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WBBSE 10th Class Hindi Solutions Chapter 1 दीपदान

WBBSE 10th Class Hindi Solutions Chapter 1 दीपदान

West Bengal Board 10th Class Hindi Solutions Chapter 1 दीपदान

West Bengal Board 10th Hindi Solutions

एकांकीकार- परिचय

सुप्रसद्धि एकांकीकार डॉ० रामकुमार वर्मा का जन्म मध्यप्रदेश के सागर जिले के गोपालगंज नामक मुहल्ले में सन् 1905 में हुआ था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी०ए०, एम० ए० तथा सन् 1940 में नागपुर विश्वविद्यालय से पी एच० डी० की उपाधि प्राप्त की। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में ही अध्यापन कार्य किया तथा सन् 1966 में अवकाश प्राप्त किया। इस महान साहित्यकार का निधन सन् 1990 में हो गया।
डॉ० रामकुमार वर्मा की प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं।
एकांकी-संग्रह – ‘पृथ्वीराज की आँखें’, ‘रेशमी टाई’, ‘चारुमित्रा’, ‘विभूति’, ‘सप्तकिरण’, ‘रूपरंग’, ‘रजतरश्मि’, ‘ऋतुराज’, ‘दीपदान’, ‘रिमझिम’, ‘इंद्रधनुष’, ‘पांचजन्य’, ‘कौमुद महोत्सव’, ‘मयूर पंख’, ‘खट्टे-मीठे एकांकी’, ‘ललित-एकांकी’, ‘कैलेंडर का आखिरी पन्ना’, ‘जूही के फूल’ |,
नाटक ‘विजयपर्व’, ‘कला और कृपाण’, ‘नाना फड़नवीस’, ‘सत्य का स्वप्न’ ।
काव्य-संग्रह ‘चित्ररेखा’, ‘चंद्रकिरण’, ‘अंजलि’, ‘अभिशाप’, ‘रूपराशि’, ‘संकेत’, ‘एकलव्य’, ‘वीर हम्मीर’, ‘कुल ललना’, ‘चित्तौड़ की चिता’, ‘नूरजहाँ शुजा’, ‘निशीथ’, ‘जौहर’, ‘आकाश-गंगा’, ‘उत्तरायण’, ‘कृतिका’ ।
गद्यगीत-संग्रह – ‘हिमालय’ ।
आलोचना एवं साहित्य का इतिहास – ‘कबीर का रहस्यवाद’, ‘इतिहास के स्वर’, ‘साहित्य समालोचना’, ‘साहित्य शास्त्र’, ‘अनुशीलन’, ‘समालोचना समुच्चय’, ‘हिंदी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास’ एवं हिंदी साहित्य का संक्षिप्त इतिहास’ ।
संपादन – ‘कबीर ग्रंथावली’ ।
पुरस्कार – पद्मभूषण (सन् 1963), साहित्य वाचस्पति (सन् 1968)
हिंदी की लघु नाट्य परंपरा को नया मोड़ देनेवाले डॉ० रामकुमार वर्मा आधुनिक हिंदी साहित्य में एकांकी सम्राट के रूप में जाने जाते हैं। एकांकी साहित्य के विकास और वृद्धि में उन्होंने जो योगदान दिया इसके लिए वे हमेशा याद किए जाएंगे।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न – 1 : ‘दीपदान’ एकांकी के आधार पर पन्ना धाय की प्रमुख विशेषताओं को लिखें।
अथवा
प्रश्न – 2 : ‘दीपदान’ एकांकी के प्रमुख पात्र की चारित्रिक विशेषताओं को लिखें।
अथवा
प्रश्न – 3: ‘दीपदान’ एकांकी में जिस पात्र ने आपको सबसे अधिक प्रभावित किया है उसका चरित्र-चित्रण करें।
अथवा
प्रश्न- 4 : “नमक से रक्त बनता है, रक्त से नमक नहीं” के आधार पर पन्ना का चरित्र-चित्रण करें।
अथवा
प्रश्न – 5: “यहाँ का त्योहार आत्मबलिदान है” – के आधार पर पन्ना की चारित्रिक विशेषताओं को लिखें।
अथवा
प्रश्न – 6 : “मेरे महाराणा का नमक मेरे रक्त से भी महान् है” – के आधार पर संबंधित पात्र का चरित्र-चित्रण करें।
अथवा
प्रश्न – 7 : “आज मैंने भी दीप-दान किया है। दीप-दान”! – पंक्ति के आधार पर पन्ना का चरित्र-चित्रण करें।
अथवा
प्रश्न – 8 : “अपने जीवन का दीप मैंने रक्त की धारा पर तैरा दिया है” – पंक्ति के आधार पर पन्ना का चरित्र-चित्रण करें।
अथवा
प्रश्न – 9 : “ऐसा दीप-दान भी किसी ने किया है”! – पंक्ति के आधार पर पन्ना की चारित्रिक विशेषताओं को लिखें।
अथवा
प्रश्न – 10 : “सारे राजपूताने में एक ही धाय माँ है, पन्ना ! सबसे अच्छी !” – गद्यांश के आधार पर पन्ना का चरित्र-चित्रण करें।
अथवा
प्रश्न – 11 : “महल में धाय माँ अरावली पहाड़ बनकर बैठ गई है” कथन के आधार पर संबंधित पात्र का चरित्र-चित्रण करें।
अथवा
प्रश्न – 12 : सिद्ध कीजिए कि पन्ना के चरित्र में माँ की ममता, राजपूतानी का रक्त, राजभक्ति और आत्म-त्याग की भावना है ।
उत्तर : पन्ना धाय ‘दीपदान’ एकांकी की प्रतिनिधि पात्रा है। सच कहा जाय तो वही इस एकांकी की नायिका है तथा एकांकी की संपूर्ण कथा उसके इर्द-गिर्द ही घूमती है। इस एकांकी में उसका चरित्र एक वीरांगना के रूप में प्रस्तुत हुआ है। यह वह भारतीय नारी नहीं है जिसके बारे में प्रसाद जी ने कहा था-
“नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत पग-पग तल में।
पीयूष स्रोत-सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में।”
पन्ना धाय में हमें एक साथ पृथ्वी की-सी क्षमता, सूर्य जैसा तेज, समुद्र की-सी गंभीरता, चन्द्रमा की-सी शीतलता तथा पर्वतों के समान मानसिक उच्चता दिखाई पड़ती है।
पन्ना धाय केवल एक आदर्श धाय ही नहीं है बल्कि उसमें सच्ची देशभक्ति तथा कर्त्तव्य परायणता भी कूट-कूट कर भरी है। इन्हीं गुणों के कारण वह चित्तौड़ के उत्तराधिकारी कुंवर उदय सिंह की रक्षा बनवीर से करने के लिए अपने पुत्र को बलिदान करने से भी नहीं हिचकती। यद्यपि रणवीर उसे धन का लालच देकर खरीदना चाहता है लेकिन पन्ना उसे दो टूक जवाब देती है
“राजपूतानी व्यापार नहीं करती, महाराज ! वह या तो रणभूमि पर चढ़ती है या चिता पर।”
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि पन्ना धाय ‘दीपदान’ एकांकी की प्रमुख पात्रा होने के साथ-साथ एक आदर्श भारतीय नारी का उदाहरण हमारे सामने प्रस्तुत करती है।
प्रश्न – 13 : ‘दीपदान’ एकांकी के आधार पर बनवीर की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
प्रश्न – 14 : “महाराज बनवीर नहीं कहा? मेरे कहने भर से तुम देवी हो गई” ! – गद्यांश के आधार पर बनवीर का चरित्र चित्रण करें।
अथवा
प्रश्न – 15 : “रक्त तो तलवार की शोभा है” – कथन के आधार पर बनवीर का चरित्र-चित्रण करें।
अथवा
प्रश्न – 16 : “विश्राम मैं करूँ ? बनवीर ! जिसे राजलक्ष्मी को पाने के लिए दूर तक की यात्रा करनी है” – कथन के आधार पर संबंधित पात्र का चरित्र-चित्रण करें।
अथवा
प्रश्न- 17 : “यदि मेरा नाम लेना है तो जयकार के साथ नाम लो” – पंक्ति के आधार पर बनवीर का चरित्र-चित्रण करें।
अथवा
प्रश्न- 18 : “चुप रह धाय ! बच्चे को पालने वाली – कथन के आधार पर संबंधित पात्र का चरित्र-चित्रण करें।
अथवा
प्रश्न – 19 : “लोरियाँ सुनानेवाली एक साधारण दासी महाराणा से बात करती है ?”- कथन के आधार पर संबंधित पात्र का चरित्र-चित्रण करें।
अथवा
प्रश्न – 20 : “वह दैत्य बन गया है – संबंधित पात्र का चरित्र-चित्रण करें।
अथवा
प्रश्न – 21 : “सर्प की तरह उसकी भी दो जीभें हैं जो एक से नहीं बुझेगी” – कथन के आधार पर बनवीर का चरित्र चित्रण करें।
अथवा
प्रश्न- 22 : “उसे दूसरा रक्त भी चाहिए” – संबंधित पात्र का चरित्र-चित्रण करें।
अथवा
प्रश्न- 23 : “वह पशु से भी गया-बीता है” – कथन के आधार पर संबंधित पात्र का चरित्र चित्रण करें।
अथवा
प्रश्न- 24 : “विलासी और अत्याचारी राजा कभी निष्कंटक राज नहीं करता” – संबंधित पात्र का चरित्र-चित्रण करें।
अथवा
प्रश्न – 25: आज की रात में ही वह अपने को पूरा महाराणा बना लेता चाहता है – कथन के आधार पर बनवीर का चरित्र-चित्रण करें।
उत्तर : बनवीर ‘दीपदान’ एकांकी का दूसरा प्रमुख पात्र है। वह महाराजा साँगा के भाई पृथ्वीराज का दासपुत्र है। प्रकृति से वह क्रूर तथा विलासी है। उसके रक्त में विश्वासघात का ज़हर भरा हुआ है। ऐसे ही चरित्र के कारण भारत का मध्यकालीन इतिहास का पन्ना काले अक्षरों में लिखा गया है।
बनवीर के चरित्र को निम्नांकित शीषकों के अंतर्गत रखा जा सकता है –
(क) विलासी प्रकृति – बनवीर की विलासी प्रकृति का पता इसी से चलता है उसने रावल सरूप सिंह की रूपवती, नटखट बेटी सोना को अपने प्रेम-जाल में फांस लिया है। वह बनवीर की प्रकृति से बेखबर उसके झूठे प्रेम में पागल हो चुकी है। बनवीर के प्रेम को वह जीवन की बहुत बड़ी उपलब्धि मानती है।
(ख) राजसत्ता का लालची – बनवीर के अंदर राजसत्ता का लालच इतना भर चुका है कि वह अपना विवेक खो बैठता है। राजसिंहासन पाने के लिए वह कुछ भी करने को तैयार है मौका देखकर वह राजदरबारियों तथा सैनिकों को भी लालच देकर अपनी ओर मिला लेता है।
(ग) असभ्य – बनवीर असभ्य है। सत्ता-लालच में वह यह भी भूल गया है कि जिस पन्ना को पूरा महल धाई माँ कहकर पुकारता है, वह उसके साथ अत्यंत क्रूर तथा असभ्यता से पेश आता है।
“महाराज बनवीर नहीं कहा ? “
×            ×          ×
“पन्ना ! हत्यारा बनवीर कहने वाली की जीभ काट दी जाएगी।”
×            ×          ×
“यदि मेरा नाम लेना है तो जयकार के साथ नाम लो।”
(घ) विश्वासघाती – बनवीर को महाराणा विक्रमादित्य काफी प्रेम करते हैं। इतना कि उनकी आत्मीयता में वह पागल है। इतना ही नहीं, अंत:पुर की रानियाँ भी उनसे काफी स्नेह करती हैं इसलिए वह अंत:पुर में बेरोक-टोक आ-जा सकता है। अपने स्वार्थ के लिए वह इतने सारे लोगों के साथ विश्वासघात करता है।
(ङ) हत्यारा – बनवीर की सत्ता लोलुपता इतनी बढ़ जाती है कि वह रातों-रात ही राजा बन जाना चाहता है। इसके लिए वह षड्यंत्र रचकर नगर में दीप-दान का उत्सव कराता है। उसी शोर-शराबे के बीच वह महाराणा के कक्ष मे जाकर उनकी हत्या कर देता है। महाराणा का उत्तराधिकारी कुंवर उदय सिंह है। इसलिए वह उसे भी अपने रास्ते से हटाने के लिए उसकी हत्या करने का निश्चय कर लेता है। इसकी आशंका महल की परिचारिका सामली को पहले ही हो जाती है। वह पन्ना से कहती है
“सर्प की तरह उसकी भी दो जीभें हैं जो एक से नहीं बुझेंगी। उसे दूसरा रक्त भी चाहिए।”
अंतत: वह कुंवर उदय सिंह के धोखे में पन्ना धाय के पुत्र चंदन की हत्या कर देता है।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि बनवीर का चरित्र एक स्वार्थलोलुप, विश्वासघाती तथा हत्यारे का चरित्र है। लेकिन उसके चरित्र का यह काला पहलू ही पन्ना धाय के चरित्र को और भी उज्ज्वल बना देता है।
प्रश्न – 26 : ‘दीपदान’ एकांकी के सोना का चरित्र चित्रण करें।
अथवा,
प्रश्न- 27: “धाय माँ, पागलपन कहीं कम होता है” – के आधार पर सोना का चरित्र-चित्रण करें।
अथवा,
प्रश्न- 28: “शायद सामंत की बेटी बनूँ, शायद महाराज की बेटी बनूँ” – पंक्ति के आधार पर सोना का चरित्र चित्रण करें।
अथवा,
प्रश्न- 29 : “कुछ बढ़कर ही बनूँगी” – कथन के आधार पर संबंधित पात्र का चरित्र चित्रण करें।
अथवा,
प्रश्न – 30 : “यहाँ आग की लपटें नाचती हैं, सोना जैसी रावल की लड़कियाँ नहीं “- कथन के आधार पर सोना का चरित्र चित्रण करें।
अथवा,
प्रश्न – 31 : “मैं रावल की बेटी हूँ, शायद सामंत की बेटी बनूँ”- पंक्ति के आधार पर संबंधित पात्र का चरित्र चित्रण करें।
उत्तर : सोना ‘दीपदान’ एकांकी के प्रमुख पात्रों में से एक है। यद्यपि वह बहुत कम समय के लिए एकांकी में आती है लेकिन इतने समय में ही अपना प्रभाव छोड़ जाती है।
सोना का चरित्र-चित्रण निम्नांकित शीर्षकों के अंतर्गत किया जा सकता है-
(क) रावल की पुत्री- सोना चित्तौड़ के महाराजा के अधीन रावल (सरदार) की पुत्री है। राजदरबार से जुड़े होने के कारण वहाँ के सभी लोगों से उसका संबंध परिवार की तरह हो गया है। इस बात का पता उसकी बातचीत से चलता है ‘उनको (बनवीर) हमारा नाच बहुत अच्छा लगा। ओहो बनवीर ! उन्हें श्री महाराजा बनवीर कहो।’
(ख) रुपवती एवं नटखट – सोना की उम्र सोलह वर्ष है। वह जितनी रूपवती है उतनी ही नटखट भी है। जितनी देर तक वह एकांकी में उपस्थित रहती है उसके नटखटपन का अंदाजा हमें लगता रहता है। वह थोड़ी देर के लिए भी चुप रहना नहीं जानती –
‘धाय माँ, पागलपन कहीं कम होता है? पहाड़ बढ़कर कभी छोटे हुए हैं ? नदियाँ आगे बढ़कर कभी लौटी हैं ? फूल खिलने के बाद कभी कली बने हैं ?”
(ग) अपनी किस्मत पर इठलाने वाली – सोना एक साधारण सरदार की पुत्री होकर भी जिस तरह वह बनवीर की कृपापात्र बनी है उसे वह अपनी किस्मत ही मानती है। उसकी सोच है कि यह उसका भाग्य ही है जिसके कारण वह इतना कुछ पा रही है –
‘भाग्य तो सबके होता है धाय माँ! ये नूपुर मेरे पैरों में पड़े हैं, तो यह भी इनका भाग्य है। मेरे आगमन का संदेश पहले ही पहुँचा देते हैं, तो यह भी इनका भाग्य है।”
(घ) बनवीर के प्रेम में पागल – सोना बनवीर के प्रेम में पागल है। वह बनवीर की कूटनीति को समझ नहीं पाती तथा उसके प्रेम को सच्चा मानती है जबकि पन्ना उसे सावधान करते हुए कहती है-
“आँधी में आग की लपट तेज ही होती है, सोना! तुम भी उसी आँधी में लड़खड़ाकर गिरोगी। तुम्हारे ये सारे नूपुर बिखर जाएंगे। न जाने किस हवा का झोंका तुम्हारे इन गीतो की लहरों को निगल जाएगा।”
(ङ) सुनहरे भविष्य का सपना देखने वाली – सोना का यह विश्वास है कि आगे चलकर शायद उसकी किस्मत भी खुल जाएगी। वह आने वाले उन दिनों को याद करती हुई पन्ना से कहती है –
“मैं रावल की बेटी हूँ, शायद सामंत की बेटी हूँ, शायद महाराज की बेटी बनूँ ! कुछ बढ़कर ही बनूँगी। और तुम धाय माँ ? सिर्फ धाय माँ ही रहोगी।”
इस प्रकार हम पाते हैं कि सोना का चरित्र इस एकांकी में बनवीर के चरित्र का प्रतिबिंब बनकर आया है। उसकी बातों से बनवीर के दुष्वक्र की गंध आती है। इन्हीं कारणों से वह एकांकी के प्रमुख पात्रों में अपना स्थान बनाती है।
प्रश्न – 33 : ‘दीपदान’ एकांकी का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
अथवा
प्रश्न – 33 : ‘दीपदान’ एकांकी के शीर्षक का औचित्य निर्धारित कीजिए।
अथवा
प्रश्न – 34 : ‘दीपदान’ शीर्षक एकांकी की कथावस्तु को अपने में समेटे है – अपना विचार प्रस्तुत करें।
उत्तर : ‘दीपदान’ डॉ० रामकुमार वर्मा द्वारा रचित एक ऐतिहासिक एकांकी है। किसी भी रचना का शीर्षक उसके प्रमुख पात्र या घटना पर आधारित होता है। इस एकांकी में दीप-दान कई अर्थों में हमारे सामने आता है –
पहले अर्थ में दीप-दान – जो चित्तौड़ का एक सांस्कृतिक उत्सव है तथा इसमें तुलजा भवानी की अराधना कर दीप-दान किया जाता है।
दूसरे अर्थ में दीप-दान का आशय अपने कुलदीपक चंदन के बलिदान से है। एक ओर जब सारा चित्तौड़ तुलजा भवानी के लिए दीप-दान कर रहा है तो वहीं दूसरी ओर मातृभूमि तथा भावी राजा की रक्षा के लिए पन्ना अपने ही पुत्र चंदन को मातृभूमि की भेंट चढ़ा देती है
“आज मैंने भी दीपदान किया है, दीपदान ! अपने जीवन का दीप मैंने रक्त की धारा पर तैरा दिया है। ऐसा दीपदान भी किसी ने किया है।”
तीसरे अर्थ में जहाँ एक ओर राज्य की सुख-समृद्धि के लिए चित्तौड़ के लोग दीपदान करते हैं, पन्ना मातृभूमि के लिए अपने पुत्र का ही दीपदान करती है वहीं बनवीर भी है जो अपनी सत्ता लोलुपता के कारण अपने रास्ते के काँटे कुँवर उदयसिंह के धोखे में चंदन का दीप-दान करता है –
“आज मेरे नगर में स्त्रियों ने दीप-दान किया है। मैं भी यमराज को इस दीपक का दान करूँगा। यमराज ! लो इस दीपक को। यह मेरा दीप-दान है।”
इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि चाहे विषय की दृष्टि से हो, चाहे चित्तौड़ की संस्कृति की दृष्टि से हो या अपने कुल के दीप के दान करने की बात हो या फिर बनवीर द्वारा सत्ता पाने के लिए यमराज को दीपदान करने की बात हो – हर दृष्टि से इस एकांकी का शीर्षक ‘दीपदान’ बिल्कुल सार्थक एवं उपयुक्त है।

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