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MP Board Class 9th Hindi Solutions Chapter 6 प्रेमचन्द के फटे जूते

MP Board Class 9th Hindi Solutions Chapter 6 प्रेमचन्द के फटे जूते

MP Board Class 9th Hindi Solutions Chapter 6 प्रेमचन्द के फटे जूते ( हरिशंकर परसाई )

लेखक – परिचय

जीवन परिचय – हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री हरिशंकर परसाई जी का जन्म 22 अगस्त 1922 ई. में जमानी गाँव जिला होशंगाबाद (म.प्र.) में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव की पाठशाला में हुई। उन्होंने नागपुर से हिन्दी में एम.ए. किया और उसके बाद कुछ दिन तक अध्यापन कार्य किया। सन् 1947 से उन्होंने स्वतंत्र लेखन कार्य प्रारंभ किया। उन्होंने जबलपुर से ‘वसुधा’ पत्रिका का संपादन किया जो काफी चर्चित रही। परसाई जी ने विषम परिस्थितियों में भी लेखन से मुँह नहीं मोड़ा। वे आर्थिक amy तंगी झेलते हुए सन् 1995 में दिवगत हो गए।
रचनाएँ – हिन्दी साहित्य के सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार परसाई जी की दो दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है, जिनमें से प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित है-
निबंध संग्रह – भूत के पाँव पीछे, तब की बात और थी, बेइमानी की परत, सदाचार का ताबीज, पगडंडियों का जमाना, और अंत में शिकायत मुझे भी है।
उपन्यास-तट की खोज, रानी नागमती की कहानी ।
कहानी संग्रह-हँसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे ।
व्यंग्य संग्रह – तिरछी रेखाएँ, ठिठुरता हुआ गणतंत्र, विकलांग श्रद्धा की दौड़, वैष्णव की फिसलन आदि ।
साहित्यिक रचनाएँ- परसाई जी हिंदी के श्रेष्ठ व्यंग्यकार माने जाते हैं। वे अपने व्यंग्य से पाठकों को एक ओर गुदगुदाते हैं तो दूसरी ओर भारतीय जीवन के पाखंड, भ्रष्टाचार, अंर्तविरोध, बेइमानी पर लिखे व्यंग्यों द्वारा समाज में व्याप्त कुरीतियों पर करारी चोट करते हैं। उनका व्यंग्य बहुत पैना और प्रभावकारी है। बुराई की सूक्ष्म से सूक्ष्म अदा को रोचक शैली में प्रस्तुत किया है। राजनीतिक छल-कपट पर उन्होंने अति सशक्त रचनाएँ लिखी हैं।
परसाई जी ने हिंदी के साहित्यकारों की दुर्दशा दिखाने के लिए ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ नामक व्यंग्य लिखा है। इसमें एक ओर प्रेमचंद की संघर्षशीलता का वर्णन है तो दूसरी ओर उनकी फटेहाली का।
भाषा-शैली – परसाई जी की भाषा सरल एवं सरस तथा प्रभावोत्पादक है। उनकी रचनाओं में व्यंगात्मक शैली परिलक्षित होती है। उनका हर शब्द, हर वाक्य व्यंग्य के तीखे स्वर से भरा हुआ है। उन्होंने प्रायः लोक प्रचलित हिंदी की रचनाएँ लिखी हैं। हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी के शब्दों का खुलकर प्रयोग किया है।
पाठ का सार
‘प्रेमचंद के फटे जूते’ एक व्यंग्य निबंध है। इसमें प्रेमचंद के फटे जूतों को लक्ष्य करके लेखकों की दुर्दशा पर व्यंग्य किया गया है। जो व्यक्ति समाज की कुरीतियों पर ठोकरे मारता है, समाज उसे बदले में क्या देता है, इसका वर्णन मार्मिक बन पड़ा है।
लेखक के सामने प्रेमचंद का एक फोटो है, जिसमें वे अपनी पत्नी के साथ है। फोटो में वे कुरता – धोती पहने हुए सिर पर टोपी लगाए है कनपटी चिपटी, गालों की हड्डियाँ उभरी तथा चेहरे पर घनी मूँछे है। पाँवों में केनवस के बेतरतीब बंद वाले जूते हैं, उसके बंद के लोहे की पतरी गायब हो गई है। उन्हें किसी तरह बाँध लिया गया है। बाएँ पैर का जूता फटा है। जिसमें से पैर की उँगली दिख रही है। यह सब देखकर लेखक हैरत में पड़ जाता है कि जब फोटो की पोशाक ऐसी है तो रोज के पहनने की कैसी होगी।
हैरानी की बात यह है कि फोटो में भी प्रेमचंद के चेहरे पर एक व्यंग्य भरी हँसी है। लेखक सोचता है कि प्रेमचंद न फटे जूते पहनकर फोटो खिंचवाने से मना क्यों नहीं कर दिया था, शायद उनकी पत्नी का आग्रह रहा होगा। उनकी यह हालत देखकर लेखक रोना चाहता है किन्तु प्रेमचंद की आँखों का दर्द उसे रोक देता है।
लेखक कहता है कि मेरा जूता ऊपर से अच्छा दिखता है लेकिन उसका तला घिसा हुआ है। मैं फटे जूते पहनकर फोटो कभी नहीं खिंचवा सकता । लेखक सोचता है कि इस सबके बावजूद प्रेमचंद के चेहरे पर हँसी का क्या रहस्य हैं? क्या कोई हादसा हो गया है। क्या हल्कू के खेत को नीलगाय चर गई है? या घीसू का बेटा माधो अपनी पत्नी के कफन को बेचकर खा गया? याद आया, भक्त कवि कुंभनदास का जूता भी तो फतेहपुर सीकरी आने-जाने में घिस गया था।
लेखक को अंततः यह बोध होता है कि प्रेमचंद जीवन भर किसी कठोर चीज को ठोकर मारते रहे हैं। वे रास्ते में खड़े टीले से बचकर निकलने के बजाय उस पर जूते से ठोकरें मारते है। वे समझौता नहीं कर सके।
प्रेमचंद के पाँव की उँगली मानों उसी घृणित जगह पर संकेत कर रही है जिस पर ठोकर मारकर उन्होंने अपने जूते फाड़े थे। वे अब भी उन लोगों पर हँस रहे है जो अपनी उँगली की ढकने की चिंता में तलुवे घिसाए जा रहे हैं। लेखक ने कम-से-कम अपना पाँव बचा लिया, परन्तु लोग अपने तलुवे का नाश कर रहे हैं।
पाठ्य पुस्तक पर आधारित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. लेखक को प्रेमचंद के जूते देखकर रोना क्यों आता है?
उत्तर- एक महान लेखक होने के बावजूद प्रेमचन्द बेदहाली की स्थिति में दिखते थे। उनके पास विशेष अवसरों पर पहनने के लिए भी अच्छे कपड़े और जूते नहीं थे। उनकी इस दुःखद स्थिति को लेखक अपनी आत्मा में महसूस करता है। उसे उनकी ऐसी विपन्न स्थिति पर रोना आता है।
प्रश्न 2. लेखक हरिशंकर परसाई की नजर प्रेमचंद के जूतों पर क्यों रुक गई?
उत्तर- हरिशंकर परसाई की नजर प्रेमचंद के जूतों पर इसलिए रुक गई कि उन्हें साहित्य जगत् का आधार स्तम्भ, महान कथाकार, युगप्रवर्तक आदि कई संज्ञाओं से अभिहित किया गया है, परन्तु उनके पास विशेष अवसर के लिए ढंग के जूते भी नहीं थे। फोटो खिंचवाने के अवसर पर जो जूते उन्होंने पहने थे वे फटे-पुराने थे।
प्रश्न 3. लेखक श्री हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद को साहित्यिक पुरखा क्यों कहा है?
उत्तर- प्रेमचंद अपने समय से लेकर अब तक के हिन्दी सात्यिकारों में सर्वश्रेष्ठ स्थान रखते हैं। हिन्दी साहित्य में वे जिस शिखर पर विद्यमान हैं, वहाँ तक पहुँचना किसी के बस की बात नहीं है। उन्होंने अपने आसपास की सामाजिक स्थिति का वास्तविक चित्र अपने लेखों में प्रस्तुत किया है। उन्हें तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक तथा आर्थिक परिस्थितियों का अच्छा ज्ञान था। उन्होंने जिन विषयों पर अपनी कलम चलाई उनकी प्रासंगिकता वर्तमान सन्दर्भ में भी उतनी ही है, जितनी उस समय थी। अतः लेखक ने उन्हें साहित्यिक पुरखा मानना उचित समझा है।
प्रश्न 4. ‘गंदे से गंदे आदमी की फोटो भी खुशबू देती है’ पंक्ति के माध्यम से हरिशंकर परसाई क्या कहना चाहते हैं?
उत्तर- उपर्युक्त पंक्ति के माध्यम से लेखक हरिशंकर परसाई ने समाज में व्याप्त दिखावे की प्रवृत्ति को समाज के समक्ष उजागर करना चाहा है। उनके अनुसार लोग दिखावे के लिए फोटो खिंचवाते दूसरों से कई वस्तुएँ उधार ले लेते हैं। यहाँ तक कि बीवी भी। परसाई जी प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से यह कहना चाहते हैं कि दिखावा बेकार है। वास्तविकता को स्वीकार कर सही मार्ग पर चलें, तो सफलता अवश्य मिलेगी।
प्रश्न 5. प्रेमचंद ने फटे जूते में भी अपनी फोटो खिंचा ली, पर लेखक ऐसा कभी नहीं करता। क्यों? पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- हरिशंकर परसाई ने प्रस्तुत पाठ ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ में हमेशा स्वयं को वर्तमान सन्दर्भ में तथा लेखक को तत्कालीन समय के प्रतिनिधि के रूप में प्रस्तुत किया है।
लेखक ने उपर्युक्त पंक्ति में यह दिखाना चाहा है कि वर्तमान और प्रेमचंद के समय में वैचारिक स्तर पर काफी असमानता है। तत्कालीन लोग अपनी वस्तुस्थिति को छिपाना नहीं जानते थे। वे जैसे थे, वैसे ही दिखते थे। अत: प्रेमचंद ने अपने फटे-जूतों के साथ फोटो खिचा ली। परन्तु वर्तमान में अपने दोषों को छिपाने के पीछे लोग सब कुछ करते हैं। लेखक इस दशा में फोटो खिचाने को तैयार नहीं हैं।
प्रश्न 6. हरिशंकर परसाई ने अपने और प्रेमचंद के जूते में क्या अन्तर बताया है ?
उत्तर- प्रेमचंद के बाएँ पैर के जूते में ऊपर छेद है, जिससे उनकी पैर की अँगुली बाहर निकल आई है। वहीं लेखक का जूता ऊपर से तो बिल्कुल ठीक है, पर अँगूठे के नीचे का तला घिस गया है, जिससे उनका अँगूठा घिसकर लहूलुहान हो जाता है। पूरा तला गिर जाएगा, पूरा पंजा छिल जाएगा, मगर अँगुली बाहर नहीं दिखेगी । परन्तु प्रेमचंद की अँगुली दिखती है, पर पाँव सुरक्षित है।
प्रश्न 7. “तुम भी जूते और टोपी के आनुपातिक मूल्य के मारे हुए थे” पंक्ति के माध्यम से लेखक क्या व्यक्त कर रहा है?
उत्तर-प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से लेखक ने तत्कालीन सामाजिक, राजनैतिक स्थिति का वास्तविक चित्र व्यक्त करना चाहा है। प्रेमचंद उच्चकोटि के साहित्यकार थे। लोगों को उन्हें अपने सिर पर धारण करना चाहिए था। समाज और सरकार द्वारा सम्मान किया जाना था। पर हमारे समाज में टोपी अर्थात् प्रतिभा की पूछ नहीं है। पूछ है, तो जूते अर्थात् चापलूसों की, जो सम्मान के पात्र नहीं है। टोपी के बजाय जूते की कीमत ज्यादा लगाई जाती है। कम से कम प्रेमचंद के मामले में तो यह अक्षरशः सत्य है।
प्रश्न 8. लेखक और प्रेमचंद का दृष्टिकोण समस्याओं से निपटने में भिन्न है। कैसे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-लेखक आधुनिकता का प्रतिनिधि है। वह समस्याओं से निपटने के मामले में बिल्कुल भिन्न दृष्टिकोण रखता है। प्रेमचंद समस्या रूपी टीले को हटाने के लिए बार-बार उस पर ठोकर मारते हैं। भले ही इस क्रम में उनका जूता फट जाए । परन्तु लेखक उस समस्या रूपी टीले बचकर किनारे से निकल जाने में विश्वास करता है।
प्रश्न 9. लेखक ने प्रेमचंद और उनके बहुचर्चित पात्र होरी को किस कमजोरी से ग्रस्त बताया? पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-लेखक ने प्रस्तुत पाठ ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ में प्रेमचंद और उनके बहुचर्चित पात्र होरी को ‘नेम-धरम’ की कमजोरी से ग्रस्त बताया है। दोनों ने कभी भी धर्म विरुद्ध कार्य नहीं किया। दोनों ने धर्मों के निर्धारित नियमों का उल्लंघन नहीं किया। वे विकटतम परिस्थितियों में भी अपने मूल्यों पर सदैव आगे बढ़ते रहे।
प्रश्न 10. हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद का जो शब्द चित्र हमारे सामने प्रस्तुत किया है, उससे प्रेमचंद के व्यक्तित्व की कौन-कौन-सी विशेषताएँ उभरकर सामने आती हैं?
उत्तर-लेखक द्वारा प्रस्तुत प्रेमचंद के शब्द चित्र में प्रेमचंद के व्यक्तित्व की अनेक विशेषताएँ उभरकर सामने आई है, जिनमें प्रमुख है
1. उच्च विचार- प्रेमचंद सर्वश्रेष्ठ साहित्यकार थे। वे आजीवन कष्ट झेलकर भी सदैव सामाजिक बुराइयों से दूर रहे। उन्होंने कभी भी बुराइयों से समझौता नहीं किया।
2. सादा जीवन प्रेमचंद ने हमेशा स्वयं को आडंबर एवं दिखावटी व्यवहारों से दूर रखा। वे गाँधीजी की तरह सादे जीवन के हिमायती थे।
3. स्वाभिमानी- प्रेमचंद ने अनेक कष्टों के बावजूद किसी के सामने हाथ नहीं फैलाया। लाख आभावों के बावजूद वे अपनी स्थिति से सदैव सन्तुष्ट रहते थे।
4. समाज में व्याप्त कुरीतियों के विरोधी- प्रेमचंद ने समाज में व्याप्त कुरीतियों के प्रति बार-बार लोगों को सचेत किया। भारतीय जीवन के पाखंड, भ्रष्टाचार, अंतर्विरोध, बेईमानी आदि पर उन्होंने करारे व्यंग्य किये है, जो वर्तमान सन्दर्भ में भी प्रासंगिक है।
प्रश्न 11. “जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई और एक जूते पर पच्चीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं।” पंक्ति में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति में लेखक ने समाज में प्रचलित अनैतिकता पर कठोर व्यंग्य किया है। वे लिखते हैं कि जूता, जिसका स्थान पाँवों में अर्थात् सबसे नीचे है, पर इसे ताकत और सार्मथ्य का प्रतीक माना जाता है। इसके बल पर लोग अनेक टोपियों को अपने समक्ष झुकने को मजबूर कर देते हैं। टोपी का स्थान सिर पर अर्थात् सर्वोच्च होता है। पर आज इसकी स्थिति जूते से भी नीचे है।
प्रश्न 12. “तुम पर्दे का महत्व ही नहीं जानते, हम पर्दे पर कुर्बान हो रहे हैं। ” पंक्ति में निहित व्यंग्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- अपनी बुराइयाँ छिपाना प्राय: सभी लोगों का स्वभाव होता है। लेखक ने उपर्युक्त पंक्ति में लोगों की इस प्रवृत्ति पर व्यंग्य किया है। लोग अपनी बुराइयों को दूसरों के सामने प्रकट नहीं होने देना चाहते। अन्दर से वे कैसे भी हों पर बाहर से वे सदैव स्वस्थ प्रसन्न एवं सम्पन्न दिखाई देना चाहते हैं। परन्तु प्रेमचंद अंदर बाहर एक समान है। उन्होंने कभी भी स्वयं को छिपाने का प्रयास नहीं किया।
प्रश्न 13. “जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ हाथ की नहीं, पाँव की अँगुली को इशारा करते हो। ” पंक्तियों में निहित व्यंग्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर प्रस्तुत पंक्ति में लेखक ने दिखावटीपन पर करारा व्यंग्य किया है। प्रेमचंद ने सामाजिक बुराइयों की अच्छी खबर ली है। उन्होंने इन बुराइयों की तरफ अपने हाथ की अँगुली भी नहीं उठाई, क्योंकि हो सकता था कि अच्छे जूते वाले उनकी वे अँगुली तोड़ देते। अतः उन्होंने इन बुराइयों को अपने जूते से बाहर झाँकती अँगुली के माध्यम से दिखाया है और समाज को बनावटीपन से दूर रहने का मौन संकेत दिया है।
प्रश्न 14. ‘प्रेमचंद के जूते’ पाठ में एक जगह लेखक सोचता है कि ‘फोटो खिंचाने की अगर यह पोशाक है, तो पहनने की कैसी होगी? लेकिन अगले ही पल वह विचार बदलता है कि ‘नहीं इस आदमी की अलग-अलग पोशाकें नहीं होगी।’ आपके अनुसार इस सन्दर्भ में प्रेमचंद के बारे में लेखक के विचार बदलने की क्या वजहें हो सकती हैं?
उत्तर-प्रेमचंद का सम्पूर्ण व्यक्तित्व ऐसा रहा है कि उनके द्वारा दोहरा चरित्र जीने के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता। आम धारणा यही है कि लोग विशेष अवसर पर विशेष पोशाक पहनते हैं। इसी धारणा से अभिप्रेरित होकर लेखक कुछ पल के लिए दिग्भ्रमित होता है, परन्तु व्यक्ति विशेष का दिमाग में विचार आते ही वह अपनी धारणा बदलकर उनके अनुकूल आचरण की भावना को व्यक्त करता है। दूसरा, लेखक सोचता है कि सादा जीवन उच्च विचार वाला यह आदमी भीतर बाहर एक-सा है। इनकी जिन्दगी का हर एक पहलू आइने की तरह स्पष्ट है। इनका दोहरा व्यक्तित्व हो ही नहीं सकता। .
प्रश्न 15. आपने ‘प्रेमचंद के फटे-जूते’ व्यंग्य पढ़ा। इसे पढ़कर आपको लेखक की कौन-सी बातें आकर्षित करती हैं ?
उत्तर- लेखक हरिशंकर परसाई अपने व्यंग्य-लेखन के लिए विख्यात रहे हैं। इस निबन्ध में परसाई जी ने महान साहित्यकार प्रेमचंद के व्यक्तित्व की सादगी के साथ एक रचनाकार की अंतर्भेदी सामाजिक दृष्टि को माध्यम बनाकर समाज में प्रचलित अवसरवादिता एवं दिखावे की प्रवृत्ति की ओर सबका ध्यान आकृष्ट किया है। यह शैली हमें बहुत अधिक आकर्षित करती है।
प्रश्न 16. ‘प्रेमचंद के जूते’ पाठ में ‘टीले’ शब्द का प्रयोग किन सन्दर्भों को इंगित करने के लिए किया गया होगा?
उत्तर-टीला का शाब्दिक अर्थ है ऊँची जमीन, मिट्टी का ढेर या छोटी पहाड़ी। परन्तु पाठ में टीला से अभिप्राय उन अवरोधों से है, जो विकास में बाधक हैं। प्रस्तुत व्यंग्य में •टीला शब्द का प्रयोग विभिन्न सामाजिक कठिनाइयों के लिए किया गया है, जिसे कथित तौर पर समाज के ठेकेदारों, पंडित, मौलवी, जमींदार एवं साहूकारों ने खड़ा किया है। लेखक तो उससे बचकर निकल जाने की बात करता है, परन्तु प्रेमंचद ने इन्हीं टीलों को गिराने के प्रयास में स्वयं को न्योछावर कर दिया।
प्रश्न 17. आपकी दृष्टि में वेश-भूषा के प्रति लोगों की सोच में आज क्या परिवर्तन आया है?
उत्तर-वर्तमान समाज में पोशाक का महत्व अत्यन्त महत्वपूर्ण है। पोशाक के प्रति लोगों की सोच में आशातीत परिवर्तन आया है। आज का समाज सर्वप्रथम लोगों की वेशभूषा देखता है। अगर अत्यधिक गुणवान व्यक्ति भी निम्न पोशाक पहनकर रहे, तो समाज शायद ही उसे स्वीकार करेगा। वह अच्छे कपड़ों के अभाव में अनादरणीय जीवन व्यतीत करेगा। इस परिस्थिति में लोग अपनी वेशभूषा के प्रति काफी सजग रहते हैं। समाज में सादा जीवन जीने वाले लोगों को पिछड़ा समझा जाने लगा है।
प्रश्न 18. प्रेमचंद के व्यक्तित्व को उभारने के लिए लेखक ने किन विशेषणों का प्रयोग किया है? पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर-सम्पूर्ण पाठ में लेखक ने प्रेमचंद के व्यक्तित्व को महिमामंडित किया है। इसके लिए लेखक ने प्रेमचंद के लिए अनेक विशेषणों का प्रयोग किया है; जैसे महान कथाकार, युग प्रवर्तक, उपन्यास सम्राट, जनता के लेखक आदि।
प्रश्न 19. प्रेमचंद के फटे जूते पाठ में वर्णित कुंभनदास का परिचय दीजिए।
उत्तर- लेखक ने ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ पाठ में जूता घिसने के उदाहरण में कुंभनदास का भी वर्णन किया है। कुंभनदास भक्तिकाल के कृष्ण भक्तिधारा के एक प्रमुख कवि थे। ये वल्लभाचार्य के शिष्य तथा अष्टछाप के कवियों में से एक थे।
प्रश्न 20. ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ पाठ में लेखक ने प्रेमचंद के जूते फटने का क्या कारण बताया है ?
उत्तर-लेखक श्री हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद के जूते फटने का कारण बताते हुए लिखा है कि प्रेमचंद बनिये के तगादे के डर से दूर का चक्कर लगाकार घर जाते थे। दूसरा परत-दर-परत सदियों से जमे टीलों को गिराने के प्रयास में बार-बार उस पर ठोकर मारते थे, जिससे उनके जूते फट गए।
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. सही विकल्प द्वारा रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
(i) लेखक के सामने ……… का फोटो है। (प्रेमचन्द / परसाईजी)
(ii) लेखक की दृष्टि ………. पर अटक गई। (फोटो/प्रेमचंदजी)
(iii) प्रेमचन्दजी ……. साहित्यकार थे। (आदर्शवादी / यथार्थवादी)
(iv) परसाईजी ………. एक थे। (आलोचक/व्यंग्यकार)
उत्तर-(i) प्रेमचन्द (ii) फोटो (iii) यथार्थवादी (iv) व्यंग्यकार
प्रश्न 2. सत्य / असत्य बताइए –
(i) प्रेमचन्द के जूते फटे थे।
(ii) वर्तमान परिवेश के लोग प्रदर्शन – प्रेमी है।
(iii) प्रेमचन्दजी संवेद दृढ़ चरित्र और सन्तुष्ट दिखते थे।
(iv) प्रेमचन्दजी वास्तविकता में विश्वास नहीं करते थे। (v) प्रेमचन्दजी प्रसंगानुकूल पोषाक पहनते थे।
उत्तर- (i) सत्य (ii) सत्य (iii) सत्य (iv) सत्य (v) असत्य।
प्रश्न 3. एक वाक्य में उत्तर दीजिए-
(i) पर्दे का महत्व कौन नहीं जानता है?
(ii) पर्दे पर कौन कुर्बान हो रहा है?
(iii) लेखक क्या करने को तैयार नहीं हैं ?
(iv) होरी में क्या कमजोरी थी?
उत्तर- (i) पर्दे का महत्व प्रेमचन्द्रजी नहीं जानते हैं।
(ii) पर्दे पर दिखावा पसन्द संस्कृति के लोग कुर्बान हो रहे हैं।
(iiii) लेखक प्रेमचन्द्रजी की तरह फटे जूते पहनकर फोटो खिंचवाने को तैयार नहीं है ।
(iv) होरी में नेम-धरम के पालन की कमजोरी थी।
महत्वपूर्ण गद्यांश एवं सम्बन्धित प्रश्नोत्तर 
गद्यांश 1. “प्रेमचंद का एक चित्र मेरे सामने है, पत्नी के साथ फोटो खिंचा रहे हैं। सिर पर किसी मोटे कपड़े की टोपी, कुरता और धोती पहने हैं। कनपटी चिपकी है, गालों की हड्डियाँ उभर आई हैं, पर घनी मूँछे चेहरे को भरा-भरा बतलाती हैं। पाँवों में केनवस के जूते हैं, जिनके बंद बेतरबीत बँधे हैं। लापरवाही से उपयोग करने पर बंद के सिरों पर की लोहे की पतरी निकल जाती है और छेदों में बंद डालने में परेशानी होती है। तब बंद कैसे भी कस लिए जाते हैं । दाहिने पाँव का जूता ठीक है, मगर बाएँ जूते में बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अँगुली बाहर निकल आई है। मेरी दृष्टि इस जूते पर अटक गई है। सोचता हूँ – फोटो खिंचाने की अगर यह पोशाक है, तो पहनने की कैसी होगी? नहीं, इस आदमी की अलग-अलग पोशाकें नहीं होंगी इसमें पोशाकें बदलने का गुण नहीं है। यह जैसा है, वैसा ही फोटो में खिंच जाता है।”
प्रश्न 1. लेखक के सामने किसका चित्र है? वह क्या सोच रहा है?
उत्तर- लेखक के सामने महान् साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद का चित्र है। उसे देखकर लेखक उनके व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में सोच रहा है। कि फोटो खिंचाने की अगर यह पोशाक है तो घर पर पहनने की कैसी होगी। पर दूसरे ही क्षण वह स्वयं को समझाता हुआ कहता है कि नहीं, सादगी पसंद आदमी की घर और बाहर की अलग-अलग पोशाकें नहीं होंगी।
प्रश्न 2. लेखक की दृष्टि कहाँ अटक गई?
उत्तर-लेखक की दृष्टि प्रेमचंद द्वारा फोटो में पहने जूते पर अटक गई, जिसमें प्रेमचंद के दाहिने पाँव का जूता तो ठीक था, परन्तु बाएँ पैर के जूते में एक बड़ा छेद था, जिससे उनके पाँव की अँगुली बाहर निकल आयी थी ।
प्रश्न 3. फोटो को देखकर लेखक किस निष्कर्ष पर पहुँचता है?
उत्तर- फोटो को देखकर पहले तो लेखक प्रेमचंद की पोशाक पर आश्चर्य व्यक्त करता है और सोचता है कि फोटो खिंचवाने की यह पोशाक है, तो पहनने की कैसी होगी? परन्तु तुरंत वह अपनी सोच बदलता है और प्रेमचंद के व्यक्तित्व को देखते हुए वह इस निष्कर्ष पर पहुँचता है कि प्रेमचंद की पोशाकें घर और बाहर के लिए अलग-अलग नहीं होंगी।
गद्यांश 2. मैं चेहरे की तरफ देखता हूँ। क्या तुम्हें मालूम है, मेरे साहित्यिक पुरखे कि तुम्हारा जूता फट गया है और अँगुली बाहर दिख रही है? क्या तुम्हें इसका जरा भी अहसास नहीं है? जरा लज्जा, संकोच या झेंप नहीं है? क्या तुम इतना भी नहीं जानते कि धोती को थोड़ा नीचे खींच लेने से अँगुली ढक सकती है ? मगर फिर भी तुम्हारे चेहरे पर बड़ी बेपरवाही, बड़ा विश्वास है! फोटोग्राफर ने जब ‘रेडीप्लीज’ कहा होगा, तब परम्परा के अनुसार तुमने मुसकान लाने की कोशिश की होगी, दर्द के गहरे कुएँ के तल में कहीं पड़ी मुस्कान को धीरे-धीरे खींचकर ऊपर निकाल रहे होगे कि बीच में ही ‘क्लिक’ करके फोटोग्राफर ने ‘थैंक यू’ कह दिया होगा। विचित्र है यह अधूरी मुसकान ।
प्रश्न 1. गद्यांश में, ‘मैं’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर- प्रस्तुत गद्यांश में, ‘मैं’ शब्द का प्रयोग लेखक ने स्वयं के लिए किया है। अतः गद्यांश में ‘मैं’ का तात्पर्य लेखक से है।
प्रश्न 2. लेखक प्रेमचंद से क्या कहना चाहता है?
उत्तर – लेखक प्रेमचंद से यह कहना चाहता है कि फोटो में तुम जैसे महान् साहित्यकार की पोशाक प्रतिष्ठा के अनुसार नहीं है। जूता फटा है, उससे पैर की अंगुली बाहर दिख रही है। पर तुम्हें कोई संकोच नहीं। तुम्हारे चेहरे पर वही विश्वास का तेज झलक रहा है।
प्रश्न 3. फोटो की मुसकान पर लेखक की क्या प्रतिक्रिया है?
उत्तर- फोटो की मुसकान पर लेखक आहत है और उस मुसकान का लक्ष्यार्थ समझने का दावा करता है। लेखक लिखा है कि फोटो खिंचवाते समय परम्परा के अनुसार फोटोग्राफर मुसकराने के लिए कहा होगा और आपने मुसकान लाने की पूरी कोशिश की परन्तु दर्द के गहरे कुएँ से मुसकान लाने की चेष्टा के दरम्यान ही फोटोग्राफर ने क्लिक कहके थैंक्यू कह दिया होगा। तुम्हारी ये अधूरी मुसकान, मुसकान नहीं उपहास है वर्तमान समाज पर।
गद्यांश 3. यह कैसा आदमी हैं, जो खुद तो फटे जूते पहने फोटो खिंचा रहा है, पर किसी पर हँस भी रहा है ! फोटो ही खिंचाना था, तो ठीक जूते पहन लेते, या न खिंचाते। फोटो न खिंचाने से क्या बिगड़ता था। शायद पत्नी का आग्रह रहा हो और तुम, ‘अच्छा, चल भई’ कहकर बैठ गए होगे। मगर यह कितनी बड़ी ‘ट्रेजडी’ है कि आदमी के पास फोटो खिंचाने को भी जूता न हो। मैं तुम्हारी यह फोटो देखते-देखते, तुम्हारे क्लेश को अपने भीतर महसूस करके जैसे रो पड़ना चाहता हूँ, मगर तुम्हारी आँखों का यह तीखा दर्द भरा व्यंग्य मुझे एकदम रोक देता है। “
प्रश्न 1. लेखक परसाई प्रेमचंद को क्या सलाह दे रहे हैं?
उत्तर- लेखक परसाईजी प्रेमचंद को सलाह दे रहा है कि कम-से-कम चंद क्षणों के लिए ही सही दिखावे की संस्कृति को अपना लेते, अर्थात् फोटो खिंचवाने के लिए ठीक जूते पहन लेते।
प्रश्न 2. यहाँ जिस ट्रेजेडी की चर्चा की गई है, वह क्या है?
उत्तर- प्रस्तुत गद्यांश में जिस ट्रेजेडी की चर्चा की जा रही है, वह है कि प्रेमचंद जैसे महान साहित्यकार के पास फोटो खिंचवाने के लिए भी जूता नहीं। अर्थात् ऐसे महान् व्यक्तित्व की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं कि वह जूता भी खरीद सकें।
प्रश्न 3. लेखक क्या नहीं कर पाता है ?
उत्तर- लेखक प्रेमचंद के दर्द को स्वयं महसूस कर उनकी स्थिति पर चाहकर भी रो नहीं पाता। कारण इतने कष्टों के बाद भी प्रेमचंद दृढ़ और सन्तुष्ट दिखाई देते हैं।
गद्यांश 4. तुम फोटो का महत्व नहीं समझते। समझते होते, तो किसी से फोटो खिंचाने के लिए जूते माँग लेते। लोग तो माँगे गए कोट से वर-दिखाई करते हैं। और माँगे की मोटर से बारात निकालते हैं। फोटो खिंचाने के लिए तो बीवी तक माँग ली जाती है, तुमसे जूते ही माँगते नहीं बने! तुम फोटो का महत्व नहीं जानते। लोग तो इत्र चुपड़कर फोटो खिंचाते है, जिससे फोटो में खूशबू आ जाए! गंदेसे-गंदे आदमी की फोटो भी खुशबू देती है !”
प्रश्न 1. ‘तुम’ किस अर्थ में प्रयोग किया गया है?
उत्तर- उपर्युक्त गद्यांश में ‘तुम’ शब्द लेखक ने प्रेमचंद के लिए प्रयुक्त किया है।
प्रश्न 2. लोग फोटो खिंचवाने के लिए क्या-क्या उधार माँग लेते हैं और क्यों?
उत्तर- दिखावे की संस्कृति के प्रभाव में आकर लोग क्षमता नहीं होते हुए भी क्षमतावान दिखने की कोशिश करते हैं। अगर उनके पास कुछ नहीं है, तो वे क्षमतावान दिखने के लिए किसी से भी कुछ भी माँग लेते हैं। उन्हें न लज्जा, न कोई संकोच होता है।
प्रश्न 3. प्रेमचंद फोटो का महत्व क्यों नहीं समझते?
उत्तर- प्रेमचन्द उन चंद लोगों में से एक है, जो वास्तविकता में विश्वास रखते हैं। उन्हें दिखावा पसंद नहीं है। उन्हें फोटो का महत्व नहीं मालूम, क्योंकि उनका जीवन एक खुली किताब है। जैसे दिखते हैं, वैसे ही हर जगह व्यक्त होते हैं।
गद्यांश 5. टोपी आठ आने में मिल जाती है और जूते उस जमाने में भी पाँच रुपये से कम में क्या मिलते होंगे। जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं। तुम भी जूते और टोपी के आनुपातिक मूल्य के मारे हुए थे। यह विडंबना मुझे इतनी तीव्रता से पहले कभी नहीं चुभी, जितनी आज चुभ रही है, जब मैं तुम्हारा फटा जूता देख रहा हूँ। तुम महान कथाकार, उपन्यास-सम्राट, युग प्रवर्तक, जाने क्या-क्या कहलाते थे, मगर फोटो में भी तुम्हारा जूता फटा हुआ है !”
प्रश्न 1. जूते पर कितनी टोपियाँ न्योछावर होती हैं का क्या तात्पर्य है?
उत्तर- यह उक्ति वर्तमान व्यवस्था पर करारा प्रहार है। टोपी को भारतीय संस्कृति में किसी की प्रतिष्ठा और आन के साथ जोड़ा गया है। टोपी/पगडी उतरने का आशय है बेइज्जत हो जाना या समर्पण कर देना। उस उक्ति में जूते पर अपनी प्रतिष्ठा को समर्पित होते दिखाया गया है।
प्रश्न 2. लेखक ने प्रेमचंद को किन-किन उपाधियों से विभूषित बताया है ?
उत्तर-लेखक ने प्रेमचंद को महान कथाकार, उपन्यास सम्राट, युग प्रवर्तक इत्यादि उपाधियों से विभूषित बताया है।
प्रश्न 3. प्रेमचंद की विडंबना क्या थी?
उत्तर- प्रेमचंद की विडंबना यह थी कि उनके जैसा महान् साहित्यकार भी जूते और टोपी के आनुपातिक मूल्य के मारे हुए थे। जहाँ एक जूते पर पच्चीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं। जूता हमेशा से टोपी से कीमती रहा है। जूते के आगे उसका कोई मूल्य नहीं, फिर भी फोटो में प्रेमचंद के जूते फटे थे और टोपी तो थी ही नहीं।
गद्यांश 6. “मेरा जूता भी कोई अच्छा नहीं है। यों ऊपर से अच्छा दिखता है। अँगुली बाहर नहीं निकलती, पर अँगूठे के नीचे तला फट गया है। अँगूठा जमीन से घिसता है और पैनी मिट्टी पर कभी रगड़ खाकर लहुलुहान भी हो जाता है। पूरा तला गिर जाएगा, पूरा पंजा छिल जाएगा, मगर अँगुली बाहर नहीं दिखेगी। तुम्हारी अँगुली दिखती है, पर पाँव सुरक्षित है। मेरी अँगुली ढँकी है, पर पंजा नीचे घिस रहा है। तुम पर्दे का महत्व ही नहीं जानते, हम पर्दे पर कुर्बान हो रहे हैं।”
प्रश्न 1. लेखक ने अपने जूते को कैसा बताया है ? उसकी क्या विशेषता है?
उत्तर-लेखक ने अपने जूते के बारे में लिखा है कि“मेरा जूता भी ऊपर से तो अच्छा दिखता है, अँगुली बाहर नहीं निकलती, परन्तु अँगूठे के नीचे जूते का तल्ला फट गया है। अँगूठा जमीन से घिसटता है और लहूलुहान भी हो जाता है। उस जूते की विशेषता है कि पूरा तल्ला गिर जाएगा और पूरा पंजा छिल जाएगा, परन्तु अँगुली बाहर नहीं दिखेंगी।”
प्रश्न 2. लेखक के अनुसार कौन पर्दे का महत्व नहीं जानता?
उत्तर-लेखक के अनुसार महान् कथाकार प्रेमचंद पर्दे का महत्व नहीं जानते, क्योंकि उनकी अँगुली जूते से बाहर दिख रही, पर पाँव सुरक्षित है। वहीं लेखक की अँगुली ढकी है, पर पूरा पंजा लहूलुहान है उस पर पर्दा लगा हुआ है, यह कोई नहीं जानता।
प्रश्न 3. पर्दे पर कौन कुर्बान हो रहा है?
उत्तर- पर्दे पर दिखावा- पसंद संस्कृति के लोग कुर्बान हो रहे हैं, क्योंकि वे वास्तविकता से अलग जिंदगी जीना चाहते हैं। वे दिखावे के जंजाल में फँसते.. एक दिन दम तोड़ देते हैं।
गद्यांश 7. तुम फटा जूता बड़े ठाठ से पहने हो! मैं ऐसे नहीं पहन सकता। फोटो तो जिंदगी भर इस तरह नहीं खिचाऊँ, चाहे कोई जीवनी बिना फोटो के ही छाप दे।
तुम्हारी यह व्यंग्य-मुसकान मेरे हौंसले पर पस्त कर देती है। क्या मतलब है इसका ? कौन-सी मुसकान है यह?
-क्या होरी का गोदान हो गया?
-क्या पूस की रात में नीलगाय हलकू का खेत चर गई? -क्या सुजान भगत का लड़का मर गया; क्योंकि डॉक्टर क्लब छोड़कर नहीं आ सकते?
नहीं, मुझे लगता है माधो औरत के कफन के चंदे की शराब पी गया। वही मुसकान मालूम होती है।
मैं तुम्हारा जूता फिर देखता हूँ। कैसे फट गया यह, मेरी जनता के लेखक ?
क्या बहुत चक्कर काटते रहे?
क्या बनिये के तगादे से बचने के लिए मील दो मील का चक्कर लगाकर घर लौटते रहे?”
प्रश्न 1. लेखक क्या करने को तैयार नहीं है?
उत्तर- लेखक प्रेमचंद की तरह फटे जूते पहनकर फोटो खिंचवाने को तैयार नहीं है, क्योंकि वह पर्दा- पसंद है। अँगुली नहीं दिखनी चाहिए, भले ही तलवा घिस जाए।
प्रश्न 2. लेखक का हौसला कैसे पस्त हो जाता है ?
उत्तर- लेखक का हौसला सभी कष्टों को झेल कर भी मुस्कराते प्रेमचंद के व्यंग्यात्मक मुस्कान से पस्त हो जाता है।
प्रश्न 3. लेखक प्रेमचंद को कैसा मानता है?
उत्तर- लेखक प्रेमचंद को ‘जनता के लेखक’ मानता है।
गद्यांश 8. “चक्कर लगाने से जूता फटता नहीं है, घिस जाता है, कुंभनदास का जूता भी फतेहपुर सीकरी जाने-आने में घिस गया था। उसे बड़ा पछतावा हुआ। उसने कहा –
‘आवत जात पन्हैया घिस गई, बिसर गयो हरि नाम ।’ और ऐसे बुलाकर देने वालों के लिए कहा था-‘जिसके देखे दुःख उपजत है, तिनको करबो परै सलाम!’
चलने से जूता घिसता है, फटता नहीं। तुम्हारा जूता कैसे फट गया?
मुझे लगता है, तुम किसी सख्त चीज को ठोकर मारते रहे हो। कोई चीज जो परत-पर-परत सदियों से जम गई है, उसे शायद तुमने ठोकर मार-मारकर अपना जूता फाड़ लिया। कोई टीला जो रास्ते पर खड़ा हो गया था, उस पर तुमने अपना जूता आजमाया।”
प्रश्न 1. चक्कर लगाने से जूते में क्या परिवर्तन आता है?
उत्तर- चक्कर लगाने से जूता घिस जाता है।
प्रश्न 2. ‘आवत जात पन्हैया घिस गई, बिखर गयो हरि नाम ।’ का क्या आशय है? यह किसका कथन है?
उत्तर- उपर्युक्त पंक्ति का यह आशय है कि बार-बार आने और जाने से पैर का जूता घिस गया। इस क्रम में भगवान का नाम लेना भी भूल गया। यह कथन कुंभनदास का है।
प्रश्न 3. लेखक प्रेमचंद के जूते फटने का क्या कारण मानता है?
उत्तर- लेखक प्रेमचंद के जूते के फटने का कारण उनका इधर-उधर घूमना नहीं, अपितु किसी सख्त चीज़ को बारबार ठोकर मारना मानता है।

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