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औपनिवेशिक शासन के पूर्व हिंदचीन का इतिहास

औपनिवेशिक शासन के पूर्व हिंदचीन का इतिहास

औपनिवेशिक शासन के पूर्व हिंदचीन का इतिहास

दक्षिण-पूर्व एशिया में हिंदचीन में फ्रांसीसी उपनिवेशवाद के अंतर्गत पाँच प्रशासनिक और राजनीतिक इकाइयाँ–(i) कोचीन-चीन (ii) तोकिन (iii) अन्नाम (iv) लाओस तथा (v) कंबोडिया थीं। इन सबको मिलाकर फ्रेंच-इंडो-चाइना की स्थापना की गई। इस संपूर्ण भूभाग का क्षेत्रफल लगभग 2.80 लाख वर्ग किलोमीटर था। हिंदचीन की उत्तरी सीमा म्यांमार और चीन से सटी हुई थी। दक्षिण में चीन सागर था। पाँचों क्षेत्रों की अलग-अलग भौगोलिक विशेषताएँ थीं। हिंदचीन की अर्थव्यवस्था का आधार कृषि एवं बागबानी थी। चावल की पैदावार सबसे अधिक होती थी। साथ ही, चाय, रबर एवं कॉफी का उत्पादन भी बड़ी मात्रा में होता था। हिंदचीन के उत्तरी भाग में टिन, लोहा, जस्ता जैसे खनिज पदार्थ भी बहुतायत से उपलब्ध थे।
वियतनाम पर चीनी प्रभाव-  ये सभी क्षेत्र फ्रांस के अधीन थे और इनपर फ्रांसीसी शासन व्यवस्था चलती थी, परंतु प्राचीनकाल में इनमें राजनीतिक और प्रशासनिक विभिन्नता देखी जा सकती है। वियतनाम के तोंकिन और अन्नाम में चीनी प्रभाव प्रबल था। वहाँ की सभ्यता-संस्कृति चीन से गहरे रूप से प्रभावित थी। राजनीतिक दृष्टिकोण से भी तोकिन और अन्नाम (वियतनाम) पर चीन का प्रभाव बना रहता था। तीसरी शताब्दी ईसापूर्व में चीन के चिन वंश के सम्राट शी-हुआंग-टी ने तोंकिन पर अधिकार कर लिया था। अन्नाम पर भी चीनी प्रभाव था। ये वस्तुतः चीन के करद राज्य थे। चिन वंश के बाद हान वंश के राजा वू-ती ने इनपर अधिकार कर लिया। तीसरी शताब्दी से नवीं शताब्दी तक ये राज्य चीन की अधीनता में रहे। इस अवधि में चीनी सभ्यता-संस्कृति का प्रभाव बना रहा। कन्फ्यूशियस के दर्शन और ताओवादका व्यापक प्रभाव यहाँ था, तथापि यहाँ के
लोगों ने अपनी अलग सांस्कृतिक पहचान बनाए रखने का भी प्रयास किया। अपनी लिपि, भाषा और साहित्य का विकास किया।
दसवीं शताब्दी में चीनी साम्राज्य की दुर्बलता का लाभ उठाकर ये अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित करने में भी सफल रहे। चीन और वियतनाम का ऐसा संबंध लंबे समय तक बना रहा। 15वीं शताब्दी में चीन के मिंग वंश के सम्राट युंग-ली ने पुनः वियतनाम पर अधिकार कर लिया। 19वीं शताब्दी में मंचू राजवंश का आधिपत्य स्थापित हुआ। वियतनाम के आरंभिक इतिहास की यह विशेषता थी कि जब भी चीनी साम्राज्य दुर्बल पड़ता था, तोकिन और अन्नाम स्वतंत्र हो जाते, परंतु शक्तिशाली चीनी शासन में इन्हें चीन का आधिपत्य स्वीकार करना पड़ता था।
लाओस-कंबोडिया में भारतीय प्रभाव – तोकिन-अन्नाम में जहाँ चीनी सभ्यता का प्रभाव था वहीं लाओस-कंबोडिया में भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का प्रभाव था। भारतीय और चीनी प्रभाव के कारण ही यह संपूर्ण क्षेत्र इंडो-चाइना अथवा हिंदचीन के नाम से जाना गया। अन्नाम या चंपा के राज्य की स्थापना दूसरी शताब्दी में हुई। यहाँ का विख्यात राजा श्रीमार था। यहाँ से संस्कृत भाषा में लिपिबद्ध अनेक अभिलेख मिले हैं। चीन और कंबुज (कंबोडिया) राज्य से चंपा का निरंतर संघर्ष होता रहता था। कुबलई खान के आक्रमणों एवं इस्लाम धर्म के प्रसार ने इस राज्य को समाप्त कर दिया। चंपा में बौद्ध, शैव एवं वैष्णव धर्मों का विकास हुआ। अनेक मंदिर, विहार, स्तूप एवं मूर्तियाँ यहाँ बनवाई गई।
चंपा के पश्चिम में कंबुज या कंबोडिया राज्य था। इस राज्य की स्थापना चौथी शताब्दी में हुई। इस राज्य का संस्थापक कम्बु
स्वयंभुव था। यह राज्य भी भारतीय सभ्यता-संस्कृति का केंद्र था। आठवीं से चौदहवीं शताब्दी तक यह राज्य प्रभावशाली बना रहा। यहाँ भी वैष्णव और शैव धर्म का विकास हुआ। अंगकोर इस राज्य का सांस्कृतिक केंद्र था। 12वीं शताब्दी में यहाँ के राजा सूर्यवर्मा द्वितीय (1113-45) ने अंकोरवाट के विशाल एवं विश्वविख्यात विष्णु मंदिर का निर्माण करवाया। तेरहवीं शताब्दी से यह राज्य पतनोन्मुख हो गया।

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