1917 की फरवरी क्रांति
1917 की फरवरी क्रांति
1917 की फरवरी क्रांति
तत्कालीन परिस्थिति से क्षुब्ध होकर मार्च 1917 (ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार तथा जूलियन कैलेंडर के अनुसार फरवरी 1917) में मजदूरों ने पेट्रोग्राद (लेनिनग्राद) में एक विशाल जुलूस निकाला। वे रोटी देने, युद्ध बंद करने, निरंकुश शासन समाप्त करने की मांग कर रहे थे। जार ने सैनिकों को जुलूस पर गोली चलाने का आदेश दिया, परंतु सेना ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। बाध्य होकर सरकार ने सैनिकों के हथियार ले लिए। इससे सेना भी विद्रोह पर उतारू हो गई। जार की सबसे विश्वस्त सेना की टुकड़ी पैओबाशेसकी रेजिमेंट ने भी विद्रोह कर दिया। मजदूरों ने भी आम हड़ताल रखी। जार ने तीसरी ड्यूमा को भी भंग कर दिया। परिस्थिति अनियंत्रित हो गई। फलतः, उदारवादी राजकुमार जॉर्ज ल्यूवोव के नेतृत्व में एक बुर्जुआ सरकार का गठन विद्रोहियों ने किया। इस सरकार ने जार को गद्दी त्यागने को विवश कर दिया। बाध्य होकर जार निकोलस द्वितीय ने गद्दी छोड़ दी। उसे और उसके परिवार को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके साथ ही रूस में रोमोनोव वंश का निरंकुश शासन समाप्त हो गया। जुलाई 1918 में जार, जारीना और उसके परिजनों को गोली मार दी गई।
केरेन्सकी की सरकार का पतन एवं वोल्शेविक क्रांति-जॉर्ज ल्यूवोव की सरकार में बुर्जुआ वर्ग का प्रभाव था। यह जनता की आकांक्षाओं को पूरा नहीं कर सकी। अत:, लोगों का असंतोष बढ़ता गया। इसलिए, केरेन्सकी के अधीन एक नई सरकार का गठन किया गया। इस सरकार में मेन्शेविकों अथवा उदार समाजवादियों का प्रभाव था, परंतु इस सरकार ने भी जनता की समस्याओं के निराकरण का प्रयास नहीं किया। इस सरकार ने जनतांत्रिक एवं वैधानिक सरकार की स्थापना के अतिरिक्त कुछ नहीं किया। इसने युद्ध जारी रखा। भूमि एवं व्यक्तिगत संपत्ति की सुरक्षा के कुछ उपाय किए गए, परंतु जनता इससे संतुष्ट नहीं हुई। उसका असंतोष बढ़ता गया।
इन्ही परिस्थितियों में लेनिन स्विट्जरलैंड से वापस रूस पहुँचा। रूस की स्थिति देखकर वह क्षुब्ध हो गया। उसने कहा कि
रूसी क्रांति पूरी नहीं हुई है। वांछित परिवर्तन के लिए एक अन्य क्रांति आवश्यक है। अत:,लेनिन इसकी तैयारी में लग गया। रूस पहुँचकर उसने बोल्शेविक दल का नेतृत्व ग्रहण किया। अप्रैल थीसिस (April Thesis) में उसने बोल्शेविक दल के उद्देश्य और कार्यक्रम निर्दिष्ट किए। ये थे-भूमि, शांति और रोटी की व्यवस्था करना। उसने अपने सहयोगी ट्रॉटस्की की सहायता से
मजदूरों को एकजुट करना आरंभ किया। लेनिन और ट्रॉटस्की दोनों ही केरेन्सकी की सरकार को बलपूर्वक हटाना चाहते थे।
अतः,7 नवंबर 1917 (जूलियन कैलेंडर के अनुसार 25 अक्टूबर 1917) को बोल्शेविकों ने सरकारी भवनों पर सेना और जनता की सहायता से अधिकार कर लिया। केरेन्सकी रूस छोड़कर भाग गया। इस तरह, एक महान क्रांति हुई। सत्ता की बागडोर अब बोल्शेविकों के हाथों में आई। लेनिन के नेतृत्व में एक नई सरकार का गठन किया गया जिसने रूस के नवनिर्माण के लिए कार्य आरंभ किया। अक्टूबर क्रांति अथवा बोल्शेविक क्रांति के साथ ही रूसी इतिहास का नया अध्याय आरंभ हुआ।