MP 9TH Hindi

MP Board Class 9th Hindi Navneet Solutions गद्य Chapter 6 एक कुत्ता और एक मैना

MP Board Class 9th Hindi Navneet Solutions गद्य Chapter 6 एक कुत्ता और एक मैना

MP Board Class 9th Hindi Navneet Solutions गद्य Chapter 6 एक कुत्ता और एक मैना (संस्मरण, हजारीप्रसाद द्विवेदी)

एक कुत्ता और एक मैना अभ्यास

बोध प्रश्न

एक कुत्ता और एक मैना अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
लेखक सर्वव्यापक पक्षी किसे समझ रहा था?
उत्तर:
लेखक सर्वव्यापक पक्षी’कौए’ को समझ रहा था।

प्रश्न 2.
दूसरी बार सबेरे गुरुदेव के पास कौन उपस्थित था?
उत्तर:
दूसरी बार गुरुदेव के पास स्वयं लेखक हजारी प्रसाद द्विवेदी उपस्थित थे।

प्रश्न 3.
लेखक के अनुसार मैना कैसा पक्षी है?
उत्तर:
लेखक के अनुसार मैना दूसरों पर अनुकम्पा दिखाने वाला पक्षी है।

प्रश्न 4.
गुरुदेव कहाँ रहते थे?
उत्तर:
गुरुदेव श्री निकेतन के पुराने तिमंजिले मकान में रहते थे।

प्रश्न 5.
गुरुदेव ने शांति निकेतन को छोड़ कहीं और रहने का मन क्यों बनाया?
उत्तर:
गुरुदेव ने शंति निकेतन को छोड़कर स्वास्थ्य के गड़बड़ होने के कारण दूसरी जगह रहने का मन बनाया।

एक कुत्ता और एक मैना लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों का आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) भावहीन दृष्टि की करुण व्याकुलता जो कुछ समझती है, उसे समझा नहीं पाती और मुझे इस सृष्टि में मनुष्य का सच्चा परिचय समझा देती है।
उत्तर:
आशय-गुरुदेव शान्ति निकेतन छोड़कर श्री निकेतन में रहने लगते हैं। उनका पालूत कुत्ता अपने अन्तर्मन से गुरुदेव का नया ठिकाना ढूँढ़ लेता है। वह दो मील की दूरी बिना किसी के बताये अकेला ही तय करके गुरुदेव के पास पहुँच जाता है। उस कुत्ते की भावदृष्टि की करुणामय व्याकुलता ने बिना भाषा के प्रयोग किए ही गुरुदेव को समझा दिया कि उसका लगाव गुरुदेव के प्रति सच्चा है।।

(ख) “सबेरे की धूप में मानो सहज मन से आहार चुगती हुई झड़े हुए पत्तों पर कूदती फिरती है सारा दिन।”
उत्तर:
आशय-लेखक कहता है कि वह विधवा मैना सबेरे के समय की धूप में सहज भाव से अपने आहार को चुगती हुई पेड़ से गिरे हुए पत्तों पर पूरे दिन कूदती फिरती रहती है।

(ग) मूक प्राणी मनुष्य से कम संवेदनशील नहीं होते।
उत्तर:
आशय-लेखक कहता है कि बोलने की क्षमता ईश्वर ने केवल मनुष्य को प्रदान की है पर मूक प्राणी भी मनुष्य से किसी भी दशा में कम संवेदनशील नहीं होते हैं। कहने का भाव यह है कि इन मूक प्राणियों को भी दु:ख सुख, हर्ष-विषाद की अनुभूति होती है और उसे वे अपने आचरण से व्यक्त कर देते हैं।

एक कुत्ता और एक मैना दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
हजारी प्रसाद द्विवेदी के लेखन कला की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
हजारी प्रसाद द्विवेदी ने निबंध, उपन्यास, आलोचना, शोध हिन्दी साहित्य का इतिहास आदि विविध विषयों पर अपनी लेखनी चलाई है। इन विविध विषयों में उन्होंने अनेक शैलियों का प्रयोग किया है। आपने अपनी रचनाओं के अनुरूप ही भाषा का प्रयोग किया है। उनकी भाषा के तीन रूप हैं-तत्सम प्रधान, तद्भव प्रधान एवं उर्दू-अंग्रेजी शब्द युक्त व्यावहारिक रूप। आपकी भाषा प्रांजल, सुबोध एवं प्रवाहमय है। शब्द चयन उत्तम और वाक्य-विन्यास सुगठित है। यथास्थान आपने लोकोक्तियों एवं मुहावरों का भी प्रयोग किया है।

प्रश्न 2.
निबंध गद्य साहित्य की उत्कृष्ट विधा है, जिसमें लेखक अपने भावों और विचारों को कलात्मक और लालित्यपूर्ण शैली में अभिव्यक्त करता है। इस निबंध में उपर्युक्त विशेषताएँ कहाँ झलकती हैं? किन्हीं चार विशेषताओं को लिखिए।
उत्तर:
लेखक ने अपने भावों और विचारों को कलात्मक और लालित्यपूर्ण शैली में इस अंश में व्यक्त किया है, उदाहरण प्रस्तुत है “एक दिन हमने सपरिवार दर्शन की ठानी। दर्शन को मैं जो यहाँ विशेष रूप से दर्शनीय बनाकर लिख रहा हूँ। उसका कारण यह है कि गुरुदेव के पास जब कभी मैं जाता था तो प्रायः वे यह कहकर मुस्करा देते थे कि ‘दर्शनार्थी हैं क्या?’ शुरू-शुरू में मैं उनसे ऐसी बांग्ला में बात करता था जो वस्तुतः हिन्दी मुहावरों का अनुवाद हुआ करती थी।”

एक अन्य उदाहरण प्रस्तुत है-
“गुरुदेव वहाँ बड़े आनन्द में थे। अकेले रहते थे। भीड़-भाड़ उतनी नहीं होती थी जितनी शांति निकेतन में। जब हम लोग ऊपर गए तो गुरुदेव बाहर एक कुर्सी पर चुपचाप बैठे अस्तगामी सूर्य की ओर ध्यान स्तिमित नयनों से देख रहे थे। हम लोगों को देखकर मुस्कराए, बच्चों से जरा छेड़छाड़ की, कुशल प्रश्न पूछे और फिर चुप हो रहे।”

अन्य उदाहरण-
“इसकी भावहीन दृष्टि की करुण व्याकुलता जो कुछ . समझती है, समझा नहीं पाती और मुझे इस सृष्टि में मनुष्य का सच्चा परिचय समझा देती है।

अन्य उदाहरण-
“सबेरे की धूप में मानो सहज मन से आहार चुगती हुई झड़े हुए पत्तों पर कूदती फिरती है, सारा दिन।”

प्रश्न 3.
करुण मैना को देखकर गुरुदेव ने कविता लिखी, उसका सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
“उस मैना को आज न जाने क्या हो गया है? वह न मालूम अपने दल से क्यों अलग हो गई है? पहले दिन मैंने उसे एक पैर से लंगड़ाते हुए देखा था। इसके बाद नित्य प्रात:काल मैं उसे देखता हूँ तो वह अकेली ही बिना अपने नर मैना के कीड़ों का शिकार किया करती है और नाच-कूदकर इधर-उधर फुदकती रहती है। उसकी यह चिंतनीय दशा क्यों हो गई, इसे मैं बार-बार सोचा करता हूँ।”

एक कुत्ता और एक मैना भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों में से रूढ़ योगरूढ़ और यौगिक शब्द अलग-अलग कीजिए।
विद्यानगर, त्रिवेणी, महादेवी, श्रीहीन, असामयिक, चरण, निर्मल, काव्य-सरोवर, दशानन, दशरथनन्दन, प्रसाद, अनुराग, विवेकानन्द, ब्रजनंदन, गुण, चहलकदमी।
उत्तर:
रूढ़ शब्द – चरण, प्रसाद, गुण।
योगरूढ़ – विद्यानगर, त्रिवेणी, महादेवी, श्रीहीन, निर्मल, दशानन, अनुराग विवेकानन्द।
यौगिक – असामयिक, काव्य-सरोवर, दशरथनन्दन चहलकदमी।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर:

  1. विभूतियाँ-हिन्दी साहित्य में अनेक विभूतियाँ! उत्पन्न हुई। यथा-रामचन्द्र शुक्ल, हजारीप्रसाद द्विवेदी, भारतेन्दु, हरिश्चन्द्र विद्यानिवास मिश्र आदि।
  2. अधिवेशन-हिन्दी परिषद् का अधिवेशन आगामी में 15 अप्रैल, 2008 को होगा।
  3. अवसाद-मनुष्य के जीवन में कभी-कभी अवसाद के क्षण आ जाते हैं।
  4. आशुतोष-शिव भगवान आशुतोष हैं।
  5. रसानुभूति-अच्छी कविता पढ़ने में पाठकों को रसानुभूति होती है।
  6. गंगाजल-भारतीय संस्कृति में गंगाजल बड़ा पवित्र माना जाता है।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों की शुद्ध वर्तनी लिखिए।
उत्तर:
दुरभाग = दुर्भाग्य; आसुतोष = आशुतोष; औजसवी = ओजस्वी; अनकूल = अनुकूल; विशाद = विषाद; निशतेज = निस्तेज; साहित्यक = साहित्यिक।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित वाक्यांश के लिए एक शब्द लिखिए।
उत्तर:

  1. हृदय को स्पर्श करने वाली दृष्टि = हृदयस्पर्शी, मर्म-स्पर्शी।
  2. साहित्य की रचना करने वाला = साहित्यकार।
  3. जानने की इच्छा = जिज्ञासा।
  4. रस की अनुभूति करना = रसानुभूति।
  5. जो पढ़ा-लिखा न हो = अशिक्षित।
  6. जो सब जगह व्याप्त हो = सर्वव्यापक।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित शब्दों के युग्मरूप लिखिए।
उत्तर:
समय-असमय; अवस्था-अनअवस्था; शक्ति-भक्ति; दिन-रात।

प्रश्न 6.
पाठ में आये वाक्यांशों के अर्थ लिखिए।
उत्तर:
विद्यार्थी पाठ पढ़कर स्वयं लिखे।।

प्रश्न 7.
नीचे पाठ के आधार पर कुछ शब्द-युग्म दिये गए हैं, जैसे-संभव-असंभव, स्वस्थ-अस्वस्थ।
इसी तरह पाठ से कुछ शब्द चुनिए एवं अया अन् उपसर्ग लगाकर नए शब्द बनाइए।
उत्तर:
प्रगल्भ – अप्रगल्भ
स्थान – अस्थान
अवस्था – अनवस्था
स्वीकृति – अस्वीकृति
करुण – अकरुण
दृष्टि – अदृष्टि
सत्य – असत्य।

प्रश्न 8.
भाषा और बोली में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बोली बहुत सीमित स्थान में ही बोली जाती है। इसमें लिखा हुआ कोई साहित्य नहीं होता है। जब बोलने वालों का क्षेत्र बढ़ जाता है तब बोली भाषा बन जाती है और भाषा में साहित्य का सृजन होने लगता है। कभी-कभी राजनैतिक कारणों से किसी बोली का स्थान ऊँचा उठ जाता है जैसे कि आज की खड़ी बोली जो राष्ट्रभाषा के पद पर बैठी है वह स्वतन्त्रता से पूर्व केवल दिल्ली, गाजियाबाद, मेरठ आदि के आस-पास बोली जाती थी। साथ ही उस समय उसमें कोई विशेष साहित्य भी नहीं था। पर दिल्ली राजधानी होने से उसका स्थान बहुत ऊँचा हो गया है और वह आज राष्ट्रभाषा मानी जाती है अर्थात् पूरे देश की मानक भाषा। ब्रज, अवधी आदि भाषाएँ हैं।

प्रश्न 9.
मध्य प्रदेश की प्रमुख चार बोलियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
ग्वालरी, भदावरी, उज्जैनी, मालवी।

एक कुत्ता और एक मैना संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

(1) यहाँ यह दुःख के साथ कह देना चाहता हूँ कि अपने देश के दर्शनार्थियों में कितने ही इतने प्रगल्भ होते थे कि समय-असमय, स्थान-अस्थान, अवस्था-अनवस्था की एकदम परवाह नहीं करते थे और रोकते रहने पर भी आ जाते थे। ऐसे दर्शनार्थियों से गुरुदेव कुछ भीत-भीत से रहते थे।

कठिन शब्दार्थ :
दर्शनार्थियों में दर्शन के लिए आने वालों में; प्रगल्भ = लापरवाह, धृष्ट; भीत-भीत से = डरते से।

सन्दर्भ :
प्रस्तुत गद्यांश ‘एक कुत्ता और एक मैना’ पाठ से लिया गया है। इसके लेखक आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी हैं।

प्रसंग :
इस अंश में लेखक ने भारतवर्ष के दर्शनार्थियों की प्रवृत्ति पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि हमारे देश के नागरिकों में सभ्य समाज के सिद्धान्तों एवं ढंगों का ज्ञान तक नहीं होता है। वे बड़े ही दु:ख के साथ कह देना चाहते हैं कि हमारे देश के दर्शनार्थियों में शिष्टता की कमी होती है। वे जिन महान् पुरुषों का दर्शन करना चाहते हैं उनसे मिलने का कौन-सा उचित समय है, उनसे मिलने का कौन-सा उचित स्थान है और कौन-सी अवस्था है। इस तक का ज्ञान नहीं होता है। उनको रोकने की चेष्टा भी व्यर्थ जाती थी। इस प्रकार के अशिष्ट दर्शनार्थियों से गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर को भय लगा रहता था।

विशेष :

  1. लेखक ने अपने देश के दर्शनार्थियों में जो शिष्टता की कमी है, उस ओर ध्यान दिलाया है।
  2. भाषा सहज एवं सरल है।

(2) इस वाक्यहीन प्राणिलोक में सिर्फ यही एक जीव अच्छा-बुरा सबको भेदकर सम्पूर्ण मनुष्य को देख सका है, उस आनन्द को देख सका है, जिसे प्राण दिया जा सकता है जिसमें अहेतुक प्रेम ढाल दिया जा सकता है, जिसकी चेतना असीम चैतन्य लोक में राह दिखा सकती है। जब मैं इस मूक हृदय का प्राणपण आत्मनिवेदन देखता हूँ, जिसमें वह अपनी दीनता बताता रहता है, तब मैं यह सोच ही नहीं पाता कि उसने अपने सहज बोध से मानव स्वरूप में कौन-सा मूल आविष्कार किया है। इसकी भावहीन दृष्टि की करुण व्याकुलता जो कुछ समझती है, उसे समझा नहीं पाती और मुझे इस सृष्टि में मनुष्य का सच्चा परिचय समझा देती है।

कठिन शब्दा :
र्थवाक्यहीन = मुख से न बोलने वाले प्राणिलोक = प्राणी संसार में; अहेतुक = बिना किसी कारण या अभिप्राय के; असीम = सीमा रहित; चैतन्य लोक = चेतना युक्त संसार में; प्राणपण = प्राणों की बाजी लगाने वाले आविष्कार = खोज; सृष्टि = संसार में।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
इस गद्यांश में लेखक गुरुदेव रवीन्द्रनाथ के स्वामीभक्त कुत्ते की मानवीय भावना का वर्णन करते हैं।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि अपने स्वामीभक्त पालतू कुत्ते की भावनाओं की अभिव्यक्ति में कविवर टैगोर ने ‘आरोग्य’ नामक पत्रिका में एक कविता लिखी थी। उसी कविता के भावों का वर्णन यहाँ किया गया है। कवि टैगोर के शब्दों को व्यक्त करते हुए लेखक कहता है कि वह मूक प्राणी प्राणियों की अच्छी बुरी भावनाओं से भी ऊपर उठकर मनुष्य को देख सका है, वह उस आनन्द को देख सका है जिसे प्राण दिया जा सकता है, साथ ही वह अहेतुक प्रेम में ऐसा ढल गया था कि उसकी चेतना असीम चैतन्य लोक में मार्ग दिखा सकती है।

कवि टैगोर जी आगे कहते हैं कि जब मैं इस मूक प्राणी के प्राणों की बाजी लगा देने वाले आत्मनिवेदन को देखता हूँ जिसमें कि वह अपनी दीनता को व्यक्त करता रहता है, तब उस क्षण मैं यह सोच ही नहीं पाता कि उस मूक प्राणी ने अपने सहज ज्ञान से मानक स्वरूप में कौन-सी नई चीज खोज ली है। उसकी भावहीन दृष्टि की करुण बेचैनी जो कुछ मुझे समझाना चाहती है, उसे वह समझा नहीं पाती है. और मुझे इस जगत् में उसके स्वरूप में मनुष्य का सच्चा परिचय समझा देती है।

विशेष :

  1. गुरुदेव टैगोर अपने स्वामीभक्त कुत्ते से बहुत स्नेह करते थे। उसके आन्तरिक अलौकिक गुणों की उन्हें पहचान थी।
  2. भाषा संस्कृतनिष्ठ एवं दुरूह है।

(3) तीन-चार वर्ष से मैं एक नये मकान में रहने लगा था। मकान के निर्माताओं ने दीवारों में चारों ओर एक-एक सुराख छोड़ रखी है। यह शायद आधुनिक वैज्ञानिक खतरे का समाधान होगा। सो, एक मैना दंपति नियमित भाव से प्रतिवर्ष यहाँ गृहस्थी जमाया करते हैं, तिनके और चीथड़ों का अम्बार लगा देते हैं, भलेमानस गोबर के टुकड़े तक ले आना नहीं भूलते। हैरान होकर हम सूराखों में ईंट भर देते हैं, परन्तु वे खाली बची जगह का भी उपयोग कर लेते हैं।

कठिन शब्दार्थ :
निर्माताओं = बनाने वालों ने; सुराख = छेद; समाधान = इलाज, बचाव; दम्पति = नर और मादा का जोड़ा; प्रतिवर्ष = हर साल; गृहस्थी= घर-परिवार; अम्बार = ढेर।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
लेखक जब नये मकान में रहने आता है तो वह वहाँ दीवारों के सुराख में मैना के अण्डे सैने की घटना का वर्णन करते हैं।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि तीन-चार वर्ष से मैं एक नये मकान में किरायेदार रूप में रह रहा हूँ। इस भवन के निर्माणकर्ताओं ने संभवतः किसी वैज्ञानिक सिद्धान्त के सहारे मकान की दीवारों में कुछ सुराख करवा रखे थे। इन दीवारों के सुराखों में एक मैना दम्पति प्रतिवर्ष अण्डे सैने के लिए अपना घोंसला बना लेते थे। इस घोंसले के निर्माण के लिए वे तिनके, चीथड़ों का एक ढेर इकट्ठा कर देते थे और इससे भी जब उनका मन नहीं भरता तो वे गोबर के टुकड़े तक ले आया करते थे। उनके द्वारा निर्मित घोंसले से हमारे घर में गन्दगी फैलती थी अतः हैरान होकर हमने मकान की दीवारों के सुराखों को ईंटों से भर दिया था परन्तु उसने भी जो खाली जगह मिल जाती उसी में वे अपना घोंसला जमा लिया करते थे।

विशेष :

  1. इस अवतरण में लेखक ने मैना दम्पति के गृह निर्माण की कथा को व्यक्त किया है।
  2. भाषा सहज एवं भावानुकूल है।

(4) उस मैना को क्या हो गया है, यही सोचता हूँ। क्यों वह दल से अलग होकर अकेली रहती है ? पहले दिन देख था संसार के पेड़ के नीचे मेरे बगीचे में। जान पड़ा जै एक पैर से लंगड़ा रही हो। इसके बाद उसे रोज सबेरे देखन हूँ संगीहीन होकर कीड़ों का शिकार करती फिरती है। चढ़ जाती है बरामदे में। नाच-नाचकर चहलकदमी किया करती है, मुझसे जरा भी नहीं डरती। क्यों है ऐसी दशा इसकी? समाज के किस दंड पर उसे निर्वासन मिला है, दल के किस अविचार पर उसने मान किया है।

कठिन शब्दार्थ :
संसार = एक वृक्ष का नाम; संगीहीन = अपने नर पति के बिना; चहलकदमी = घूमना-फिरना; निर्वासन = पति से अलग; अविचार = अनुचित निर्णय पर।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
लेखक इस अंश में यह बताता है कि गुरुदेव के बगीचे एवं बरामदे में एक अकेली मैना मादा इधर-उधर फुदकती रहती है। इसी मादा को आधार बनाकर गुरुदेव ने उस पर एक कविता लिखी थी। इसी कविता का भाव इस अंश में है।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि गुरुदेव ने उस विधवा मैना पर जो कविता लिखी है उसका भाव यह है कि उस मैना को न मालूम क्या हो गया है, मैं यही सोचता रहता है। वह बेचारी अपने संगी-साथियों से अलग होकर क्यों रह रही है? प्रथम दिन मैंने उसे अपने बगीचे में संसार पेड़ के नीचे देखा था। ऐसा लग रहा था कि वह एक पैर से लंगड़ा रही हो। इसके बाद मैं उसे रोजाना सबेरे के समय देखता हूँ कि वह अपने नर साथी के अभाव में अकेली ही कीड़ों को पकड़कर खा रही है। कभी वह बरामदे पर चढ़ जाती है। वह मुझसे जरा भी भय नहीं करती है और मेरे सामने ही नाच-नाचकर इधर-उधर घूमा करती है। मैं उसकी इस दशा को देखकर दुःखी हो उठता हूँ और सोचने लग जाता हूँ कि पक्षी समाज ने कौन-सा दण्ड देकर उसे अकेला छोड़ दिया है या फिर पक्षी समाज का ऐसा कौन-सा विवेकहीन निर्णय था जिस पर वह अकेली ही मान किये अलग-अलग थिरक रही है।

विशेष :

  1. कविवर गुरुदेव की पैनी दृष्टि ने पक्षियों के व्यवहार को भी पढ़ लिया था।
  2. भाषा सहज एवं भावानुकूल है।

(5) इस बेचारी को ऐसा कुछ भी शौक नहीं है। इसके जीवन में कहाँ गाँठ पड़ी है, यही सोच रहा हूँ। “सवेरे की धूप में मानो सहज मन से आहार चुगती हुई झड़े हुए पत्तों पर कूदती फिरती है सारा दिन।” किसी के ऊपर इसका कुछ अभियोग है, यह बात बिलकुल नहीं जान पड़ती। इसकी चाल में वैराग्य का गर्व भी तो नहीं है, दो आग सी जलती आँखें भी तो नहीं दिखतीं।

कठिन शब्दार्थ :
सहज = स्वाभाविक; आहार = भोजन; अभियोग = मुकदमा; वैराग्य = विरक्ति।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग:
इस अंश में लेखक ने उसी विधवा मैना का वर्णन किया है जो गुरुदेव के बगीचे में फुदकती रहती है।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि यह विधवा ना अन्य मैनाओं से अलग रूप में दिखाई देती है। क्योंकि जहाँ अन्य मैनाएँ बक-बक करती हुई उछल-कूद कर रही हैं। वैसा व्यवहार इस मैना का नहीं है। मैं बार-बार यही सोचता रहता हूँ कि इसके जीवन में न मालूम कौन-सी गाँठ पड़ गई है जिसने इसकी सहज खुशी को छीन लिया है। वह प्रात:काल की धूप में सहज भाव से अपना आहार चुगती रहती हैं। वह पेड़ से गिरे हुए पत्तों पर पूरे दिन कूदती-फिरती रहती है। किसी अन्य जीव ने इसके साथ कुछ धोखा किया है, यह बात भी पता नहीं चलती है। उसकी चाल में विरक्ति का भाव भी दिखाई नहीं देता है और क्रोध के कारण उसकी दोनों आँखें जलती हुई भी दिखाई नहीं देती।

विशेष :

  1. लेखक पक्षी जगत् के जीवों के मनोभावों को बड़े ही सहज रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं।
  2. भाषा भावानुकूल है।

The Complete Educational Website

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *