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MP Board Class 9th Hindi Solutions Chapter 13 ग्राम श्री

MP Board Class 9th Hindi Solutions Chapter 13 ग्राम श्री

MP Board Class 9th Hindi Solutions Chapter 13 ग्राम श्री ( सुमित्रानंदन पंत )

कवि – परिचय

जीवन – परिचय – प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत का जन्म सन् 1900 में अल्मोड़ा जिले के कौसानी नामक गाँव में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा अल्मोड़ा तथा कॉलेज शिक्षा प्रयाग के म्योर सेंट्रल कॉलेज में हुई। उन्होंने गाँधी जी के असहयोग आंदोलन में भाग लेने के लिए कॉलेज छोड़ा। अनेक वर्षों तक वे आकाशवाणी से जुड़े रहे। वे बचपन से ही काव्य-रचना करने लगे थे। उनके साहित्य के महत्व को देखते हुए उन्हें साहित्य अकादमी, सोवियत रूस तथा ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया। गया। वे छायावाद के प्रमुख स्तंभों में से एक थे। इन्होंने 1916 से 1977 तक साहित्य सेवा की। सन् 1977 में उनका देहांत हो गया।
रचनाएँ – पंत जी की मुख्य काव्य रचनाएँ हैं- पल्लव, गुंजन, ग्रंथि, युगान्त, वीणा, ग्राम्या, युगवाणी, स्वर्णधूलि, स्वर्ण, किरण, उत्तरा, अतिमा, कला और बूढ़ा चाँद तथा लोकायतन। साहित्यिक विशेषताएँ – श्री सुमित्रानंदन पंतजी प्रकृति, प्रेम और कल्पना के कोमल कवि थे। उनका काव्य रोमांटिक तथा व्यक्ति प्रधान है। प्रकृति का जैसा सूक्ष्म वर्णन उन्होंने किया वैसा अन्य किसी ने नहीं किया। उन्होंने आधुनिक हिंदी कविता को एक नवीन अभिव्यंजना पद्धति एवं काव्य-भाषा से समृद्ध किया। प्रकृति के बाद उन्होंने अपने काव्य में नारी-सौंदर्य को स्थान दिया। इसके बाद उनका रुझान प्रगतिवाद की ओर मुड़ गया। उन्होंने शीर्षकों के प्रति क्रोध और दलितों के प्रति सहानुभूति के भाव व्यक्त किए। अंत में वे अध्यात्म की ओर मुड़ गए।
भाषा-शैली – प्रकृति प्रेमी सुमित्रानंदन पंत जी शब्दों के कुशल शिल्पी माने जाते हैं। उनकी भाषा खड़ी बोली है। उनकी भाषा में सरलता एवं मधुरता है। उनकी भाषा में संस्कृत के शब्दों की अधिकता है। वे कोमल, मधुर और सूक्ष्म भावों को प्रकट करके शब्दों का प्रयोग करते हैं। पंत जी ने अपने काव्य में उपमा, रूपक, अनुप्रास और मानवीयकरण अलंकारों का अतीव सुंदर प्रयोग किया है। वे हिन्दी के गौरवशाली कवि हैं।
कविता का सार
‘ग्राम श्री’ कविता में गंगा किनारे के एक खेत का मनोहारी चित्रण किया गया है। खेतों में चारों ओर हरियाली छाई है लहलहाती फसल है, सूर्य की किरणें चमक रही हैं, धरती पर नीला आकाश झुका हुआ है। बाग-बगीचों में नाना प्रकार के फूल खिले हैं, फूलों पर तितलियाँ मँडराती हैं। यमुनातट की रंगीन रेती, पानी में क्रीड़ा करते पक्षियों का सजीवन चित्रण हुआ है।
इस प्रकार यह गाँव मरकत के डिब्बे – सा सुंदर प्रतीत होता हैं। उस पर नीला आकाश छाया हुआ है। यहाँ की कोमल शांति अपनी शोभा से जन मन को हर लेती है।
पाठ्य पुस्तक पर आधारित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर 
प्रश्न 1. ‘ग्राम श्री कविता में कवि ने गाँव को ‘हरता जन मन’ क्यों कहा है?
उत्तर- कवि सुमित्रानंदन पंत ने अपनी कविता ‘ग्राम श्री ‘ में गाँव को ‘हरता जन मन’ कहा है। कारण, गाँव की प्राकृतिक सुंदरता हर किसी का ध्यान बरबस अपनी ओर आकर्षित कर लेती है। गाँव में दूर-दूर तक मखमली हरियाली फैली होती है। उस पर सुनहरी नर्म सूर्य की किरणों की चमक हरियाली में नया चमत्कार उत्पन्न करती है। खेतों में रंग-बिरंगे फूल खिले हुए हैं। वृक्षों में नाना प्रकार के फल-फूल लगे हैं। आमों की मंजरियों से वातावरण अत्यंत सुरम्य हो गया है। तालाब में तैरते पक्षी, तट पर फले-फूले खरबूजे तथा तरबूजे गाँव के सौंदर्य में चार चाँद लगाते प्रतीत होते हैं। संपूर्ण गाँव पन्ना रत्न की तरह अपनी आभा बिखेर रहा है ।
प्रश्न 2. ‘ग्राम श्री’ कविता में किस मौसम के सौंदर्य का वर्णन है?
उत्तर- ‘ग्राम श्री’ कविता में वर्णित घटनाओं एवं फसलों के आधार पर कहा जा सकता है कि कविता में शिशिर और बसंत ऋतु का वर्णन है। कारण, इसी ऋतु में पेड़ों के पत्ते गिरते हैं तथा वृक्षों में नई कोंपले, शाखाएँ तथा फल-फूल आना शुरू होते हैं। आमों में मंजरियाँ आने का समय भी यही होता है।
प्रश्न 3. ‘ग्राम श्री’ कविता में गाँव को ‘मरकत डिब्बेसा खुला’ क्यों कहा है?
उत्तर- गाँव की प्राकृतिक हरियाली अत्यंत सुरम्य है। आम, नीम, जामुन, महुआ तथा खेतों में लगी नाना प्रकार की फसलों से समस्त गाँव हरा-भरा दिखाई देता है। उस पर जगह-जगह खिले रंग-बिरंगे फूल उन पर मंडराती तितलियाँ, सूरज की चमकीली नरम धूप से हरियाली एक अजीब चमक बिखेर रही है। यह ठीक वैसे ही लग रही है, जैसे पन्ना रत्न खुले आसमान में रखा हुआ हो । पन्ना हरा तथा अत्यंत चमकीला रत्न है। कवि ने गाँव की हरियाली के सौंदर्य को विशिष्टतम बनाने के लिए इस उपमा का प्रयोग किया है।
प्रश्न 4 अरहर और सनई के खेत कवि को कैसे दिखाई देते हैं?
उत्तर- ‘ग्राम श्री’ कविता में कवि ने अरहर और सनई के खेत का वर्णन करते हुए लिखा है कि इनमें जब फलियाँ आती हैं और फसल तैयार हो जाती है, तब हवा चलने पर उनमें से हल्की मधुर आवाज आती है, जिसे सुनकर कवि को लगता है जैसे धरती ने अपनी कमर पर करघनी बाँध रखी हो ।
प्रश्न 5. “बालू के साँपों से अंकित गंगा की सतरंगी रेती” काव्यांश का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- उपर्युक्त काव्यांश का भाव यह है कि गंगा नदी के किनारे फैली रेत पर जब सूर्य की किरणें पड़ती हैं, तो वे रेत कण चमक उठते हैं एवं सतरंगी दिखाई देते हैं। गंगा की लहरों से इन रेतों पर पड़ी टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएँ साँपों के रेंगने से बने चिह्न प्रतीत होते हैं, जो अत्यंत मनोहारी है।’
प्रश्न 6. “हँसमुख हरियाली हिम-आतप सुख से अलसाएसे सोए” काव्यांश का भाव स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर- उपर्युक्त काव्यांश में कवि हरियाली और सूर्य की किरणों के मिलन से उत्पन्न आभा का वर्णन करते हुए लिखता है कि हरियाली पर नर्म सुनहरी किरणें पड़ने से ऐसा लगता है, मानो हरियाली हँस रही हो और दोनों हरियाली तथा सूर्य की नर्म किरणें आलस्य से परिपूर्ण हो सो रही हों ।
प्रश्न 7. “तिनको के हरे-हरे तन पर हिल हरित रुधिर है रहा झलक” काव्य पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है ?
उत्तर- ‘ह’ और ‘र’ वर्ण की आवृत्ति होने के कारण अनुप्रास अलंकार, हरे-हरे शब्दों के बार-बार प्रयोग के कारण पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार, हरित रुधिर रक्त- हरे रंग का खून – विरोधाभास अलंकार, तिनकों के तन पर मानवीकरण तथा रूपक अलंकार की घटा दर्शनीय है।
प्रश्न 8. ‘ग्राम श्री’ कविता में जिस गाँव का चित्रण हुआ है, वह भारत के किस भू-भाग पर स्थित है?
उत्तर- ‘ग्राम श्री’ कविता में जिस गाँव का चित्रण किया गया है, वह निश्चित ही गंगा के किनारे फैले विशाल मैदानों में स्थित किसी गाँव का का हो सकता है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. सही विकल्प चुनकर रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –
(i) ‘ग्राम श्री’ कविता में ………की सुन्दरता का वर्णन किया गया है।  (शहर / ग्राम)
(ii) ‘सरपत’ ……….. को कहते है। (तिनके/हरीघास)
(iii) नीलम की कली ……… के पौधो पर होती है। (मटर / तुवर)
(iv) हरियाली पर पड़ती सूर्य की किरणें ……….जैसी उजली लग रही है। (सोने/चाँदी)
उत्तर- (i) ग्राम, (ii) तिनके, (iii) मटर, (iv) चाँदी।
प्रश्न 2. सत्य / असत्य बताइए –
(i)  ‘ग्रामश्री’ कविता में शहर की सुन्दरता का वर्णन किया गया है।
(ii) गंगा के किनारे बगुले मछलियों को देख रहे हैं।
उत्तर- (i) असत्य, (ii) असत्य।
प्रश्न 3. एक वाक्य में उत्तर दीजिए –
(i)  प्रकृति के कुशल चितेरे किसे कहा गया है ?
(ii) ‘बालू के साँपों’ में कौन-सा अलंकार है ?
(iii) ‘ग्राम श्री’ कविता में कहाँ के गाँव का चित्रण है ?
उत्तर- (i) प्रकृति के कुशल चितेरे कवि श्री सुमित्रानंदन पंत को कहा गया है।
(ii) इसमें रूपक अलंकार है।
(iii)  ‘ग्रामश्री’ कविता में गंगा के किनारे के गाँव का चित्रण है।
प्रश्न 4. सही सम्बन्ध स्थापित कीजिए –
(अ)                                 (ब)
(1) दो बैलों की कथा          (अ) जाबिर हुसैन
(2) ल्हासा की ओर             (ब) मुंशी प्रेमचन्द
(3) साँवले सपनों की याद    (स) माखनलाल चतुर्वेदी
(4) बाख                           (द) सुमित्रानंदन पंत
(5) कैदी और कोकिला        (इ) राहुल सांकृत्यायन
(6) ग्रामश्री                        (फ) ललद्यद
उत्तर- (1) – (ब), (2)- (इ), (3)- (अ), (4)-(फ),  (5)(स), (6)- (द)।
काव्यांश पर आधारित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
काव्यांश – 1 
“फैली खेतों में दूर तलक
मखमल की कोमल हरियाली,
लिपटीं जिससे रवि की किरणें
चाँदी की सी उजली जाली !
तिनकों के हरे हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक,
श्यामल भू तल पर झुका हुआ
नभ का चिर निर्मल नील फलक !”
प्रश्न 1. उपर्युक्त काव्यांश का भावार्थ अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- उपर्युक्त काव्यांश में कवि ग्राम के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन करते हुए लिखता है कि गाँवों में दूर-दूर तक मखमल की तरह मुलायम हरियाली फैली है। इस पर पड़ने वाली किरणों को देखकर ऐसा लगता है, जैसे चाँदी की जाली धरती पर बिठा दी गई हो। पत्तियों पर हिलती ओस की बूँदे देखकर ऐसा लगता है कि उनमें हरा रक्त संचार हो रहा है। हरी-भरी धरती पर विस्तृत फैला नीला आसमान मानो धरती को अपने आगोश में लेने को आतुर हो ।
प्रश्न 2. उपर्युक्त काव्यांश का शिल्प सौंदर्य स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर- काव्यांश की भाषा तत्सम शब्दों से युक्त खड़ी बोली है। ‘मखमल की कोमल हरियाली’, ‘निर्मल नील फलक’, ‘हिलहरित रुधिर’ – काव्य पंक्तियों में अनुप्रास अलंकार की छटा दर्शनीय है। “चाँदी की सी उजली जाली!” काव्य पंक्ति में उपमा अलंकार है। कवि ने प्राकृतिक सौंदर्य का सजीव चित्रण किया है।
प्रश्न 3. कवि ने पौधों में कैसा रक्त होने की कल्पना की है?
उत्तर- कवि सुमित्रानंदन पंत ने ओस की बूँदों को वृक्ष के पत्तों पर हिलते देखकर कहा है कि ऐसा प्रतीत होता है, जैसे पत्तियों में हरे रक्त का संचार हो रहा है ।
काव्यांश – 2
“रोमांचित सी लगती वसुधा
आई जौ गेहूँ में बाली,
अरहर सनई की सोने की
किंकिणियाँ हैं शोभाशाली!
उड़ती भीनी तैलाक्त गंध
फूली सरसों पीली पीली,
लो, हरित धरा से झाँक रही
नीलम की कलि, तीसी नीली!’
प्रश्न 1. उपर्युक्त काव्यांश का शिल्प सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- उपर्युक्त काव्यांश में कवि ने गाँव के सौंदर्य का अति सूक्ष्म वर्णन किया है, इसके पढ़ने से गाँव का चित्र आँखों के सामने सजीव हो उठता है। काव्यांश की भाषा तत्सम शब्दों से युक्त खड़ी बोली है, जिसमें सहजता और सरलता है। संपूर्ण काव्यांश में मानवीकरण अलंकार है। ‘किकिणियाँ है शोभाशाली’, यहाँ किकिणियाँ में भव्य बिंब तथा “लो, हरित धरा से जाँक रही, नीलम की कलि, तीसी नीली!” में दृश्य बिंब है।
प्रश्न 2. उपर्युक्त काव्यांश का भाव अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- उपर्युक्त काव्यांश में कवि गाँव के सौंदर्य का वर्णन करते हुए लिखता है कि गाँव के सौंदर्य को देखकर ऐसा प्रतीत होता है, जैसे धरती खुशी एवं रोमांच से भर गई है और उस रोमांच को प्रदर्शित करने के लिए जौ और गेहूँ में बालियाँ निकल आई हैं। अरहर और सनई के पौधों पर लगी कलियाँ कमरबंद में लगे घुँघरुओं की तरह सुशोभित हो रही हैं। खेत में चारों और सरसों के फूल हैं, जिनसे तेल की खुशबू फैल रही है तथा हरी-भरी धरती से नीले-नीले फूल निकलने लगे हैं।’
प्रश्न 3. धरती अपनी खुशी कैसे प्रकट कर रही है?
उत्तर- धरती अपनी खुशी जौ तथा गेहूँ के पौधों में आई बालियों के रूप में प्रकट कर रही है।
काव्यांश – 3
“रंग रंग के फूलों में रिलमिल
हँस रही सखियाँ मटर खड़ी,
मखमली पेटियों सी लटकीं
छीमियाँ, छिपाए बीज लड़ी!
फिरती हैं रंग रंग की तितली
रंग रंग के फूलों पर सुंदर,
फूले फिरते हों फूल स्वयं
उड़ उड़ वृंतों से वृंतों पर !”
प्रश्न 1. उपर्युक्त काव्यांश में मटर क्या कर रहा है?
उत्तर- उपर्युक्त काव्यांश में मटर सखियों से हँस-हँस कर बातें कर रहा है।
प्रश्न 2. मटर की फलियाँ कैसी दिख रही हैं?
उत्तर- उपर्युक्त काव्यांश में मटर की फलियाँ मखमली पेटियों-सी दिख रही हैं, जिसमें रत्न छिपे हों ।
प्रश्न 3. काव्यांश में कवि ने तितलियों को कैसे चित्रित किया है?
उत्तर- काव्यांश में कवि ने तितलियों को उनकी प्रकृति के अनुसार फूलों पर इधर-उधर उड़ते हुए चित्रित किया है।
प्रश्न 4. कवि को फूल उड़ते हुए क्यों प्रतीत हो रहे हैं?
उत्तर- काव्यांश में वर्णित तथ्यों के अनुसार फूलों पर रंगबिरंगी तितलियाँ मँडरा रही हैं। ऐसे में लेखक को यह प्रतीत होता है कि फूल स्वयं उड़ रहे हों।
प्रश्न 5. “फूले फिरते हों फूल स्वयं उड़ उड़ वृंतों से वृंतों पर !” पंक्ति में कौन-सा अलंकार प्रयुक्त है?
उत्तर- उपर्युक्त काव्यांश में उत्प्रेक्षा अलंकार है।
काव्यांश – 4
‘अब रजत स्वर्ण मंजरियों से
लद गई आम्र तरु की डाली,
झर रहे ढाक, पीतल के दल,
हो उठी कोकिला मतवाली!
महके कटहल, मुकुलित जामुन,
जंगल में झरबेरी झूली,
फूले आडू, नींबू, दाड़िम,
आलू, गोभी, बैंगन, मूली!”
प्रश्न 1. उपर्युक्त काव्यांश का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- उपर्युक्त पंक्तियों में सुमित्रानंदन पंत गाँव के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन करते हुए लिखते हैं कि इस मौसम में आम की डालियों पर सोने चाँदी के रंग की मंजरियाँ आ गई हैं। एक ओर आम में मंजर आ रहे हैं, तो दूसरी और ढाक और पीपल के पत्ते गिरने शुरू हो गए हैं। कोयल मदमस्त होकर एक डाली से दूसरी डाली पर उड़ती फिर रही है। कटहल महक उठा है। जामुन के फूल अधखिले हो रहे हैं। जंगल में झरबेरी लद गई है एवं आडू भी फूलने लगे हैं। आलू, गोभी, बैंगन, मूली, नींबू, अनार, सब तैयार हो रहे हैं।
प्रश्न 2. उपर्युक्त काव्यांश का शिल्प सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- उपर्युक्त काव्यांश में गाँव के प्राकृतिक सौंदर्य का अति सूक्ष्म चित्रण हुआ है। है। काव्यांश की भाषा तत्सम शब्द से युक्त खड़ी बोली है, जिसमें सरलता एवं सहजता विद्यमान है। पत्तों का गिरना दृश्य बिंब तथा कोयल का कूकना श्रव्य बिब प्रस्तुत करता है। झरबेरी- झूली में अनुप्रास अलंकार है।
प्रश्न 3. कोयल के मतवाली होने का क्या अर्थ है?
उत्तर- कोयल के मतवाली होने का अर्थ है आनंद से मस्त होकर इस डाली से उस डाली फुदक- फुदक कर कूकना।
काव्यांश -5
“पीले मीठे अमरूदों में
अब लाल लाल चित्तियाँ पड़ी,
पक गए सुनहले मधुर बेर,
अँवली से तरु की डाल जड़ी !
लहलह पालक, महमह धनिया,
लौकी औ ‘सेम फलीं, फैलीं
मखमली टमाटर हुए लाल,
मिरचों की बड़ी हरी थैली!”
प्रश्न 1. उपर्युक्त काव्यांश का भावार्थ स्पष्ट कीजिए –
उत्तर- उपर्युक्त पंक्तियों में कवि गाँव के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहता है कि पेड़ पर लगे अमरूद पककर पीले और मीठे हो गए हैं। उन पर लाल-लाल चित्तियाँ पड़ गई हैं। बेर पककर सुनहरे और मीठे हो गए हैं। आँवले की डालियों पर छोटे-छोटे आँवले लगे हुए हैं। खेतों में हरी-भरी पालक लहरा रही है। धनिया अपनी महक बिखेर रही है। लौकी और सेम की लताएँ फैल गई हैं। टमाटरों का लाल रंग मखमल जैसा लग रहा है। मिर्च के पेड़ पर लगे मिर्चों के गुच्छे बड़ी-सी हरी थैली जैसे दिख रहे हैं।
प्रश्न 2. उपर्युक्त काव्यांश का शिल्प सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- उपर्युक्त काव्यांश में गाँव के प्राकृतिक सौंदर्य का कवि ने अति सजीव चित्रण प्रस्तुत किया है । भाषा तत्सम शब्दों से युक्त खड़ी बोली है। काव्य में विशेषणों का प्रयोग दर्शनीय है। फलीं-फैलीं तथा मधुर बेर में अनुप्रास अलंकार है। काव्य में फलों एवं सब्जियों का वर्णन अत्यंत स्वाभाविक, सहज तथा सजीव प्रतीत होता है।
प्रश्न 3. आँवले का डाल तथा अमरूद के फल कैसे हो रहे हैं?
उत्तर- आँवले की डाल छोटे-छोटे आँवले के फलों से लदी हुई है। अमरूद पककर पीले तथा मीठे हो गए हैं।
काव्यांश – 6
“बालू के साँपों से अंकित
गंगा की सतरंगी रेती
सुंदर लगती सरपत छाई
तट पर तरबूजों की खेती;
अँगुली की कंघी से बगुले
कलँगी सँवारते हैं कोई,
तिरते जल में सुरखाब, पुलिन पर
मगरौठी रहती सोई!”
प्रश्न 1. गंगा तट की रेत के सौंदर्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर- काव्यांश में वर्णित गंगा तट की रेत सूर्य की किरणों से सिक्त हो सतरंगी चमक बिखेर रही है। रेत पर पानी की लहरों से बने निशान ऐसे प्रतीत होते हैं, जैसे साँपों के चलने से दो टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएँ बन गई हों। ऐसे में गंगा तट की रेत का सौंदर्य देखते बनता है।
प्रश्न 2. गंगा के किनारे खड़े बगुले क्या कर रहे हैं?
उत्तर- गंगा के किनारे जल में खड़े बगुले अपने पैर से अपना सिर खुजा रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है, जैसे अपनी कलगी सँवार रहे हों।
प्रश्न 3. काव्यांश में किन पक्षियों का वर्णन है? काव्यांश में व्यक्त उनकी क्रियाओं का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर- उपर्युक्त काव्यांश में बगुला, सुरखाब और मगरौठी का वर्णन है। तट के समीप बगुला अपने पैर से सिर खुजलाता ऐसा लग रहा है, जैसे वह अपनी कलगी सँवार रहा हो । सुरखाब बहते पानी में तैर रहा है। मगरौठी तट के किनारे रेत पर सो रही है ।
प्रश्न 4. ‘सरपत’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर- ‘सरपत’ घास-पात तथा तिनके को कहते हैं।
प्रश्न 5. ‘बालू के साँपों’ में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर- उपर्युक्त पंक्ति में रूपक अलंकार है ।

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