तस्य परिचयः कारितः। आजादस्य सत्यनिष्ठामवलोक्य मन्मथनाथगुप्तः क्रान्तिकारिदलस्य सदस्यं तमकरोत्। तदानीं क्रान्तिकारिदलस्य नेता अमरबलिदायी रामप्रसादबिस्मिलः आसीत्। अल्पीयसैव समयेन आजादः केन्द्रियक्रान्तिकारिदलस्य सदस्यो जातः। गुलिकाचालने लक्ष्यभेदने च तेन महत् कौशलमवाप्तम्। अतः सः तस्मिन् दले अतीव समादृतः आसीत्।  पञ्चविंशत्यधिकैकोनविंशतिशततमे (1925) वर्षे अगस्तमासस्य नवम्यां तारिकायां जायमाने काकोरीकाण्डे आजादेन सक्रियभागो गृहीतः। तस्मिन्नवसरे आजादं विहाय अन्ये बहवः सहयोगिनः निगडिताः शूलमारोपिताश्च। तदानीं परमदुःखितोऽपि आजादः क्रान्तेर्विरतो न जातः, प्रत्युत क्रान्तिकारिसेनायाः नायको जातः।।

तेनानेकानि कार्याणि कृतानि अनेकेऽधिकारिणः आरक्षिणश्च हताः। लालालाजपतरायस्य हन्ता प्रधानरक्षी ‘साण्डर्स’ नामधेयोऽपि आजादेन निहतः।।

शब्दार्थ-
सञ्जातः = हुआ।
साकम् = साथ।
कारितः = कराया।
अल्पीयसैव (अल्पीयसा + एव) = थोड़ी ही।
अल्पीयसैव समयेन = थोड़े से ही समय में।
गुलिकाचालने = गोली चलाने में।
लक्ष्यभेदने = निशाना लगाने में।
अवाप्तम् = प्राप्त कर लिया।
जायमाने = होने वाले।
निगडिताः = गिरफ्तार कर लिये गये, बेड़ी पहना दिये गये।
शूलमारोपिताः = शूली पर चढ़ा दिये गये।
विरतः = उदासीन।
आरक्षिणः = सिपाही।
हन्ता = मारने वाला।
निहतः = मारा।।

प्रसंग”
प्रस्तुत गद्यांश में चन्द्रशेखर की क्रान्तिकारी कार्यवाहियों तथा क्रान्तिकारी दल के नेतृत्व को सँभालने का वर्णन है।

अनुवाद
भाग्य से आजाद का परिचय क्रान्तिकारी प्रणवेश चटर्जी महोदय के साथ हुआ। इस प्रसिद्ध क्रान्तिकारी ने मन्मथनाथ गुप्त के साथ उसका परिचय कराया। आजाद की सत्यनिष्ठा को देखकर मन्मथनाथ गुप्त ने उसे क्रान्तिकारी दल को सदस्य बना लिया। उस समय क्रान्तिकारी दल के नेता अमर बलि देने वाले ‘रामप्रसाद बिस्मिल’ थे। थोड़े ही समय में आजाद केन्द्रीय क्रान्तिकारी दल के सदस्य हो गये। गोली चलाने और निशाना लगाने में उन्होंने महान् कौशल प्राप्त कर लिया; अतः वह उस दल में अत्यन्त आदरणीय  हो गये थे। सन् 1925 ई० में अगस्त महीने की नौ तारीख को होने वाले काकोरी काण्ड में आजाद ने सक्रिय भाग लिया। उस अवसर पर आजाद को छोड़कर दूसरे बहुत-से सहयोगी पकड़े गये (अर्थात् हथकड़ियाँ पहना दीं) और शूली पर चढ़ा दिये गये। इस समय अत्यन्त दु:खी होते हुए भी आजाद क्रान्ति से उदासीन नहीं हुए, अपितु क्रान्तिकारियों की सेना के नायक हो गये।

उन्होंने अनेक कार्य किये, अनेक अधिकारियों और सैनिकों को मारा। लाला लाजपत राय के … हत्यारे सेना के प्रधान ‘साण्डर्स’ को भी आजाद ने मार दिया।

(5) एकोनत्रिंशदधिकैकोनविंशतिशततमे (1929) वर्षे अप्रैलमासस्य अष्टम्यां तारिकायाम् आजादस्य परामर्शेनैव सरदारभगतसिंहः बटुकेश्वरदत्तश्च विधानसभाभवने बमविस्फोटमकुरुताम्। तस्मिन् समये चन्द्रशेखरोऽपि विधानसभाभवनाद् बहिः मोटरयानमादायोपस्थितः आसीत्। परं भगतसिंहः बटुकेश्वरदत्तश्च विधानसभाभवने एव आत्मसमर्पणं कृतवन्तौ। पश्चात् तौ द्वावपि शूलमारोपितौ।  एवम् आजादस्य अनेके सहयोगिनः भगवतीचरणसालिकरामप्रभृतयो मृताः। अतः आजादश्चन्द्रशेखरो नितरां खिन्नो जातः, केन्द्रियक्रान्तिकारिदलस्य सदस्ययोः यशपालवीरभद्रयोः सन्दिग्धाचरणेन तु आजादो विक्षुब्धोऽभवत्। यदी दलस्य सदस्याः एव विश्वासघातिनो जाताः तदा तस्य दुःखानुभूतिः स्वाभाविकी एव आसीत्। तदपि सः स्वमार्गात् विचलितो न जातः। कर्णपुरस्य वीरभद्रत्रिपाठिनः विश्वासघात एवं आजादस्य कृतेऽनिष्टकारको जातः।

शब्दार्थ
परामर्शेनैव = परामर्श से ही।
अकुरुताम् = किया।
मोटरयानमादायोपस्थितः = मोटर वाहन लेकर उपस्थित।
कृतवन्तौ = कर दिया। द्वावपि (द्वौ + अपि) = दोनों ही।
मृताः = मारे गये।
सन्दिग्धाचरणेन = सन्देह भरे आचरण से।
विक्षुब्धः = व्याकुल, असन्तुष्ट।
विश्वासघातिनः = विश्वासघात करने वाले।
कर्णपुरस्य = कानपुर के।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में क्रान्तिकारी गतिविधियों में चन्द्रशेखर के अनेक सहयोगियों के मारे जाने एवं दल के कुछ लोगों द्वारा विश्वासघात किये जाने का वर्णन है।

अनुवाद
सन् 1929 ई० में अप्रैल महीने की आठ तारीख को आजाद के परामर्श से ही सरदार भगतसिंह और बटुकेश्वरदत्त ने विधानसभा भवन में बम विस्फोट किया। उस समय चन्द्रशेखर भी विधानसभा भवन के बाहर मोटरगाड़ी लेकर उपस्थित थे, परन्तु भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने विधानस भवन में ही आत्मसमर्पण कर दिया। बाद में उन दोनों को शूली पर चढ़ा दिया गया। इसे प्रकार आजाद के अनेक साथी  भगवतीचरण, सालिगराम आदि मारे गये। इसलिए चन्द्रशेखर आजाद अत्यन्त दु:खी हुए। केन्द्रीय क्रान्तिकारी दल के दो सदस्यों यशपाल और वीरभद्र के सन्देहपूर्ण आचरण से आजाद नाराज हुए। जब दल के सदस्य ही विश्वासघाती हो गये, तब उनको दु:ख का अनुभव होना स्वाभाविक ही था। तब भी वह अपने मार्ग से विचलित नहीं हुए। कानपुर के वीरभद्र त्रिपाठी को विश्वासघात ही आजाद के लिए अनिष्टकारी हुआ।

(6) एकत्रिंशदधिकैकोनविंशतिशततमे (1931) वर्षे फरवरीमासस्य सप्तविंशतितमायां तारिकायां प्रातः नववादने प्रयागस्य अल्फ्रेड नाम्नि उद्याने एकस्य वृक्षस्याधश्छायायाम् आजादः यशपालेन सुखदेवेन च समं वार्तालापं कुर्वन् उपविष्टः आसीत्। तस्मिन्नेव समये गच्छन् वीरभद्रत्रिपाठी दृष्टः, यशपालोऽपि उत्थाय चलितः, आजादः सुखदेवराजेन सह वार्तालाप कुर्वन्नेवासीत्। तदा आरक्षिणः आगत्य परितोऽवरुद्धवन्तस्तम्। ।

शब्दार्थ-
नववादने = नौ बजे।
वृक्षस्याधश्छायायाम् = वृक्ष के नीचे छाया में।
समम् = साथ।
उपविष्टः आसीत् = बैठे हुए थे।
उत्थाय = उठकर।
परितः = चारों ओर।
अवरुद्धवन्तः = घेर लिया।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में चन्द्रशेखर के सिपाहियों द्वारा घेरे जाने का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
सन् 1931 ईसवी में फरवरी महीने की 27 तारीख को प्रातः नौ बजे प्रयाग के अल्फ्रेड नामक बगीचे में एक वृक्ष के नीचे छाया में आजाद यशपाल और सुखदेव के साथ बातचीत करते हुए बैठे थे। उसी समय जाता हुआ वीरभद्र त्रिपाठी दिखाई पड़ा। यशपाल भी उठकर चल दिया। आजाद सुखदेव के साथ बातचीत कर ही रहे थे, तब ही सैनिकों ने आकर चारों ओर से उसे घेर लिया।

(7) स्वकीयं सहयोगिनं कथञ्चित्ततः उद्यानात् निःसार्य. आजादः पेस्तौलअस्त्रं संसाधितवान्। तगा विपक्षतः गुलिकावृष्टिः जाता। विपक्षतः आरक्षिणां गुलिकावृष्टिं दर्श-दर्शम् आजादस्य मनः आकुलं नाभूत्। आजादोऽपि स्वकीयेनास्त्रेणानेकान् विमुग्धान् आहतांश्चाकरोत्। यदास्त्रे एका गुलिकावशिष्टा आसीत् तदा तया स्वमेवाहन्। एवमाजादश्चन्द्रशेखरो यशः शरीरेणामरतामभजत्। |

शब्दार्थ-
स्वकीयम् = अपने।
कथञ्चिद् = किसी प्रकार।
निःसार्य = निकालकरे।
संसाधित- वान् = तैयार किया।
विपक्षतः = शत्रु की ओर से।
गुलिकावृष्टिः = गोलियों की वर्षा।
आरक्षिणां = पुलिस वालों की।
आकुलं नाभूत् = व्याकुल नहीं हुआ।
विमुग्धान् = मूर्च्छित।
स्वमेवाहन (स्वम् + एव + अहन्) = अपने को ही मार दिया।
अभजत् = प्राप्त हुआ। |

प्रसंग

प्रस्तुत गद्यांश में आजाद का अपनी ही गोली से शहीद हो जाने का वर्णन है।

अनुवाद
अपने साथी (सुखदेव) को किसी तरह पार्क से निकालकर आजाद ने पिस्तौल सँभाली। तब विपक्ष की ओर से गोलियों की वर्षा हुई। विपक्ष की ओर से सैनिकों की गोलियों की वर्षा को देख-देखकर आजाद का मन व्याकुल नहीं हुआ। आजाद ने भी अपने अस्त्र से अनेक को मूर्च्छित और घायल कर दिया। जब पिस्तौल में एक गोली बची थी, तब उसने उसने स्वयं को मार लिया। इस प्रकार आजाद चन्द्रशेखर यशरूपी शरीर से अमर हो गये।।

(8) एवं विधाः अमरबलिदानिनो देशाभिमानिनो देशसंरक्षकाः क्रान्तिकारिणो नवयुवानः प्रतिदिनं नोत्पद्यन्ते। तेषा जन्म युगे कदाचिदेव जायते। यतश्च एतादृशाः अमरयुवानः युगान्तरमुपस्थापयितुमेवोत्पद्यन्ते। एतेषामावश्यकतापि क्वाचित्की कदाचित्की एव भवति। एवंविधाः आजादस्य चन्द्रशेखरस्य द्रष्टारः साक्षात्कर्तारः अद्यापि जीवन्ति ये आत्मानं पावनं मन्यन्ते। भारतभूरपि धन्यैव यत्र एतादृशा आत्मबलिदायिनो शूराः स्वीयेन जन्मना भूमिं पावनां कृतवन्तः, शोणितेन सिञ्चितवन्तश्च।।

स्वातन्त्र्यमाप्तुकामोऽयं क्रान्तिकारी दृढव्रतः।
जातोऽमरो बलेर्दानादाजादश्चन्द्रशेखरः॥

शब्दार्थ
नोत्पद्यन्ते = उत्पन्न नहीं होते।
कदाचिदेव = कभी ही।
उपस्थापयितुं = उपस्थित करने के लिए।
क्वाचित्की = कहीं।
कादाचित्की = आकस्मिक।
द्रष्टारः = देखने वाले।
अद्यापि = आज भी।
पावनं मन्यते = पवित्र मानते हैं।
शोणितेन = रक्त से।
बलेर्दानाद् = बलिदान करने से।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में चन्द्रशेखर आजाद के बलिदान का स्मरण किया गया है।

अनुवाद
इस प्रकार के अमर बलिदानी, देश पर अभिमान करने वाले, देश की रक्षा करने वाले क्रान्तिकारी नवयुवक प्रतिदिन उत्पन्न नहीं होते हैं; अर्थात् जन्म नहीं लेते हैं। उनका ज़न्म युग में कभी ही होता है; क्योंकि इस प्रकार के अमर युवक युग-परिवर्तन उपस्थित करने के लिए ही उत्पन्न होते हैं। इनकी आवश्यकता भी कहीं-कहीं, कभी-कभी ही होती है। चन्द्रशेखर आजाद के देखने वाले और साक्षात्कार करने वाले इस प्रकार के लोग आज भी जीवित हैं, जो अपने आप को पवित्र मानते हैं। भारतभूमि भी धन्य है, जहाँ इस प्रकार के आत्मबलि को देने वाले शूरवीर अपने जन्म से भूमि को पवित्र करते हैं और खून से सींचते हैं।

स्वतन्त्रता-प्राप्ति का इच्छुक वह चन्द्रशेखर नाम का युवक अत्यन्त क्रान्तिकारी और दृढ़-प्रतिज्ञ था। वह आत्म-बलिदान देकर अमर हो गया।

लघु उत्तरीय प्ररन

प्ररन 1
चन्द्रशेखर आजाद का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर
[संकेत-‘पाठ-सारांश’ मुख्य शीषक के अन्तर्गत दी गयी सामग्री को संक्षेप में अपने शब्दों में लिखें।] ।

प्ररन 2
चन्द्रशेखर के घर से निकलने की घटना का वर्णन कीजिए।
उत्तर
जब चन्द्रशेखर केवल ग्यारह वर्ष के थे, तब उन्होंने अल्लीराजपुर राज्य के बगीचे से एक फल बिना अपने पिताजी से पूछे तोड़ लिया। इस पर उनके पिता जी बहुत क्रुद्ध हुए और उन्होंने चन्द्रशेखर से उद्यान के माली से माफी माँगने के लिए कहा। लेकिन चन्द्रशेखर ने माली से क्षमा न माँगी। इस पर उनके पिता ने उन्हें घर से निकाल दिया।

प्ररन 3
चन्द्रशेखर आजाद किस प्रकार क्रान्तिकारियों में सम्मिलित होकर क्रान्तिकारी सेना के नायक बने?
उत्तर
असहयोग आन्दोलन में भाग लेने के बाद आजाद का परिचय भाग्य से प्रणवेश चटर्जी नामक क्रान्तिकारी के साथ हो गया। प्रणवेश चटर्जी ने इनका परिचय मन्मथनाथ गुप्त से करवाया। इनकी सत्यनिष्ठा से प्रभावित होकर मन्मथनाथ गुप्त ने इन्हें क्रान्तिकारी दल का सदस्य बना लिया। गोली चलाने और निशाना लगाने में इन्होंने शीघ्र ही कुशलता प्राप्त कर ली। ‘काकोरी काण्ड में इन्होंने सक्रिय भाग लिया। इस काण्ड के पश्चात् जब प्रमुख सदस्य पकड़ लिये गये, तब ये क्रान्तिकारी सेना के नायक बना दिये गये।

प्ररन 4
अल्फ्रेड पार्क में चन्द्रशेखर आजाद के बलिदान पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
सत्ताइस फरवरी उन्नीस सौ इकतीस को प्रातः नौ बजे आजाद, अल्फ्रेड पार्क में एक वृक्ष की छाया में बैठे हुए यशपाल और सुखदेव से बात कर रहे थे। इसी समय उनका विश्वासघाती साथी वीरभद्र त्रिपाठी दिखाई दिया, जिसे देखकर यशपाल उठकर चला गया। इसी समय पुलिस ने आकर पार्क को चारों ओर से घेर लिया। आजाद ने किसी प्रकार सुखदेव को पार्क के बाहर निकाल और पिस्तौल सँभाल लिया। पुलिस की ओर से गोलियों की बौछार होने लगी। आजाद ने भी अपनी गोलियों से बहुतों को घायल किया। जब उनके पास केवल एक ही गोली शेष रह गयी तो उन्होंने उससे स्वयं को मार लिया और शहीद हो गये।

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