UK 10th Social Science

UK Board 10th Class Social Science – (राजनीति विज्ञान) – Chapter 5 जन-संघर्ष और आन्दोलन

UK Board 10th Class Social Science – (राजनीति विज्ञान) – Chapter 5 जन-संघर्ष और आन्दोलन

UK Board Solutions for Class 10th Social Science – सामाजिक विज्ञान – (राजनीति विज्ञान) – Chapter 5 जन-संघर्ष और आन्दोलन

पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – दबाव समूह और आन्दोलन राजनीति को किस तरह प्रभावित करते हैं?
उत्तर- दबाव समूह तथा आन्दोलन द्वारा राजनीति पर प्रभाव
दबाव समूह तथा आन्दोलन द्वारा राजनीति पर प्रभाव को अग्र प्रकार व्यक्त किया जा सकता है-
  1. दबाव समूह तथा आन्दोलन दोनों ही राजनीतिक गतिविधियों को प्रभावित करते हैं। ये संवैधानिक तथा असंवैधानिक साधनों द्वारा शासन-सत्ता को अपनी माँगों को मनवाने के लिए बाध्य कर देते हैं। ये सामान्यतया संवैधानिक साधनों; जैसे—धरना, प्रदर्शन, रैली, सभाएँ, हड़ताल आदि का सहारा लेते हैं।
  2. दबाव समूह की तुलना में आन्दोलनों में संगठन ढीला-ढाला होता है। आन्दोलनों में निर्णय अनौपचारिक तौर से लिए जाते हैं तथा ये निर्णय लचीले भी होते हैं। आन्दोलन जनता की स्वतःस्फूर्त भागीदारी पर निर्भर करते हैं न कि दबाव समूहों पर ।
  3. आन्दोलन किसी समूह – विशेष द्वारा संचालित किए जाते हैंजिनका अपना कोई विशेष उद्देश्य होता है। आन्दोलन धीरे-धीरे जन-आन्दोलन का रूप धारण कर लेता है। सामूहिक कार्यवाहियों के लिए जन-आन्दोलन शब्द का प्रयोग किया जाता है; जैसे नर्मदा बचाओ आन्दोलन, चिपको आन्दोलन, पर्यावरण आन्दोलन, मद्यपान विरोधी आन्दोलन, सूचना के अधिकार का आन्दोलन आदि ।
  4. राजनीतिक दृष्टिकोण से कुछ आन्दोलनों को संगठन अथवा दबाव-समूहों की संज्ञा प्रदान नहीं की जा सकती है यद्यपि उनमें कुछ बातें आन्दोलनकारियों के समान देखी जा सकती हैं। नेपाल में राजतन्त्र की निरंकुश शक्तियों के विरुद्ध जन-आन्दोलन हुआ । इस आन्दोलन ने संघर्ष का रूप धारण कर लिया। इस आन्दोलन को संगठन की संज्ञा प्रदान नहीं की जा सकती। नेपाल में हुए जन-संघर्ष को लोकतन्त्र के लिए दूसरे आन्दोलन की संज्ञा प्रदान की गई थी।
  5. दबाव समूह राजनीति को प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं। ये लॉबीइंग जैसी प्रक्रियाओं का भी सहारा लेते हैं। ये विधायकों पर प्रभाव डालकर अपने पक्ष में कानून निर्माण करवाने में सफल हो जाते हैं। इसके लिए वे विधायकों को रिश्वत भी देते हैं और यदि किसी विधायक द्वारा दबाव समूहों के विरुद्ध कार्य किया जाता है तो वे उसकी हत्या तक करा देते हैं।
  6. दबाव-समूह यद्यपि प्रत्यक्ष रूप से चुनावों में भाग नहीं लेते हैं तथा चुनाव में वे अपने उम्मीदवार खड़े नहीं करते हैं परन्तु अप्रत्यक्ष रूप से वे राजनीतिक दलों को निर्वाचन में धन से सहायता करते हैं तथा उम्मीदवारों को टिकट देने की प्रक्रिया को भी वे प्रभावित करने का प्रयास करते हैं। राजनीतिक दलों का प्रचार कार्य दबाव समूहों द्वारा ही किया जाता है।
  7. निस्सन्देह लोकतन्त्र में दबाव-समूह तथा आन्दोलन दोनों ही देश की राजनीति को प्रभावित करते हैं परन्तु उनकी कार्यशैली में अन्तर देखने को मिलता है।
प्रश्न 2 – दबाव – समूहों तथा राजनीतिक दलों के आपसी सम्बन्धों का स्वरूप कैसा होता है? वर्णन कीजिए।
उत्तर— दबाव समूहों तथा राजनीतिक दलों के आपसी सम्बन्धों का स्वरूप
राजनीतिक दल तथा दबाव समूहों के आपसी सम्बन्धों के स्वरूप को निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है-
  1. दबाव समूह तथा राजनीतिक दल दोनों ही जनता के संगठन होते हैं। वे संगठन विभिन्न विचारधाराओं, सिद्धान्तों अथवा हितों पर आधारित होते हैं। अतः दोनों ही राजनीति को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं । लोकतान्त्रिक देश में दबाव समूह तथा राजनीतिक दल में गहरा सम्बन्ध होता है। राजनीतिक दल आकार में बहुत व्यापक होते हैं। इनका राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय स्तर होता है जबकि दबाव समूह का आकार बहुत बड़ा नहीं होता है परन्तु कुछ दबाव समूह राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक कार्यरत रहते हैं। वे राजनीतिक दल के नेताओं, प्रतिनिधियों तथा सरकार पर दबाव डालते रहते हैं।
  2. दबाव-समूह मन्त्रियों से सीधा सम्पर्क स्थापित करते हैं जिससे वे अपने उद्देश्य में सफल हो सकें। वे शासन की नीतियों तथा कार्यक्रमों को अपने पक्ष में कराने के लिए सदैव प्रयासरत रहते हैं।
  3. निर्वाचन के समय दबाव समूह राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों को आर्थिक सहायता प्रदान करते हैं जिससे वे विजयी होने के बाद उनके पक्ष में कानूनों का निर्माण करें। राजनीतिक दल भी दबाव समूहों की माँगों का समर्थन करते हैं।
  4. राजनीतिक दल अपने हितों से सम्बन्धित मुद्दों पर परस्पर सम्मेलन, आन्दोलन, प्रदर्शनों, बन्द तथा धरनों में सहयोग करते हैं। यह भी देखा गया है कि अनेक बार राजनीतिक दलों द्वारा दबाव समूहों को आगे रखकर अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए मोहरों के रूप में उनका प्रयोग किया जाता है। जब दबाव-समूह अपने उद्देश्यों में सफल हो जाते हैं, तब वे राजनीतिक की हर प्रकार से सहायता करते हैं।
  5. जन-समर्थन प्राप्त करने तथा सामान्य जनता से अपना सम्पर्क बनाए रखने के उद्देश्य से राजनीतिक दलों द्वारा दबाव समूहों का निर्माण किया जाता है। जैसे भारतीय जनता पार्टी का आर०एस०एस०, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् तथा विश्व हिन्दू परिषद् से सीधा सम्पर्क है तथा दबाव समूह चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की भरपूर सहायता करते हैं।
प्रश्न 3 – दबाव समूह की गतिविधियाँ लोकतान्त्रिक सरकार के कामकाज में कैसे उपयोगी होती हैं?
उत्तर- दबाव समूह की गतिविधियों की उपयोगिता
लोकतान्त्रिक सरकार के कामकाज में दबाव समूह की गतिविधियों को निम्न प्रकार व्यक्त किया जा सकता है—
  1. लोकतन्त्र में शासन की निरंकुशता का विरोध किया जाता है। यदि सरकार जन-विरोधी तथा अपनी हित पूर्ति के कानूनों का निर्माण करती है तो विरोधी दलों द्वारा इसका विरोध किया जाता है। राजनीतिक दलों को मजबूत करने के उद्देश्य से दबाव समूह भी शासन की अनुचित नीतियों की आलोचना करते हैं। दबाव- समूहों की उपस्थिति लोकतन्त्र को अधिक मजबूत बनाती है।
  2. दबाव-समूह के कारण लोकतन्त्र की जड़ें मजबूत हुई हैं। शासकों के ऊपर दबाव डालना लोकतन्त्र में कोई अहितकर गतिविधि नहीं है, यदि इसका लाभ सभी को प्राप्त हो।
  3. दबाव समूह सामान्य जनता की आवश्यकताओं को सरकार के सम्मुख प्रस्तुत करते हैं। सरकारें धनी तथा शक्तिशाली लोगों के अनुचित दबाव में आकर बहुसंख्यकों के हितों को हानि पहुँचा सकती हैं। अतः दबाव-समूह जनसाधारण के हित में सरकार के ऊपर दबाव डालकर उपयोगी भूमिका निभा सकते हैं।
  4. वर्ग-विशेषी हित-समूह भी लोकतन्त्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं। जब विभिन्न समूह अपनी-अपनी माँगों को मनवाने के लिए सरकार पर दबाव डालते हैं। यदि कोई एक समूह सरकार पर अपने हित में कानून बनाने के लिए दबाव डालता है तो दूसरा समूह इसके प्रतिकार में दबाव डालेगा कि नीतियाँ इस प्रकार से निर्मित न की जाएँ ।
  5. दबाव समूह की गतिविधियों से सरकार को भी यह आभास रहता है कि विभिन्न हित-समूह शासन से क्या चाहते हैं? इससे परस्पर विरोधी हितों के बीच सामंजस्य बैठाना तथा शक्ति सन्तुलन करना सम्भव हो जाता है।
  6. दबाव समूह राजनीतिक दलों तथा प्रशासनिक अधिकारियों को इस कारण प्रभावित करते हैं जिससे उनके अधिकतम हितों को प्रोत्साहन तथा संरक्षण प्राप्त हो सके। लोकतन्त्र में तो प्रतिनिधित्व क्षेत्रवाद तथा जातिके आधार पर दिया जाता है।
प्रश्न 4 – दबाव समूह क्या है? कुछ उदाहरण दीजिए।
उत्तर – दबाव समूह सामान्य हितों की पूर्ति करने के लिए जनता का ऐसा संगठन है जो संवैधानिक प्रक्रिया द्वारा अपने हितों की पूर्ति के लिए शासन पर दबाव डालता है। इसका स्वरूप अराजनीतिक होता है।
उदाहरण-
(i) किसान संघ – अखिल भारतीय किसान यूनियन
(ii) मजदूर संघ – ऑल इण्डिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस
(iii) अध्यापक संघ – माध्यमिक शिक्षक संघ
(iv) छात्र संघ – अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्
(v) धार्मिक संघ – विश्व हिन्दू परिषद्
(vi) व्यापारी संघ – फेडरेशन ऑफ इण्डियन चेम्बर ऑफ कॉमर्स एण्ड इन्डस्ट्री
(vii) सांस्कृतिक संघ – नेहरू युवा केन्द्र
(viii) आर्थिक संघ – ऑल इण्डिया बैंकर्स एम्लोयिज एशोसिएशन
प्रश्न 5 – दबाव समूह और राजनीतिक दल में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर— दबाव-समूह तथा राजनीतिक दल में अन्तर
दबाव-समूह और राजनीतिक दल में निम्नलिखित अन्तर पाए जाते हैं-
  1. राजनीतिक दल का कार्यक्षेत्र बहुत विस्तृत होता है। ये राष्ट्रीय स्तर तक फैले हुए होते हैं जबकि दबाव समूह का कार्यक्षेत्र सीमित होता है। क्योंकि ये क्षेत्र-विशेष की समस्याओं से सम्बन्धित होते हैं। परन्तु कुछ दबाव-समूहों का स्वरूप राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय भी होता है।
  2. राजनीतिक दल विस्तृत विचारधाराओं तथा सिद्धान्तों पर आधारित होते हैं जबकि दबाव समूह संकीर्ण विचारों पर आधारित होते हैं। ये विभिन्न माध्यमों से अपनी स्वार्थपूर्ति करना चाहते हैं।
  3. राजनीतिक दलों के सदस्यों की संख्या लाखों में होती है जबकि दबाव समूह आकार की दृष्टि से छोटा संगठन होता है।
  4. राजनीतिक दलों की सदस्यता एकल होती है क्योंकि एक समय पर एक व्यक्ति केवल एक ही राजनीतिक दल का सदस्य बन सकता है। जबकि दबाव समूहों की सदस्यता बहुल भी हो सकती है क्योंकि हितों अथवा पेशे के आधार पर एक व्यक्ति एक ही समय में एक से अधिक दबाव-समूहों का सदस्य बन सकता है।
  5. राजनीतिक दलों की प्रकृति राजनीतिक होती है, वे राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेते हैं। चुनाव में भाग लेते हैं तथा राजनीतिक सत्ता को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। जबकि दबाव समूहों की प्रकृति अराजनीतिक होती है, वे राजनीति में भाग नहीं लेते हैं। उनका उद्देश्य सत्ता को प्राप्त करना नहीं होता है, वरन् अपनी माँगों को मनवाने के लिए सरकार पर दबाव डालना होता है।
  6. राजनीतिक दल अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सदैव संवैधानिक साधनों का प्रयोग करते हैं जबकि दबाव समूह संवैधानिक तथा गैर-संवैधानिक दोनों प्रकार के साधनों का प्रयोग कर सकते हैं।
  7. राजनीतिक दलों द्वारा नीतिगत निर्णय लिए जाते हैं जबकि दबाव समूहों द्वारा लचीले निर्णय लिए जाते हैं। ये समय तथा परिस्थितियों के अनुरूप परिवर्तित होते रहते हैं।
प्रश्न 6 – जो संगठन विशिष्ट सामाजिक वर्ग जैसे मजदूर, कर्मचारी, शिक्षक और वकील के हितों को बढ़ावा देने की गतिविधियाँ चलाते हैं, उन्हें ¨¨¨¨कहा जाता है।
उत्तर- वर्गीय दबाव- समूह |
प्रश्न 7 – निम्नलिखित में किस कथन से स्पष्ट होता है कि दबाव समूह तथा राजनीतिक दल में अन्तर होता है-
(क) राजनीतिक दल राजनीतिक पक्ष लेते हैं जबकि दबाव समूह ‘राजनीतिक मामलों की चिन्ता नहीं करते।
(ख) दबाव समूह कुछ लोगों तक ही सीमित होते हैं, जबकि राजनीतिक दल का दायरा ज्यादा लोगों तक फैला होता है।
(ग) दबाव समूह सत्ता में नहीं आना चाहते जबकि राजनीतिक दल सत्ता हासिल करना चाहते हैं ।
(घ) दबाव समूह लोगों की लामबन्दी नहीं करते, जबकि राजनीतिक दल करते हैं।
उत्तर- (ग) दबाव समूह सत्ता में नहीं आना चाहते जबकि राजनीतिक दल सत्ता हासिल करना चाहते हैं।
प्रश्न 8 – सूची – I ( संगठन तथा संघर्ष ) का मिलान सूची-II से कीजिए तथा सूचियों के नीचे दी गई सारणी से सही उत्तर का चयन कीजिए-
सूची-I सूची-II
1. किसी विशेष तबके या समूह के हितों को बढ़ावा देने वाले संगठन (क) आन्दोलन
2. जनसामांन्य के हितों को बढ़ावा देने वाले संगठन (ख) राजनीतिक दल
3. किसी सामाजिक समस्या के समाधान के लिए चलाया गया एक ऐसा संघर्ष जिसमें सांगठनिक संरचना हो भी सकती है और नहीं भी । (ग) वर्ग – विशेषी हित-समूह
4. ऐसा संगठन जो राजनीतिक सत्ता पाने की गरज से लोगों को लामबन्द करता है। (घ) लोक कल्याणकारी हित-समूह
1 2 3 4
(क)
(ख)
(ग)
(घ)
उत्तर-
(ख)
प्रश्न 9 – सूची-I का सूची – II से मिलान करें तथा सूचियों के नीचे दी गई सारणी से सही उत्तर को चुनें-
सूची-I सूची-II
1. दबाव समूह (क) नर्मदा बचाओ आन्दोलन
2. लम्बी अवधि का आन्दोलन (ख) असम गण परिषद्
3. एक मुद्दे पर आधारित आन्दोलन (ग) महिला आन्दोलन
4. राजनीतिक दल (घ) खाद विक्रेताओं का संघ
1 2 3 4
(अ)
(ब)
(स)
(द)
उत्तर-
(अ)
प्रश्न 10 – दबाव समूहों तथा राजनीतिक दलों के विषय में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए-
(क) दबाव समूह समाज के किसी खास तबके के हितों की संगठित अभिव्यक्ति होते हैं।
(ख) दबाव समूह राजनीतिक मुद्दों पर कोई न कोई पक्ष लेते हैं।
(ग) सभी दबाव समूह राजनीतिक दल होते हैं।
अब नीचे दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनें-
(अ) क, ख और ग
(ब) क और ख
(स) ख और ग
(द) क और ग
उत्तर- (ब) क और ख ।
प्रश्न 11 – ” मेवात हरियाणा का सबसे पिछड़ा इलाका है। यह गुड़गाँव तथा फरीदाबाद जिले का हिस्सा हुआ करता था। मेवात के लोगों को लगा कि इस इलाके को अगर अलग जिला बना दिया जाए तो इस इलाके पर ज्यादा ध्यान दिया जाएगा। लेकिन, राजनीतिक दल इस बात में कोई रुचि नहीं ले रहे थे। सन् 1996 में मेवात एजुकेशन एण्ड सोशल ऑर्गेनाइजेशन तथा मेवात साक्षरता समिति ने अलग जिला बनाने की माँग उठायी। बाद में सन् 2000 में मेवात विकास सभा की स्थापना हुई। इसने एक के बाद एक कई जन-जागरण अभियान चलाए। इससे बाध्य होकर बड़े दलों यानि कांग्रेस और इण्डियन नेशनल लोकदल को इस मुद्दे को अपना समर्थन देना पड़ा। उन्होंने फरवरी 2005 में होने वाले विधानसभा के चुनाव से पहले ही कह दिया कि नया जिला बना दिया एगा। नया जिला सन् 2005 की जुलाई में बना । “
इस उदाहरण में आपको आन्दोलन, राजनीतिक दल तथा सरकार के बीच क्या रिश्ता नजर आता है? क्या आप कोई ऐसा उदाहरण दे सकते हैं जो इससे अलग रिश्ता बताता हो ?
उत्तर— आन्दोलन समाज के किसी विशेष मुद्दे के सम्बन्ध में सामान्य जनता की उठी हुई आवाज है। यह आवाज धीरे-धीरे फैलती जाती है तथा एक संगठन का रूप धारण कर लेती है। यह संगठन कालान्तर में दबाव समूह का रूप धारण कर लेता है। इस उदाहरण में विभिन्न दबाव- -समूहों ने स्वेच्छा से एक अलग जिला बनाने की माँग उठाई। प्रारम्भ में राजनीतिक दलों ने इस बात में कोई रुचि नहीं ली। परन्तु जब इस आन्दोलन ने उग्र रूप धारण कर लिया तथा इस आन्दोलन की लोकप्रियता बढ़ती गई तो राजनीतिक दलों ने भी इस माँग का समर्थन करना प्रारम्भ कर दिया। राजनीतिक दलों को सत्ता प्राप्त करने के लिए जनता के मत चाहिए थे। लोकतन्त्र में जनमत की अवहेलना करना बहुत कठिन है। अतः हरियाणा राज्य के सभी दलों ने 2005 में होने वाले विधानसभा के चुनावों से पूर्व ही इस क्षेत्र के मतदाताओं को यह आश्वासन दिया कि सत्ता के आने के तुरन्त बाद ही मेवात को जिला बना देंगे। जब उनमें से एक राजनीतिक दल ने सरकार का निर्माण किया तो उसने जनता की इस माँग को पूरा कर दिया।
इस उदाहरण द्वारा यह स्पष्ट होता है कि आन्दोलनों, दबाव – समूहों तथा राजनीतिक दलों के बीच सम्बन्ध होता है। दबाव समूह जनसम्पर्क तथा आन्दोलनों द्वारा राजनीतिक दलों तथा अन्त में सरकार पर अपनी माँगों को मनवाने के लिए दबाव डाल सकते हैं तथा सरकार इन माँगों की उपेक्षा नहीं कर सकती है।
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
• विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 – नेपाल में लोकतन्त्र की स्थापना के लिए किए गए जन-आन्दोलन की पृष्ठभूमि समझाइए। इसका क्या प्रभाव हुआ?
उत्तर – सन् 2006 के अप्रैल माह में नेपाल में एक विलक्षण जन-आन्दोलन प्रारम्भ हुआ। नेपाल में लोकतन्त्र 1990 के दशक में आया किन्तु राजा औपचारिक रूप से राज्य का प्रधान बना रहा लेकिन वास्तविक सत्ता का प्रयोग जनता के द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों के हाथों में था। आत्यन्तिक राजतन्त्र से संवैधानिक राजतन्त्र के इस संक्रमण को राजा वीरेन्द्र ने स्वीकार कर लिया था लेकिन शाही खानदान के एक रहस्यमय कत्लेआम में राजा वीरेन्द्र की हत्या हो गई। नेपाल के नये राजा ज्ञानेन्द्र लोकतान्त्रिक शासन को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे। लोकतान्त्रिक रूप से निर्वाचित सरकार की अलोकप्रियता और कमजोरी का उन्होंने लाभ उठाया । सन् 2005 की फरवरी में राजा ज्ञानेन्द्र ने तत्कालीन प्रधानमन्त्री को अपदस्थ करके जनता द्वारा निर्वाचित सरकार को भंग कर दिया। 2006 की अप्रैल में जो आन्दोलन उठ खड़ा हुआ उसका लक्ष्य शासन की बागडोर राजा के हाथ से लेकर पुन: जनता के हाथों में सौंपना था।
संसद की सभी बड़ी राजनीतिक पार्टियों ने एक ‘सेवेन पार्टी अलायंस’ (सप्तदलीय गठबन्धन – एस०पी०ए०) बनाया और नेपाल की राजधानी काठमाण्डू ‘ में चार दिन के ‘बन्द’ का आह्वान किया। इस प्रतिरोध ने जल्दी ही अनियतकालीन ‘बन्द’ का रूप ले लिया और इसमें माओवादी बागी तथा अन्य संगठन भी सम्मिलित हो गए। लोग कर्फ्यू तोड़कर सड़कों पर निकल आए। लगभग एक लाख लोग रोजाना एकजुट होकर लोकतन्त्र की बहाली की माँग कर रहे थे और लोगों की इतनी बड़ी तादाद के आगे सुरक्षा बलों की एक न चल सकी। 21 अप्रैल, 2004 के दिन आन्दोलनकारियों की संख्या 3-5 लाख तक पहुँच गई और आन्दोलनकारियों ने राजा को ‘अल्टीमेटम’ दे दिया। राजा ने आधे-अधूरे मन से कुछ रियायत देने की घोषणा की जिसे आन्दोलन के नेताओं ने स्वीकार नहीं किया। नेता अपनी माँगों पर अडिग रहे कि संसद को बहाल किया जाए; सर्वदलीय सरकार बने तथा एक नई संविधान सभा का गठन हो ।
24 अप्रैल, 2004 अल्टीमेटम का अन्तिम दिन था। इस दिन राजा तीनों माँगों को मानने के लिए बाध्य हुआ। एस०पी०ए० ने गिरिजा प्रसाद कोईराला को अन्तरिम सरकार का प्रधानमन्त्री चुना। संसद फिर बहाल हुई और इसने अपनी बैठक में कानून पारित किए। इन कानूनों के सहारे राजा की अधिकांश शक्तियाँ वापस ले ली गई। नई संविधान सभा के निर्वाचन के तौर-तरीकों पर एस०पी०ए० और माओवादियों के बीच सहमति बनी। इस संघर्ष को नेपाल का ‘लोकतन्त्र के लिए दूसरा आन्दोलन’ कहा गया। नेपाल के लोगों का यह संघर्ष पूरे विश्व के लोकतन्त्र – प्रेमियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
प्रश्न 2 – लोकतान्त्रिक व्यवस्थाओं में जन-संघर्षो तथा आन्दोलनों ने राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी प्रारम्भ कर दी है। इसके कारणों पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर – जन-संघर्षों तथा आन्दोलनों की भूमिका
लोकतान्त्रिक व्यवस्थाओं में जनता को स्वतन्त्र रूप से अपने विचार अभिव्यक्त करने का अधिकार होता है। जनता शासन की अनुचित नीतियों का भी विरोध कर सकती है। जब समाज के कुछ व्यक्ति किन्हीं नीतियों का विरोध करने लगते हैं तो समाज के अन्य व्यक्ति अथवा संस्थाएँ भी उनका समर्थन करने लगती हैं, उनको अपना सहयोग प्रदान करने लगती हैं। जन-संघर्षों आन्दोलनों की भूमिका को निम्न प्रकार व्यक्त किया जा सकता है—
  1. सामाजिक आन्दोलन अन्याय, शोषण, उत्पीड़न तथा अत्याचारों के विरुद्ध अपनी आवाज उठाते हैं। अधिकांश सामाजिक कार्यकर्ता दिन-रात सामाजिक कल्याण, सामाजिक समानता तथा सामाजिक न्याय के लिए कार्य करते रहते हैं। ये कार्यकर्त्ता उन लोगों में लोकप्रिय हो जाते हैं, जिनकी समस्याओं को ये समाज अथवा शासन के सम्मुख उठाते हैं। समाज के पिछड़े वर्गों के व्यक्ति, महिलाएँ तथा दलित एवं अल्पसंख्यक समुदाय के लोग भी सामाजिक आन्दोलनों को अपना समर्थन देते रहते हैं।
  2. सामाजिक आन्दोलन जनता में राजनीतिक चेतना को जाग्रत करता है। इससे स्वस्थ जनमत का निर्माण होता है । जनमत की शक्ति सामाजिक आन्दोलनों को मजबूत बनाती है। इसलिए बड़ी संख्या में लोग उनके अनुयायी बन जाते हैं। कोई भी राजनीतिक दल जनमत की अवहेलना नहीं कर सकता है। राजनीतिक दलों को जनता के समर्थन तथा मतों की आवश्यकता होती है।
  3. आन्दोलनों के माध्यम से नेता अपनी माँगों को मनवाने के लिए सरकार पर दबाव डालते हैं तथा उनकी व निर्णय निर्माण की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। यह देखा गया है कि अनेक बार आन्दोलनकारी नेता स्वयं अथवा अपने प्रतिनिधि मन्त्रालयों अथवा विभागों में भेजते हैं जिससे वे ऐसे कानून तथा उपकानूनों का निर्माण करें जो आन्दोलनकारियों के लक्ष्यों की पूर्ति करने में सहायक हो सके।
  4. सामाजिक आन्दोलन से सम्बद्ध नेतागण यह भली-भाँति जानते हैं कि यदि वे राजनीति में भाग लेंगे, तब ही सभी राजनीतिक दल उसकी बातों तथा माँगों को ध्यान से सुनेंगे तथा उसमें रुचि लेंगे।
  5. सामाजिक आन्दोलनों ने बड़े पैमाने पर राजनीतिक गतिविधियों को प्रभावित करना प्रारम्भ का दिया है तथा देश की राजनीति में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका हो गई है। इन आन्दोलनों के नेता जन-संचार के साधनों तथा प्रेस के माध्यम से राजनीति, राजनीतिक दलों की नीतियों तथा कार्यक्रमों को प्रभावित करते हैं तथा विभिन्न स्तरों पर कार्यरत शासन की नीतियों तथा निर्णयों को भी प्रभावित करते हैं।
• लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1— नेपाल के पूर्व नरेश ज्ञानेन्द्र की लोकतन्त्र विरोधी कार्यवाहियों की संक्षेप में चर्चा कीजिए।
उत्तर – नेपाल नरेश की लोकतन्त्र विरोधी कार्यवाही.
  1. नेपाल के राजा ज्ञानेन्द्र लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था के विरोधी थे। लोकतान्त्रिक रूप से निर्वाचित सरकार की अलोकप्रियता तथा कमजोरी का उन्होंने लाभ उठाया।
  2. फरवरी 2005 ई० में राजा ज्ञानेन्द्र ने तत्कालीन प्रधानमन्त्री को अपदस्थ करके जनता द्वारा निर्वाचित सरकार को भंग कर दिया।
  3. अप्रैल 2006 ई० में जो आन्दोलन प्रारम्भ हुआ, उसका उद्देश्य लोकतन्त्र की बहाली था। राजा ने बर्बरतापूर्वक आन्दोलन को कुचलने का प्रयास किया।
प्रश्न 2 – नेपाल में एस०पी०ए० द्वारा संचालित की गई गतिविधियों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर— नेपाल के सभी बड़े राजनीतिक दलों ने एक ‘सेवेन पार्टी अलायंस’ (एस०पी०ए०) का गठन किया तथा नेपाल की राजधानी काठमाण्डू में चार दिन के ‘बन्द’ का आह्वान किया। इस विरोध ने धीरे-धीरे नियमित रूप तथा ग्रहण कर लिया। बाद में इसमें माओवादी तथा अन्य संगठन भी सम्मिलित हो गए। लोग कर्फ्यू का उल्लंघन करके सड़कों पर आ गए। लोगों की बड़ी संख्या के आगे सुरक्षा बल भी असहाय महसूस करने लगा। 21 अप्रैल को आन्दोलनकारियों की संख्या 3 से 5 लाख तक पहुँच गई तथा आन्दोलनकारियों ने राजा को ‘अल्टीमेटम’ दे दिया। नेता अपनी माँगों— संसद को बहाल किया जाए; सर्वदलीय सरकार का निर्माण हो; तथा एक नई संविधान सभा का गठन हो, पर अड़ गए। 24 अप्रैल, 2004 अल्टीमेटम का अन्तिम दिन था। इस दिन राजा ने तीनों माँगों को मान लिया। एस०पी०ए० ने गिरजा प्रसाद कोईराला को अन्तरिम सरकार का प्रधानमन्त्री चुना । आन्दोलनकारियों की जीत हुई । संसद बहाल हुई तथा इसने अपनी बैठक में अनेक प्रकार के कानून पारित किए। संसद ने कानून द्वारा राजा की अधिकांश शक्तियों को छीन लिया तथा राजा को शक्तिहीन बना दिया । निरंकुश राजतन्त्र को सीमित राजतन्त्र में परिवर्तित कर दिया।
प्रश्न 3 – दबाव समूह अथवा हित समूह से आप क्या समझते हैं? इनके प्रमुख कार्यों की विवेचना कीजिए ।
उत्तर – दबाव समूह का अर्थ – दबाव समूह सामान्य उद्देश्यों से प्रेरित अथवा सामान्य हितों वाले व्यक्तियों का संगठन होता है जिनका उद्देश्य सरकार पर दबाव डालकर अपने हितों की पूर्ति करना होता है । हित – समूह के कार्य – लोकतन्त्र में दबाव समूहों के निम्नलिखित कार्य हैं-
  1. जनमत का निर्माण करना — हित समूह अपनी माँगों का व्यापक प्रचार करते हैं जिससे जन-साधारण भी उनकी माँगों का समर्थन करने लगता है। इससे प्रबुद्ध, स्वस्थ तथा जागरूक जनमत का निर्माण होता है। ये जन-संचार साधनों का प्रयोग करते हैं।
  2. समाचार-पत्रों पर नियन्त्रण करना – जनमत को अपने पक्ष में करने के लिए दबाव समूह समाचार-पत्रों पर नियन्त्रण करके उनके माध्यम से अपने हितों का प्रचार करते हैं।
  3. हड़तालों तथा प्रदर्शनों की व्यवस्था करना – दबाव – समूह सरकार के ऊपर दबाव डालने के लिए हड़तालों तथा प्रदर्शनों का सहारा लेते हैं। ये हड़ताल, धरनों तथा रैलियों का भी आयोजन करते हैं।
  4. निर्वाचन के समय राजनीतिक दलों का समर्थन करनादबाव समूहों का सम्बन्ध राजनीतिक दलों से होता है। ये राजनीतिक दलों के पक्ष में प्रचार करते हैं। वे अपनी पसन्द के राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों का समर्थन करते हैं। ये तन, मन तथा धन से राजनीतिक दलों की सहायता करते हैं।
प्रश्न 4 – चुनाव में चुनाव चिह्नों का क्या महत्त्व है?
उत्तर – चुनाव में चुनाव चिह्नों का बहुत महत्त्व है। चुनाव चिह्नों को प्रदान करने का अधिकार निर्वाचन आयोग को प्राप्त होता है। चुनाव चिह्नों का प्रयोग इसलिए किया जाता है कि इससे उम्मीदवार की आसानी से पहचान हो जाती है। अधिकांश विकासशील देशों में लोग अनपढ़ हैं, वे उम्मीदवार के नाम को पढ़ नहीं सकते। अतः वे अपनी पसन्द के उम्मीदवार को उनके चिह्नों से पहचानते हैं। अतः चुनाव में प्रत्येक राजनीतिक दल को तथा निर्दलीय प्रत्याशियों को चुनाव चिह्न आबंटित किए जाते हैं।
प्रश्न 5 – चुनाव घोषणा-प‍ -पत्र क्या होता है? चुनाव घोषणा-पत्र की उपयोगिता क्या है?
उत्तर – अर्थ – चुनाव घोषणा-पत्र ऐसे प्रपत्र को कहा जाता है, जो चुनाव के समय विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा घोषित किए जाते हैं। चुनाव घोषणा-पत्र में राजनीतिक दल सत्ता में आने के पश्चात् किन नीतियों अथवा कार्यक्रमों को अपनाएँगे, का उल्लेख मिलता है।
उपयोगिता – चुनाव घोषणा पत्र की उपयोगिता को निम्न प्रकार व्यक्त किया जा सकता है-
  1. इसके द्वारा पता चलता है कि किसी दल की आन्तरिक अथवा बाहरी नीतियाँ क्या हैं?
  2. यदि वह दल सत्तारूढ़ होगा, तो क्या करेगा?
  3. चुनाव के बाद ‘चुनाव घोषणा पत्र’ के अनुसार कार्य करने के लिए जनता सरकार पर दबाव डालती है।
प्रश्न 6 – सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार से आप क्या समझते हैं? विवेचना कीजिए ।
उत्तर – सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार बिना किसी जाति, धर्म, सम्प्रदाय, लिंग, शिक्षा अथवा वर्ग के भेदभाव के सभी वयस्क पुरुषों तथा महिलाओं को मतदान का अधिकार प्रदान करने की स्थिति को कहते हैं। इसमें मतदान का अधिकार अवयस्क, पागल, दिवालिया, अपराधियों तथा विदेशियों को प्रदान नहीं किया जाता है। वर्तमान समय में विश्व के अधिकांश देशों में 18 वर्ष के नागरिक को मताधिकार प्रदान किया गया है। वयस्क मताधिकार नागरिकों को राजनीतिक समानता प्रदान करता है। वयस्क मताधिकार के कारण ही नागरिक प्रशासनिक कार्यों में भाग लेते हैं. तथा उनकी सार्वजनिक कार्यों में रुचि उत्पन्न हो जाती है।
प्रश्न 7 – नेपाल एवं बोलिविया में हुए लोकप्रिय निर्णयों के जन-संघर्ष में कोई दो अन्तर बताइए ।
उत्तर-
  1. नेपाल में प्रारम्भ किए गए जन-संघर्ष का उद्देश्य लोकतन्त्र की पुनर्स्थापना करना था जबकि बोलिविया के जन-संघर्ष में निर्वाचित तथा लोकतान्त्रिक सरकार को जनता की माँग मानने के लिए बाध्य किया गया था।
  2. बोलिविया का जन संघर्ष सरकार की एक विशेष नीति के विरुद्ध था जबकि नेपाल में चले आन्दोलन ने इस बात का निश्चय किया कि देश की राजनीति की नींव क्या होगी। ये दोनों ही संघर्ष सफल रहे परन्तु इनके प्रभाव के स्तर पृथक्-पृथक् थे।
• अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 – गुप्त मतदान किसे कहते हैं?
उत्तर— जब मतदाता बिना किसी की उपस्थिति में, अपने मत का प्रयोग करता है, तो उसे गुप्त मतदान कहा जाता है। यह मतपत्र द्वारा होता है।
प्रश्न 2 – गुप्त मतदान का एक लाभ बताइए ।
उत्तर – गुप्त मतदान में मतदाता स्वेच्छा से निर्भय होकर मत का प्रयोग करता है क्योंकि किसी दूसरे व्यक्ति को उसके मत के विषय में पता नहीं चलता है।
प्रश्न 3 – चुनाव याचिका से आप क्या समझते हैं?
उत्तर – जब कोई उम्मीदवार अथवा मतदाता चुनावी प्रक्रिया से सन्तुष्ट नहीं होता तो वह इसके विरुद्ध सीधे उच्च न्यायालय में याचिका प्रस्तुत कर सकता है। इसे चुनाव याचिका कहा जाता है।
प्रश्न 4 – फेडेकोर (FEDECOR ) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर – बोलिविया में जनसंघर्ष का नेतृत्व करने वाला यह एक संगठन था जिसमें इंजीनियर, छात्र, शिक्षक, पर्यावरणविद् तथा स्थानीय कामकाजी लोग सम्मिलित थे।
प्रश्न 5 – नेपाल में वर्तमान में किस प्रकार का शासन है?
उत्तर – वर्तमान में नेपाल में लोकतन्त्र है। राजतन्त्र समाप्त हो चुका है।
प्रश्न 6 – निर्वाचक मण्डल से आप क्या समझते हैं?
उत्तर — इसमें उन लोगों को सम्मिलित किया जाता है, जिन्हें मताधिकार प्राप्त होता है।.
प्रश्न 7 – नामांकन किसे कहते हैं?
उत्तर – किसी एक व्यक्ति को चुनाव में सरकारी तौर पर प्रत्याशी बनने के लिए स्वीकृति प्राप्त होना नामांकन कहलाता है।
प्रश्न 8 – साधारण बहुमत किसे कहते हैं?
उत्तर – साधारण बहुमत का तात्पर्य ऐसी निर्वाचन पद्धति से है जिसमें सबसे अधिक मत प्राप्त करने वाले प्रत्याशी को निर्वाचित घोषित किया जाता है।
प्रश्न 9 – पूर्ण बहुमत से आप क्या समझते हैं?
उत्तर – जब प्रत्याशी को डाले गए मतों का 50 प्रतिशत से अधिक भाग प्राप्त हो जाता है तो उसे पूर्ण बहुमत की संज्ञा प्रदान की जाती है।
• बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1 – सन् 2006 में अप्रैल माह में नेपाल में एक विलक्षण जन-आन्दोलन उठ खड़ा हुआ जिसका उद्देश्य था-
(अ) राजतन्त्र स्थापित करना
(ब) लोकतन्त्र स्थापित करना
(स) माओवादी शासन लाना
(द) राजा को पद से हटाना ।
उत्तर- (ब) लोकतन्त्र स्थापित करना।
प्रश्न 2 – नेपाल में सर्वप्रथम लोकतन्त्र किस वर्ष स्थापित हुआ-
(अ) सन् 1960
(ब) सन् 1965
(स) सन् 1980
(द) सन् 1990.
उत्तर – सन् 1990.
प्रश्न 3 – नेपाल के लोकतान्त्रिक आन्दोलन एवं बोलिविया के “जलयुद्ध के बीच समानता थी- 
(अ) राष्ट्रीय भागीदारी की
(ब) जनता की लामबन्दी की
(स) अहिंसक आन्दोलन की
(द) हिंसा की अधिकता की ।
उत्तर- (ब) जनता की लामबन्दी की।
प्रश्न 4 – निम्नलिखित में से किस देश में उठे लोकतन्त्र के आन्दोलन का विशेष उद्देश्य था राजा को अपने आदेशों को वापस लेने के लिए बाध्य करना-
(अ) नेपाल
(ब) चीन
(स) भारत
(द) श्रीलंका ।
उत्तर- (अ) नेपाल ।
प्रश्न 5 – ट्रेड यूनियन्स किस प्रकार का समूह है-
(अ) सामाजिक समूह
(ब) वर्ग – विशेष समूह
(स) संस्थागत समूह
(द) अस्थायी समूह ।
उत्तर – (ब) वर्ग – विशेषण समूह |
प्रश्न 6 – निम्नलिखित में से जो वर्ग-विशेष के हित-समूह का उदाहरण नहीं है, वह है-
(अ) मजदूर संगठन
(ब) मानवाधिकार संगठन
(स) व्यावसायिक संगठन
(द) पेशेवरों के संगठन ।
उत्तर- (ब) मानवाधिकारी संगठन |

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *