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MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 17 मृत्तिका

MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 17 मृत्तिका

MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 17 मृत्तिका (नरेश मेहता)

मृत्तिका अभ्यास-प्रश्न

मृत्तिका लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
मिट्टी के मातृरूपा होने का क्या आशय है?
उत्तर
मिट्टी के मातृरूपा होने का आशय है-हर प्रकार से ऐसी सम्पन्नता जो भरण-पोषण कर जीवन-शक्ति प्रदान कर सके।

प्रश्न 2.
जब मनुष्य का अहंकार समाप्त हो जाता है, तब मिट्टी उसके लिए क्या बन जाती है?
उत्तर
जब मनुष्य का अहंकार समाप्त हो जाता है, तब मिट्टी उसके लिए पूज्य बन जाती है।

प्रश्न 3.
मिट्टी के किस रूप को प्रिया कहा गया है और क्यों?
उत्तर
मिट्टी के कुंभ और कलश रूप को प्रिया कहा गया है। यह इसलिए कि इसे लेकर किसी की प्रिया जल भरने जाती है। वह उस जल को अपने प्रिय को पिला उसकी प्रिया होने के धर्म को निभाती है।

प्रश्न 4.
में तो मात्र मृत्तिका हूँ’ मिट्टी ने ऐसा क्यों कहा है?
उत्तर
‘में तो मात्र मृत्तिका हूँ’ मिट्टी ने ऐसा कहा है। यह इसलिए कि उसे अपना कोई विशेष और चमत्कारी संस्कार नहीं प्राप्त होता है।

प्रश्न 5.
मिट्टी किस प्रकार चिन्मयी शक्ति बन जाती है?
उत्तर
मिट्टी को मनुष्य जब अपने पुरुषार्थ से पराजित होकर अपनेपन की भावना से पुकारता है, तब वह चिन्मयी शक्ति बन जाती है।

मृत्तिका दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
मिट्टी किन कष्टों को सहकर हमें धन-धान्य से पूर्ण करती है?
उत्तर
मिट्टी मनुष्य के पैरों से रौंद दिए जाने और हल के फाल से विदीर्ण किए जाने जैसे बहुत ही असहनीय कष्टों को सहकर हमें धन-धान्य से पूर्ण करती है।

प्रश्न 2.
इस कविता में मिट्टी के किन-किन स्वरूपों का उल्लेख किया गया
उत्तर
इस कविता में मिट्टी के विविध स्वरूपों का उल्लेख किया गया है।
माता, कुंभ, कलश, खिलौना, प्रजा, चिन्मयी शक्ति, आराध्या, प्रतिमा आदि मिट्टी के अलग-अलग स्वरूपों को इस कविता में चित्रित किया गया है।

प्रश्न 3.
पुरुषार्थ को सबसे बड़ा देवत्व क्यों कहा गया है?
उत्तर
पुरुषार्थ को सबसे बड़ा देवत्व कहा गया है। यह इसलिए कि इससे ही किसी साधारण वस्तु को उसको महान और उपयोगी स्वरूप प्रदान किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में पुरुष द्वारा असंभव को संभव किया जा सकता है और मिट्टी जैसे साधारण-सी वस्तु को देवत्व का दर्जा दिया जा सकता है।

प्रश्न 4.
‘मृत्तिका’ कविता के माध्यम से कवि ने क्या संदेश दिया है?
उत्तर
‘मृत्तिका’ कविता के माध्यम से कवि ने हमें यह संदेश दिया है कि हमें किसी भी साधारण-सी-साधारण चीज को महत्त्वहीन नहीं समझना चाहिए। मिट्टी जैसी साधारण-सी वस्तु को मनुष्य अपने पुरुषार्थ के द्वारा उसे न केवल विविध स्वरूप प्रदान करता है अपितु अधिक उपयोगी और पूज्य स्वरूप में भी ढाल देता है। इसलिए हमें अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए अपनी पूरी शक्ति, बुद्धि और विश्वास को लगा देना चाहिए। इससे कोई भी लक्ष्य दूर नहीं रह जाएगा। वह आसानी से हासिल हो ही जाएगा।

प्रश्न 5.
मृत्तिका के माता, प्रिया और प्रजा रूपों में से आपको सबसे अच्छा रूप कौन-सा लगता है और क्यों?
उत्तर
मृत्तिका के माता, प्रिया और प्रजा रूपों में हमें सबसे अच्छा रूप माता का लगता है। यह इसलिए कि माता से ही हमारा इस संसार में आना संभव हुआ। इससे हमारे जीवन की आरंभिक आवश्यकताएँ पूरी हुई, जिनके बलबूते पर हमने न केवल अपना विकास-विस्तार किया, अपितु दूसरों के विकास-विस्तार में सहायता की। अगर माता किसी को न प्राप्त हो, तो उसका कब अस्तित्व नहीं हो सकता है।

प्रश्न 6.
पुरुषार्थ पराजित स्वत्व से क्या आशय है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
पुरुषार्थ पराजित स्वत्व से आशय है-अहंकार के अपनापन का विसर्जन। जब पुरुषार्थ अहंकार के अपनापन का विसर्जन हो जाता है, तब दूसरों का महत्त्व और उपयोगिता का पता चलने लगता है। यह किसो के लिए आवश्यक है और कल्याणकारक भी।

मृत्तिका भाषा-अध्ययन काव्य-सौन्दर्य

प्रश्न 1.
निम्नलिखत शब्दों के विलोम शब्द लिखिए
अंतरंग, पराजित, स्वत्व, देवत्व, विश्वास।
उत्तर
शब्द – विलोम
अंतरंग – बहिरंग
पराजित – अपराजित
देवत्व – राक्षसत्व
विश्वास – अविश्वास।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित वाक्यांश के लिए एक शब्द लिखिए
1. जिसकी रुचि साहित्य में हो।
2. जो सब कुछ जानता हो।
3. जो किए हुए उपकारों को मानता है।
4. जो किए उपकारों को नहीं मानता है।
5. जो देखा नहीं जा सकता है।
उत्तर
वाक्यांश के लिए एक शब्द
बाक्यांश – एक शब्द
1. जिसकी रुचि साहित्य में हो। – साहित्यिक
2. जो सब कुछ जानता हो। – सर्वज्ञ
3. जो किए हुए उपकारों को मानता है। – कृतज्ञ
4. जो किए हुए उपकारों नहीं मानता है। – कृतघ्न
5. जो देखा नहीं जा सकता है। – अदृश्य।

प्रश्न 3.
“अपने ग्राम देवत्व के साथ चिन्मयी शक्ति हो जाती हूँ।” काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
उपर्युक्त काव्य-पंक्ति का काव्य-सौन्दर्य ओजस्वी भावों से पष्ट है। मिट्टी को वाणी प्रदान करने से मानवीकरण अलंकार की चमक से कथन को प्रभावशाली ढंग में प्रस्तुत करने का कवि प्रयास निश्चय ही सराहनीय है। .

प्रश्न 4.
(क) में तो मात्र मृत्तिका हूँ
जब तुम मुझे पैरों से रौंदते हो तथा हल के फाल से विदीर्ण करते हो तव में
धनधान्य बनकर मातृरूपा हो जाती हूँ।

1. उपर्युक्त काव्य-पंक्तियाँ मुक्त छंद हैं लय मात्रा से विहीन हैं इन्हें अतुकान्त पद भी कहा जाता है।
क. काव्य में मृत्तिका (मिट्टी) ने मानव को सम्बोधित करते हुए अपने विभिन्न रूपों का वर्णन किया है। अतः सम्बोधन शैली द्रष्टव्य है।
ख. कविता में माँ के रूप में त्याग, प्रेमिका के रूप में शांति-तृप्ति, प्रजा के रूप में मनचाहा व्यवहार, प्रतिमा के रूप में आराधना बताई गयी है इस प्रकार भाषा के साधारण अर्व के साथ गहन (द्वितीय) अर्व भी हो तो लाक्षणिकता कहलाती है। कविता से लाक्षणिक शब्दों से युक्त पंक्तियाँ छाँटकर लिखिए।
उत्तर
कविता से लाक्षणिक शब्दों से युक्त पंक्तियाँ
1. जब तुम
मुझे पैरों से रौंदते हो
तथा हल के फाल से विदीर्ण करते हो,
तब में
धन-धान्य बनकर मातृरूपा हो जाती हूँ!

2. कुंभ और कलश बनकर
जल लाती तुम्हारी अंतरंग प्रिया हो जाती हूँ।

3. जब तुम मुझे मेले में मेरे खिलौने रूप पर
आकर्षित होकर मचलने लगते हो
तब मैं
तुम्हारे शिशु-हाथों में पहुँच प्रजारूपा हा जाती हूँ।

4. पर जब भी तुम
अपने पुरुषार्थ, पराजित स्वत्व से मुझे पुकारते हो
तब मैं
अपने ग्राम्य देवत्व के साथ चिन्मय शक्ति हो जाती हूँ।

5. प्रतिमा बन तुम्हारी आराध्या हो जाती हूँ।

मृत्तिका योग्यता-विस्तार

(क) मृत्तिका कविता की तरह पवन और जल विषय पर अपनी कल्पना से कविता बनाइए और कक्षा में सुनाइए।
(ख) कवि शिवमंगल सिंह सुमन की कविता ‘मिट्टी की महिमा’ पढ़कर मिट्टी की सृजन-शक्ति और महिमा को जानिए।
(ग) मानव का पुरुषार्थ ही उसे देवत्व प्रदान करता है इस विषय पर कक्षा में अपने विचार लिखिए।
(घ) ‘क्षिति जल पावक गगन समीरा’ ये पाँचों तत्त्व प्रकृति द्वारा प्रदत्त हैं। इनका महत्त्व प्रतिपादित करते हुए अपने शब्दों में आलेख लिखिए।
उत्तर
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

मृत्तिका परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘मैं तो मात्र मृत्तिका हूँ’ मिट्टी के ऐसा कहने से उसका कौन-से भाव व्यक्त हो रहे हैं?
उत्तर
‘मैं तो मात्र मृत्तिका हूँ मिट्टी के ऐसा कहने से उसका सरल, सामान्य और निराभिमान के भाव व्यक्त हो रहे हैं।

प्रश्न 2.
स्वयं को मातृरूपा कहकर मिट्टी ने माता की किन विशेषताओं की ओर संकेत किया है?
उत्तर
स्वयं को मातृरूपा कहकर मिट्टी ने माता की कई विशेषताओं की ओर संकेत किया है। उसके अनुसार अपनी संतान की रक्षा और उसके सुख के लिए माता अनेक प्रकार के कष्टों को सहती है। यहाँ तक कि वह अपने प्राणों को संकट में डालने से भी पीछे नहीं हटती है।

प्रश्न 3.
मिट्टी का सबसे लोकप्रिय रूप कौन-सा होता है और क्यों?
उत्तर
मिट्टी का सबसे लोकप्रिय रूप उससे बने हुए खिलौने होते हैं। यह इसलिए कि उसे बनाकर मनुष्य उसे मेले में बेचने के लिए ले जाता है, तब देखने वाले उस पर लट्ट हो जाते हैं।

प्रश्न 4.
शिशु-हायों में पहुँचकर मिट्टी प्रजारूपा क्यों हो जाती है?
उत्तर
शिशु-हाथों में पहुँचकर मिट्टी प्रजारूपा हो जाती है। यह इसलिए कि शिशु-हाथ अपनी इच्छानुसार उसका उपयोग करते हैं।

प्रश्न 5.
सबसे बड़ा देवत्व क्या है?
उत्तर
सबसे बड़ा देवत्व यही है कि मनुष्य पुरुषार्थ करता है। मिट्टी उसके पुरुषार्थ से एक-से-एक महान और उपयोगी स्वरूप को प्राप्त करती है।

मृत्तिका दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
मिट्टी को अत्यधिक आकर्षक स्वरूप कौन और कैसे प्रदान करता है?
उत्तर
मिट्टी को अत्यधिक आकर्षक स्वरूप कुम्हार प्रदान करता है। वह मिट्टी को भिगो-भिगो कर उसे फूलने देता है। उसके बाद वह उसे अपने पैरों से रौंदता है फिर वह अपने हाथों से मल-मलकर मुलायम करके रख देता है। उसे मनमाने रूप देने के लिए चाक पर रखकर घुमाने लगता है। ऐसा करते हुए वह उसे अपने हाथों से सहला-सहला कर मनमाने रूप में ढालकर चाक पर से उतारकर रख देता है। सूख जाने पर वह विभिन्न प्रकार के रंगों से रंगकर उसे सुन्दर और मोहक बना देता है।

प्रश्न 2.
मिट्टी का कौन-सा रूप हमारे लिए अधिक उपयोगी है और क्यों?
उत्तर
मिट्टी का उत्पादक स्वरूप हमारे लिए अधिक उपयोगी है। यह इसलिए कि इससे हमारा जीवन संभव होता है। हमारा अस्तित्व बना रहता है। अगर मिट्टी हमें एक माँ की तरह अन्न-धन प्रदान न करे तो हम जीवित नहीं रह सकेंगे। हमारा अस्तित्व नहीं रह सकेगा। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि यों तो मिट्टी के सभी रूप-प्रतिरूप हमारे लिए उपयोगी और आवश्यक हैं, लेकिन उसका उत्पादक स्वरूप सबसे अधिक उपयोगी और आवश्यक है।

प्रश्न 3.
कविता में मिट्टी के विभिन्न स्वरूपों का उल्लेख किया गया है, क्यों?
उत्तर
कविता में मिट्टी के विभिन्न स्वरूपों का उल्लेख किया गया है। यह इसलिए मिट्टी के विभिन्न स्वरूपों से अधिकांश लोग अनजान होते हैं। वे मिट्टी को सामान्य रूप में ही देखते-समझते हैं। कवि ने उनके इस भ्रम को तोड़ने के लिए ही मिट्टी के एक-से-एक बढ़कर आकर्षक और उपयोगी स्वरूपों को बहलाने का प्रयास किया है।

प्रश्न 4.
‘मृत्तिका’ कविता का प्रतिपाय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
‘मृत्तिका’ कविता कविवर नरेश मेहता की एक ज्ञानवर्द्धक और रोचक कविता है। कविवर नरेश मेहता अपनी इस कविता में अपनी कल्पना को एक ओर रख करके केवल अपनी अनुभूति को ही स्थान दिया है। उन्होंने इस कविता के द्वारा मिट्टी के प्रति हमारे सोए हुए ज्ञान को जगाने का प्रयास किया है। इस प्रकार हम यह देखते हैं कि मृत्तिका कविता में कवि ने मिट्टी के विभिन्न रूपों का वर्णन किया है। माटी को मातृत्व स्वरूपा, प्रिया स्वरूपा और शिशु-भाव से जोड़कर उसे प्रजारूपा दर्शाया है। इन तीनों रूपों का सार्थक समन्वय ही देवत्व को प्रकट करता है।

मृत्तिका किवि-परिचय

प्रश्न
श्री नरेश मेहता का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
जीवन-परिचय-कविवर नरेश मेहता का नयी कविताधारा के कवियों में विशिष्ट स्थान है। उनकी कविताओं में उनके असाधारण और बहमुखी प्रतिभा की झलक साफ-साफ दिखाई देती है। चूंकि उनका रचनात्मक व्यक्ति बड़ा ही अद्भुत है तो उनकी रचनाएँ उनकी इस विशेषता को तुरन्त प्रकट कर देती हैं।
रचनाएँ-कविवर नरेश मेहता की रचनाएँ निम्नलिखित हैं

  1. वन पारखी सुनीं
  2. बोलने को चीड़ को
  3. संशय की एक रात
  4. समय देवता आदि नरेश मेहता जी के काव्य-संग्रह हैं।

साहित्यिक महत्त्व-कविवर नरेश जी का साहित्यिक महत्त्व नयी कविता के उल्लेखनीय कवियों में से एक है। मध्य-प्रदेश के साहित्यकारों में तो आपका अग्रणीय स्थान है। आपकी कविताओं की यह सर्वमान्य विशेषता है कि उनमें कल्पना की नहीं, अपितु अनुभूति की ही प्रधानता है। आपकी साहित्यिक सेवाओं का मूल्यांकन करते हुए आपको ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। आपसे वर्तमान साहित्य और साहित्यकारों को अनेक अपेक्षाएँ हैं।

मृत्तिका कविता का सारांश

प्रश्न 1.
कविवर नरेश मेहता-विरचित कविता ‘मृत्तिका’ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
कविवर नरेश मेहता-विरचित कविता ‘मृत्तिका’ एक ज्ञानवर्द्धक कविता है। इस कविता का सारांश इस प्रकार है मिट्टी मनुष्य को संबोधित करती हुई कह रही है-हे मनुष्य! मैं तो केवल मिट्टी हूँ। जब तुम अपने पैरों से मुझे रौंदते हो और हल के फाल से विदीर्ण करते हो, तब मैं धन-धान्य बनकर तुम्हारे लिए माँ के रूप में बन जाती हूँ। जब तुम मुझे अपने हाथों से स्पर्श करते हो और मुझे चाक पर रखकर घुमाने लगते हो, तब मैं घड़ा बनकर जल लाने वाली तुम्हारी प्रिया का रूप धारण कर लेती हूँ। जब तुम मुझे मेले में मेरे खिलौने के रूप पर गद्गद् होकर मचलने लगते हो, तब मैं तुम्हारे बच्चों के हाथों में पहुँचकर प्रजा का रूप धारण कर लेती हूँ। जब तुम अपनी शक्ति-क्षमता को भूलकर मुझे बुलाते हो, तब मैं अपनी ग्रामीण शक्ति से चिन्मयी शक्ति को शरण कर लेती हूँ। उस समय मेरी मूर्ति तुम्हारी आराध्या हो जाती है। इसलिए हे पुरुषार्थी मनुष्य! तुम यह विश्वास कर लो कि यही मेरा मिट्टी स्वरूप देवत्व है।

मृत्तिका संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

पद्यांश की सप्रसंग व्याख्या, काव्य-सौन्दर्य व विषय-वस्तु पर आधारित प्रश्नोत्तर

1. मैं तो मात्र मृत्तिका हूँ
जब तुम मुझे पैरों से रौंदते हो
तवा हल के फाल से विदीर्ण करते हो
तब मैं धन-धान्य बनकर मातृरूपा हो जाती हूं।
जब तुम मुझे हाथों से स्पर्श करते हो
तथा चाक पर चढ़ाकर घुमाने लगते हो।

शब्दार्थ-मात्र-केवल। मृत्तिका-मिट्टी। रौंदते-कुचलते। विदीर्ण-फाड़ना। धन-धान्य-अन्न-धन। मातृरूपा-माता का रूप।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘वासंती, हिन्दी सामान्य’ में संकलित व कविवर नरेश मेहता-विरचित कविता ‘मृत्तिका’ से है। इसमें कविवर नरेश मेहता ने मिट्टी मनुष्य के प्रति क्या कह रही है, इसे प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। कवि का कहना है कि

व्याख्या-हे मनुष्य! तुम्हें यह समझ लेना चाहिए कि जब तक मैं तुम्हारे सम्पर्क-स्पर्श में नहीं रहती है, तब तक मैं अपने साधारण रूप में ही रहती हैं। लेकिन जैसे ही मैं तुम्हारा सम्पर्क-स्पर्श प्राप्त करती हूँ, वैसे ही मैं कई रूपों को धारण कर लेती हूँ। उदाहरणस्वरूप जब तुम मुझे अपने पैरों से खूब मलते-कुचलते हो अर्थात् . रगड़ते हो। फिर हल के फाल से चीरते-फाड़ते हो, तब मैं वह साधारण मिट्टी नहीं रह पाती हूँ। दूसरे शब्दों में मैं अपने साधारण रूप को उतारकर असाधारण रूप को धारण कर लेती हूँ। मेरा यह असाधारण रूप धन-धान्य से भरा-पूरा होता है। वह मेरा भरा-पूरा रूप माता का होता है। इसी प्रकार जब तुम अपने हाथों से मुझे सहलाकर छूते हो, और फिर मुझे चाक पर चढ़ाकर नचाने लगते हो, तब मेरा रूप कुछ और ही हो जाता है।

विशेष-

  1. मिट्टी का आत्मकथन सत्यता और वास्तविकता पर आधारित है।
  2. भाषा की शब्दावली उच्चस्तरीय तत्सम शब्दों की है।
  3. शैली आत्मकथात्मक है।
  4. ‘मैं मात्र-मृत्तिका’ और ‘धन-धान्य’ में अनुप्रास अलंकार है।
  5. यह अंश रोचक और सरस है।

1. पद्यांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) कवि और कविता का नाम लिखिए।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश के काव्य-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
(iii) उपर्युक्त पद्यांश के भाव-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
(i) कवि-नरेश मेहता कविता-‘मृत्तिका’।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश की काव्य-योजना मुक्तछंद से तैयार है। इसमें तत्सम शब्द
(मात्र, मृत्तिका, विदीर्ण, मातृरूपा और स्पश) अधिक हैं: तो पैर, हाथ आदि तद्भव शब्द भी हैं। आत्मकथात्मक शैली में प्रस्तुत इस पद का काव्य-सौन्दर्य इससे निखरकर सामने आया है। कथन की सत्यता अद्भुत और चौंकाने वाली है।
(iii) उपर्युक्त पद्यांश की भाव-योजना.बड़ी लाक्षणिक और रोचक है। इस विशेषता को प्रस्तुत करने के लिए कवि ने मिट्टी के आत्मकथन की सत्यता को सामने रखने का प्रशंसनीय प्रयास किया है। मिट्टी को विविध रूप देता हुआ मनुष्य मिट्टी की इस विशेषता को जान नहीं पाता है, इस तथ्य की विचित्रता को सरल भावों-कथनों से इस पद्यांश का भाव-सौन्दर्य और ही बढ़ गया है।

2. पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) मिट्टी ने क्यों कहा है-“मैं तो मात्र मृत्तिका हूँ।”
(ii) मिट्टी के मातृरूपा स्वरूप की क्या विशेषता है?
(iii) उपर्युक्त पयांश का मुख्य भाव लिखिए।
उत्तर
(i) मिट्टी ने कहा है-“मैं तो मात्र मृत्तिका हूँ।” यह इसलिए कि मिट्टी मनुष्य के सम्पर्क-स्पर्श में जब तक नहीं आती है, तब तक उसका स्वरूप बिल्कुल साधारण और सामान्य ही बना रहता है।
(ii) मिट्टी के मातरूपा स्वरूप की बड़ी ही अद्भत विशेषता है। इस स्वरूप को प्राप्त हुई मिट्टी सचमुच में माता की ही तरह होती है। वह भी अपने पुत्र मनुष्य का भरण-पोषण अनेक प्रकार के धन-धान्य के द्वारा करती है।
(iii) उपर्युक्त पद्यांश का मुख्य भाव है-मिट्टी की अनोखी और उपयोगी विशेषताओं को प्रस्तुत करना। इसके द्वारा कवि ने मिट्टी में किस प्रकार से ऐसे गुण छिपे हुए हैं, इसे सुस्पष्ट करना चाहा है।

2. तब में
कुंभ और कलश बनकर
जल लाती तुम्हारी अंतरंग प्रिया हो जाती हूँ।
जब तुम मुझे मेले में मेरे खिलौने रूप पर
आकर्षित होकर मचलने लगते हो

तब मैं
तुम्हारे शिशु-हावों में पहुँच प्रजारूपा हो जाती हूँ।
पर जब भी तुम
अपने पुरुषार्व-पराजित स्वत्व से मुझे पुकारते हो।

शब्दार्थ-कुंभ-घड़ा। अंतरंग-घनिष्ठ, अभिन्न। प्रिया-धर्मपत्नी। आकर्षित-लट्ट। शिशु-बालक। पुरुषार्थ-वीरता। पराजित-हार। स्वत्व-अपनापन।

प्रसंग-पूर्ववत । इसमें कवि ने मनुष्य के संपर्क-स्पर्श में आने पर मिट्टी के बदलते हुए स्वरूप को चित्रित करने का प्रयास किया है। इस विषय में कवि का कहना है कि मिट्टी मनुष्य से कह रही है

व्याख्या-हे मनुष्य! जब मैं तुम्हारे स्पर्श से चाक पर चढ़कर घूमने (चक्कर काटने लगती हूँ’ तब मैं एक नये और आकर्षक रूप को धारण कर लेती हैं। मह मेरा नया और आकर्षक स्वरूप कुंभ (घड़ा) और कलश का होता है। इस नये और आकर्षक स्वरूप की यह विशेषता होती है कि वह तुम्हारी अंतरंग प्रिया को प्रभावित किए बिना नहीं रहता है। दूसरे शब्दों में यह कि उस मेरे नये और आकर्षक स्वरूप कुंभ (घड़ा) और कलश को तुम्हारी अंतरंग प्रिया बड़े प्रेम से उठाकर तुम्हारे लिए उसमें जल लाती हूँ। इससे मुझे तुम्हारी अंतरंग प्रिया होने का गौरव प्राप्त हो जाता है।

इस प्रकार जब मैं तुम्हारे द्वारा चाक पर चढ़कर चक्कर काटने लगती हूँ, तब मुझे तुम एक और ही नया और अधिक स्वरूप दे देते हो। वह मेरा नया और अधिक स्वरूप खिलौने का होता है। फलस्वरूप उसे देखकर तुम खुशी से नाच उठते हो। फिर उसे मेले में ले जाकर तुम और अधिक खुशी से झूमने लगते हो। वहाँ जाकर जब मैं तुम्हारे बच्चों के हाथों में पहुँचती हूँ, तब मेरा रूप एक बार फिर बदल जाता है। वह बदला हुआ मेरा नया रूप प्रजा का रूप होता है। इतना होने पर जब कभी तुम अपने पुरुषार्थ के अहं का परित्याग कर अपनापन के भावों से मुझे जानने-समझने और पुकारने लगते हो, तब मैं उस समय कुछ और ही हो जाती हूँ।

विशेष-

  1. मिट्टी के बदलते स्वरूप पर प्रकश डाला गया है।
  2. तत्सम शब्दों की प्रधानता है।
  3. मुक्तक छंद है।
  4. मुझे मेले में मेरे, रूप पर, पहँच प्रजारूपा और पुरुषार्थ पराजित पराजित, में अनुप्रास अलंकार है।
  5. यह अंश भाव-वर्द्धक है।

1. पयांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
उपर्युक्त पयांश के कवि और कविता का नाम लिखिए।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश के काव्य-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
(iii) उपर्युक्त पयांश के भाव-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
(i) कवि-श्री नरेश मेहता कविता-‘मृत्तिका’।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश का काव्य-विधान आकर्षक है। इसके लिए कवि ने रस, छंद, अलंकार और प्रतीक-बिम्ब का चुन-चुन कर प्रयोग किया है। अनुप्रास अलंकार (मुझे मेले में मेरे, रूप पर, पहुँच प्रजा रूप और पुरुषार्थ-पराजित) की झड़ी लगा दी है। मुक्तक छंद से मिट्टी की मुक्त अभिव्यक्ति साकार होकर मन को छू लेती है।
(iii) उपर्युक्त पद्यांश का भाव-विधान सरल भावों का है। मिट्टी का कथन बड़ा ही स्वाभाविक और उपयुक्त है। मनुष्य का मिट्टी के बदलते स्वरूप से अज्ञान रहने की सच्चाई खोलने का प्रयास सचमुच में प्रशंसनीय है।

2. पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) कुंभ और कलश से मिट्टी का कौन-सा स्वरूप प्रकट होता है?
(ii) मनुष्य मिट्टी के किस रूप को देखकर मचलने लगता है और क्यों?
(iii) मिट्टी के प्रजारूप से क्या तात्पर्य है?
उत्तर
(i) कुंभ और कलश से मिट्टी का नया और अत्यधिक आकर्षक रूप प्रकट होता है। वह आकर्षक रूप मनुष्य के प्रिया-स्वरूप का होता है, जो उसके लिए सुख और अधिक मोहक कहा जाता है।
(ii) मनुष्य मिट्टी के खिलौने रूप को देखकर मचलने लगता है। यह इसलिए कि उसमें बहुत बड़ा आकर्षण होता है। उससे उसके बच्चे जब फूले नहीं समाते हैं,
तो उसको अपनी मेहनत का बड़ा ही सुखद और अद्भुत अनुभव होने लगता है।
(iii) मिट्टी के प्रजारूप से तात्पर्य है-प्रजा का स्वरूप। जिस प्रकार प्रजा अपने स्वामी के प्रति कृतज्ञ होकर उसकी इच्छानुसार उसकी सेवा में लगी रहती है, उसी प्रकार मिट्टी भी मनुष्य द्वारा खिलाने-रूप में ढालने पर उसके और उसके बच्चों को खुश करने की सेवा में लग जाती है।

3. तब मैं
अपने ग्राम्य देवत्य के साथ चिन्मयी शक्ति हो जाती हूँ
प्रतिमा बन तुम्हारी आराध्या हो जाती हूँ
विश्वास करो
यह सबसे बड़ा देवत्व है, कि
तुम पुरुषार्थ करते मनुष्य हो
और मैं स्वरूप पाती मृत्तिका।

शब्दाभग्राम-देवत्व-गाँव के देवता । चिन्मयी शक्ति-चेतना युक्त शक्ति । प्रतिमा-मूर्ति। आराध्या-आराधना के योग्य, पूज्य। देवत्व-देवता होने का महत्त्व।

प्रसंग-पूर्ववत् । इसमें कवि ने मिट्टी का मनुष्य के प्रति अपने विविध स्वरूप में ढलने का कथन हैं इस विषय में कवि का कहना है कि मिट्टी मनुष्य को ज्ञानमयी बातों को बतला रही है। उसका कहना है

व्याख्या-हे मनुष्य! जब तुम अपने पुरुषार्थ से हार-थककर मुझे अपनेपन की ‘ भावना से पुकारते हो, तब मैं अपने गाँव के देवत्व (देवता होने के महत्त्व) की भावना के फलस्वरूप चेतनामुक्त शक्ति-सम्पन्न हो जाती हूँ। इसकी छवि और सुन्दरता को मैं अपनी अलग-अलग बनी हुई मूर्तियों में धारण करके तुम्हारे लिए पूज्य बन जाती हूँ। इसलिए मैं तुमसे यही कहना चाहती हूँ कि तुम मुझ पर विश्वास करो। इससे ही तुम्हें पूरी तरह से यह यकीन हो जाएगा कि सबसे बड़ा देवत्व है कि तुम असाधारण पुरुषार्थ करते हो और में तुम्हारे इस असाधारण पुरुषार्थ के फलस्वरूप ही अनेक रूपों-प्रतिरूपों में बदलती हुई महत्त्व प्राप्त करती हूँ।

विशेष-

  1. भाषा प्रभावशाली है।
  2. तत्सम शब्दों की प्रधानता है।
  3. शैली आत्मकथात्मक है।
  4. मुक्त क छंद है।
  5. मिट्टी को मनुष्य की वाणी दी जाने के कारण मानवीकरण अलंकार है।

1. पद्यांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) कवि और कविता का नाम लिखिए।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश के काव्य-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
(iii) उपर्युक्त पद्यांश के भाव-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
(i) कवि-नरेश मेहता कविता-मत्तिका।
(ii) प्रस्तुत पद्यांश का काव्य-स्वरूप प्रभावशाली रूप में है। मिट्टी का मानवीकरण करके इसे और आकर्षक बनाने का जो प्रयास किया गया है, वह निश्चय ही
और सटीक है। मिट्टी के कथन को प्रभावशाली बिम्बों और प्रतीकों के माध्यम से चित्रित करने का ढंग भी कम अनोखा नहीं है।
(iii) उपर्युक्त पद्यांश का भाव-स्वरूप सहज और रोचक है। सम्पूर्ण कथन सच्चा होने पर भी चौंकाने वाला है। यही नहीं यह ज्ञानवर्द्धक होने के साथ-साथ अधिक ध्यान दिलाने वाला है। मिट्टी की सहजता में उसकी छिपी हुई विशेषता को प्रकाशित करने का कवि-प्रयास को दाद दी जा सकती है।

2. पद्यांश पर आधारित विषय-वस्त से संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) मिट्टी की चिन्मयी शक्ति से क्या अभिप्राय है?
(ii) मिट्टी कब पूज्य बन जाती है? ।
(iii) मनुष्य और मिट्टी की क्या सच्चाई है?
उत्तर
(i) मिट्टी की चिन्मयी शक्ति से अभिप्राय है-मिट्टी के चेतनायुक्त शक्ति। मिट्टी मनुष्य के तरह-तरह के परिश्रम से तरह-तरह के सजीव और आकर्षक रूपों में दिखाई देती है।
(ii) मिट्टी, मनुष्य के परिश्रम और अद्भुत बुद्धि-कला से विभिन्न आकर्षक और देव-देवी की प्रतिमा में बदल जाती है। उससे वह मनुष्य के लिए पूज्य बन जाती है।
(iii) मनुष्य और मिट्टी की सच्चाई बड़ी ही सुस्पष्ट है। मनुष्य पुरुषार्थ (मेहनत) करता है। उसके पुरुषार्थ मेहनत के कारण मिट्टी एक से एक बढ़कर आकर्षक महान रूपों को धारण करती है।

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