RBSE Solutions for Class 8 Social Science Chapter 26 हमारे गौरव
RBSE Solutions for Class 8 Social Science Chapter 26 हमारे गौरव
Rajasthan Board RBSE Class 8 Social Science Chapter 26 हमारे गौरव
पाठगत प्रश्न
गतिविधि-पदें व बताएँ
(पृष्ठ संख्या 180 )
प्रश्न 1.
चन्दबरदाई के पिता का नाम क्या था?
उत्तर
चन्दबरदाई के पिता का नाम राव वैण था।
प्रश्न 2.
चन्दबरदाई का जन्म कहाँ हुआ?
उत्तर
चन्दबरदाई का जन्म सन् 1148 में लाहौर में हुआ।
प्रश्न 3.
चन्दबरदाई में कवि के अतिरिक्त कौन-कौनसे गुण थे?
उत्तर
- चन्दबरदाई भाषा, साहित्य, व्याकरण, छन्द, पुराण, ज्योतिष आदि के भी ज्ञाता थे।
- उन्होंने अस्त्र-शस्त्र की भी विधिवत् शिक्षा प्राप्त की और युद्ध के समय वे सदैव सेना के साथ रहकर अपने रणकौशल का परिचय देते थे।
- छन्दबरदाई में विद्वत्ता, वीरता, सहृदयता तथा मित्र| भकिा के गुण भी थे।
प्रश्न 4.
चन्दबरदाई की प्रसिद्ध रचना कौनसी है?
उत्तर
‘पृथ्वीराज रासो’ चन्दबरदाई की प्रसिद्ध रचना है।
गतिविधि
आओ उत्तर खोजें
(पृष्ठ संख्या 182)
प्रश्न 1.
शल्य क्रिया के क्षेत्र में सबसे प्रमुख नाम किसका
उत्तर
शल्य क्रिया के क्षेत्र में सबसे प्रमुख नाम महर्षि सुश्रुत का है।
प्रश्न 2.
शल्य क्रिया के क्षेत्र में प्राचीन भारतीय ग्रन्थ का नाम बताइये।
उत्तर
‘सुश्रुत संहिता’ शल्य क्रिया के क्षेत्र में प्राचीन भारतीय ग्रन्ध है।
प्रश्न 3.
सुश्रुत संहिता ग्रन्थ किसके द्वारा लिखा गया है?
उत्तर
‘सुश्रुत संहिता’ ग्रन्थ महर्षि सुश्रुत के द्वारा लिखा गया है।
प्रश्न 4.
सुश्रुत ने ऐसी कौनसी वस्तुओं का आविष्कार किया जिनका प्रयोग आज भी हो रहा है?
उत्तर
शल्य चिकित्सा के लिए सुश्रुत ने सौ से अधिक औजारों तथा यन्वों का आविष्कार किया। इनमें से अधिकांश यन्त्रों का प्रयोग आज भी हो रहा है।
(गतिविधि )
(पृष्ठं संख्या 183 )
प्रश्न 1.
भारत के अन्य वैज्ञानिक कौन-कौन रहे हैं? अपने गुरुजी से जानकारी प्राप्त करें और सूची बनाएँ।
उत्तर
भारत के अन्य वैज्ञानिकों की सूची
भारत के अन्य वैज्ञानिकों की सूची निम्नांकित हैं
गतिविधि–पढ़ें जानें एवं बतायें
(पृष्ठ संख्या 184)
प्रश्न 1.
माध के पिता का नाम क्या था?
उत्तर
माघ के पिता का नाम तक था।
प्रश्न 2.
माघ द्वारा लिखी गई काव्य-रचना कौनसी है ?
उत्तर
माघ ने ‘शिशुपालवधम् नामक काव्य की रचना की।
(गतिविधि–पट्टे व बताएँ)
(पृष्ठ संख्या 186)
प्रश्न 1.
सूत्रधार मण्डन का योगदान सबसे अधिक किस क्षेत्र में माना जाता है?
उत्तर
भारतीय वास्तुशास्त्र में सूत्रधार मण्डन का योगदान सबसे अधिक माना जाता है।
प्रश्न 2.
वास्तुशास्त्र का मुख्य विषय क्या होता है?
उत्तर
वास्तुशास्त्र का मुख्य विषय स्थापत्य कला होता है।
प्रश्न 3.
महर्षि पाराशर ने किस ग्रन्थ की रचना की ?
उत्तर- महर्षि पाराशर ने ‘कृषि पाराशर’ नामक ग्रन्थ की रचना की।
प्रश्न 4.
चक्रपाणि मिश्र ने कौन-कौनसे ग्रन्थों की रचना की?
उत्तर
चक्रपाणि मिश्र ने चार ग्रन्थों की रचना की थी। में थे
- विश्ववल्लभ
- मुहूर्तमाला
- व्यवहारादर्श
- राज्याभिषेक पद्धति
प्रश्न 5.
‘वृक्षायुर्वेद’ ग्रन्थ की रचना किसने की ?
उत्तर
चक्रपाणि मित्र ने ‘वृक्षायुर्वेद’ नामक ग्रन्थ की रचना की।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
प्रश्न 1
का सही उत्तर कोष्ठक में लिखें
1. ‘वृक्षायुर्वेद’ ग्रन्थ की रचना की थी
(अ) सूत्रधार मण्डन ने
(ब) चक्रपाणि मित्र ने
(स) महर्षि सुश्रुत ने
(द) शारंगधर ने
उत्तर
(ब) चक्रपाणि मित्र ने
प्रश्न 2.
निम्नलिखित को सुमेलित कीजिए
प्रश्न 3.
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें
1. ………….का जन्म भीनमाल में माना जाता है।
2. भारत का यह गणित तथा खगोल विज्ञान का ज्ञान अरब |तथा याद में को प्राप्त हुआ।
3. ……………ही ये प्रथम चिकित्सक माने जाते हैं जिन्होंने शल्य चिकित्सा को एक व्यवस्थित स्वरूप प्रदान किया।
4. ……………को उनके शोधपत्रों के आधार पर बिना परीक्षा दिए स्नातक की उपाधि प्रदान की गई।
5. ………….अत्यन्त दानशीलता के कारण दरिद्र हो गए।
6. महाराणा प्रताप के दरबारी पण्डित श्री— —थे।
7. महर्षि——-का जन्म-स्थान पुष्कर था।
उत्तर
- ब्रह्मगुप्त
- पश्चिम के देशों
- महर्षि सुश्रुत
- श्रीनिवास रामानुजन्
- महाकवि माघ
- चक्रपाणि मिश्र
- पाराशर।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए
प्रश्न 1.
पृथ्वीराज चौहान के राजकवि का नाम बताइये।
उत्तर
पृथ्वीराज चौहान के राजकवि का नाम चन्दबरदाई था।
प्रश्न 2.
चिकित्सा के क्षेत्र में प्लास्टिक सर्जरी का प्रयोग सबसे पहले किसने किया?
उत्तर
चिकित्सा के क्षेत्र में प्लास्टिक सर्जरी का प्रयोग सबसे पहले महर्षि सुश्रुत ने किया
प्रश्न 3.
ब्रह्मगुप्त का गणित व खगोल के क्षेत्र में क्या योगदान रहा?
उत्तर
ब्रह्मगुप्त का गणित व खगोल के क्षेत्र में योगदान
- ब्रह्मगुप्त गुप्तकाल के महान गणितज्ञ एवं खगोलशास्त्री थे। ब्रह्मगुप्त ने 30 वर्ष की आयु में 628 ई. में ‘ब्रह्मस्फुट सिद्धान्त’ नामक ग्रन्थ की रचना की। यह ग्रन्थ भारतीय खगोलशास्त्र का प्रामाणिक ग्रन्थ है।
- ब्रह्मगुप्त ने ‘खण्डखाद्यकम्’ नामक ग्रन्थ की भी रचना की। इसमें विशेषकर अन्तर्वेशन (Interolation) तथा समतल त्रिकोणमिति एवं गोलीय त्रिकोणमिति दोनों में sine (ज्या) तथा cosine (कोटि ज्या) के नियम मिलते हैं।
- ब्रह्मगुप्त ने अपने ग्रन्थों में वर्गमूल एवं अनमूल लिखने की सरल विधियाँ दी हैं। शून्य के गुणधर्म की व्याख्या भी इन ग्रन्थों में की गई है।
- ब्रह्मगुप्त का ज्यामिति के क्षेत्र में विशेष योगदान रहा।ब्रह्मगुप्त के इन ग्रन्थों का अनुवाद अरथी और फारसी भाषा में हुआ और भारत का यह गणित एवं खगोल विज्ञान को ज्ञान अब एवं बाद में पश्चिमी देशों को प्राप्त हुआ।
प्रश्न 4.
प्रसिद्ध गणितज्ञ रामानुजन के बारे में आप क्या जानते हैं?
अथवा
भारत के महान् गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् के बारे में विस्तार से बतलाइये।
उत्तर
रामानुजन भारत के महान् गणितज्ञ थे। उनका जन्म 22 दिसम्बर,1887 को तमिलनाडु के इरोड़ नगर में हुआ। इनके पिता का नाम श्रीनिवास आर्यगर था। इनकी माता का नाम कोमलताम्मल था। प्रारम्भ से ही रामानुजन जिज्ञासु वृत्ति एवं कुशाग्र बुद्धि के थे। रामानुजन की गणित में विशेष रुचि थी। 1924 में उन्होंने हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की और अच्छा स्थान प्राप्त करने पर उन्हें छात्रवृत्ति प्राप्त हुई। 16 जनवरी, 1913 को रामानुजन ने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध गणितज्ञ प्रो. शी.एच. हाडी को एक पत्र लिखा जिसमें उन्होंने लगभग 120 प्रमेय भी भेजें। रामानुजन की
प्रतिभा से प्रभावित होकर प्रो. हाड़ी ने उन्हें इंग्लैण्ड बुला लिया। 14 अप्रैल, 1914 को रामानुजन लन्दन पहुंचे। रामानुजन का शोध कार्य-इंग्लैण्ड में रामानुजन ने प्रो. हार्डी के साथ अनुसन्धान कार्य किया। केवल एक वर्ष में (1915 में) रामानुजन और प्रो. हाड ने सम्मिलित रूप से 9 शोध प्रकाशित किये। रामानुजन को उनके शोध-पत्र के
आधार पर बिना परीक्षा दिए मार्च, 1976 में स्नातक उपाधि प्रदान की गई। 27 मार्च, 1919 को वे इंग्लैण्ड से भारत पहुँचे और 26 अप्रैल, 1920 को 33 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई। मितव्ययी-रामानुजन इतने मितव्ययी थे कि वे गणितीय समस्याओं का हल करने के लिए स्लेट का प्रयोग करते थे और अन्तिम परिणाम अपनी नोटबुक में लिखते थे। भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति के पुजारी-रामानुजन भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति के सच्चे पुजारी थे। इंग्लै जाते समय इन्होंने अपने पिताजी को वचन दिया था कि-”मैं इंग्लैण्ड में भी हिन्दुस्तानी रहूँगा और ऐसा कोई कार्य नहीं करूंगा जिससे भारतीयता को चोट पहुँचे ।” विदेश में शोध कार्य करते हुए भी रामानुजन अपना निजी कार्य जैसे भोजन बनाना आदि स्वयं अपने हाथ से करते थे। फिर भी उनका जीवन अभावग्रस्त रहा। परन्तु अभावों की चिन्ता न करते हुए भी रामानुन अध्ययन, अनुसन्धान व लेखन का कार्य जीवन के अन्तिम क्षण तक करते रहे।
प्रश्न 5.
सूत्रधार मण्डन ने कौन-कौनसे शास्त्रों की रचना का?
उत्तर
सूत्रधार मण्डन ने निम्न शास्त्रों (ग्रन्थों) की रचना की—
- देवतामूर्ति प्रकरण
- प्रसादमण्डनम्
- वास्तुशवल्लभं
- वास्तुशास्त्रमं
- वास्तु मण्डनम्
- वास्तुसार
- वास्तुमंजरी आदि।
प्रश्न 6.
कृषि के क्षेत्र में महर्षि पाराशर का क्या योगदान रहा है?
उत्तर
महर्षि पाराशर एवं कृषि के क्षेत्र में उनका योगदान
1. महर्षि पाराशर का जन्म पुष्कर (अजमेर) में हुआ। इन्होंने ‘कृषि-पाराशर’ नामक ग्रन्थ की रचना की। इस ग्रन्थ में गो-धन पूजा का प्राचीन सन्दर्भ, दीपावली के बाद पड़ा को करने का वर्णन है।
2. कृषि को उच्च स्थान देना- महर्षि पाराशर ने कृषि को उच्च स्थान देते हुए लिखा है कि-“अन्न धान्य (फसल) से उत्पन्न होता है और धान्य बिना कृषि के नहीं होता। इस कारण सब कुछ छोड़कर प्रयत्नपूर्वक कृषि कार्य करना चाहिए।” वास्तव में मनुष्य का जीवन अन्न में ही है और उसका उत्पाद कृषि के अतिरिका किसी अन्य साधन द्वारा सम्भव नहीं है। भारत चिरकाल से कृषि प्रधान देश रहा है। इस कारण भारतीय ऋषियों ने कृषि विषयक कई बातों का वर्णन किया है। विभिन्न शास्त्रों में महर्षि पाराशर को ‘कृषिशास्त्र के प्रवर्तक’ के रूप में याद किया जाता है।
3. कृषि पाराशर की वर्षा सम्बन्धी भविष्यवाणी- अपने ग्रन्थ कृषि पाराशर में महर्षि पाराशर ने वर्षा सम्बन्धी भविष्यवाणी की है, जिनका आज भी कृषक प्रयोग करते हैं।
4. कृषि पाराशर के विषय- ‘कृषि पाराशर’ नामक ग्रन्थ कृषि पंचांग का कार्य करता है। इसके विषय निम्नलिखित
- कृषि कार्य कब शुरू करना चाहिए?
- कौनसी फसल कब खेत में उगाई जाए?
- खेती के काम में आने वाले पशुओं के साथ कैसा व्यवहार किया जाना चाहिए?
- गोशाला तथा उसका रख रखाव किस प्रकार किया जाए।
- मौसम का पूर्वानुमान कैसे लगाया जाए।
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
बहुविकल्पात्मक
प्रश्न 1.
चन्दबरदाई पृथ्वीराज चौहान के थे
(अ) सचिव
(ब) सेनापति
(स) प्रमुख सेवक
(द) राज्य-कवि
उत्तर
(द) राज्य-कवि
प्रश्न 2.
‘ब्रह्मस्फुट सिद्धान्त’ के रचयिता थे|
(अ) आर्यभट्ट
(ब) कालिदास
(स) ब्रह्मगुप्त
(द) माघ
उत्तर
(स) ब्रह्मगुप्त
प्रश्न 3.
पृथ्वीराज रासो के रचयिता धे
(अ) पृथ्वीराज
(ब) चन्दबरदाई
(स) कल्हण
(द) विल्छण
उत्तर
(ब) चन्दबरदाई
प्रश्न 4.
सुश्रुत प्राचीनकाल के प्रसिद्ध थे
(अ) शल्य चिकित्सक
(ब) कवि
(स) शिल्पशास्त्री
(द) योद्धा
उत्तर
(अ) शल्य चिकित्सक
प्रश्न 5.
श्रीरामानुजन् का अन्म कहाँ हुआ था?
(अ) महाराष्ट्र
(ब) कर्नाटक
(स) तमिलनाडु
(द) बिहार
उत्तर
(स) तमिलनाडु
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
1. ब्राह्मगुप्त ने 628 ई. में नामक ग्रन्थ की रचना की । (वास्तुमण्डनम्ब्रह्मस्फुट सिद्धान्त)
2. ‘ब्रह्मस्फुट सिद्धान्तका प्रामाणिक ग्रन्थ है। ( भारतीय खगोलशास्त्र/वास्तुशास्त्र)
3. सुश्रुत ने अपने ग्रन्थ ‘सुश्रुतसंहिता’ में का उल्लेख सैकड़ों वर्ष पहले ही कर दिया था। (प्लास्टिक सर्जरी/अस्थिभंग)
4. के क्षेत्र में ‘सुश्रुतसंहिता’ को आज भी प्रामाणिक ग्रन्थ माना जाता है। (खगोल विद्या/शल्य चिकित्सा)
5. माघ ने की रचना की थी। (विश्ववल्लभ/शिशुपालवधम्)
उत्तर
- ‘ब्रह्मस्फुट सिद्धान्त’
- भारतीय खगोलशास्त्र
- प्लास्टिक सर्जरी
- शल्य चिकित्सा
- शिशुपालवधम्
निम्नलिखित प्रश्नों में सत्य/असत्य कथन बताइये।
1. चन्दबरदाई ‘पृथ्वीराज रासो’ के रचयिता थे।
2. ब्रह्मगुप्त गुप्तकाल के प्रमुख खगोलशास्त्री थे
3. सुश्रुत खण्डखासकम्’ ग्रन्थ के रचयिता थे
4. माघ अपनी वीरता के लिए प्रसिद्ध थे।
5. सूत्रधार मण्डन महाराणा प्रताप के प्रमुख शिल्पशास्त्री थे।
उत्तर
- सत्य
- सत्य
- असत्य
- असत्य
- असत्य।
स्तम्भ ‘अ’ को स्तम्भ ‘ब’ से सुमेलित कीजिए
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
चन्दबरदाई का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर
चन्दबरदाई का जन्म सन् 1148 में लाहौर में हुआ था।
प्रश्न 2.
चन्दबरदाई कौन थे?
उत्तर
चन्दबरदाई दिल्ली के सम्राट् पृथ्वीराज चौहान के राजकवि, सलाहकार एवं मित्र थे।
प्रश्न 3.
चन्दबरदाई ने किस ग्रन्थ की रचना की थी?
उत्तर
चन्दबरदाई ने ‘पृथ्वीराज रासो’ की रचना की थी।
प्रश्न 4.
ब्रह्मगुप्त कौन थे?
उत्तर
ब्रह्मगुप्त गुप्तकालीन एक महान गणितज्ञ एवं खगोलशास्त्री थे।
प्रश्न 5.
ब्रह्मगुप्त द्वारा रचित ग्रन्थों के नाम लिखिए।
उत्तर
- ब्रह्मस्फुट सिद्धान्त
- खण्डखायकम्।
प्रश्न 6.
विश्व के प्रथम शल्य चिकित्सक कौन थे?
उत्तर
महर्षि सुश्रुत विश्व के प्रथम शल्य चिकित्सक थे।
प्रश्न 7.
सुश्रुत ने किस ग्रन्थ की रचना की थी?
उत्तर
सुश्रुत ने ‘सुश्रुतसंहिता’ नामक ग्रन्थ की रचना की
प्रश्न 8.
प्लास्टिक सर्जरी का उल्लेख किस भारतीय शल्य चिकित्सक ने किया था?
उत्तर
प्लास्टिक सर्जरी का उल्लेख सुश्रुत नामक भारतीय शल्य चिकित्सक ने अपने ग्रन्थ ‘सुश्रुतसंहिता’ में किया था।
प्रश्न 9.
माघ ने किस ग्रन्थ की रचना की थी?
उत्तर
मथ ने ‘शिशुपालवधम् नामक ग्रन्थ की रचना की थी।
प्रश्न 10.
माघ किसलिए प्रसिद्ध थे?
उत्तर
माप अपनी दानशीलता के लिए प्रसिद्ध थे।
प्रश्न 11.
सूत्रधार मण्डन न थे?
उत्तर
सूत्रधार मण्डन महान वास्तुशास्त्री थे। वह महाराणा कुम्भा के प्रमुख वास्तुशास्त्री थे।
प्रश्न 12.
मण्डन के पिता का क्या नाम था?
उत्तर
मण्डन के पिता का नाम क्षेत्रार्क खेता था।
प्रश्न 13.
मण्डन द्वारा रचित दो ग्रन्थों के नाम लिखिए।
उत्तर
- वास्तुमंजरी
- वास्तुराजवल्लभं
प्रश्न 14.
‘कृषिशास्त्र के प्रवर्तक’ के रूप में किसे याद किया जाता हैं?
उत्तर
महर्षि पाराशर को ‘कृषिशास्त्र के प्रवर्तक’ के रूप में याद किया जाता है।
प्रश्न 15.
‘कृषि पाराशर’ के रचयिता कौन थे?
उत्तर
कृषि पाराशर’ के रचयिता महर्षि पाराशर थे।
प्रश्न 16.
चक्रपाणि मिश्र द्वारा रचित दो ग्रन्थों के नाम लिखिए।
उत्तर
- विश्ववल्लभ
- मुहूर्तमाला
प्रश्न 17.
शारंगधर का योगदान बताइये।
उत्तर
शारंगधर का योगदान इसके द्वारा तैयार संगीत पद्धति ” से हैं जिसे ‘शारंगधर पद्धति’ कहा जाता है।
प्रश्न 18.
पृथ्वीराज चौहान के राज कवि और उनकी प्रसिद्ध रचना का नाम लिखये।
उत्तर
पृथ्वीराज चौहान के राज कवि का नाम हैचन्दबरदाई। उनको प्रसिद्ध रचना का नाम है-पृथ्वीराज रासो।
प्रश्न 19.
आप द्वारा गौशाला के रख-रखाव के दो तरीके समझाइये।
उत्तर
गौशाला के रख-रखाव के दो तरीके ये हैं-
- गौ वंश की साफ-सफाई पर ध्यान देना।
- गोबर को शीघ्र अति शीघ्र स्वाद के रूप में प्रयोग कर लेना।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
आप मौसम का पूर्वानुमान कैसे लगायेंगे? इस हेतु किन किन युक्तियों का प्रयोग करेंगे ? लिखिए।
उत्तर
मौसम का पूर्वानुमान हम सम्बन्धित प्राचीन ग्रन्थों के आधार पर लगायेंगे । इस हेतु हम महर्षि पाराशर द्वारा लिखित ग्रन्थ ‘कृषि पाराशर’ में वर्णित विधियों का प्रयोग क । इस हेतु हम निम्न युक्तियों का प्रयोग करेंगे।
- पशु-पक्षियों का व्यवहार
- वायु की दिशा (वायु परीक्षण) आदि । इनके अतिरिक्त हमें आधुनिक युक्तियों यथा तापमापी, पवन वेग मापी, वायुदाबमापी एवं वायु दिग्दर्शक यन्त्रों का भी प्रयोग करेंगे।
प्रश्न 2.
चन्दबरदाई के व्यक्तित्व का परिचय दीजिए।
उत्तर
चन्दबरदाई का जन्म 1148 में लाहौर में हुआ। इनके पिता का नाम राव वैण था। चन्दबरदाई बचपन से ही प्रतिभाशाली थे। शीघ्र ही इन्होंने भाषा, साहित्य, व्याकरण, इन्द, पुराण, ज्योतिष आदि का ज्ञान प्राप्त कर लिया। वह दिल्ली के सम्राट् पृथ्वीराज चौहान के राज्य कवि, सलाहकार और मित्र थे। उन्होंने अस्त्र-शस्त्र की विधिवत् शिक्षा भी प्राप्त की थी और युद्ध के समय वे सदैव सेना के साथ रहकर अपने रणकौशल का भी परिचय देते थे। उन्होंने ‘पृथ्वीराज रासो’ नामक ग्रन्थ की रचना की । पृथ्वीराज रासो ढाई हजार पृष्ठों का हिन्दी का प्रथम महाकाव्य है। इस ग्रन्थ में चन्दबरदाई की विद्वत्ता, वीरता, सहदयता और मित्रभक्ति का परिचय मिलता है।
प्रश्न 3.
चिकित्सा के क्षेत्र में महर्षि सुश्रुत के योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर
चिकित्सा के क्षेत्र में महर्षि सुश्रुत का योगदान
- शल्य चिकित्सा के क्षेत्र में सबसे प्रमुख नाम महर्षि सुश्रुत की हैं। ये एक कुशल एवं प्रसिद्ध शल्य चिकित्सक थे। सुश्रुत ही वे प्रधम चिकित्सक थे जिन्होंने शल्य क्रिया को एक व्यवस्थित रूप प्रदान किया। उन्होंने इसे परिष्कृत ही नहीं किया बल्कि इसके द्वारा अनेक मनुष्यों को शल्य क्रिया द्वारा स्वास्थ्य लाभ भी पाचाया।
- सुश्रुत ने ‘सुश्रुतसंहिता’ नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ की रचना की। शल्य चिकित्सा के क्षेत्र में ‘सुश्रुतसंहिता’ को आज भी प्रामाणिक ग्रन्थ माना जाता है।
- सुश्रुत ने ही अपने ग्रन्थ ‘सुश्रुतसंहिता’ में एनास्टिक सर्जरी का उल्लेख सैकड़ों वर्ष पहले ही कर दिया। सुश्रुत की इस पद्धति का अनुसरण यूरोप ने किया।
- आज प्लास्टिक सर्जरी विश्व भर में प्रचलित हो गई है। यह भारत की विश्व को देन है।
- शल्य चिकित्सा के लिए सुश्रुत ने सौ से अधिक औजारों तथा यन्त्रों का आविष्कार किया। इनमें से अधिकांश यन्त्रों का प्रयोग आज भी किया जाता है।
प्रश्न 4.
महाकवि माघ के जीवन तथा कृतित्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर
महाकवि माघ
- संस्कृत के महाकवि माघ का जन्म श्रीमालनगर ( भीनमाल, राजस्थान) में हुआ था। इनके पिता का नाम दत्तक था । माघ का समय सातवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध एवं आठवीं शताब्दी के पूर्वाई में माना जाता है।
- माघ का विवाह माल्हण देवी नामक एक कन्या के साथ हुआ था।
- माघ ने ‘शिशुपालवधम्’ नामक काव्य की रचना की थी।
- माघ एक दानशील गति धे। दानशीलता के कारण वह दरिद्र भी हो गए। उनकी पत्नी भी दानशील थी।
- माप ने साहित्य, व्याकरणशास्त्र, नीतिशास्त्र, पुराण, आयुर्वेद, न्याय, ज्योतिष, प्राकृतिक सौन्दर्य, ग्राम्य जीवन, पशु-पक्षी जीवन, सौन्दर्य, काव्य, पदलालित्य एवं राजनीतिशास्त्र आदि के सिद्धान्तों का समावेश एक ही ग्रन्थ ‘शिशुपालवधम्’ में कर दिया था।
प्रश्न 5.
भारतीय इतिहास का गौरव बढ़ाने में चक्रपाणि मिश्र के योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर
चक्रपाणि मिने
(1) चक्रपाणि मिश्र एक उच्च कोटि के विद्वान थे। उन्होंने चार ग्रन्थों की रचना की। ये ग्रन्थ थे
- विश्ववल्लभ
- मुहूर्तमाला
- व्यवहारादर्श तुधा
- राज्याभिषेक पद्धति
(2) चक्रपाणि मिश्र ने भूमिगत जलज्ञान बताने वाले ‘हरवा’ का उल्लेख किया है। गाँवों में आज भी हरवा की बड़ी पृष्ठ है। ‘हरवा’ विभिन्न संकेतों के आधार पर पानी की उपलब्धता की दिशा और गहराई बताता है।
(3) चक्रपाणि मिश्र ने जल संसाधनों के विकास पर पर्याप्त थल दिया है। उन्हें विभिन्न वृक्षों की प्रकृति, उनके औषधीय गुण-धर्मों की जानकारी थी। यह अभेद्य वनस्पतिशास्त्री तो थे ही, वास्तुज्ञान के अन्तर्गत उन्हें जलाशय तथा जल स्रोतों के निर्माण को भी अच्छा ज्ञान था।
(4) चक्रपाणि मित्र महाराणा प्रताप के दरबारी पण्डित थे। शिल्पशास्त्रीय ग्रन्थों के रचयिताओं में चक्रपाणि मित्र का स्थान ऋषि तुल्य है।
प्रश्न 6.
महर्षि पाराशर ने किस ग्रन्थ की रचना की? विचार में उनके ग्रन्थ के मुख्य विषय क्या हैं?
उत्तर
महर्षि पाराशर का जन्म पुष्कर (अजमेर) में हुआ। इन्होंने ‘कृषि-पाराशर’ नामक ग्रन्थ की रचना की। कृषि पाराशर के मुख्य विषय-‘कृषि पाराशर’ नामक ग्रन्थ कृषि पंचांग का कार्य करता है। इसके मुख्य विषय निम्नलिखित हैं
- कृषि कार्य कब शुरू करना चाहिए?
- कौनसी फसल कय खेत में उगाई जाए?
- खेती के काम में आने वाले पशुओं के साथ कैसा व्यवहार किया जाना चाहिए?
- गोशाला तथा उसका रख-रखाव किस प्रकार किया जाए?
- मौसम का पूर्वानुमान कैसे लगाया जाए?
प्रश्न 7.
शारंगधर कौन था? उसके योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर
शारंगधर एवं उसका योगदान शारंगधर हामीर (रणथम्भौर का शासक) के गुरु राघव देव का पौत्र व दामोदर का पुत्र था। इसने हम्मीर रासो तथा शारंगधर संहिता ग्रन्थों की रचना की थी। शारंगधर का योगदान अग्न प्रकार है
- शारंगधर का योगदान उनके द्वारा तैयार संगीत पद्धति 1 से है। इसको उसके नाम पर ही ‘सारंगधर पद्धति’ कहा जाता है। इसमें संगीत का लुप्त ग्रन्थ ‘गान्धर्वशास्त्र’ का संक्षिप्त पाठ सुरक्षित है, जो मध्यकालीन भारतीय संगीत कला को जानने के लिए मुख्य आधार है। इसी पद्धति में ‘वृक्षायुर्वेद ग्रन्थ’ का संक्षिप्त रूप है जिसके आधार पर अनेक राजाओं और प्रजाजनों ने वाटिकाओं का विकास कर पर्यावरण को सुरक्षा में अपना योगदान दिया है।
- शारंगधर की पद्धति योग जैसे विषय को भी सम्माहित किए हुए है। अष्टांग योग का वैज्ञानिक स्वरूप इस ग्रन्थ में स्वास्थ्य और निरापद जीवन के साथ जोड़ा गया है। वैज्ञानिक तरीके से ज्ञान के उपयोग को प्रस्तुत करने के दृष्टिकोण में शारंगधर का योगदान उसकी अनेक सूक्तियों के लिए है। इसलिए अनेक विदेशी विमानों ने शारंगधर के योगदान की प्रशंसा की है।
प्रश्न 8.
वर्तमान समय में कृषि पाराशर ग्रंथ की सहायता से किस प्रकार फसल के अपादन में वृद्धि की जा सकती है? अपनी कल्पनानुसार प्रक्रिया लिखिए।
उत्तर
कृषि पाराशर ग्रन्थ महर्षि पाराशर द्वारा लिखा गया। कृषि पर लिखा गया यह एक महत्वपूर्ण प्राचीन ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में कृषि का विस्तार से वर्णन किया गया है। कृषि पाराशर ग्रन्थ की सहायता से फसल के उत्पादन में वृद्धि के लिए हमें इसमें लिखी बातों का पालन करना होगा। कृषि पाराशर ग्रन्थ वास्तव में कृषि पंचांग का कार्य करता है। इस ग्रंथ में बताया गया है कि कृषि कार्य कब शुरू करना चाहिए। कौनसी फसल कब खेत में उगाई जाए? खेती के
काम में आने वाले पशुओं के साथ कैसा व्यवहार किया जाना चाहिए? इसके साथ ही अतिवृष्टि-अनावृष्टि की जानकारी, गौशाला तथा उसके रखरखाव की जानकारी के साथ ही पशु-पक्षियों के व्यवहार, हवा की दिशा आदि से मौसम के पूर्वानुमान के बारे में भी इस ग्रन्थ में बताया गया उक्त सभी बातों का पालन करते हुए हम फसल के उत्पादन में वृद्धि कर सकते हैं।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
सूत्रधार मण्डन कौन था। भारतीय वास्तुशास्त्र में उसका क्या योगदान रहा है?
उत्तर
- सूत्रधार मण्डन एक प्रसिद्ध वास्तुशिल्पी था। उसने अपने ग्रन्थों से भारतीय स्थापत्य शास्त्र परम्परा को अक्षुण्ण बनाए रखने में बड़ा योगदान दिया है। मण्डन ने अपने ग्रन्थों से स्थापत्य शास्त्रियों के लिए नियम देकर महल, पर, निवासस्थान, जलाशय, मन्दिर, प्रतिमा आदि के निर्माण में सहयोग दिया। भारतीय वास्तुशास्त्र में मण्डन का योगदान सर्वाधिक माना जाता है ।
- कुम्भलगढ़ जैसा अभेद्य दुर्ग मण्डन के मार्गदर्शन और योजना के अनुसार ही बना है।
- भारतीय वास्तुशास्त्र के सैद्धान्तिक और व्यावहारिक पक्षों के प्रसिद्ध ज्ञाताओं के सूत्रधार मण्डुन का नाम महत्वपूर्ण है। वास्तुशास्त्र में कलापक्ष, गणित व ज्योतिष के क्षेत्र में मण्डन के मत पिछले साढे पाँच सौ वर्षों से हमारे यहाँ माने जाते रहे हैं।
- देवप्रासाद, वापी, जलाशय, प्रतिमा सम्बन्धी स्थापत्य कार्य का मण्डन को काफी अनुभव थी। मण्डन मेवाड़ के महाराजा कुम्भा के प्रिय वास्तुशिल्पी थे।
- मण्डन के द्वारा रचित ग्रन्थ में ‘देवतामूर्ति प्रकरण’, प्रासादमण्डनम्, वास्तुराजवल्लभं, वास्तुशास्त्रम्, वास्तु-मण्डनम्, वास्तुसार, वास्तुमंजरी आदि प्रमुख हैं।